”जो अभी हमें पता चल गया है, वह जल्द ही पूरी दुनिया को भी पता चल जाएगा. एक बार जान लेने के बाद परमाणु बम बनाने में आसान और सस्ते हैं. जल्द ही दूसरे देश भी इन्हें हासिल करने की कोशिश करेंगे, जिससे इसकी विनाशकारी शक्ति और अधिक बढ़ जाएगी”
परमाणु बम के बारे में यह बात उसे बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले भौतिकी के वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपनहाईमर ने कही थी, जिसे दुनिया भर में विलेन और पाकिस्तान में हीरो माने जाने वाले भौतिकशास्त्री अब्दुल कादिर खान ने सही साबित कर दिया.
आज यदि दुनिया परमाणु बम के डर के साए में रह रही है, तो इसका जिम्मेदार परमाणु हासिल करने की दौड़ को शुरू करने वाले अमेरिका और रशिया के साथ-साथ पाकिस्तानी अब्दुल कादिर खान को भी माना जाता है.
ऐसे में यह जानना दिलचस्प रहेगा कि वह कौन है और दुनिया को परमाणु खतरे में डालने के लिए कुख्यात है-
परमाणु खतरे की सौगात देने का आरोपी
अब्दुल कादिर खान पर आरोप हैं कि उन्होंने इरान, नॉर्थ कोरिया और लीबिया जैसे देश, जहां राजनीतिक अस्थिरता और अति राष्ट्रवाद और तानाशाही जैसी स्थितियां हैं, उन्हें परमाणु हथियार बनाने में मदद की थी. वह भी तब द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में हुए परमाणु हमले के बाद दुनिया उसकी विनाशकारी ताकत से दुनिया रूबरू हो चुकी है.
एक तरफ, जहां जापान आज भी उस हमले से मिले जख्मों को भूल नहीं पाया है, वहीं नॉर्थ कोरिया और इस्लामिक कट्टरता से जूझ रहे देशों को परमाणु शक्ति हासिल करवाने में मदद कर अब्दुल कादिर खान ने दुनिया को हमेशा के लिए परमाणु खतरे की सौगात दे दी.
‘मोहसिन ए पाकिस्तान’ से नवाजे गए अब्दुल कादिर खान का रुतबा पाकिस्तान में उतना ही बड़ा है, जितना किसी देश में युद्ध से जीतकर लौटे सैनिक का होता है. यही नहीं पिछले साल ही पाकिस्तान की जानी मानी यूनिवर्सिटी सैयद इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी ने विज्ञान में उनके योगदान को सराहनीय मानते हुए उसे प्रतिष्ठित एलुमनाई का दर्जा दिया था.
Dr. Abdul Qadeer Khan (Pic: arkansasonline.com)
बुद्धि के गलत इस्तेमाल ने बनाया विलेन
1936 में अंग्रेजों द्वारा अधीन भारत में जन्म लेने के बाद अब्दुल कादिर खान को 1947 में अपने मुस्लमान होने की पहचान के कारण अपनी जन्मभूमि छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा, जिसे सांप्रदायिकता के दम पर बनाया गया था.
हालांकि, अब्दुल कादिर खान को इससे प्रभावित नहीं होना पड़ा, उन्होंने सभी सुविधाओं के बीच बेल्जियम की कैथलिक ‘यूनिवर्सिटी ऑफ ल्युवेन’ से इंजिनीयरिंग में डॉक्टरेट हासिल की.
इस लिहाज से अब्दुल कादिर को विलेन करार देना थोड़ा अटपटा लगता है, लेकिन सच तो यही है कि उसने अपनी शिक्षा और बुद्धि का गलत इस्तेमाल किया.
1970 के आसपास उसे मेट्रोलॉजिलिस्ट के तौर पर नीदरलैंड के यूरेनियम प्लांट में नौकरी हासिल कर ली थी. यही वह जगह थी, जहां से उसे परमाणु बम बनाने से जुड़ी हर जरूरी जानकारी हासिल कर ली थी. दूसरी तरफ 1974 में राष्ट्रवाद और कोल्ड वॉर के चलते एक-दूसरे के खिलाफ खड़े भारत और पाकिस्तान में हर चीज को लेकर प्रतिद्वंद्विता थी.
वहीं जब इस साल भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया तो पाकिस्तान में भी भारत की होड़ करने के लिए खलबली मची, जो अब्दुल कादिर खान ने भी महसूस की.
‘अति राष्ट्रवाद’ बना कैटलिस्ट और…
अति राष्ट्रवाद की भावना से जूझ रहे और पाकिस्तान को भारत के साथ खड़ा करने की जिद को लेकर अब्दुल कादिर खान ने पाकिस्तान सरकार को परमाणु परीक्षण से संबंधित कई पत्र लिखे. शुरुआत में इन्हें नजरअंदाज कर दिया गया.
हालांकि, बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने उनके एक पत्र को ध्यान में रखते हुए नीदरलैंड में पाकिस्तान एंबेसी को उनसे बातचीत करने के लिए कहा, जिसके तुरंत बाद अब्दुल कादिर ने चोरी से सेंट्रीफ्यूज कॉपी कर उन कंपनियों के बारे में पता लगा लिया, जो परमाणु हथियार बनाने के लिए पाकिस्तान की यूरेनियम की जरूरत को पूरा कर सकते थे.
इस प्रक्रिया के दौरान ही खान को रोका जा सकता था, लेकिन पाकिस्तान के जरिए अपने हित साधने में लगे अमेरिका ने चुपचाप से परमाणु का विस्तार होते देखना उसके खिलाफ कोई ठोस कदम न उठाना ज्यादा बेहतर समझा.
इस कारण परमाणु बनाने में जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी से जुड़े सामान, जिसमें हाईली एनरिच्ड यूरेनियम और सेंट्रीफ्यूज के डिजाइन आदि शामिल थे. सभी का बंदोबस्त कर अब्दुल कादिर खान पाकिस्तान लौटा और पाकिस्तान में परमाणु हथियार बनाने को लेकर चल रही जद्दोजहद को एक नई दिशा दी.
A.Q.Khan (Pic: Gettyimages)
अमेरिकी की मदद से आसान हुई राह
अब्दुल कादिर खान ने पाकिस्तान के परमाणु हथियार हासिल करने के इरादे में आधे से ज्यादा कामयाबी हासिल कर ली थी. उसी समय 1979 में अमेरिका ने उस पर पाबंदी लगा दी, जो कुछ समय बाद हटा ली गई.
क्योंकि, 1979 में ही क्रिसमस ईव के दिन रूस ने अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया था, जिसके बाद अपने सुरक्षा सलाहकार की सलाह पर अमेरिका के राष्ट्रपति जिम कार्टर ने पाकिस्तान की भौगोलिक महत्ता को नजर में रखते हुए उस पर से पाबंदियां हटा ली.
शीतयुद्ध में अमेरिका रूस के दबदबे को बढ़ने से रोकना चाहता था, जिसके लिए उसे अफगानिस्तान के करीब सैन्य अड्डा और अफगानिस्तान में लड़ाकों को हथियार और आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए एक जगह की जरूरत थी.
अमेरिका की उस मदद को पाकिस्तान ने पूरा किया.
वहीं अमेरिका की तरफ से मिलने वाली 400 मिलियन डॉलर की आर्थिक और सैन्य मदद से 1998 में पाकिस्तान ने एक सफल परमाणु परीक्षण कर लिया.
अब्दुल कादिर खान ने खुद एक साक्षात्कार में कहा कि अफगान युद्ध ने पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण में अहम भूमिका निभाई और यदि वह युद्ध ना होता तो पाकिस्तान को परमाणु शक्ति हासिल करने में काफी समय और लग जाता.
आज जब नॉर्थ कोरिया के रूप में अमेरिका पर परमाणु खतरा मंडराने लगा है, तो उसे एहसास हुआ है कि जापान ने क्या सहा होगा. वहीं पाकिस्तान, जो एक समय में अमेरिका का गहन मित्र समझा जाता था, वह आज चाइना की शरण लेकर अमेरिका को आंखे दिखाने लगा है.
बेनजीर भुट्टो ने जब खोली पोल…
अपने पिता की मौत के बाद दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहने वाले बेनजीर भुट्टो, जिन्हें 2003 में देश से बाहर कर दिया था. उन्होंने दुबई में एक साक्षात्कार दिया था.
उस साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि उन्हें अब्दुल कादिर खान के गैरकानूनी तरीके से परमाणु तकनीक को बाहर भेजने के बारे में कैसे पता चला था.
उन्होंने बताया कि 1989 में जब वह ईरान दौरे पर थी, तो उस समय वहां के राष्ट्रपति अकबर हाशमी रफसंजानी ने डिनर के बाद, उन्हें अकेले में बुलाकर बताया कि पाकिस्तान और ईरान की सेना प्रमुखों के बीच सुरक्षा से जुड़े समझौते हुए हैं. जिसमें पाकिस्तान द्वारा ईरान को परमाणु हथियारों से जुड़ी तकनीक उपलब्ध करवाने की बात कही गई है.
वो आगे बताती हैं कि वो ये सुनकर हैरान थी कि दोनों देश के बीच यह सब चल रहा है और प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें इस बात की खबर तक नहीं है.
उस घटना के तुरंत बाद अपने देश लौटकर प्रधानमंत्री ने आर्मी जनरल मिर्जा आलम बेग से इस संबंध में बात की, लेकिन मिर्जा आलम बेग ने उसके बारे में जानकारी नहीं होने की बात कही, जिसे भुट्टो ने बिल्कुल स्वीकार नहीं किया.
उन्हें पता था कि जनरल झूठ बोल रहे हैं पर अपने देश में लोकतंत्र की ढांचे और आर्मी की ताकत को पहचानते हुए उन्होंने चुप रहना उचित समझा. हालांकि, उन्होंने कुछ कदम उठाए जिसमें बिना उनकी इजाजत के परमाणु वैज्ञानिकों के विदेशी टूर को रद्द करवा दिया गया था.
दुनिया भर में परमाणु से जुड़ी गतिविधियों पर नजर रखने वाली एजेंसी IAEA ने भी इस बात की पुष्टि की कि अब्दुल कादिर खान ने 1987 में ईरान को परमाणु तकनीक हासिल करवाने के संबंध में उससे संपर्क किया था.
Benazir Bhutto Expose A.Q.Khan (Pic: theexpresstribune)
नॉर्थ कोरिया को भी दी अपनी सेवाएं
1990 के दशक में अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों ने नॉर्थ कोरिया की परमाणु गतिविधियों के बारे में पता लगा लिया था. 2004 में अपने मशहूर कन्फेशन में अब्दुल कादिर खान ने बताया था कि 1990 के दशक में वो लगभग 13 बार नॉर्थ कोरिया की यात्रा पर गए थे.
इस दौरान उसने नॉर्थ कोरिया को परमाणु तकनीक में सहयोग किया था. इसके अलावा अब्दुल कादिर ख़ान ने ये भी बताया कि उसने न सिर्फ नॉर्थ कोरिया और इरान बल्कि गद्दाफी जैसे तानाशाह और खून की नदियां बहा देने वाले देश लीबिया को भी परमाणु तकनीक दी थी.
2004 में परवेज मुशर्रफ ने अब्दुल कादिर खान से ये सब कुबूल करवाने में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन वो उस समय तक देश के हीरो बन चुके अब्दुल कादिर खान के खिलाफ कोई कदम नहीं सके. इसका फायदा उठाकर अब्दुल कादिर ख़ान ने अपने अतिराष्ट्रवाद के चलते दुनिया को फिर से एक और परमाणु खतरे के किनारे पर लाकर खड़ा कर दिया.
Web Title: A.Q. Khan, Father of Pakistani Nuclear Program, Hindi Article
Feature Image Credit: Rehan Syed/youtube