दुनिया में बड़े से बड़े युद्ध हुए हैं, जिनके सबूत आज भी मौजूद हैं. ‘हाईवे 80’ उनमें से ही एक नाम है.
इसे ‘हाईवे ऑफ़ डेथ’ यानी ‘मौत के हाईवे’ नाम से भी जाना जाता है!
कहते हैं, जिन लोगों ने इस युद्ध के दौरान अपनों को खोया, वह इसे अमेरिकियों द्वारा किये गए एक नरसंहार के रूप में याद करते हैं.
कहा जाता है कि जिस समय अमेरिका ने यह हमला किया, उस समय हाईवे पर निहत्थे इराकी सैनिकों के आलावा उनके परिवार भी साथ थे, किन्तु अमेरिकी सैनिकों ने छोटे बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं छोड़ा.
तो आईये जानने की कोशिश करते हैं कि ‘हाईवे 80’ की असल कहानी क्या थी!
‘तेल के भंडार पर कब्ज़े की होड़’
1991 के आसपास का वक्त रहा होगा. ईराक और अमेरिका के बीच गल्फ वॉर का माहौल था. हाईवे 80 का हमला भी इसी की एक कड़ी बना. इस हमले को ‘डेजर्ट स्टॉर्म अटैक’ नाम दिया गया था.
इस जंग के दौरान सद्दाम हुसैन के इराकी सैनिकों ने कुवैत के तेल भंडारों पर कब्जा करने के लिए हमला कर दिया.
उन्होंने कुवैत के अधिकतर शहरों पर कब्जा कर लिया. इस दौरान जो भी बीच में आया उन्होंंने उसे मौत दे दी. सैंकड़ों कुवैती नागरिक इस संघर्ष में मारे गये. इन हालातों में कुवैत के राजनेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मदद की गुहार लगाई. उन्होंने अमेरिका से गुजारिश करते हुए कहाँ कि इराक ने उनके तेल के भंडार पर कब्ज़ा ज़माने के लिए उन पर हमला कर दिया है.
वहीं, जब अमेरिका को कुवैत के तेल भंडारों के बारे में पता चला तो उनके मन में भी तेल के भंडारों पर कब्ज़ा करने की लालसा जाग गई!
अपने निजी फायदे के चलते अमेरिका ने कुवैत की मदद करने का फैसला किया.
Highway of Death, Abandoned Iraqi (Pic: Wikimedia Commons)
ईराक युद्ध विराम चाहता था, पर…
इस समय अमेरिका की बागडोर जॉर्ज बुश के हाथ में थी. उन्होंने आदेश पर अमेरिता सेना कुवैत गई और इराकी सैनिकों को नेस्तानाबूद कर दिया. आख़िरकार अमेरिकी सेना की ताकत के आगे इराकी सैनिकों ने घुटने टेक दिए.
ईराकी राजनेताओं ने युद्ध विराम का फैसला कर लिया. उन्होंने बगदाद के रेडियो पर इसकी बकायदा घोषणा जारी की. सभी इराकी सैनिकों को संयुक्त राष्ट्र के संकल्प 660 के अनुपालन के तहत कुवैत से वापस लेने का आदेश जारी कर दिया गया.
मगर अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसे मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने ‘ईराकी सेना को वापस लेने का सुझाव जारी हुआ है इसका कोई प्रमाण नही है… यह माना!’ इसलिए उन्होंने ईराकी सेना के खिलाफ युद्ध जारी रखा.
इस बीच जॉर्ज बुश के मनसूबों से अंजान, सैंकड़ों इराकी सैनिक युद्ध समाप्ति की घोषणा के बाद इराकी शहर बसरा के लिए निकल पढ़े थे. इस बात का पता जब अमेरिकी सेना को चला तो बुश ने उनको खत्म कर देने की योजना बना डाली.
निहत्थे इराकियों पर हुई जब ‘बमबारी’
बुश ने अमेरिका के सैनिकों को आदेश दिया कि ‘कुवैत शहर से किसी भी ईराकी को या उनके किसी भी सामान को बाहर न जाने दिया जाए. इसके चलते आधी रात के समय अमेरिकी जेट विमानों ने बिना किसी चेतावनी के काफिले को एक जगह इकट्ठा करने के लिए कोशिशें शुरु कर दी. इसके लिए उन्होंने आगे और पीछे दोनों तरफ से बमबारी तक की.
अचानक से हुई बमबारी से सभी ईराकी घबरा कर हाईवे के बीचों-बीच आ गए. अमेरिकी सैनिकों को इसी बात का इंतजार था, उन्होंने देर न करते हुए उन पर ‘क्लस्टर बमों’ की बौछार कर दी. किसी भी वाहन को कुवैत की हद से बाहर नही निकलने दिया गया. इस बीच जिसने चालाकी दिखाने की कोशिश की उसे वाहन समेत बम से उड़ा दिया गया. यहां तक की बमबारी में जो ईराकी सैनिक बच गए थे, उन्हें बाद में ढूंढ ढूंढ कर गोलियों से छलनी किया गया.
इस हमले में मारे गए सैनिकों की गिनती के आंकड़ों को लेकर विशेषज्ञों में लम्बे समय से बहस चल रही है, लेकिन सही आंकड़ें अभी तक किसी के पास नहीं है. फिर भी माना जाता है कि इस हमले में सैंकड़ो लोग मारे गए थे.
Highway of Death Iraq (Pic: Amusing Planet)
पूरी दुनिया ने की कड़ी निंदा!
इस हमले के बाद पूरी दुनिया में इसकी कड़ी निंदा हुई. बहुत से लोगों ने इसे निहत्थे इराक़ियों का नरसंहार माना. कुछ का मानना था कि अमेरिका ने युद्ध नियमों के विपरीत जाकर यह कार्य किया है, जोकि निंदनीय था. उन्होंने इस हमले को अपने बल का असंगत उपयोग बताया. इस नरसंहार को लेकर जब अमेरिका पर सवाल उठे तो उनका जवाब देने के लिए जनरल नॉर्मन आगे आए.
नार्मन वह व्यक्ति थे, जिन्होंने इस पूरे मिशन का संचालन किया था. उन्होंने अपने पक्ष रखते हुए बताया कि हमले का पहला कारण यह था कि उन्हें खबर मिली थी कि बसरा जा रहे इराकी सैनिकों के पास हथियारों का एक बड़ा जखीरा है, जिसका इस्तेमाल घातक हो सकता था. वह किसी भी कीमत पर इसे नष्ट करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने इराकी सैनिकों के खिलाफ यह कार्रवाई की.
दूसरी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि, हमले में मारे गए लोग कोई निर्दोष व्यक्ति नहीं थे. यह बलात्कारी, हत्यारों और ठगों का एक समूह था, जिन्होंने कुवैत में बलात्कार और गोलीबारी की थी. उन्हें पकड़े जाने ता डर था इसलिए वह देश छोड़ कर भाग रहे थे.
अमेरिकियों द्वारा हमले के पीछे दिए गए तर्कों को लेकर भी उनकी काफी निंदा की गई. कुछ इतिहासकारों का कहना था कि राष्ट्रपति बुश ने इराकियों को मारने के लिए इराक के आत्मसमर्पण के प्रस्ताव को नही माना.
बताते चलें कि बुश ने इस नरसंहार की सफाई के रूप में कहा था कि ‘इराकी आत्मसमर्पण केवल उनका सवांग हैं’. माना जाता है कि बुश खुद ही इस युद्ध को रोकना नही चाहते थे.
George W. Bush (Pic: nymag)
खैर, इस घटना के कुछ भी कारण रहे हों, लेकिन सच तो यह है कि इसमें ढ़ेर सारे लोगों का खून बहा, जिसकी कड़वी यादें आज भी कई लोगों की आंखों को नम कर जाती हैं.
Web Title: Highway-80 is Proof of Massacre By US soldiers, Hindi Article
Featured Image Credit: radiofarda