कनिष्क विमान यानी ‘एयर इण्डिया 182’ के लिए वह काला दिन ही था, जब उसमें सवार सभी 329 लोगों ने अपनी जान गवां दी.
ये जहाज अचानक ही रडार से गायब हुआ और इसका मलबा व लोगों के शवों का ढेर अटलांटिक महासागर में मिलने से सभी के होश उड़ गए. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि विमान के साथ असल में हुआ क्या है..!
दरअसल विमान किसी हादसे का नहीं बल्कि एक साजिश का शिकार हुआ था. विमान में साजिश के तहत सिख अलगाववादी आतंकवादियों द्वारा बम रखे जाने के बाद आसमान में हुए जोरदार धमाके ने एक ही झटके में सब कुछ खाक कर दिया. विमान में सवार सभी लोग मौत की नींद सो गए. यहां तक की विमान के पायलट और अन्य कर्मचारी भी खुद को नहीं बचा सके.
तो आइये, उस हादसे पर एक नजर डालकर घटना को जानने का प्रयास करते हैं. आखिर क्या वजह थी कि हमलावरों ने उसमें बम रखकर कई बेगुनाहों की जान लेने की सोची, जिसके बाद अटलांटिक महासागर में मौत का सबसे खौफनाक मंजर देखने को मिला –
कनाडा से भारत के लिए भरी थी उड़ान
23 जून 1985 का दिन था, हवाई अड्डे पर विमानों का आवागमन चालू था. कनाडा के मांट्रियल हवाई अड्डे से एयर इण्डिया का 182 संख्या विमान यात्रियों को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुआ.
हवाई अड्डे से उड़ान भरने के बाद आसमान में कनिष्क विमान के साढ़े चार घंटे बीत चुके थे. 9400 मीटर की ऊंचाई पर यह हवा से बातें करते हुए आयरलैंड तट के ठीक ऊपर था. इसे नई दिल्ली से पहले लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरना था.
45 मिनट के बाद कनिष्क विमान लंदन में उतरने ही वाला था, विमान के पायलट भी लैंडिंग की तैयारी में जुटे हुए थे. किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी.
विमान में 307 यात्री और 22 चालक दल कर्मचारियों के साथ कुल मिलाकर 329 लोग सफर कर रहे थे.
उधर ट्रैफिक कंट्रोल रूम द्वारा कनिष्क विमान की हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही थी. पायलट का संपर्क भी कंट्रोल रूम से जुड़ा हुआ था.
उस वक्त कंट्रोल रूम के रडार पर तीन विमान दिखाई दे रहे थे, जिसमें से एक कनिष्क विमान भी था.
और अचानक सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर कंट्रोल रूम में बैठे कर्मचारियों के पैरों तले जमीन खिसक गई. उन्होंने देखा कि रडार पर अब तीन विमान की जगह दो ही विमान नजर आ रहे थे.
कंट्रोल रूम से कनिष्क विमान का संपर्क टूट चुका था. विमानों पर नजर रख रहे ट्रैफिक कंट्रोल रूम के कर्मचारियों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कनिष्क विमान हवा में कहां गायब हो गया.
Air India Flight 182 exploded over the Atlantic Ocean. (Pic: Reelgood)
… और अटलांटिक में डूब गया विमान
कनिष्क विमान से संपर्क टूटने के करीब दो घंटे बाद सामान ढोने वाले एक पानी के जहाज ने अटलांटिक महासागर में विमान के मलबे बिखरे होने की जानकारी दी, पानी में कई लाशें तैर रही थीं. जांच के बात ये साफ हो गया कि मलबा एयर इण्डिया 182 का ही है.
हालांकि लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे से आपातकालीन बचाव कर्मी विमान के गायब होते ही उसकी खोज में निकल चुके थे. जानकारी मिलने के बाद बचाव कर्मियों ने अटलांटिक महासागर में मौत का वह भयावह मंजर देखा जिसे भुलाना शायद ही उनके लिए मुमकिन हो. विमान के परखच्चे और मलबे उस दर्दनाक मंजर की गवाही देने के लिए काफी थे.
कोई भी यात्री जिंदा नहीं बचा. हमले में मरने वालों में ज्यादातर लोग कनाडा के नागरिक थे. मरने वाले 329 यात्रियों में से 280 कनाडाई और 86 बच्चों सहित 30 से ज्यादा सिख लोग शामिल थे.
घटना स्थल पर पहुंचने के बाद राहत और बचाव कर्मियों द्वारा विमान के मलबे का कुछ ही हिस्सा बाहर निकाला गया. कई लोगों के शव भी लापता थे. इस वजह से 131 लोगों के शव ही समुद्र से निकाले जा सके.
कुछ शवों के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पता चला कि उनकी मौत बम विस्फोट या ऊंचाई से गिरने के कारण नहीं बल्कि पानी में डूबने से हुई थी.
A piece of Wreckage Air India Kanishka. (Pic: thewire)
दो विमानों में थी विस्फोट करने की योजना
विस्फोट के 5 महीने बाद जांच में पता चला की उड़ान से पहले ही दो विमानों में बम रखा गया था. इसमें एक कनिष्क विमान भी था. दूसरा, जापान के नारिटा एयरपोर्ट पर भारत आने वाले एयर इंडिया के एक विमान में सामान लोड किए जाने के दौरान धमाका हुआ था.
ये धमाका वैंकूवर से टोक्यो पहुंचे एक विमान से निकाले गए सामान में हुआ था. बाद में जांच के दौरान एक ही व्यक्ति के नाम सामने आए, जिसने वैंकूवर से टोक्यो और वैंकूवर से नई दिल्ली वाया वाया लंदन की उड़ान का टिकट कटाया था. हालांकि वह इन दोनों में से किसी भी उड़ान में मौजूद नहीं था लेकिन उसका सामान दोनों जहाजों में चढ़ाया जा चुका था.
बम कनिष्क विमान के ठीक नीचे फटा था, इस कारण ब्लैक बॉक्स और कॉकपिट वायर रिकॉर्डर से विमान और एयर ट्रैफिक कंट्रोल का संपर्क टूट गया.
पहले आरोपी के रूप में वेंकूवर का रहने वाला इंदरजीत सिंह रेयात 1991 में कनाडाई पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया. उसे सजा के तौर पर दस साल की जेल मिली. आगे चलकर अन्य आरोप में उसकी सजा को पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया.
इस व्यक्ति पर बम बनाकर विमान में रखे जाने और हादसे के बाद अपने साथियों को बचाने का आरोप था.
पुलिस का मानना था की हमले में इंदरजीत के आलावा दो और मास्टर माइंड तलविंदर सिंह परमार और अजैब सिंह बागड़ी भी शामिल थे. लेकिन उनके आरोपों को साबित नहीं किया जा सका और वह दोनों 2005 में छूट गए.
हालांकि एक पुलिस मुठभेड़ में तलविंदर सिंह भारत में ही मारा गया.
Inderjit Singh Reyat, Air India Bomb Maker. (Pic: cbc)
ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेना था मकसद
इस घटना के मुख्य आरोपी इंदरजीत का कहना था कि सन 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर हुए हमले का बदला लेने के लिए उसने यह साजिश रची थी.
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में आतंकियों के मंदिर पर कब्जा कर लेने के बाद हुई कार्रवाई में कई सिख विद्रोहियों की जान चली गई थी. मंदिर पर हुई इस सैन्य कार्रवाई को ‘आपरेशन ब्लू स्टार‘ नाम दिया गया था.
पेशे से मैकेनिक इंदरजीत सिंह पंजाब से आकर कनाडा में बस गया था, उसने डायनामाइट, डिटोनेटर्स और बैटरियां खरीदीं और उनसे बम बनाकर उन्हें अपने सामान के साथ विमान में रख दिया.
अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद से ही बब्बर खालसा चरमपंथी समूह का संस्थापक तलविंदर सिंह परमार और उसका साथी अजैब सिंह बागड़ी दोनों कनाडा की खुफिया एजेंसी सिक्योरिटी इंटेलिजेंस सर्विस (सीएसआईएस) के रडार पर थे.
4 जून 1985 को इन दोनों ने इंदरजीत सिंह से मुलाकात की और अपनी योजनानुसार आगे की रणनीति बनाई.
और 19 जून को परमार के एक सहयोगी ने दो कनेडियन पैसिफिक एयरलाइंस की एयर इंडिया उड़ान से जुड़ी दो टिकट खरीदीं. दोनों वैंकूवर से उड़ान भरने वाली थीं, एक लंदन के रास्ते और दूसरी जापान के रास्ते भारत जाने वाली थी. बम को सूटकेस में छिपाया गया था.
जैसे ही उड़ान आयरलैंड के तट पर पहुंची वह रडार से गायब हो गई, और सभी सवारियों के साथ जाकर महासागर में समां गई.
Jarnail Singh Bhindranwale with his followers inside the Golden Temple. (Pic: writingthroughlight)
ये कृत्य आतंकवाद का एक और भयावह मंजर दिखाता है.
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Web Title: Air India Kanishka Bombing: Flight 182 Bombed and Crashed was Worst Terrorism in Aviation History, Hindi Article
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