जानवरों की बात की जाए तो चिंपांजी ही एक ऐसा पशु है, जो बिल्कुल इंसानों की तरह न सिर्फ दिखाई देता है, बल्कि उन्हीं की तरह सामाजिक व्यवहार भी करता है.
ये इंसानों की भाषा और हाव-भाव को काफी हद तक पहचानता हैं, किन्तु क्या आपको पता है कि इंसान भी इनके हाव-भाव और भाषा को समझ सकता है.
आपका इस पर यकीन करना मुश्किल होगा, किन्तु यह संभव है! बताते चलें कि इस नामुमकिन लगने वाले काम को डॉ. जेन गुडॉल नामक महिला अंजाम दे चुकी हैं. पेशे से जूलाजिस्ट गुडॉल ने दुनिया को बताया कि, चिंपांजी बिल्कुल इंसानों की तरह हैं.
यही नहीं उन्होंने अपनी रिसर्च से इसे सिद्ध करके भी दिखाया. साथ ही चिंपाजिंयों इंसानों की कैटेगिरी में शामिल करने की वकालत भी की.
तो आईए चिंपांजियों और उनसे जुड़ी इस दिलचस्प रिसर्च को जानते हैं-
बिना किसी डिग्री के शुरू की रिसर्च
गुडॉल बचपन से ही जानवरों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहती थीं. उनकी इस उत्सुकता ने ही उन्हें चिंपाजियों की तरफ आकर्षित किया.
खास बात यह है कि गुडॉल ने बिना किसी डिग्री के 26 साल की उम्र में तंजानिया के नेशनल पार्क में अपनी रिसर्च की शुरूआत की थी. चिंपाजियों के साथ जंगल में उन्हीं के साथ रहने और उन पर शोध करने वाली वो दूसरी महिला थीं.
दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने इसके लिए किसी तरह की वैज्ञानिक ट्रेनिंग नहीं ली थी. अफ्रीका के इन घने जंगलों में पहुंचने का एक मात्र रास्ता नदी से होकर गुजरता था. तंजानिया के इन जंगलों में जहां चिंपांजी रहते हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्हें बहुत ही उबड़-खाबड़ रास्ते पर घंटों पैदल चलना पड़ा.
साथ ही हर तरह के मौसम धूप और बारिश का भी सामना करना पड़ाल, लेकिन गुडॉल का उत्साह कम नहीं हुआ. उन्होंने हर तरह की परेशानियों का सामना करते हुए अपना कार्य पूरा किया.
Jane Goodall (Pic: Discover )
शुरुआत में उनसे डरते थे चिंपांजी
कहते हैं, जब गुडॉल पहली बार चिंपाजिंयों के पास पहुंची, तो वो उनसे इतना डरते थे कि पास तक नहीं आते थे. इस कारण गुडॉल दूर खड़े रहकर ही उनका अध्ययन करती. फिर धीरे-धीरे चिंपांजियों को एहसास हुआ कि गुडॉल उनको कोई नुक्सान नहीं पहुंचाएंगी. इस तरह जल्द ही चिंपांजियों और जेन के बीच एक बढ़िया रिस्ता कायम हो चुका था. वो गुडॉल के दोस्त बन गए.
उनके साथ खेलने लगे. उन्हें प्यार से चूमते और उनके ऊपर लटकने की कोशिश करते. इसी बीच गुडॉल ने उनकी भाषा भी सीख ली. वह उनके हाव-भाव और चिंपाजियों के इशारों को समझने लगीं. कुछ दिन उनके साथ बिताने के बाद जेन को पता चला कि चिंपाजी अपनी ही प्रजाति के कुछ साथियों को मार डालते हैं.
कुछ दिनों बाद उन्होंने नोटिस किया कि चिंपांजी लकड़ी का इस्तेमाल कर दीमक पकड़ते हैं. साथ ही कई अन्य कार्य भी इसी तरह के प्राकृतिक टूल्स का इस्तेमाल कर करते थे. यही वो बात थी, जो चिंपाजियों और इंसानों में समान थी.
इस धरती पर मौजूद जीवित प्राणियों में केवल इंसान ही विभिन्न प्रकार के टूल्स को बनाकर उनका इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन गुडाल के शोध से पता चला कि चिंपांजी भी हमारी तरह इनका यूज बखूबी कर सकते हैं.
इस तरह गुडॉल ने अपने जीवन के बहुमूल्य 55 वर्ष चिंपाजियों के शोध और उनके साथ बिताए हैं. साथ ही अपनी रिसर्च से सिद्ध किया है कि चिंपांजी मनुष्यों की तरह संवाद की जटिल प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं.
उनकी शोध ने वैज्ञानिकों को ‘मैन’ की परिभाषा बदलने पर मजबूर कर दिया.
इसके लिए उन्हें कई बार साइंटिफिक कम्युनिटी का विरोध भी सहना पड़ा. उनका आरोप था कि जेन ने साइंस की कोई पढ़ाई नहीं की, इसलिए वो जीव विज्ञान को समझ ही नहीं सकतीं. खैर, जेन को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा.
उन्हें मालूम था कि वो सही हैं और अपने लक्ष्य से भटकी नहीं हैं. आज उनकी थ्योरी को पूरे विश्व ने अपनाया है. वो एक आईकोनिक फिगर बन गई हैं. गुडॉल आज भी कहती हैं कि चिंपाजियों ने जेन को फेमस किया है, उनकी रिसर्च ने नहीं .
Jane Goodall love with Chimpanzees (Pic: gadventures)
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने दी डॉक्टरेट की उपाधि
गुडॉल के पास अब डिग्रियों का अंबार है. दुनिया की करीब 40 यूनिवर्सिटीज ने उनको पशु व्यवहार पर किए गए अतुल्नीय शोध के लिए डिग्री प्रदान की है.
1996 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी तो उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दे चुकी है.
इसके साथ ही गुडॉल संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति दूत भी हैं. इसके अलावा उन्हें मानवता और पशुओं के कल्याणकारी काम के लिए कई तरह के अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है. जेन ने वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बैरन ह्यूगो से शादी की है.
गुडॉल अब जंगलों से तो वापस आ गई हैं, लेकिन अब भी उनका ज्यादातर वक्त ट्रैवलिंग में बितता है. वह दुनिया के कोने-कोने में जाकर लोगों को चिंपांजियों के साथ ही अन्य जंगली जानवरों की रक्षा हेतू जंगलों को बचाए रखने की बात करती हैं.
इसके लिए गुडॉल ने ‘रूट्स एण्ड शूट्स’ नाम की एक संस्था भी बनाई है. यह संस्था 70 देशों के स्कूल और कालेजों में पर्यावरण, वन्य जीव और जन-जातियों के प्रति लोगों को जागरुक कर रही है.
गुडॉल की रिसर्च को उनकी दो किताबों ‘वाइल्ड चिम्पैंजीस’ और ‘इन द शैडो ऑफ मैन’ के माध्यम से और ज्यादा अच्छे से समझा जा सकता है. कहते हैं इन किताबों में गुडॉल ने अपनी रिसर्च का पूरा सार निचोड़ कर लोगों के सामने पेश किया है.
इन किताबों की सफलता के बाद गुडॉल ने ‘अफ्रीका इन माई ब्लड’ तथा ‘हार्वेस्ट फॉर होप: अ गाइड टू माइंडफुल ईटिंग’ की रचना की, जो काफी फेमस हुईं.
फिलहाल वो कई तरह के टॉक शो और सेमिनार में हिस्सा लेती नज़र आती हैं. इनमें वह लोगों को बताती हैं कि अगर जंगल और उनमें रहने वाले जानवर खत्म हो गए तो हमारा भी अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा.
हमें उनके शिकार और जंगलों को बर्बाद होने से बचाना ही होगा.
Dr. Goodall Has Written More than 30 Books (Pic: news.janegoodall)
गौर करने वाली बात यह है कि बहुत से लोग चिंपांजियों को बंदर की ही प्रजाति समझ लेते हैं, लेकिन ये बिल्कुल गलत है. चिंपांजी लंगूरों, गोरिल्ला और ओरंगटुन के परिवारों से संबंध रखते हैं. मूलत: अफ्रीका में पाए जाने वाले चिंपाजी बहुत ही बुद्धिमान होते हैं.
Web Title: Chimpanzees Friend Jane Goodall, Hindi Article
Feature Image Credit: Scholastic