“अपयश को स्वेच्छा से स्वीकार करो और दुर्भाग्य को मान्यता दो. महत्वपूर्ण न होना स्वीकार करो. स्वयं को विनम्रता से समर्पित करो. खुद की तरह इस संसार को प्रेम करो.”
इस प्रेम को जाग्रत करने की चेष्टा कर रहे हैं, चीन के दार्शनिक लाओत्से.
लाओत्से ने मनुष्य को सिखाया है कि अगर जीवन में अच्छाई और सत्य को अगर कोई पाना चाहता है, तो उसे समर्पण करना होगा. अगर वह दूसरों के आगे झुक नहीं सकता, तो समझो वो खाली हाथ रहेगा. और अगर दूसरों के आगे खाली या शून्य हो जाता है, तो वह सत्य के असीम भंडार को पा सकता है.
ऐसी ही कुछ अन्य रोचक ज्ञान की बातें बता रहे हैं लाओत्से. चलिए उन्हें जानते हैं –
लाओत्से क्या कोई काल्पनिक नाम?
लाओत्से को चीन में ताओ धर्म का प्रवर्तक माना जाता है. वहां इन्हें ठीक उसी प्रकार से पूजा जाता है, जैसे बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध को. इनकी विचारधारा भी कहीं न कहीं बुद्ध से प्रेरित मानी जाती है. और इसी के आधार पर इन्होंने ताओ धर्म की शुरूआत की.
लाओत्से को चीनी इतिहास में लाओ-सी, लाओ-से, ताओ ते चिंग, मास्टर लाओ, ओल्ड मास्टर, लाओ जुन, ताई सेंग जैसे कई नामों से पुकारा जाता है.
चीनी संस्कृति में लाओ सू एक सम्मानित उपाधि है. चीन में लाओ का मतलब होता है 'सम्मानित बुजुर्ग', वहीं, 'सू' का अर्थ है 'गुरु'.
604 ईसा पूर्व चीन के हूनान प्रांत में जन्मे लाओत्से का नाम ली इर (Li Erh) था. इनके जन्म के समय चीन में झोऊ राजवंश का शासन था. कई इतिहासकार इन्हें चौथी शताब्दी ईसा पूर्व का भी मानते हैं. हालांकि कई लोग इन्हें एक काल्पनिक शख्सियत मानते हैं.
चीन के कई इतिहासकार मानते हैं कि लाओत्से एक रहस्यमय व्यक्तित्व थे. उनका जन्म एक बूढ़े आदमी के तौर पर एक लंबी, सफेद दाढ़ी के साथ हुआ था.
हालांकि, वह इस बात पर भी एक मत नहीं हैं कि उनका जन्म कब और कहां हुआ था. वहीं, लाओत्से के जन्म और मौत का कोई वास्तविक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.
लाओत्से अपने दर्शन के आधार "ताओ" का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे. ऐसे में इन्हें ताओवाद का पिता माना जाता है.
इंसान- भगवान के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास
लाओत्से को कन्फ्युशियस का समकालीन भी माना जाता है. उस समय एक ओर जहां लाओत्से चीन में ताओ धर्म की शिाक्षा और विचारधारा को फैला रहे थे. उसी समय कन्फ्युशियस भी शिक्षा की शक्ति, अतीत के सम्मान, धर्म के आचरण और भ्रष्ट व्यवहारों में सुधार की शिक्षा दे रहे थे.
प्राचीन चीन में कन्फ्युशियस और ताओ धर्म की मान्यता लगभग समान ही थी. जहां इन दोनों ने अपने-अपने धर्म की शिक्षा और विचारधाराओं का प्रचार किया, वहीं, हान वंश के शासक प्राचीन भारत से निकले बौद्ध धर्म का प्रचार करते रहे.
लाओत्से ने इंसान और भगवान के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास भी किया है. इनका साफ कहना था कि अगर आप भगवान को पाना चाहते हैं, तो आपको ज्ञान की नहीं, भक्ति की आवश्यकता है. अगर आप ज्ञान को पाकर भगवान को पाने की कल्पना करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपने आपको धोखा दे रहे हैं.
इन्हीं विचारों को संजोकर लाओत्से ने 'ताओ-ते-चिंग' नामक ग्रंथ की रचना की थी. इसने कन्फ्युशियस के बाद चीनी सभ्यता और उसकी संस्कृति को सबसे ज्यादा प्रभावित किया. शायद इसी ग्रंथ के आधार पर चीन में ‘ताओ धर्म’ की शुरूआत हुई.
भगवान से जुड़ जाने की इच्छा में समय के साथ लाओत्से के कुछ शिष्य भी बन गए थे. लाओत्से अक्सर अपने शिष्यों की परीक्षा लिया करते थे.
वह उन्हें सवाल देते, लाओत्से उन सवालों के जवाबों को फाड़ कर फेंक देते. ये लगभग रोज का नियम था. मसला था कि लाओत्से पहले उन्हें प्रवचन देते, फिर उनसे प्रश्न पूछते. हां इसके सवाल वही होते थे, जैसा उन्होंने पढ़ाया होता.
बहरहाल, यूं ही रोज समय गुजर जाता. लाओत्से सवाल देते, बच्चे जवाब ले आते और लाओत्से फाड़ कर उन्हें फेंक देते.
काफी दिन यूं ही बीतने के बाद एक शख्स उनके पास गुस्से से आकर बोला कि "आखिर तुम्हें क्या चाहिए. तुम पागल तो नहीं हो! जो तुमने समझाया, वही तो लिखकर लाया हूं."
लाओत्से ने कहा कि "तुमने ठीक ही कहा है. मैंने जो कहा, तुमने जो सुना और उसी को लिखकर तुम ले आए हो. तुम्हारे पास इस बात का कोई अनुभव ही नहीं है."
तुम्हारी चेतना तुम्हारी बुद्धि तक सीमित है. जब ये बुद्धि से नाभि की ओर चलेगी और जब नाभि से श्वास आएगी, तब तुम्हारे उत्तर तुम्हारे अपने होंगे.
जब मुख्य न्यायाधीश बने लाओत्से
चीन के राजा ने एक बार लाओत्से को अपने दरबार में बुलाया.
राजा ने उनसे अपने राज्य का मुख्य न्यायाधीश बनने का अनुरोध किया. राजा का मानना था कि पूरे संसार में बुद्धिमान आप जैसा व्यक्ति न्यायाधीश बन जाए, तो उसका राज्य पूरे देश में एक आदर्श राज्य बन जाएगा.
हालांकि, पहली बार अनुरोध पर लाओत्से ने मुख्य न्यायाधीश बनने से इंकार कर दिया. राजा अपनी बात पर अड़ा रहा. वह लाओत्से को न्यायाधीश के पद पर देखना चाहता था.
राजा के जिद करने पर लाओत्से ने कहा कि "अगर वह राज्य के मुख्य न्यायाधीश बनते हैं, तो या तो वह न्यायाधीश बने रहेंगे या फिर राज्य की कानून व्यवस्था बनी रहेगी. इन दो चीजों के अलावा और कुछ भी संभव नहीं है."
बावजूद इसके लाओत्से न्यायाधीश बना दिए गए.
पहले ही दिन एक चोरी का मामला उनके समक्ष आया. असल में एक चोर ने राज्य के सबसे धनी आदमी के घर पर चोरी कर उसकी संपत्ति का लगभग आधा धन चुरा लिया था. लाओत्से ने बड़े गौर से दोनों पक्षों को सुना और फिर अपना फैसला सुनाया.
फैसले में लाओत्से ने कहा कि चोर और इस धनी व्यक्ति दोनों को 6-6 माह की जेल की सजा दी जाए.
इस फैसले को सुनते ही अमीर आदमी चौंक गया, उससे ज्यादा हतप्रभ तो राज्य का राजा था, जो लाओत्से को न्यायाधीश बनाने पर तुला था. अमीर आदमी ने फैसले पर सवाल उठाते हुए लाओत्से से कहा कि "आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? चोरी मेरे घर हुई है. धन मेरा चुराया गया है और चोर आपके सामने खड़ा है. फिर मैं दोषी कैसे?"
"यह कैसा न्याय है?"
लाओत्से ने कहा कि "मुझे लगता है कि मैंने अभी भी चोर के प्रति अन्याय ही किया है. तुम इस चोरी के सबसे बड़े जिम्मेवार हो. तुम्हें चोर से ज्यादा सजा देनी चाहिए. तुमने जरूरत से ज्यादा धन का संचय कर समाज के एक बड़े तबके को संपत्ति से वंचित कर दिया है."
"तुम धन संचय करने की लालसा में सने हुए हो. तुम्हारे अंदर के लालच ने इस देश में चोरों को प्रोत्साहन दिया है."
"तुम इस चोर से ज्यादा बड़े गुनहगार हो."
Web Title: Ancient Chinese Philosopher Laozi, Hindi Article
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