एक अच्छे जीवन के लिए खुशियाँ जरूरी हैं. यह बात तो लगभग सभी मानते हैं. यह बात भी लगभग पक्की है कि आप खुशियों के लिए अपना सबकुछ बलिदान भले ही न करें, लेकिन आप जीवन का आनंद तो उठाना ही चाहते हैं. आखिर कोई दुखी क्यों रहना चाहेगा!
हमारे जीवन से खुशी की अवधारणा इस कदर से जुड़ी हुई है कि इसे थॉमस जैफरसन ने मनुष्य का मूल अधिकार घोषित कर दिया था. इसी अवधारणा के ऊपर ‘अमेरिकन ड्रीम’ टिका हुआ है. ज्यादातर लोगों के लिए अधिक से अधिक खुशियाँ ही जीवन का सार हैं.
लेकिन एक दार्शनिक ऐसा भी हुआ जिसने अर्थपूर्ण जीवन के लिए खुशी की जगह कष्ट को महत्वपूर्ण बताया. यह दार्शनिक था फ्रेडरिक नीत्शे. तो आइए नीत्शे और उनके दर्शन को जरा करीब से जानते हैं...
मनुष्यों को खुशियों की तलाश नहीं होती
नीत्शे ने जीवन के लिए खुशियों की जरूरत को सिरे से नकार दिया. उन्होंने बताया कि खुशियों की तलाश करना अपना समय नष्ट करने के बराबर है. यह अपने जीवन को बर्बाद करना है. उन्होंने बताया की मानवों को खुशियों की तलाश नहीं होती है. खुशियों की तलाश केवल ‘इंलिश मेन’ को होती है.
इस ‘इंग्लिश मेन’ शब्द का प्रयोग करके उन्होंने एक तरह से जेम्स मिल द्वारा प्रतिपादित ‘उपयोगितावाद’ के सिद्धांत पर निशाना साधा. उपयोगितावाद का सिद्धांत कहता है कि हमें ऐसी नीतियां बनानी चाहिएं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को खुशियाँ मिलें.
उपयोगितावाद की आलोचना के लिए नीत्शे ने ‘लास्ट मैन ’ नामक सिद्धांत गढ़ा. उनका ‘लास्ट मैन’ एक ऐसा दयनीय मनुष्य है, जो उस दुनिया में रह रहा है, जहाँ खुशियों का अविष्कार कर लिया गया है. ये खुशियाँ गढ़ी गई हैं.
नीत्शे भले ही जीवन में खुशियाँ खोजने के पक्ष में न हों, लेकिन वे जीवन का अर्थ खोजने के पक्ष में जरूर थे. यहीं से उन्होंने ‘महामानव’ की धारणा गढ़ी. यह ‘महामानव’ उनके ‘लास्ट मैन’ का विकल्प है. यह महामानव एक ऐसा मनुष्य है, जो अपने निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बड़े से बड़े कष्ट सहने के लिए तैयार है.
बिना कष्ट सहे कोई महान नहीं बनता
नीत्शे का मानना था कि बिना कष्ट सहे कोई भी महान नहीं बन पाया है. इसके लिए उन्होंने कई महान व्यक्तियों के उदाहरण दिए. इनमें से एक नाम निकोला टेस्ला का भी था. निकोला ने अपनी जिंदगी में बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं, लेकिन हमेशा अकेलेपन से जूझते रहे.
कई मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि एक अच्छे जीवन के लिए उद्देश्यों का निर्धारित होना और उनकी प्राप्ति के लिए कष्ट सहने की हिम्मत रखना बहुत जरूरी है. इससे आदमी जीवन में आगे बढ़ता रहता है. ऐसे ही एक मनोवैज्ञानिक विक्टर फ्रैंकल ने अपनी किताब में लिखा है कि जब वे हिटलरकालीन नाजी जर्मनी में यातना कैम्प में थे, तो उन्होंने अपने साथ बंद लोगों के भीतर जीवन का अर्थ खोजने का उत्साह देखा था. ये लोग खुश नहीं थे, कष्ट सह रहे थे, लेकिन अपने जीवन को अर्थपूर्ण नजरिए से देख रहे थे.
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि नीत्शे उपयोगितावाद के एक बड़े आलोचक रहे. नीत्शे हमेशा यह मानते रहे कि जो मनुष्य जितना बड़ा काम करता है, उसने उसी अनुपात में कष्ट सहा होता है. इसी आधार पर उनका यह भी मानना था कि साधारण उपलब्धि हासिल करने वाले लोग सिर्फ साधारण कष्ट ही सहते हैं.
इसी आधार पर पर अगर उपयोगितावादी गणित को देखा जाए तो नीत्शे का ‘लास्ट मैन’ ऐसे समाज में विरक्त रहता है. क्योंकि ऐसे समाज में खुशियों का अविष्कार किया जाता है इसलिए नीत्शे का ‘लास्ट मेन’ कष्ट सहने की जगह ऐसे काम करता है, जिससे उसे खुशी मिलती है. ये कार्य उसके लिए जरा भी रोचक नहीं होते हैं.
यहीं से नीत्शे ‘खुशियों के मिथ्याभास’ सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं. वे कहते हैं कि ऐसे कार्य जो सिर्फ अधिकतम आनंद पैदा करने के लिए किए जाते हैं, उनसे कोई बड़ा फायदा नहीं मिलता है. इस समस्या को वे शब्द देते हुए कहते हैं, ‘आनंद बस व्यक्ति के साथ रहता है, वह कहीं और नहीं जाता’.
इसको इस उदाहरण से समझा जा सकता है. एक व्यक्ति जो तरह-तरह के स्टैम्प कार्ड इकठ्ठा करता है, वो ऐसा इसलिए नहीं करता है कि इससे उसे खुशी मिलती है, बल्कि वह इसे रोचकतापूर्ण पाता है. ऐसे ही सालों कष्ट सहने के बाद जब कोई कलाकार अपने जीवन की सबसे उत्तम कृति रचता है, तो रचने के बाद उसे कृति से खुशी नहीं मिलती बल्कि वह उस पूरी प्रक्रिया में आनंद महसूस करता है, जो कृति रचते हुए उसने पूरी की.
नीत्शे और उनकी आलोचना
जैसे प्रत्येक दार्शनिक के आलोचक होते हैं, वैसे ही नीत्शे के भी थे. उनकी आलोचना बर्ट्रेंड रसेल ने की. बर्ट्रेंड रसेल ने अपनी कृति ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ वेस्टर्न फिलोसोफी’ में नीत्शे की आलोचना करते हुए लिखा कि उनके दर्शन में कष्ट का महिमामंडन है. उन्होंने नीत्शे के दर्शन को बुद्ध के दर्शन के समक्ष रख उनकी आलोचना की.
रसेल ने कहा कि नीत्शे कहते हैं कि जीवन के बड़े कष्टों पर अफ़सोस नहीं मनाना चाहिए क्योंकि ये वरदान होते हैं. रसेल ने बताया कि इस आधार पर नीत्शे नेपोलियन जैसे आतताइयों को भी महान लोगों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देते हैं.
यहीं से नीत्शे की आलोचना इस बात को लेकर भी हुई कि उनके इस सिद्धांत ने फासीवाद के उभार में भी सहायता प्रदान की. हिटलर और मुसोलिनी जैसे नराधम पापी और मानवद्रोही नीत्शे के सिद्धांत को आधार बनाकर ही सत्ता तक पहुँच पाए.
इन नेताओं ने जनता के सामने खुद को बड़े कष्ट सहने वालों के रूप में पेश किया और जनता को विश्वास दिलाया कि वे कुछ बड़ा करना चाहते हैं. बाद में इन्होंने बड़े स्तर पर तबाही मचाई. नरसंहार किए.
तो ये था नीत्शे का दर्शन. आपको यह आलेख कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Friedrich Nietzsche: Philosopher Who Found Suffering Essential For Human Being, HIndi Article
Feature Image Credit: Pantheism