जितनी तेजी से समय का पहिया घूमा, उससे दोगुनी गति से इंसानी दिमाग ने समझ हासिल की. उसने विकास के वो मुकाम हासिल किए, जिनकी कुछ सदियों पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
एक पहिए के आविष्कार से शुरू हुआ इंसानी विकास का सफर, आज स्पेस शटल तक पहुंच गया है. जिसमें बैठकर न सिर्फ दुनिया बल्कि ब्रह्मांड की सैर की जा सकती है.
इस बात से तो सब भली भांति अवगत हैं कि इंसान की पहुंच से चांद भी दूर नहीं रहा. जब उस पर सबसे पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग अपनी इस उपलब्धि के चलते दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गए.
नील आर्मस्ट्रांग ने 20 जुलाई 1969 में चांद पर पहला कदम रखा था. मगर आपको बता दें कि वह पहले शख्स नहीं थे, जो अंतरिक्ष में गए.
उनके नाम केवल चांद पर पहला कदम रखने की ही उपलब्धि है. असल में नील आर्म स्ट्रांग से भी पहले एक शख्स स्पेस में गए थे, जिनके नाम आज भी अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय तक चलने का कीर्तिमान कायम है.
आखिर कौन था ये शख्स, आइए जानते हैं –
स्नातक की पढ़ाई के बाद मिला मौका
तो ये जनाब थे 1934 को मध्य साइबेरिया के एक छोटे से गांव लिसट्व्यांका में पैदा हुए एलेक्सी लियोनोव.
जब एलेक्सी 3 साल के थे, तो उनके पिता को बिना किसी आरोप के जेल में बंद कर दिया गया था. इस दौरान एलेक्सी के दोस्तों व पड़ोसियों ने उसे सोवियत संघ के विरुद्ध होने के प्रति बहुत भड़काया, मगर उसने इन सब पर ज्यादा गौर नहीं किया.
बचपन में कला का शौक रखने वाले एलेक्सी समय के साथ-साथ अपनी सोच बदलते रहे. जिसके चलते 20 साल की उम्र में उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की, और एक पायलट के तौर पर अपनी शिक्षा पूरी की. शिक्षा पूरी होने के तुरंत बाद ही एलेक्सी को अंतरिक्ष में जाने का अवसर मिला, जिसे उसने दोनों हाथों से कबूल किया.
अंतरिक्ष के अपने प्रशिक्षण की शुरुआत, उन्होंने यूरी गैगरीन के साथ शुरू की थी, जो कि 1961 के अप्रैल माह में अंतरिक्ष में जाने वाले पहले इंसान बने थे.
यूएसएसआर के प्रोग्राम का बने हिस्सा
हालांकि, उस समय इन लोगों को इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी कि अंतरिक्ष के वातावरण में जाकर इंसानी शरीर किस प्रकार प्रतिक्रिया करेगा. इसलिए सुरक्षा के लिहाज से उन्हें कड़ी ट्रेनिंग दी गई, जिसमें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की परीक्षा शामिल थी.
शारीरिक तौर पर तंदरुस्त बनाने के लिए उन्हें रोजाना 5 किलोमीटर दौड़ाया जाता था और 700 मीटर तैराकी करवाई जाती थी. इसके अलावा अलग-अलग खेल भी खिलाए जाते थे.
अंतरिक्ष में मौजूद जी फोर्स इंसानी शरीर की धज्जियां उड़ा सकती है, इसलिए उन्हें सेंट्रिफ्यूग एनर्जी में काफी समय बिताना पड़ता था.
दो साल तक लगातार कड़ी ट्रेनिंग को करने के बाद आखिरकार 1963 की शुरुआत में एलेक्सी को मध्य एशिया के सेंटर से एक आमंत्रण मिला. यह आमंत्रण यूएसएसआर स्पेस प्रोग्राम के मास्टर माइंड सरजी कोरोलेव द्वारा भेजा गया था.
आमंत्रण मिलने के बाद एलेक्सी अंतरिक्ष केंद्र पहुंच गए. जहां उन्हें स्पेसशिप का डिजाइन तैयार करने का कार्य सौंपा गया.
केंद्र में जिस स्पेसशिप पर काम चल रहा था, वह पहली नजर में तो किसी अन्य स्पेसशिप जैसा ही था, मगर इसमें एक छोटा अंतर था. इसमें एक पारदर्शी ट्यूब लगाई थी, जो कि 3 मीटर लंबी और 1.2 मीटर चौड़ी थी. इस ट्यूब को इसलिए लगाया गया था ताकि अंतरिक्ष यात्री इसमें बैठकर अंतरिक्ष में तैर सके. इसके सफल प्रशिक्षण की जिम्मेदारी एलेक्सी को सौंपी गई.
...और इतिहास रचने को शुरू किया सफर
इसके लिए एलेक्सी 2 घंटे अंतरिक्ष में चलने का अभियास किया करते थे. इसका अच्छे से प्रशिक्षण करने के बाद एलेक्सी ने कोरोलेव को अपनी समझ और रिसर्च के आधार पर सबसे बढ़िया तरीका सुझाया कि किस तरह सुरक्षित ढंग से अंतरिक्ष में निकला जा सकता है. और फिर वापस स्पेसक्राफ्ट में आया जा सकता है.
उनके सुझाव से कोरोलेव इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एलेक्सी को ही इस मिशन के लिए चयनित कर लिया.
इसके बाद मिशन की शुरुआत हुई, इसका नाम वोसखोद-2 रखा गया. इस मिशन में दो लोग जा रहे थे, एक स्पेसवॉल्कर और दूसरा स्पेसशिप को चलाने वाला पायलट.
मिशन में एलेक्सी का साथ देने के लिए पैवेल बेलयायेव को चुना गया, जोकि एलेक्सी से 10 साल सीनियर थे.
अंतरिक्ष यात्रा से पूर्व एलेक्सी और पैवेल को विशेष प्रशिक्षण दिलाया गया. इन दोनों को अंतरिक्ष के समान जीरो ग्रैविटी का अनुभव भी दिया गया. इस दौरान संघ की एक समस्या यह भी थी कि उनके पास तैयारी के लिए बहुत अधिक समय नहीं था. दूसरी ओर अमेरिका का नासा भी अपने अंतरिक्ष अभियान की तैयारी में था. ऐसे में रूस चाहता था कि उनका स्पेसशिप उनसे पहले अंतरिक्ष के लिए रवाना कर दिया जाए.
इंजन में लगी आग ने पैदा की दिक्कतें
आखिरकार वह ऐतिहासिक लम्हा आ ही गया.
18 मार्च 1965 को सोवियत स्पेसशिप ने अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी. इस उड़ान के साथ स्पेस केंद्र में जश्न का माहौल छा गया.
मगर वह इस बात से बेखबर थे कि हजारों मील दूर, उनका स्पेसशिप जल्द ही बड़ी परेशानी में पड़ने वाला था. वैश्विक समय 7 बजे अचानक रॉकेट के इंजन में आग लग गई.
आग इंजन से होती हुई, ओर्बिट तक जा पहुंची. इस दौरान बेलयायेव ने तुरंत एयरलॉक सिस्टम को ऑन कर दिया, लेकिन हवा के दबाव से एलेक्सी अपने लाइफ स्पोर्ट सिस्टम के साथ बाहर स्पेस में पहुंच गए.
इस दौरान लिओनोव इस इंतजार में थे कि बेलयायेव जल्द ही ओर्बिट के अंदर हवा के दबाव को सामान्य कर उन्हें वापिस अंदर खींच लेंगे. मगर ऐसा हुआ नहीं.
इस दौरान एलेक्सी अंतरिक्ष से धरती के बदलते स्वरूप को निहारने में इस कदर मशरुफ हो गए कि मानो वह अपनी मुसीबतों को एकाएक भूल ही गए. कुछ समय बाद उन्हें ऐहसास हुआ कि उनके हाथों में पहने हुए दस्ताने निकल रहे हैं, उनके जूते पैरों से उतर रहे हैं और सूट ढीला हो रहा है.
समझदारी ने बचा ली जान
उनके यूट में हवा भर जाने से उसका आकार बढ़ गया था. ऐसे हालात में अब एलेक्सी दोबारा से उस ट्यूब में दाखिल नहीं हो सकते थे, जिसे खासकर इस स्पेसशिप में लगाया गया था.
ऊपर से अगले 5 मिनट में पृथ्वी भी अपनी स्थिति बदलने वाली थी, जिसके कारण अंतरिक्ष के उस हिस्से में पूरी तरह से अंधेरा होने वाला था, जहां एलेक्सी फंसे हुए थे.
इस दौरान उन्होंने बड़ी सूझबूझ दिखाते हुए अपने स्पेससूट में भरी हवा को एक वॉल्व से बाहर निकालना शुरू कर दिया. हालांकि इसमें बहुत बड़ा खतरा था, इससे उनके खुद के लिए आॅक्सीजन कम पड़ सकती थी. लेकिन अगर वह वापिस अपने स्पेसशिप में न जाते तो वह वैसे भी मर ही जाते.
आॅक्सीजन निकालने के बाद उन्हें ऐहसास हुआ कि उनके लिए आक्सीजन की कमी हो रही है. बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जैसे तैसे चलकर एयरलॉक ट्यूब तक पहुंच गए.
हालांकि ट्यूब तक पहुंचने के बाद भी उन्हें काफी देर तक अंदर घुसने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी. और आखिरकार वह एयरक्राफ्ट में वापस पहुंच गए.
यहां आने के बाद भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई थीं.
स्पेसक्राफ्ट के अंदर आॅक्सीजन की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ गई थी. ऐसे में अगर इंजन से हल्की सी भी चिंगारी उठती है, तो वह दोनों वहीं जल कर खाक हो जाते.
लेकिन कुछ समय तक जब ऐसी कोई घटना नहीं हुई तो एलेक्सी और बेलयायेव ने अपनी वापसी के लिए पेटी कस ली.
ये वापसी इतनी आसान नहीं होने वाली थी, क्योंकि वापस जाते समय एकदम से रेट्रो रॉकेट में आग लग गई थी, जिसके चलते अब वोसखोड-2 स्पेसशिप एक जलते अंगारे के सामान वातावरण से टकराने वाला था.
इसी बीच भाग्य से स्पेस कैप्सूल रैट्रो राॅकेट से अलग हो गया और अलग दिशा की ओर बढ़ने लगा. जिसके चलते स्पेस केंद्र और कैप्सूल में बैठे एलेक्सी व बेलयायेव की जान में जान आई. और अंतत: सोवियत संघ का वोसखोड मिशन सफल रहा और वह अमेरिका से बाजी मारने में भी सफल रहे.
Web Title: Alexei Leonov: The First Man To Walk in Space, Hindi Article
Feature Image Credit: geminiresearchnews