दुनिया के हर देश का अपना एक इतिहास रहा है. किसी देश ने ज़ुल्म का विरोध करते हुये अपने क्रांतिकारियों का बलिदान देकर आज़ादी की पटकथा लिखी, तो किसी देश ने ज़ुल्म करने वाले देशों के विरुद्ध मोर्चा खोलकर अपना हक़ हासिल किया. इसी कड़ी में युद्ध के इतिहास में एक युद्ध ऐसा भी रहा, जिसकी कटु यादें लोगों के जेहन में आज भी ताजा हैं.
यहां बात हो रही है ‘बैटल ऑफ ब्रिटेन’ की, जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और ब्रिटेन के बीच लड़ा गया. कहते हैं कि यह एक ऐसा युद्ध था जिसे शुरु तो हिटलर ने शुरु किया था, किन्तु इसे खत्म ब्रिटिश सैनिकों ने किया था.
चूंकि, इस युद्ध में दुनिया के लिए तानाशाह का पर्याय बन चुके हिटलर की हार हुई थी, इसलिए इसके पहलुओं को टटोलना दिलचस्प रहेगा-
हिटलर ब्रिटेन पर चाहता था कब्जा
दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह माने जाने वाले हिटलर ‘बैटल ऑफ ब्रिटेन’ की लड़ाई की मुख्य वजह माना जाता है. सत्ता और नाज़ी सेना की ताक़त के नशे में चूर हो चुके हिटलर ने ब्रिटेन पर आक्रमण करने की रणनीति बनाई थी.
इससे पहले हिटलर फ्रांस में भी अपने लड़ाके भेज कर वहां काफी अशांति फैला चुका था. किस्मत से वहां उसको सफलता मिली, तो वह ब्रिटेन की ओर बढ़ चला. कहते हैं कि हिटलर ने नाज़ी सेना को रातों रात ब्रिटेन में उतारकर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था.
चारों तरफ से शांत दिख रहे ब्रिटेन में कुछ घंटो में ही हिटलर ने अपनी सेना की मदद से तांडव मचा दिया था. इन सब के पीछे हिटलर का सिर्फ एक ही मकसद था, किसी भी कीमत पर ब्रिटेन पर उसका कब्ज़ा . असल में वह जानता था कि अगर वह ब्रिटेन पर कब्जा जमाने में सफल रहा, तो उसकी ताकत इतनी हो जाएगी कि वह पूरी दुनिया को झुका सकता था.
हालांकि, यह आसान नहीं था.
Hitler with his Army (Pic: Reddit)
हिटलर बहुत मजबूत था, लेकिन…
अपने तानाशाही के दौर में हिटलर सबसे मज़बूत व्यक्ति था. उसके एक इशारे में जर्मन की तीनों सेनाएं किसी भी देश पर आक्रमण करने काम दम रखती थीं. इसके चलते दम पर वह फ्रांस जैसे मज़बूत देश पर भी कब्जा कर सकते थे. बावजूद इसके ब्रिटेन को जीतना उसके लिए आसान नहीं था.
हिटलर के सामने ब्रिटेन पर आक्रमण करने से पहले कई चुनौतियां थी. इसमें सबसे बड़ी चुनौती थी ब्रिटेन की ‘रॉयल एयर फोर्स’ का सामना करना. वह ब्रिटेन की सबसे आक्रामक वायु सेना थी.
हालांकि, कोई भी चुनौती हिटलर के कुत्सित ख्यालों को डिगा नहीं सकती थी. उसके ऊपर ब्रिटेन पर कब्ज़ा जमाने का भूत सवार था. वह किसी भी तरह अपनी नाज़ी सेना की मदद से ब्रिटेन पर राज करना चाहता था, इसलिये उसने रणनीति के तहत अपनी सेना को ‘रॉयल एयर फोर्स’ के सामने मुकाबले के लिए उतारा.
आसमां में लिखी गई युद्ध की इबारत!
हिटलर के इशारे पर युद्ध की सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी थीं. जर्मन वायु सेना के लड़ाकों ने अपनी कमर कस ली थी. बस इंतजार था, तो सिर्फ हिटलर के इशारे का. जल्द ही हिटलर ने अपनी सेना को हरी झंडी दिखा दी.
इशारा मिलते ही नाजी सेना ने अपने फाइटर प्लेन की टुकड़ी ब्रिटेन में भेजना शुरु कर दी थी.
12 अगस्त 1940 को जर्मन वायु सेना ने ब्रिटेन की ‘रॉयल एयर फोर्स’ फाइटर कमान के हवाई क्षेत्र समेत उसके रडार स्टेशनों पर गोले दागने शुरु कर दिए. इसके साथ ही ब्रिटेन के मैनस्टोन, लिम्पेन, केंट, ससेक्स जैसे मुख्य शहरों में नाजी सेना द्वारा हमले शुरु हो चुके थे. जल्द ही वह रडार स्टेशनों में से अधिकांश हवाई जहाज क्षतिग्रस्त करने में कामयाब रहे.
जर्मनी द्वारा अचानक किये गये हमले से ब्रिटेन एकदम सकते में आ गया.
Battle of Britain in Sky (Pic: PinsDaddy)
…जब ब्रिटेन ने किया पलटवार
हालांकि, उसे अपनी रॉयल एयरफोर्स पर पूरा भरोसा था. रॉयल एयरफोर्स ने भी उनकी उम्मीदों को कायम रखते हुये अगली सुबह 13 अगस्त को आसमान में अपने फाइटर प्लेन भेजकर जर्मन लड़ाकू विमानों पर पलटवार शुरु कर दिया.
चूंकि यह युद्ध ज़मीन से ज़्यादा आसमान पर लड़ा जा रहा था. इसलिये ब्रिटेन को फाइटर प्लेन उड़ाने वाले क़ाबिल और धुरंधर पायलटों की ज़रुरत थी. जानकार हैरानी होगी की ‘वॉर ऑफ ब्रिटेन’ में जर्मन सेना से युद्ध का लोहा लेने वाले सभी लोग ब्रिटिशर्स नहीं थे. इसमें न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अब ज़िम्बाब्वे, बेल्जियम, फ्रांस, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया के फायटर पायलट भी शामिल थे.
पौलेंड के फाइटर पायलटों की इस युद्ध में अहम भूमिका रही. वह भले ही ब्रिटेन के नहीं थे, किन्तु उन्होंने इस युद्ध को जीतने के लिए अपनी जान तक की बाजी लगा दी थी.
बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि आसमान में फाइटर प्लेन से युद्ध होने के कारण जर्मन सेना ने इस दिन को ‘ईगल डे’ का नाम दिया था. ईगल डे के दौरान जर्मन सेना से मुकाबला करने के लिये ब्रिटेन ने अपनी वायु सेना को बांट दिया और अलग-अलग दिशा से वार करने की हिदायत दी.
कई घंटों तक ब्रिटेन की ‘रॉयल एयर फोर्स’ और ‘जर्मन एयर फोर्स’ का आसमान पर मुकाबला चलता रहा. कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था. कहते हैं कि इस आसमानी युद्ध के दौरान आसमान धुएं से पूरा भर गया था.
ब्रिटिशर्स ने नहीं मानी हार और…
ब्रिटेन के लिये यह युद्ध ‘करो या मरो’ वाली स्थिति तक पहुंच चुका था. उसे पता था कि अगर वह यह युद्ध जीतने में विफल रहा, तो उसका भविष्य ठीक नहीं होगा. यही कारण था कि ब्रिटेन ने जर्मनी को हराने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. वहीं जर्मन सेना जानती थी कि अगर विश्वभर में जर्मनी की ताक़त का डंका बजाना है, तो ब्रिटेन को फ़तह करना ज़रुरी था.
चूंकि यह युद्ध आसमान पर लड़ा जा रहा था और वह उसमें बहुत मजबूत थे. इसका फायदा उठाते हुए उन्होंने एक नई रणनीति तैयार की और उसके तहत एक प्रभावी ‘वायु रक्षा नेटवर्क’ बनाने में सफल रहे. नाजी सेना को इस नेटवर्क का इल्म नहीं था, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा. वह कब ब्रिटेन की इस योजना का शिकार हुए, उन्हें खुद भी पता नहीं चला.
परिणाम यह रहा कि अंतत: हिटलर को हार का मुंह देखना पड़ा.
इस युद्ध में ब्रिटेन की जीत निर्णायक थी, उसने रक्षात्मक रवैया अपनाते हुये आसमान में जर्मन सेना के कई फायटर प्लेन ढेर किये. हालांकि, ब्रिटेन को भी इस युद्ध में काफी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन जीत के आगे सारे नुकसान न के बराबर थे.
British After Win (Pic: History.co.uk)
इस युद्ध को हारना हिटलर को महंगा पड़ा. कहते हैं कि इसी के बाद से ही नाज़ी सेना का पतन शुरु हो गया था. आगे चलकर मित्र राष्ट्रों ने नाज़ी सेना को बंधक बनाया, तो हिटलर की जड़ें हिल गईं. यहां तक कि 1945 में हिटलर को आत्महत्या तक करनी पड़ी.
Web Title: Battle of Britain, Hindi Article
Feature Image Credit: Cultours