फेसबुक डाटा लीक का प्रकरण सामने आया, तो दुनिया को एहसास हुआ कि उनकी निजी जिंदगी इतनी भी निजी नहीं है. लगातार उनकी सोच को नियंत्रित करने की कोशिशें की जा रही हैं.
यह बिल्कुल ऐसा ही है, जैसे पहले आपको किसी चीज की आदत लगाई जाती है और फिर उस आदत का जमकर फायदा उठाया जाता है. लत लगाकर फायदा उठाने का यह दायरा यहां तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर की राजनीति भी इसी ओर बढ़ी रही है.
पहले लोगों को असंभव वादों के जरिए एक नेतृत्व का चस्का लगाया जाता है, जो फिर तानाशाही की जगह ले लेता है. हिटलर, स्टालिन के समय भी ऐसा ही कुछ हुआ था.
निरंकुशता, तकनीक के साथ मिलकर क्या-क्या कर सकती है. ये फेसबुक डाटा लीक प्रकरण के बाद दुनिया ने अब जाना है, लेकिन इसका सामना जॉर्ज ऑरवेल अपनी किताब ‘1984’ और ‘एनिमल फॉर्म’ से काफी पहले करवा चुके हैं.
अपनी किताबों के जरिए वो ये बताने में कामयाब रहे कि जब लोग अपनी सोच को नियंत्रित करने का हक किसी को दे देते हैं, तो उसका अंजाम क्या हो सकता है.
ऐसे में आइए जानते हैं, जॉर्ज ऑरवेल की उन बातों को जो आज के दौर में भी प्रासंगिक हैं –
तानाशाही और निरंकुशता की हद
उपनिवेशवाद के दौर में 25 जून 1903 को बंगाल के मोतीहारी (अब बिहार) में पैदा होने वाले जॉर्ज ऑरवेल ऐसे लेखक हैं, जो दुनिया को तानाशाही और निरंकुशता की हद बता गए.
आज के दौर में उनकी किताबें न केवल लोगों को अपनी राजनीतिक चेतना बढ़ाने पर मजबूर करती हैं, बल्कि वह उन्हें वर्तमान समय में सोशल मीडिया के जरिए सोच पर होने वाले हमलों के प्रति भी जागरुक करवाती हैं.
दो विश्व युद्ध और रूस की बोल्शेविक क्रांति का निचोड़ उन्होंने अपनी किताबों में डाला है. जो यकीनन उनकी एक बेहतरीन कोशिश के तौर पर समझा जा सकता है, जिसमें वह आने वाली पीढ़ियों को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि युद्ध, राष्ट्रवाद, किसी पार्टी विशेष की हुकूमत और निरंकुश शासन के क्या परिणाम हो सकते हैं.
जॉर्ज ऑरवेल ने जो सियासत और सत्ता हासिल करने की मंशा पर लिखा है, वह कितना सटीक है, इस बात से समझा जा सकता है कि जैसे ही अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने, तो ऑरवेल की लिखी किताब ‘1984’ की बिक्री में तेजी से बढ़ोतरी हुई.
न केवल अमेरिका बल्कि चीन, रूस में भी जो राजनीतिक बदलाव हुए हैं और एक नेतृत्व का दबदबा बना है, उससे दुनिया भर में जॉर्ज ऑरवेल फिर एक बार प्रासंगिक हो गए हैं.
ऑरवेल ने अपनी जिंदगी में प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर काम किया, पत्रकारिता भी की और फिर स्पेन के गृह युद्ध में भी हिस्सा लिया. लेकिन उनकी यदि दुनिया भर में पहचान है, तो उसकी वजह है उनके द्वारा लिखी गई किताबें ‘1984’ और ‘एनिमल फार्म’.
‘निरंकुशता में आजादी की कोई जगह नहीं’
कल्पना कीजिए कि दो बड़ी-बड़ी आंखें आपको हर वक्त घूर रही हों, एक टेली स्क्रीन हर वक्त आपकी हरकतों पर निगरानी रख रही हो. आप वही चीजें खा और पी रहे हों, जो सत्तारूढ़ पार्टी चाहती है.
आप किस के साथ कैसे संबंध रखते हैं, किससे बात करते हैं और कैसे रहते हैं, ये सब पार्टी नियंत्रित करती हो. जो पार्टी कहती है, सोचती है वही अंतिम सच हो, ऐसा मानने पर मजबूर किया जा रहा हो.
यह कल्पना करने पर ही घुटन सी महसूस होती है, और यदि ये सच में हकीकत बन जाए, तो कितना खतरनाक होगा.
‘1984’ में ऐसी ही किसी जगह की कल्पना की गई है, जहां पार्टी ही भगवान है और भगवान है ही नहीं.
'थॉट' क्राइम है
1984 ऐसी दुनिया है, जहां थॉट क्राइम है, जिसमें यदि आप पार्टी के खिलाफ सोचते हैं तो आप किसी खूनी से भी बड़े मुजरिम हैं.
थोट क्राइम के प्रति लोगों को इस कदर तैयार किया गया है कि 9 साल की लड़की कहानी में अपने पिता पर जासूसी कर उसे थॉट क्राइम के जुर्म में जेल भिजवा देती है.
‘1984’ विंस्टन स्मिथ की कहानी है, जो पार्टी के विचार के खिलाफ विचार रखता है, जो अपने अंदर सोचने की क्षमता को बचाए हुए है. वह उन लोगों के बीच रहता है जो इंसानों की जगह पार्टी के रोबोट में तब्दील हो चुके हैं.
लोगों को मूर्ख बनाने के लिए और उनसे सहानुभूति जुटाने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी ने एक दुश्मन बनाया हुआ है, जिसे गोल्डस्टीन के नाम से जाना जाता है.
गोल्डस्टीन, बिग ब्रदर की तानाशाही के खिलाफ है. वो अभिव्यक्ति की आजादी, प्रेस की आजादी, एकजुट होने की आजादी जैसे विचारों का समर्थन करता है, जो पार्टी के विचारों के खिलाफ हैं. पार्टी ने गोल्डस्टीन को इस कदर दुश्मन माना है कि उसके खिलाफ नफ़रत भरे सत्र आयोजित किए जाते हैं, जिसमें उसके खिलाफ लोग अपनी भड़ास निकालते हैं और उसे गालियां दी जाती हैं.
लोगों ने शायद ही गोल्डस्टीन को कभी देखा या जाना होगा, लेकिन केवल पार्टी द्वारा लगाई गई लत के कारण वह अपने मन से उसे गालियां देते हैं और उससे नफरत करते हैं.
वहीं, विंस्टन इन सबके बीच फंसा हुआ है. वह न तो गोल्डस्टीन से नफरत कर पाता है और न हीं उसके प्रति कोई सहानुभूति रखता है. वो नहीं जानता कि असल में ऐसा कोई शख्स है भी या नहीं.
झूठ की बुनियाद पर रचा गया इतिहास
हमारी तरह ही विंस्टन की दुनिया में भी मंत्रालय हैं, लेकिन ये हमारे मंत्रालयों से बिल्कुल अलग हैं. जैसे मिनिस्ट्री ऑफ ट्रुथ, इस मंत्रालय का काम है पार्टी का प्रचार-प्रसार करना. जिसमें समाचार, मनोरंजन, शिक्षा और कला शामिल है.
स्कूल में बच्चों को पार्टी के बारे में पढ़ाया जाता है, हर क्षेत्र में पार्टी का दबाव बनाने की कोशिश की जाती है. किताब में तथ्यों पर नहीं बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा फैलाए गए झूठ के आधार पर इतिहास को रचा गया है, जिसमें केवल बिग ब्रदर का गुणगान होता है और पार्टी की वाहवाही हाती है.
पार्टी हर रोज इतिहास को बदलने की कोशिश भी करती है. इतिहास की अहमियत को समझते हुए पार्टी का मॉटो है, ‘जो अतीत को नियंत्रित करता है, वही भविष्य को नियंत्रित कर सकता है और जो वर्तमान को नियंत्रित करता है वही अतीत को नियंत्रित कर सकता है.’
कहानी का मुख्य किरदार विंस्टन स्मिथ भी मिनिस्ट्री ऑफ ट्रूथ में कार्यरत है, जो पहले से छप चुके लेखों, किताबों, अखबारों, पत्रिकाओं में रोजाना पार्टी के हितों के मुताबिक बदलाव करता है.
इसी तरह जॉर्ज ऑरवेल ने ‘1984’ में इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने की इच्छा को दर्शाया है.
किताब में मिनिस्ट्री ऑफ पीस भी है, जो युद्ध से जुड़े कामकाज संभालती है. टेलीस्क्रीन और टीवी में हमेशा ये जानकारियां मिलती हैं कि ओशिएनिया, जहां पार्टी की हुकूमत है, उसका पलड़ा हर युद्ध में भारी ही रहता है.
मिनिस्ट्री ऑफ लव, कानून-व्यवस्था से जुड़े कामों को संभालती है. मिनिस्ट्री ऑफ प्लेंटी, आर्थिक व्यवस्था से जुड़े कामों को देखती है.
जॉर्ज ऑरवेल ‘1984’ के जरिए बताते हैं कि एक ऐसी दुनिया जहां सब कुछ नियंत्रित हो और एक निरंकुश सत्ता के कायदे कानूनों से सब बंधा हो, वहां प्यार और अन्य इंसानी एहसास कैसे दम तोड़ देते हैं.
कहानी में बताया जाता है कि विंस्टन स्मिथ की पार्टी से हटकर सोचने की आदत और इंसानी भावनाएं, उन्हें किन हालातों में जाने को मजबूर कर देती हैं.
‘इग्नोरेंस इज स्ट्रेंथ’, ‘फ्रीडम इज स्लेवरी’, ‘वॉर इज पीस’ यदि आप इन तीनों सिद्धांतों पर खरे उतरने को तैयार हैं और हर वो खूबी छोड़ने को तैयार हैं, जो आपको इंसानों में शामिल करवाती है, तो ही आप पार्टी के प्रिय हो सकते हैं.
‘1984’ का हर पन्ना आपको निरंकुश राजनीति के कई पहलुओं से परिचित कराएगा.
यह किताब आपको डराएगी और सोचने पर मजबूर करेगी. लेकिन इसके साथ ही ये आपको उस भविष्य के लिए भी तैयार करती है, जो वर्तमान वैश्विक राजनीति के नजरिए से देखा जाए तो बहुत दूर नहीं है.
Web Title: George Orwell And The Fight Against Totalitarianism, Hindi Article
Feature Image Credit: thevoice.space