31 जुलाई का दिन अपने आप में काफी खास है. इसे और भी खास बनाती हैं इतिहास में घटी वह कुछ घटनाएं, जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है.
इस दिन इतना कुछ हुआ था कि आज भी लोग उन चीजों को भूल नहींं पाए हैं. क्या आप जानते हैं उन घटनाओं के बारे में?
नहींं, तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों इतिहास के नजरिए से 31 जुलाई बहुत खास है–
थाई प्लेन क्रैश में गई कई जान!
यह हादसा इस दिन की एक बुरी याद के रूप में लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है. 31 जुलाई 1992 को थाई एयरलाइंस के एक विमान ने 113 लोगों को लेकर नेपाल की राजधानी काठमांडू से उड़ान भरी.
मगर, खराब मौसम के कारण वह फ्लाइट अपनी मंजिल पर पहुंचने से पहले ही क्रैश हो गई. दरअसल, खराब मौसम के कारण जहाज ने नेपाल के पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश किया.
जहाज के पायलट को लगा कि इस मौसम में आगे जाना खतरनाक साबित हो सकता है. इसलिए उसने कंट्रोल रूम में कॉल कर बताया कि वह आगे नहींं जा सकते क्योंकि, मौसम बहुत खराब है.
जहाज के पायलट ने आखिरी बार जो बताया उसके मुताबिक वह जहाज को भारत में लैंड करने के लिए ले जा रहा था.
हालांकि, कुछ ही देर बाद कंट्रोल रूम का कनेक्शन जहाज से टूट गया और जहाज रडार से भी गायब हो गया.
कुछ समय बाद बचाव टीम को जहाज का पता लगाने के लिए भेजा गया, लेकिन जहाज का कोई पता ठिकाना नहींं मिला.
बाद में पता चला कि जहाज अघोर गांव के नजदीकी क्षेत्र में क्रैश हो गया था. जहाज के बारे में पता लगते ही करीब 1500 लोगों की एक बचाव टीम को मौके पर भेजा गया.
हालांकि, क्रैश के बाद जहाज में मौजूद 113 लोग मारे गए. कोई भी इसमें बच नहींं पाया. इस विमान में मौजूद सभी नागरिक विदेशी थे.
नोबेल विजेता अर्थशास्त्री मिल्टन फ्राइडमैन का जन्म
31 जुलाई का दिन अमेरिका के महान अर्थशास्त्री मिल्टन फ्राइडमैन के जन्मदिवस के रूप में भी जाना जाता है.
31 जुलाई 1912 में न्यूयॉर्क के ब्रूकलिन में पैदा हुए फ्राइडमैन जब एक साल के थे, तो उनका परिवार उन्हें ब्रूकलिन से राहवे ले आया.
यहां उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की. स्कूल में उन्होंने अपने लिए स्कॉलरशिप जीती और आगे की पढ़ाई के लिए रटगर्स यूनिवर्सिटी चले गए.
यहां से उन्होंने 1932 में गणित और अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी की. अपनी पढ़ाई के दौरान फ्राइडमैन अपने एक शिक्षक से बेहद प्रभावित हुए.
वह अपने शिक्षक की ही भांति अर्थशास्त्र पर शोध करने लगे. इसके बाद उन्होंने 1933 में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से एम.ए की और फिर 1946 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी पूरी की.
करीब 2 साल बाद फ्राइडमैन ने नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनोमिक रिसर्च में नौकरी कर ली. विश्वयुद्ध के दौरान फ्राइडमैन एक कमेटी का हिस्सा भी रहे, जो विश्वयुद्ध के दौरान हो रही रिसर्च का हिसाब-किताब रखती थी.
कुछ वर्षों बाद वह शिकागो में प्राइस थ्योरी और मोनेटरी इकोनॉमिक्स पर अधारित कोर्स की शिक्षा देने लगे. उन्होंने अपने जीवन में कई उपलब्धियां हासिल की और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अपना बड़ा योगदान दिया.
इसकी बदौलत साल 1976 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आखिर में 16 नवंबर 2006 में सैन फ्रांसिस्को में उनकी मौत हो गई.
अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति का मृत्यु दिवस
अमेरिका के लोगों के लिए 31 जुलाई का दिन काफी मायने रखता है. ऐसा इसलिए क्योंकि, इसी दिन साल 1875 में अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन की मौत हुई थी.
एंड्रयू राष्ट्रपति लिंकन की हत्या के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. एंड्रयू का जन्म नॉर्थ कैलिफोर्निया में 29 दिसंबर 1808 में हुआ था.
जब एंड्रयू महज 3 साल के थे, तो उनके पिता जैकब जॉनसन की मौत हो गई थी. इसके चलते उन्हें अपना बचपन गरीबी में काटना पड़ा.
बड़े होने पर जॉनसन ने दर्जी का काम करना शुरू कर दिया. उनका टेलर का बिजनेस काफी अच्छा चल भी गया और उन्होंने साल 1827 में एलिज़ा मैक्कार्डेल नाम की लड़की से शादी कर ली.
उनके राजनीतिक करियर की बात करें, तो जॉनसन को शुरू से ही राजनीति में दिलचस्पी थी. उनकी टेलर की दुकान अक्सर राजनीति के मुद्दे पर बहस करने का अड्डा बनती थी.
धीरे-धीरे उन्हें स्थानीय लोगों का साथ मिला और वह उनके हक के लिए आगे बढ़ने लगे. इसके बाद 1829 में वह पहली बार चुनावों में खड़े हुए और जीत कर ग्रीन विला क्षेत्र के मेयर बने.
फिर 1835 में वह टेन्नस्सी स्टेट से मंत्री पद का चुनाव जीते. अपने राजनीतिक कार्यकाल के दौरान जॉनसन ने हमेशा लोगों के हक की बात की.
इसकी बदौलत 1853 में वह टेन्नस्सी के गवर्नर नियुक्त हुए. 1965 के अप्रैल माह में जब अब्राहम लिंकन की मौत हुई, तो उस समय जॉनसन उप राष्ट्रपति थे.
इन हालातों में राष्ट्रपति पद के लिए जॉनसन का नाम पहली पसंद था. फिर एंड्रयू जॉनसन ने अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति की शपथ ली. उनका कार्यकाल 5 वर्षों का रहा. उनकी मौत 31 जुलाई 1875 में हुई.
38 साल तक चले ऑपरेशन बैनर का हुआ अंत
ब्रिटिश इतिहास के मद्देनजर 31 जुलाई का दिन बेहद खास माना जाता है. साल 2007 में ब्रिटिश आर्मी के सबसे लंबे समय तक चलने वाले ऑपरेशन बैनर का अंत हुआ था.
यह ऑपरेशन करीब 38 साल तक चला था. इस ऑपरेशन को उत्तरी आयरलैंड में पुलिस द्वारा साल 1969 में शुरू किया गया था.
यह मिलिट्री अभियान विद्रोहियों के खिलाफ छेड़ा गया था. इस अभियान के दौरान करीब 763 सिपाहियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
यहां तक की सैन्य अभियान के दौरान होने वाली गोलीबारी में कई बार सेना की गोलियों का शिकार मासूम लोगों को भी होना पड़ता था.
ऐसा ही एक हादसा 1972 में हुआ था, जब सैनिकों की गोलीबारी में 13 लोगों की मौत हो गई थी. इस सब की शुरुआत साल 1969 के जुलाई महीने में डेर्री क्षेत्र से हुई.
वहां विद्रोहियों का एक बड़ा समूह सड़कों पर उतर आया. तीन दिन तक लोगों को समझाने के बाद भी जब हालात ठीक नहींं हुए, तो शाही फौज को हालात पर काबू पाने के लिए तैनात कर दिया गया.
हालांकि, लोग पीछे हटने को तैयार नहीं थे. इस दौरान सेना द्वारा लोगों को चेतावनी दी गई कि अगर कोई भी शख्स किसी भी तरह की हिंसक गतिविधि को अंजाम देता है, तो उसे गोली मार दी जाएगी.
मगर, बावजूद इसके लोगों ने सेना पर हमला किया और इस दौरान 6 सिपाहियों की जान चली गई. हालात को बिगड़ता देख 1971 में उत्तरी आयरलैंड के प्रधानमंत्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
इस साल विद्रोहियों और सेना की भिड़ंत में 44 सिपाही और 6 अलेस्टर डिफेंस रेजिमेंट के सदस्य मारे गए. इसके बाद यह जंग कई वर्षों तक चलती रही.
आखिर में साल 2007 में सेना ने हालातों पर पूरी तरह से काबू पा लिया. साथ ही 31 जुलाई के दिन इस ऑपरेशन को औपचारिक रूप से बंद करने की घोषणा भी कर दी गई.
बहरहाल, ये थी 31 जुलाई के दिन से जुड़ी कुछ खास घटनाएं, जो इस दिन को अलग ही महत्व देती हैं. अब शायद आप भी जान गए होंगे की कोई भी दिन आम नहीं होता. हर दिन के साथ कोई न कोई ऐतिहासिक घटना जुड़ी होती है.
Web Title: Day In World History 31 July, Hindi Article
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