1974 में सऊदी किंग शाह फैसल पाकिस्तान दौरे पर थे. तब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुलफ्किार अली भुट्टो किंग शाह फैसल को एक मज़ार पर ले कर गए. मज़ार पर लोगों की ओर से चढ़ावे के तौर पर काफी रुपया चढ़ाया जा रहा था.
ये देख किंग शाह फैसल ने भुट्टो से कहा कि कब्रों को मज़ार बनाकर पूजना इतना बेहतर होता, तो उनके देश सऊदी अरब में तो इस्लाम के आख़िरी पैगंबर मोहम्मद साहब की कब्र है. इस तरह से उस कब्र को वह सोने-चांदी की बनाकर पूजते और काफी धन कमाते.
किंग शाह फैसल सऊदी के वो बादशाह थे, जो अपनी बेबाकी और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे. जब भी उनके दरबार में कोई इंसाफ की फरियाद लेकर पहुंचा, उसके साथ हमेशा इंसाफ हुआ. फिर चाहे फैसला सऊदी शाही परिवार के ख़िलाफ ही क्यों न हो.
शायद ये इंसाफ परस्ती शाही परिवार के कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आई. इसी कारणएक दिन इनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई.
ऐसे में किंग शाह फैसल की हुकूमत के दौर को जानना काफी दिलचरूप होगा –
अब्बा से सीखी इंसाफ की पैरवी
1906 में सऊदी अरब के बादशाह अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुर्रहमान अल सऊद के घर शाह फैसल की पैदाइश हुई. जब फैसल महज़ पांच महीने के थे, तो उनकी अम्मी का इंतकाल हो गया. इसके बाद उनकी नानी ने उनकी देखभाल की.
महज 9 साल की उम्र में फैसल ने इस्लाम की सबसे अहम किताब कुरआन को पढ़ना शुरू किया. उनके दादा ने उन्हें कुरआन और इस्लाम की सही और असल तालीम दी. जिसका असर ये रहा कि बचपन से ही उनके दिल में इंसाफ करने की बात घर कर गई थी.
फैसल बड़े होने लगे, तो उन्होंने अपने अब्बा किंग अब्दुल अज़ीज से हुकूमत करने का तरीका सीखा. शायद यही कारण है कि सऊदी परिवार अपने इंसाफ और कड़े कानून के लिए प्रसिद्ध है.
इसी शाही परिवार में फैसल ने इंसाफ पसंदी की बातें सीखीं. उनके पिता किंग अुब्दुल अज़ीज़ सऊदी अरब के बादशाह होने के बावजूद अपने दरबार में पीड़ितों से सीधे तौर पर मिलते और उनके दुखड़े सुनकर इंसाफ करते. इसका असर फैसल पर भी आने लगा था.
हालांकि फैसल के बाकी भाईयों में यह गुण नहीं थे.
20 की उम्र में बने गवर्नर
जब फैसल महज 13 साल के थे, उन्होंने अपने अब्बा के साथ ब्रिटेन की आधिकारिक यात्रा में सऊदी का नेतृत्व किया. अम्मी की मौत के बाद फैसल ने अपने अब्बा से 15 साल की उम्र तक इस्लामी तालीम पूरी तरह से सीख़ ली थी.
अब्बा अब्दुल अज़ीज से उन्होंने ये बात भी सीखी कि किसी भी कीमत पर गरीबों के साथ ज़ुल्म नहीं होना चाहिए. जब फैसल 20 के हुए तो उन्हें सऊदी अरब के हिजाज़ क्षेत्र का गवर्नर बना दिया गया.
गवर्नर के पद पर रहते हुए उन्होंने बेहतरीन कामों को अंजाम दिया. जिसके बाद सऊदी अवाम के बीच वो काफी मशहूर होते गए. उन्होंने बेहद कम उम्र में सऊदी अवाम के बीच अपनी एक अलग छवि बना ली थी.
साल 1930 में फैसल सऊदी अरब के विदेश मंत्री बने और उन्होंने इस दौरान कई अहम मुल्कों की यात्रा की. जिसमें ब्रिटेन, अमेरिका प्रमुख देश शामिल थे.
सऊदी महिलाओं पर अहम फैसले
फैसल ने विदेशों से दोस्ताना संबंध बनाते हुए उन्हें सऊदी में निवेश के लिए न्यौता दिया. फैसल का कहना था कि बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान बनाकर तब तक कोई फायदा नहीं है, जब तक इन संस्थानों की बेहतरी के लिए सरकार कोई काम अंजाम न दे. उन्होंने सऊदी में महिलाओं की शिक्षा पर बेहतरीन कार्य किया.
इतना ही नहीं, उन्होंने मीडिया को भी सऊदी में कायम किया. जानकर हैरानी होगी उनके कार्यकाल में मीडिया चैनल सऊदी में शुरू किए गए. इसके बाद उन्होंने सऊदी में दास प्रथा को ख़त्म किया. साथ ही फैसल ने अपने कार्यकाल में नस्लभेद को सऊदी में पनपने नहीं दिया.
इंसाफ के रास्ते में रोड़ा बना सगा भाई
साल 1953 में सऊदी के किंग अब्दुल अज़ीज़ की मौत हो गई. जिसके बाद सऊद परिवार की कमान फैसल के भाई सऊद के हाथों में आ गई.
हालांकि फैसल के भाई सऊद उनकी तुलना में काफी उलट थे. वो शाही ज़िंदगी जीने में भरोसा रखते थे, जबकि फैसल के लिए हुकूमत से ज़्यादा इंसाफ और देश की अवाम ज़्यादा प्यारी थी.
अब्बा के इंतेकाल के बाद भाई सऊद ने सरकारी खज़ाने को लुटाना शुरू कर दिया. शाही खज़ाने की जो राशि सऊदी जनता पर खर्च होनी होती थी, वह सऊद अपने शौक़ पूरे करने में खर्च करने लगे.
कुछ ही दिनों में सऊदी अरब पर करोड़ों रुपए का कर्जा हो गया. जिसके बाद सऊद ने अमेरिका को सस्ते दामों पर तेल बेचना शुरू कर दिया.
इससे सऊदी रियाल और कमज़ोर होता चला गया. फैसल को ये बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी.
ऐसे में एक दिन जब सऊद अपने ईलाज के लिए यूरोप गए, तो फैसल ने पूरी कैबिनेट को बदल डाला. शाही परिवार के लोगों को हटाकर वहां आम लोगों को तरजीह दी गई.
वापस आने के बाद दोनों भाईयों में इस बाबत विवाद हुआ. जिसके बाद सऊद मिस्र चले गए और वहां रेडियो प्रोग्राम की मदद से फैसल को बुरा भला कहने लगे.
इसके बाद फैसल ने अपने भाई की नागरिकता रद्द कर दी. साल 1964 में फैसल ने सऊदी किंग के रूप में शपथ ली.
साल 1973 में अरब-इज़राइल युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने इज़राइल को सहायता की, तो सबसे पहले फैसल ने अमेरिका की तेल सप्लाई बंद कर दी.
तेल सप्लाई बंद होने के बाद अमेरिका ने सऊदी पर हमला करने की चेतावनी दे डाली. इस पर फैसल ने कहा कि हमारे पूर्वज रेगिस्तान से आए हैं. हम वो लोग हैं, जो गरम रेत पर खजूर और पानी पीकर गुज़ारा कर सकते हैं. अमेरिका है जो तेल के बिना नहीं रह सकता.
फैसल ने अपनी हुकूमत के दौरान सऊदी अरब में एयरपोर्ट बनवाए और रेगिसतान में सड़कें बनाने का काम शुरू कराया.
शाह फैसल के नेतृत्व में सऊदी अरब काफी तरक्की कर रहा था. उन्होंने सरकारी ख़ज़ानों को सऊदी अवाम के लिए खोल दिया. साल 1955 में उन्होंने भारत का दौरा किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात की.
सगे भतीजे ने कर दी हत्या
25 मार्च, 1975 को किंग शाह फैसल अपने दरबार में सऊदी जनता की समस्याएं सुन रहे थे. इस दौरान उस सभा में उनका भतीजा प्रिंस फैसल भी था. जैसे ही शाह फैसल अपने भतीजे के पास गए, उसने पिस्टल निकालकर उन्हें गोली मार दी. गोली लगते ही वो नीचे गिर गए.
उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
उसी साल 18 जून को सऊदी में कत्ल करने के जुर्म में प्रिंस फैसल को कोर्ट ने मौत का फरमान सुनाया. सऊदी हुकूमती कानून के तहत सार्वजनिक स्थल पर 31 साल की उम्र में 18 जून 1975 को प्रिंस फैसल का सिर कलम कर दिया गया.
माना जाता है कि अमेरिका के लिए तेल सप्लाई बंद करने का फैसला शाह फैसल की मौत का कारण बना था.
Web Title: Assassination of Faisal Bin Abdulaziz Al Saud, Hindi Article
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