हम चाहते हैं आप यह लेख पढ़ने से पहले कुछ पल के लिए अपनी आंखें बंद करें लें.
महसूस करें कि आप एक लकड़ी के छोटे से बैरक में बंद हैं, जहां आपके साथ और भी सैकड़ों लोग भेड़ बकरियों की तरह बंद हैं. यहां आपसे आपकी क्षमता से पांच गुना ज़्यादा काम लिया जा रहा है. काम न कर पाने की स्थिति में आपको तरह-तरह की भयानक यातनाएं दी जा रही हैं.
अभी तो महज़ शुरुआत है, अभी आपको कुछ और भी महसूस करना है.
महसूस कीजिये कि अचानक आपकी नाक से होकर एक ज़हरीली गैस आपके फेफड़ों तक पहुंच चुकी है.
इससे आपकी सांसें बंद हो रही हैं…
आप बुरी तरह से तड़प रहे हैं!
जाहिर है ऐसी कल्पना भर करने से ही आप बेचैन हो उठेंगे! आंखें खुलेंगी तो खुद को पसीने में भीगा हुआ पायेंगे.
अभी भी कुछ लोगों के अंदर अगर शक्ति बची है, तो वह महसूस करें कि उनके चारों तरफ-तरफ लाशें ही लाशें हैं. अगर कुछ लोग जिंदा नज़र आ भी रहे हैं, तो उनकी देह पर हड्डियों के अलावा कुछ और नज़र नहीं आ रहा है.
अब आप आंखें खोल सकते हैं!
फिर अपने परमेश्वर को इस बात के लिए शुक्रिया कह सकते हैं कि ईश्वर ने ऐसे नज़ारे से आपको सचमुच दूर रखा है. आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन ऐसे लाखों लोग रहे हैं जिन्होंने ये सारी यातनाएं खुद पर सही हैं.
उन्होंने एक भयंकर नरसंहार को अपनी आंखों से देखा है. नहीं मानते तो आईये ले चलते हैं आपको उस दौर में:
मौत की मुहिम ‘होलोकास्ट’!
हिटलर के समय में यहूदियों के सर्वनाश के लिए एक मुहिम चलाई गयी थी. इस मुहिम को ‘होलोकास्ट’ नाम दिया गया था. इसके तहत लाखों यहूदियों, दासों, जिप्सियों, कम्युनिस्टों तथा समलैंगिकों को गैरजरूरी घोषित करके मौत के घाट उतारा जा रहा था. आदमी को सताने के विभिन्न औजारों का इज़ाद किया गया था.
इससे भी काम न चला तो जहरीली गैस के चैम्बर तक बनवाये गये थे. ‘होलोकास्ट’ के भुक्तभोगी विक्टर फ्रैन्कल अपनी किताब ‘Man’s Search for Meaning’ में लिखते हैं कि कोई भी सपना कितना भी भयंकर क्यों न हो, यातना शिविर की हमारे आसपास की सच्चाई से भयंकर नहीं हो सकता है.
कहा जाता है कि इंसान ने अपने जीवन में बहुत सी त्रासदियों को झेला है, मगर होलोकास्ट से भयानक स्थिति आज तक कभी नहीं हुई. वैसे तो सीधे तौर पर इसके लिए हिटलर को जिम्मेदार माना जाता है, पर सच तो यह है कि यह हिटलर का अकेले का काम नहीं था. इस नरसंहार की पटकथा उसके खास कहे जाने वाले ‘हेन्रिख हिम्म्लर’ ने लिखी थी.
The Syrian Refugee Crisis Is Not Another Holocaust (Pic: forward)
कौन था हेन्रिख हिम्म्लर?
‘हेन्रिख हिम्म्लर’ एक स्कूल अध्यापक का बेटा था. उसके दिमाग में हमेशा से एक बड़े अधिकारिक पद पर बैठने की सनक थी. इसी के चलते वह अपने पिता की मदद से 11वीं बवेरियन बटालियन का हिस्सा बन गया था.
वह तो जर्मनी की हार ने उसके सपने को तोड़ दिया था. फिर एक के बाद एक विफलताओं से तंग आकर ‘हिम्म्लर’ ने अपनी आकांक्षाओं को मारते हुए मुर्गीपालन का काम शुरू कर दिया था.
मगर नियति उससे कुछ और चाहती थी!
कुछ वक्त बाद उसका मूड बदला तो वह 1925 के आसपास ‘एसएस’ में शामिल हो गया था. बवेरिया में उसको ‘एसएस-गौफ्युहरर’ (जिला नेता) के रूप में नियुक्त किया गया. 1933 आते-आते ‘एसएस’ की संख्या 52,000 तक पहुंच गई थी और हिम्म्लर को पदोन्नति पाकर वरिष्ठ कमांडर के समकक्ष पहुंच गया था. माना जाता है कि यही वक्त था जब हिम्म्लर ने ‘एसएस’ से ही नफ़रत करना शुरु कर दिया था.
असल में वह कहीं न कहीं नाजियों की तरफ झुका हुआ था. उसे लगने लगा था कि ‘एसएस’ तेजी से बढ़ रहा है. वह आगे चलकर नाज़ी के लिए खतरा बन सकता है. माना जाता है कि इसी के चलते उसने ‘एसएस’ क्रांतिकारी नेता रोहम के खात्मे के लिए हिटलर को प्रेरित किया था. उसके कहने पर ही हिटलर ने ‘रोहम’ समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खात्मे का आदेश दे दिया था. 1934 आते-आते हिटलर अपने इस सफाई के मिशन को पूरा कर चुका था. इसे ‘नाईट ऑफ़ द लौंग नाइफ़’ के नाम से जाना जाता है.
इसके तुरंत बाद ही ‘एसएस’ एक स्वतंत्र संगठन बन गया, जो सिर्फ हिटलर के प्रति जवाबदेह था. स्वभाविक रुप से हिम्म्लर को इसका फायदा मिलना था. उसे ‘राइखफ्युहरर-एसएस’ के खिताब से नवाजा गया. इसी के साथ वह ‘एसएस’ का सर्वोच्च पद पाने में सफल रहा था.
Heinrich Himmler (Pic: thesun.co.uk)
‘होलोकास्ट’ में अहम भूमिका
‘नाईट ऑफ दी नाईव्स’ के पूरा होते ही एसएस द्वारा यातना शिविरों का निर्माण शुरु कर दिया गया. 1933 को हिम्म्लर ने दचाऊ में पहले यातना शिविर के दरवाजे खोल दिये थे. इसमें यहूदियों, जिप्सियों, कम्युनिस्टों और शासन के विरोध करने वालों को कैद किया गया था.
इस सफर में 1941 के आसपास हिम्म्लर की भेंट एक बैठक के दौरान हिटलर के साथ हुई थी. इसमें इस मुद्दे पर जोरदार चर्चा की गई कि ‘रूस के यहूदियों के साथ क्या किया जाना चाहिए?’ बाद में आम सहमति से तय किया गया कि उनका सफाया किया जायेगा. इसे एक मिशन बनाया गया, जिसे ‘अल्स पार्टीसानेन ऑस्जुरोटन’ नाम दिया गया था. हिम्म्लर को इसमें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
हिम्म्लर ने तेजी से हिटलर के यातना शिविरों का निरीक्षण करना शुुरु कर दिया था. इसके परिणामस्वरुप उसने हत्या का एक नया तरीका खोज निकाला. यह बहुत कठोर था. इस तरीके के तहत यातना शिविरों में गैस चैम्बरों का इस्तेमाल किया जाना था. जो लोग काम करने में अक्षम हो जाते थे उन्हें इस नये तरीके के हिसाब से यातना-गृह में कैद करके जहरीली गैस के बीच दम तोड़ने के लिए छोड़ दिया जाता था.
द्वितीय विश्व युद्ध और हिम्म्लर
जून 1942 में जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया था. इस युद्ध में जर्मनी ने सोवियत संघ के कई क्षेत्रों में कब्जा कर लिया था. चूंकि, हिम्म्लर अब तक हिटलर का दाहिना हाथ बन चुका था, इसलिए इन क्षेत्रों को उसे दे दिया गया था. उसे सोवियत व्यवस्था को पूरी तरह से नष्ट करने की जिम्मेदारी दी गई थी. अब हिम्म्लर का लक्ष्य सिर्फ़ और सिर्फ़ दुश्मन का सर्वनाश करना था. भले ही इसके लिए उसे कितनी भी लाशें बिछानी पड़े.
हिम्म्लर ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अपने वैज्ञानिकों को यहां तक आदेश दिए कि वो ऐसे मच्छरों को बॉयोलॉजिकल हथियार के रूप में प्रयोग करे, जिसे वो दुश्मन खेमों में भेज कर दुश्मन सिपाहियों को मलेरिया का शिकार बना सकें.
1944 के आसपास अचानक हिम्म्लर ने अपना गियर बदल लिया. उसने किन्हीं कारणों से हिटलर के साथ विश्वासघात कर दिया. हिटलर यह सहन नहीं कर पाया. उसने हिम्म्लर को उसके सभी पदों से निष्काषित कर दिया था. हिटलर के सिपाहियों से बचता हुआ हिम्म्लर काफी दिनों तक वेशभूषा बदलकर यहां-वहां घूमता रहा. उसे पहचानना आसान नहीं था, लेकिन एक दिन शक के आधार पर उसे बंदी बना लिया गया.
अन्य जर्मन अपराधियों की तरह उस पर भी मुकद्दमा चलाया गया. उससे लगातार पूछताछ की जा रही थी, पर आसानी से उसने नहीं बताया कि वह कौन था?
कुछ वक्त बाद उसने जेल के अंदर ही आत्महत्या कर ली थी. कहते हैं कि मरते वक्त उसकी जुबान में आखिरी शब्द ‘इच बिन हेन्रिख हिम्म्लर’ थे.
इसका मतलब था मैं हैन्रिख़ हिम्म्लर हूं!
Adolf Hitler and Heinrich Himmler (Pic: thesun.co.uk)
हिटलर के लिए हिम्म्लर जैसे कई और लोगों ने दरिंदगी के रास्ते को चुना. उन्होंने लोगों को मौत के घाट उतारने से पहले एक पल भी नहीं सोचा, किन्तु उन्हें अंत में सिर्फ मौत मिली. यहां तक कि हिटलर ने भी अंत में मौत को ही गले लगाया.
पर क्या आने वाले ज़माने के लोग इस बात को समझ पायेंगे कि ‘बुरे काम का बुरा नतीजा’!
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Web Title: Hitler’s Right Hand Heinrich Himmler, Hindi Article
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