चाइना दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है, चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विचारों को वहां के संविधान में जगह मिली है. हाल ही में किए गए संवैधानिक संशोधन के जरिए चाइना में राष्ट्रपति पद पर आसीन रहने की समय अवधि की सीमा को खत्म कर दिया गया है. यानी कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब उम्र भर के लिए राष्ट्रपति पद पर रह सकते हैं.
किन्तु, सोचने की बात यह है कि इतने ताकतवर देश के ताकतवर नेता में अपने खिलाफ सुनने की क्षमता कितनी है और वह असहमति को कैसे अपनाता है. यदि हाल ही के कुछ उदाहरणों पर प्रकाश डालें तो पाएंगे कि चाइना की राजनीतिक व्यवस्था में असहमति की जगह है ही नहीं!
चाइना भले ही तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा हो लेकिन इस गति में वैचारिक मतभेद रखने की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी कहीं पीछे छूट गई है. हाल ही की कुछ घटनाएं बताती हैं कि चाइना में सत्ता के विरुद्ध बोलने का अंजाम बहुत दर्दनाक हो सकता है. कहते हैं कि चाइना की सरकार की नजर नागरिकों की प्रत्येक गतिविधि पर होती है.
तो आईए जानते हैं कुछ ऐसे बड़े मौके, जब चाइना में दबा दी गई अभिव्यक्ति की आजादी!
पू बेयर बना चीनी सेंसर बोर्ड की परेशानी
इस साल की शुरुआत में जब चाइना के राष्ट्रपति पद पर आसीन रहने की समय सीमा को हटाया गया तो जाहिर था कि इस कदम से कुछ लोग खुश नहीं थे. कुछ लोग इसे तानाशाही से जोड़ रहे थे, तो कुछ ने चीन में लोकतंत्र से जुड़ी बहस शुरू कर दी थी और इस कदम की जमकर आलोचना की जा रही थी.
किन्तु, इन आलोचनाओं से निपटने के लिए चीनी सत्ता ने पहले से ही इंतजामात कर लिए थे. चाइनीज सोशल मीडिया वीबो पर उन चरित्र और शब्द के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई, जिनका इस्तेमाल सरकार की आलोचना के लिए किया जा रहा था. पाबंदी लगाए गए शब्दों और चरित्र में शामिल थे, माय एम्परेर, लाइफ लॉन्ग और कार्टून कैरेक्टर पू बेयर.
पू बेयर, वो मासूम भालू जो अपनी बेवफकूफियों से न केवल छोटे बच्चों बल्कि हर उम्र के इंसान का दिल जीतता आ रहा है, वह भी चीनी सत्ता को नागंवार गुजरा. इसकी वजह ये थी कि कई बार राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आलोचक मजाक के तौर पर उनकी तुलना पू बेयर से कर चुके थे. चाइना में ऐसा कई बार हुआ है जब शी जिनपिंग को कार्टून कैरेक्टर पू बेयर से जोड़ा गया हो.
किन्तु, दो घटनाएं इनमें से मुख्य हैं, पहली बार 2013 में जब तत्कालीन अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा, शी जिनपिंग से मिले तो एक फोटो में शी जिनपिंग को पू बेयर और ओबामा को उसके दोस्त टिगर के रूप में दिखाया गया था.
फिर 2014 में जब जापान के प्रधानमंत्री और शी जिनपिंग की मुलाकात की तस्वीर सामने आई तो कुछ लोगों ने उसका भी वही हश्र किया. इस बार शी को वही पू बेयर तो शिंजो अबे को उसके बुद्धू दोस्त एक गधे से जोड़ा गया.
चाइना में ट्वीटर के तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली वेबसाइट वीबो पर 2017 में ‘विनी द पू’ को प्रेषित करने से रोक दिया गया और उसे गैरकानूनी कंटेंट में शामिल कर दिया गया.
'शी जिनपिंग' का इस्तीफा मांगने पर मिली जेल
चाइना में अभिव्यक्ति की आजादी पर लगी बंदिशों के कई उदाहरण है, लेकिन कुछ ऐसे हैं, जिन पर चाइना को दुनिया भर की आलोचना का शिकार होना पड़ा.
साल 2016 मार्च के महीने में 3 तारीख को एक अमेरिकी आधारित चीनी वेबसाइट कान्यू को किसी अनजान व्यक्ति से एक पत्र प्राप्त हुआ. उस पत्र में शी जिनपिंग के इस्तीफे की मांग की गई थी. उस पत्र को लेकर दिलचस्प बात ये थी कि उसे लिखने वाले ने खुद को कम्युनिस्ट पार्टी का वफादार सदस्य बताया था.
कान्यू के जरिए ये पत्र वूजी न्यूज़ तक पहुंचा, जिन्होंने 4 मार्च को उस पत्र को अपनी वेबसाइट पर प्रेषित कर दिया जो उसके प्रेषकों के लिए मुसीबत बन गया. कई मीडिया रिपोर्टस की मानें तो वूजी न्यूज से जुड़े लेखक जिया-जिया और कई और लोगों को पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया.
हालांकि, कुछ समय बाद जिया-जिया को छोड़ दिया गया, लेकिन ये घटना ये जरूर बता गई की चाइना की सत्ता जरा सा भी विरोध सहन नहीं कर सकती है. केवल इतना ही नहीं हाल ही में अमेरिकी कॉमिडियन जॉन ओलीवर को भी चाइनीज सोशल मीडिया से केवल इसलिए हटा दिया. सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने एक विडियो में चीन के राष्ट्रपति पर कुछ व्यंग्य किए थे और उनके महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘वन बेल्ट वन रोड’ की आलोचना भी की थी.
नोबेल विजेता ली शाओबो तक को गंवानी पड़ी जान
कोई भी नोबेल पुरस्कार विजेता जहां अपने देश का गर्व होता है वहीं चाइना में ठीक इसका उल्टा हुआ. ली शोओबो जिन्हें चाइना का नेल्सन मंडेला भी कहा जाता है. उन्हें सन् 2010 में चाइना में मानवाधिकारों के लिए शांतिपूर्वक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
किन्तु, सम्मान और गर्व की बात तो दूसरी पर चाइना की सत्ता ने ली को उसे लेने के लिए नॉर्वे जाने की इजाजत तक नही दी. ली शाओबो न केवल मानवाधिकार, बल्कि चाइना में मल्टी पार्टी सिस्टम के लिए आंदोलन की अगुवाई भी कर रहे थे.
ली शाओबो चाइना में मानवाधिकारों, अभिव्यक्ति की आजादी और मल्टी पार्टी सिस्टम के लिए के लिए कितने गंभीर थे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 1989 के थियानमेन चौक पर हुए आंदोलन में भी हिस्सा लिया था. इसके परिणामस्वरूप उन्हें कई सालों कर डिटेंशन सेंटर में रहना पड़ा. पर भी फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी.
1991 में उन्हें छोड़ दिया गया, जिसके बाद भी उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी. आगे 2009 में उन पर सरकार को गिराने के आरोप लगाकर उन्हें 11 साल की सजा सुना दी गई. इस सजा की वजह ये थी कि उनके बनाए गए मैनिफेस्टो में मल्टी पार्टी सिस्टम के समर्थन में प्रावधान था.
सजा के समय ही ली शाओबो लीवर कैंसर से पीड़ित हो गए थे, जिसके इलाज के लिए उन्हें देश से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिली. इसी बीमारी के चलते जुलाई 2017 में उनकी जान चली गई थी. न केवल ली शाओबो, बल्कि उनकी पत्नी औऱ कवि लिऊ शिया को भी नजरबंद रखा गया था. चाइना की लोकतंत्र की लड़ाई में वो उनका हर तरह से साथ दे रही थीं.
द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चाइना की सरकार ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसका मकसद है दुनिया को चाइना की खबरों और उसके तथाकथित नेक इरादों से रूबरू करवाना. चाइना गलोबल टेलीवीजन नेटवर्क से चाइना का मानना है कि वो उन खबरों को काउंटर कर पाएंगे, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके बारे में गलत जानकारियां देते हैं.
हालांकि, न केवल चाइना बल्कि हाल ही में कई देशों में जब से किसी एक नेता का बोलबाला शुरू हुआ है, तो वो भी किसी ने किसी तरह लोगों तक पहुंचने वाली सूचना पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
जैसा कि मार्शल मैक्लूहान ने कहा है कि “मीडियम इज द मैसेज” तो उसी के तहत दुनियाभर की सरकारें मीडियम को नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रही हैं, जो सीधा उस देश के लोकतंत्र को कमजोर बनाता है.
Web Title: Curbing Of Freedom Of Expression In China, Hindi Article
Feature Image Credit: Foreign Policy