शायद मैं तब दसवीं में पढ़ रहा था, जब पहली बार रामजीदास पुरी का लिखा उपन्यास ‘आखिर जीत हमारी’ पढ़ा था. यह उपन्यास उस समय की पृष्ठभूमि पर लिखा गया था, जब भारत दानव प्रवृति वाले हूण आक्रमणकारियों के हमले से जूझ रहा था. मैं इनका नाम पहली बार सुन रहा था. इस कारण बड़ी जिज्ञासा हुई थी इसके बारे में और अधिक जानने की.
किन्तु, इंटरनेट उस समय इतना सुविधाजनक नहीं था, इसीलिए हूणों के बारे में जानने की इच्छा भी उपन्यास के ख़त्म होते ही समाप्त हो गयी. मगर तेजी से बदलते समय ने इंटरनेट की दुनिया में क्रांति ला दी है.
कुछ ही वक्त पहले हूणों के बारे में विस्तार से जानने की इच्छा ने दोबारा जन्म लिया, तो पढ़ना शुरु किया. इस दौरान उनके बारे में जो जानकारी हासिल हुई वह रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. ऐसा क्या पढ़ा मैने आईये विस्तार से बताता हूं…
कौन था ‘अत्तिला हूण’?
बीतते समय के साथ मैंने जाना कि हूण एशिया की एक जाति है. वह एक कबीले की तरह पनपी थी. फिर समय के फेर ने उसे देखते ही देखते चौथी-पांचवीं शताब्दी तक पूरे विश्व की एक शक्तिशाली ताकत बना दिया. मगोलों के बाद सबसे ज्यादा आतंक हूणों का ही रहा है.
हूण ताक़तवर तो थे, परन्तु अनुशासित नहीं!
माना जाता है कि अपनी इसी कमी के कारण उनका विनाश भी हुआ था.
हूण का एक राजा हुआ ‘अत्तिला हूण’. इसके बारे में कहा जाता है कि यह एक ऐसा राजा था, जिसने एशिया से लेकर यूरोपियन देशों तक हूण साम्राज्य का परचम लहराया. उसने हूण साम्राज्य को विश्व विजेताओं की क़तार में लाकर खड़ा कर दिया था.
‘अत्तिला’ का जन्म 405-06 ई. में डेन्यूब नदी से उत्तर की ओर हूणों के एक शक्तिशाली परिवार में हुआ था. अत्तिला का पिता मुंदजुक तत्कालीन सम्राट ऑक्टर और रुगा का भाई था. अत्तिला और उसके बड़े भाई ब्लेदा की परवरिश अन्य हूणों की तरह नहीं हुई. इसे तीरंदाज़ी के साथ-साथ युद्ध के सारे कौशल सिखाये गये.
जल्दी ही उसने खुद को पूरी तरह तैयार किया और हूणों का शासक बना. वह अपने समय का कितना बड़ा क्रूर शासक था. इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि उसे ‘भगवान का कोड़ा‘ तक कहा गया.
Attila the Hun (Representative Pic: shannacove.deviantart)
जब गद्दी पर बैठा अत्तिला हूण…
433 ई. में अत्तिला ने ब्लेदा के साथ मिलकर हूण साम्राज्य की बागडोर संभाली. पावर में आते ही उसने अपनी ताक़त को इकट्ठा करना शुरु कर दिया. वह हूण सम्राज्य का विस्तार चाहता था. उसकी नज़र अपने पड़ोसी राज्यों पर थी. वह पश्चिमी और पूर्वी रोमन साम्राज्य को सबसे पहले जीतना चाहता था. मौका पाकर उसने इन पर लगातार आक्रमण शुरू कर दिए.
कुछ ही समय में अत्तिला ने रोमन सम्राज्य की जड़ें हिला कर रख दीं. अत्तिला से रोम साम्राज्य इस तरह भयभीत हुआ कि उसने अत्तिला को शांति बनाए रखने के बदले 700 पौंड मूल्य का सोना वार्षिक कर के रूप में देना शुरू कर दिया. रोम द्वारा की गयी यह संधि अत्तिला की मृत्यु तक कायम रही.
445 ई. में ब्लेदा की मृत्यु हो गयी और अत्तिला हूण सम्राज्य का अकेला शासक बन गया. अत्तिला की ताकत अब पहले से ज्यादा बढ़ चुकी थी. वह उस समय का सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर माना जाने लगा.
450 ई. के पश्चात् अत्तिला पूर्वी साम्राज्य को छोड़ पश्चिमी साम्राज्य की ओर बढ़ा. पश्चिमी साम्राज्य का सम्राट तब वालेंतीनियन तृतीय था. सम्राट की बहन जुस्ताग्राता होनोरिया ने अपने भाई के विरुद्ध जाकर अत्तिला को अंगूठी उपहार स्वरुप भेजी. इसको अत्तिला द्वारा शादी का प्रस्ताव समझा गया. उसने इस पर अपनी सहमति जताई, किन्तु दहेज़ के रुप में उसका आधा राज्य मांग लिया.
आतंक का पर्याय बना ‘अत्तिला’!
पश्चिमी साम्राज्य का आधा राज्य दहेज के रुप में अत्तिला को महंगा पड़ा. इस कारण उसे युद्ध का सामना करना पड़ा. अपने पहले मोर्च पर तो वह सफल रहा था. वह मेत्स को लूटते हुए ल्वार नदी के तट पर बसे और्लियां तक पहुंचने में सफल रहा, किन्तु इसके आगे नहीं बढ़ सका.
दो महीने बाद 451 ई. के आसपास उसने एक बार फिर से पश्चिमी साम्राज्य पर हमला कर दिया. इस वार ने उसकी मुसीबत बढ़ा दी. दोनों सेनाएं सेन नदी के तट पर ट्रॉय के निकट मिली और शुरु हो गया एक खूनी संघर्ष.
इस भीषण युद्ध को जीतने के लिए अत्तिला ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी, मगर उसे हार का मुंह देखना पड़ा. कहा जाता है कि यह उसके जीवन की एकमात्र हार थी.
इस हार को अत्तिला पचा नहीं पा रहा था. वह शांत बैठने वाला नहीं था. उसने अपनी सेना को और ज्यादा मजबूत किया और इटली पर धावा बोल दिया. अंत में सम्राट वालेंतीनियन को भागने पर मजबूर होना पड़ा. इस युद्ध के बाद अत्तिला आतंक का पर्याय बन गया. यूरोपियन लोग उसके नाम से थर-थर कांपने लगे.
हंगरी को तो उसने अपना नाम तक दे दिया था. नार्वे और स्वीडन तक उसका वर्चस्व हो गया था. इसके बाद चीन के उत्तर-पूर्वी प्रांत कासू में उसने निकास किया. इस तरह वह यूरोप तक हूणों का विस्तार करने में सफल रहा.
Attila the Hun (Representative Pic: descopera.ro)
‘अत्तिला’ की रहस्यमयी मौत?
मत्यु जीवन का कड़वा सच है. इससे अत्तिला भी नहीं झुठला सका. किन्तु उसकी मौत इस तरह होगी यह किसी ने भी नहीं सोचा होगा. 453 ई. का समय रहा होगा. अत्तिला पूर्वी रोमन पर हमला करने की योजना बना चुका था, लेकिन इससे पहले उसके शादी का विचार आ गया. इसके तहत उसने ‘इल्डीको’ नामक एक सुन्दर औरत से शादी कर ली.
शादी वाली रात वह अपनी पत्नी के साथ था. इसी दौरान अचानक उसका रक्तचाप बढ़ गया. उसको उपचार दिया जाता, इससे पहले उसने अपना दम तोड़ दिया. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अत्तिला ऐसे-कैसे मर सकता है. उसकी मौत एक रहस्य से कम नहीं थी. अत्तिला को प्यार करने वालों के लिए यह एक गहरा सदमा था.
उसके शरीर को सोने-चांदी से बने ताबूत में कैद कर दफना दिया गया. जिन नौकरों ने उसके शव को दफ़नाया था, उन्हें मार दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि हूण नहीं चाहते थे कि किसी को पता चले कि अत्तिला का शरीर कहां दफ़न है.
हुआ भी ऐसा ही अत्तिला कहां दफन है, वह उसकी लाश के साथ ही दफन हो गया.
Army of Attila the Hun (Pic: ancient.eu)
अत्तिला बेशक़ एक क्रूर शासक था, मगर इसके साथ-साथ वह एक वीर योद्धा भी था. रही बात क्रूर होने की तो उस युग में अधिकांश शासक कमोबेश इसी प्रवृत्ति को तो थे.
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Web Title: Attila Hun The Scourge of God, Hindi Article
Featured image credit (Representative)/ Facebook open graph: starkafterdarkonline