दुनिया में आपको ढेरों ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो न सिर्फ अपने देश बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए सफलता की जीती जाती मिसाल हैं. आज लोगों को केवल उनकी सफलता और उनका ऊंचा रुतबा दिखता है, मगर बहुत कम ऐसे लोग होते हैं, जो उनकी सफलता के पीछे के संघर्ष व मेहनत के बारे में जानकारी रखते हैं.
चलिए आज एक ऐसे ही शख्स की जीवन कहानी को जानते हैं जिनके अटूट हौसलों के आगे मुश्किलों ने भी अपने घुटने टेक दिए.
हम बात कर रहें हैं अमेरिका के मल्टी मिलेनियर क्रिस गार्डनर की.
क्या आप जानते हैं कि एक समय पर क्रिस अमेरिका की सड़कों, पब्लिक टॉयलट और चर्च के अनाथआल्यों में सो कर अपना गुजारा करते थे?
हालांकि अपनी मेहनत की बदौलत आज वह एक मिलेनियर हैं. चलिए जानते हैं क्रिस गार्डनर की सफलता की कहानी के बारे में.
बचपन से ही मुश्किलों भरा रहा जीवन
यह समय था 1954 का, जब अमेरिका के मिलवॉकी शहर में 9 फरवरी को क्रिस गार्डनर का जन्म हुआ. क्रिस का बचपन काफी मुश्किलों में बीता. उन्होंने अपने असली पिता को नहीं देखा था और उनके सौतेले पिता फ्रेड्डी ट्रिपलेट अक्सर उनकी मां और उन्हें किसी न किसी बात के चलते मारते-पीटते रहते थे.
इसी प्रकार धीरे-धीरे समय बीतता गया और हर दिन के साथ क्रिस और उनकी मां की जिंदगी बदतर होती चली गई. इसी बीच एक दिन क्रिस के पिता ने उनकी मां को जिंदा जिलाने की कोशिश की. भाग्यवर्ष वह बच गईं और फिर उनके पिता को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसके कुछ समय बाद ही क्रिस सैन फ्रांसिस्को चले गए सबसे दूर.
सैन फ्रांसिस्को में उन्होंने अपने आगे का जीवन बिताया और एक गर्लफ्रेंड भी बनाई जिसका नाम था लिंडा. दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे.
थोड़े ही समय में उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड लिंडा से शादी कर ली. लिंडा से उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम क्रिस्टोफर रखा गया. हालांकि शादी के बाद भी क्रिस की जिंदगी कुछ खास बेहतर नहीं हुई थी. वह अब भी गरीबी में ही अपना जीवन बिता रहे थे. अपने परिवार को पालने के लिए वह एक छोटे से सेल्समैन की नौकरी करते थे.
वह एक प्रिंटिंग मशीन को बेचते थे और इसे बेचने के बाद मिलने वाली थोड़ी सी कमीशन और कम सैलरी में वह जैसे तैसे अपना जीवनयापन करते थे. हर दिन क्रिस अपने परिवार की बुनियादी जरुरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते थे.
उनकी पत्नी लिंडा ने एक लंबे समय तक उनका साथ दिया मगर अब उनका संयम भी जवाब देने लगा और उन्होंने क्रिस से अलग होने का फैसला कर लिया. हालांकि क्रिस ने लिंडा को रोकने की बहुत कोशिश की, मगर वह नहीं रुकी और क्रिस व क्रिस्टोफर को छोड़कर चली गईं.
लिंडा के जाने से क्रिस काफी टूट गए, लेकिन वह कमजोर नहीं पड़े क्योंकि छोटे क्रिसटोफर की देखभाल की जिम्मेदारी अब उनके अकेले के कंधों पर थी.
एक पल ने बदल दिया जिंदगी का नजरिया
अपने जीवन को सुधारने के लिए क्रिस ने बहुत सी अलग-अलग नौकरियां की मगर उन्हें कहीं भी सफलता नहीं मिल रही थी. इसी बीच क्रिस के जीवन में ऐसा पल आया जिसने उनके जीवन को एक अलग नजरिया और रास्ता दिखाया. यह पल था जब क्रिस ने सड़क के किनारे एक सूट-बूट पहने शख्स को उसकी लाल रंग की फरारी पार्क करते देखा.
उसे देख क्रिस इतना प्रभावित हुए कि उनसे रहा नहीं गया और वह सीधा उसके पास चले गए और पूछ लिया कि वह क्या करते हैं. जवाब में उस शख्स ने बताया कि वह एक स्टॉक ब्रोकर हैं और 80,000 डॉलर प्रति माह कमाते हैं. यह सुन कर क्रिस इस कदर प्रभावित हुए कि उसी वक्त उन्होंने फैसला कर लिया कि अब वह भी अपना करियर स्टॉक मार्केट में ही बनाएंगे.
अब उनकी जिंदगी का मकसद यह था कि वह भी एक दिन इसी शख्स जैसे बनेंगे. हालांकि यह सब इतना भी आसान नहीं होने वाला था. ऐसा इसलिए क्योंकि वक्त लगातार क्रिस की परीक्षा लेने में लगा हुआ था. पैसों की कमी के चलते हर दिन के साथ क्रिस और उनके बेटे की जिंदगी बदतर होती जा रही थी.
यह तो सिर्फ शुरुआत थी क्योंकि बड़ी परेशानी तो अब आने वाली थी. गलत जगह पर अपनी गाड़ी पार्क करने के चलते क्रिस पर पार्किंग का जुर्माना पड़ गया. इसे न चुकापाने के चलते क्रि
स को जेल में एक रात भी गुजारनी पड़ी. वो भी उनके इंटरव्यू से ठीक एक रात पहले!
रेलवे टॉयलेट में सो कर गुजारी रातें...
जेल में रात गुजारने के बाद अगली सुबह क्रिस के पास इतना समय नहीं था कि वह सूट पहनकर इंटरव्यू में जा सकें. इसलिए वह गंदे, पेंट में सने कपड़े पहनकर ही इंटरव्यू देने के लिए पहुंच गए.
इस दौरान इंटरव्यू ले रहे मार्टिन फरोम ने क्रिस से पूछा कि वह ऐसे कपड़ों में यहां क्यों आए हैं. क्रिस ने कुछ भी न छिपाते हुए उन्हें सबकुछ सच बता दिया. उन्होंने यह भी बताया कि वह स्टॉक ब्रोकर के तौर पर अपना करियर बनाने के लिए कितने उत्साहित हैं.
क्रिस के जवाब को सुनकर वह बहुत इम्प्रेस हुए और उन्हें अपने ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल कर लिया. हालांकि इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में क्रिस को बेहद कम वेतन मिलता था. इसमें क्रिस और उनके बेटे का गुजारा कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा था.
पैसों की कमी के चलते उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा. वह जो पैसे कमाते थे उससे अपने बेटे को सुबह के एक देखभाल केंद्र में भेजते थे, ताकि वह उस समय में अपनी ट्रेनिंग ले सकें. घर न होने के चलते क्रिस को ज्यादातर अपनी रात बेघरों के आश्रमों में गुजारनी पड़ती थी.
कई बार तो हालात इतने बदतर थे कि वह रेलवे स्टेशन के बाथरुम में सोकर अपना गुजारा करते थे. इतनी परेशानियों के बाद भी क्रिस ने हार नहीं मानी. वह अपने ट्रेनिंग प्रोग्राम को बड़ी मेहनत से करते गए इस उम्मीद में कि एक दिन उन्हें अच्छी नौकरी मिलेगी और फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा.Chris Gardner
...जब हौंसले के आगे हारी मुश्किलें
क्रिस ट्रेनिंग प्रोग्राम में अन्य सभी लोगों से ज्यादा मेहनत और काम करते थे. उन्होंने हमेशा सोचा कि उनके पास हारने का कोई विकल्प ही नहीं है. उन्हें सिर्फ और सिर्फ जीतना है और आखिरकार उन्होंने अपनी मंजिल को पा ही लिया.
ट्रेनिंग प्रोग्राम खत्म होने के बाद आखिरकार क्रिस की मेहनत रंग लाई और उन्हें कंपनी में स्टॉक ब्रोकर की जॉब मिल गई. कुछ ही समय में परेशानियों ने क्रिस से मुंह मोड़ लिया और अपनी मेहनत की बदौलत कुछ ही सालों बाद क्रिस ने 10,000 डॉलर से अपनी खुद की कंपनी खोली, जो बेहद सफल भी रही.
आज क्रिस गार्डनर का नाम अमेरिका के मल्टी मिलिनियर लोगों में शुमार है. वह कई तरह की चैरिटी चलाते हैं. साथ ही अब वह एक मोटिवेशनल स्पीकर है, जो लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं.
अपनी मंजिल को पाने के बाद अपने जीवन के इस संघर्ष को क्रिस ने शब्दों के जरिये कागज पर उतारा और अपनी आत्मकथा 'द परस्युट ऑफ हैपिनेस' को लोगों के सामने रखा. क्रिस के जीवन की कहानी को निर्देशक गैबरील्ले मुस्सिनों ने साल 2006 में बड़े पर्दे पर उतारा. इसका नाम उनकी किताब 'द परस्युट ऑफ हैपिनेस' पर ही रखा गया.
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