आज का दिन विश्व इतिहास में खासा महत्वपूर्ण है. इस दिन घटी बहुत सी घटनाएं इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गईं.
आज यानी 18 जुलाई की वैश्विक घटनाओं पर नजर डालें तो पता चलता है कि सन 1872 को ब्रिटेन में गुप्त मतदान प्रक्रिया की शुरुआत हुई, वहीं 1918 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला पैदा हुए. 1943 में ब्रिटेन ने इटली के कटानिया शहर पर हमला किया था.
तो चलिए जानते हैं, आज के दिन घटित कुछ ऐसी ही ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में –
नेल्सन मंडेला का जन्मदिन
एक समय था जब दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद आम हो गया था. इंसानों को सिर्फ इस बात के लिए जलील होना पड़ता था, क्योंकि उनकी त्वचा का रंग काला था. ऐसे में 18 जुलाई का दिन अफ्रीका के इतिहास में काफी मायने रखता है.
18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का जन्म हुआ था. नेल्सन मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी सरकार की जगह लोकतांत्रिक बहुनस्लीय सरकार बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया. जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
साल 1964 में उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. लेकिन उन पर मुसीबतों का पहाड़ तब टूट पड़ा, जब एक साल के ही अंतराल में 1968 और 1969 के बीच में उन्होंने अपनी मां और बड़े बेटे को खो दिया. हद तो तब हो गई जब उन्हें अंतिम संस्कार तक में शामिल नहीं होने दिया गया.
वह तकरीबन 27 साल जेल में रहे. जेल में मंडेला को यातनाएं दी गईं. फिर भी उनके मन में उन लोगों के प्रति कोई कड़वाहट नहीं थी.
साल 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया.
मंडेला की ज़िंदगी के कई पहलू हैं. साल 2001 में उन्हें पता चला कि वह प्रोस्टेट कैंसर की गिरफ्त में हैं. इसके बाद उन्होंने 2004 में अपने सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले लिया.
कैलिफोर्निया में एक सिरफिरे ने की गोलीबारी
18 जुलाई 1984 को अमेरिका में एक सिरफिरे ने तबाही मचाई थी. कैलिफोर्निया के सैन यासिड्रो के मैक डोनल्ड रेस्तरां में जेम्स ओलीवर हबर्टी नाम के एक सिरफिरे ने गोलीबारी कर दी.
इस शूट आउट में 21 लोगों ने अपनी जान गवां दी और 19 अन्य घायल हुए.
जेम्स ओलीवर के सनकीपन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गोलीबारी से पहले उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह ‘इंसानों का शिकार’ करने जा रहा है.
वह अपने साथ 3 गन लेकर निकला. जिसके बाद उसने इस दर्दनाक घटना को अंजाम दिया.
वह लगातार तबाही मचाता जा रहा था. जो उसके सामने पड़ा उसने रास्ते से हटा दिया. लेकिन अंत में इस सिरफिरे खूनी का आतंक स्वैट टीम के स्नाइपर्स ने किया.
हिटलर की आत्मकथा 'मीन कैम्फ' का प्रकाशन
मीन कैम्फ दुनिया को अपनी क्रूरता से हिलाकर रख देने वाले जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर द्वारा लिखित एक पुस्तक है. आज ही के दिन यानी 18 जुलाई 1925 को मीन कैम्फ के पहले संस्करण का प्रकाशन किया गया.
नवंबर 1923 में कई कारणों से हिटलर को जेल जाना पड़ा था. हालांकि उसे यहां तमाम सुविधां दी गईं और यहीं पर उसने अपनी इस किताब को लिखा.
हिटलर पहले इस किताब का नाम 'झूठ, बेवकूफी और कायरता के खिलाफ साढ़े चार सालों का संघर्ष' नाम देना चाहता था, लेकिन इस किताब के प्रकाशक मैक अमान ने हिटलर को छोटा नाम मीन कैम्फ रखने की सलाह दी थी, जिसे हिटलर ने मान लिया.
वैसे, मीन कैम्फ का मतलब होता है मेरा संघर्ष. जो हिटलर ने यहूदियों के लिए दिखाया. इस किताब में हिटलर की जीवन और उसकी राजनीतिक विचारधारा व जर्मनी के बारे में उसकी योजनाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है.
हिटलर की आत्मकथा मीन कैम्फ दो भागों में छपी है, जिसका पहला भाग 1925 में और दूसरा भाग 1926 में प्रकाशित किया गया. इसको हिटलर के सहायक रुडोल्फ हेस ने संपादित किया था.
बहरहाल 2016 में बवैरियाई सरकार के इस किताब से कॉपीराइट खत्म होने के बाद एक बार फिर जर्मनी में इसे प्रकाशित किया गया.
कैदियों के समर्थन में निकाला गया मार्च
आज ही के दिन 1981 में डबलिन में एक मार्च निकाला गया. जिसमें तकरीबन दस हजार लोगों ने शिरकत की. लेकिन यह मार्च उस वक्त हिंसक हो गया, जब ये लोग ब्रिटिश दूतावास के बाहर पहुंचे. प्रदर्शन कर रहे लोगों की पुलिस के साथ झड़प हुई. जिसमें 200 से ज्यादा लोगों को अस्पताल जाना पड़ा.
दरअसल यह मार्च उन कैदियों के लिए था, जो उत्तरी आयरलैंड की जेल में बंद भूख हड़ताल पर बैठे थे. ये कैदी खुद के कपड़े पहनने और जेल का काम न करने सहित अन्य कई मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर थे.
यह भूख हड़ताल काफी लंबी चली. इस भूख हड़ताल में कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी.
अफगानिस्तान में गणराज्य की स्थापना
18 जुलाई 1973 को अफ़ग़ानिस्तान में राजशाही की समाप्ति कर, वहां गणराज्य स्थापित किया गया.
1953 से 1963 तक मोहम्मद दाऊद अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री रहा. लेकिन 1963 में राजा जहीर शाह ने दाऊद की सरकार को बर्खास्त कर वहां राजशाही की स्थापना कर दी. इसके तुरंत बाद मोहम्मद दाऊद को देश से बाहर कर दिया गया.
और इस प्रकार बदले की आग में जल रहे दाऊद ने 1973 में जहीर शाह का तख्तापलट कर वहां पुन: लोकतंत्र की स्थापना कर खुद को अफगानी गणराज्य का राष्ट्रपति घोषित कर दिया. इस समय जहीर शाह इटली के दौरे पर थे.
हालांकि इसके लगभग 5 साल बाद ही इनकी सरकार का भी तख्तापलट कर दिया गया और नूर मोहम्मद तरकई राष्ट्रपति बन बैठे.
लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद दाऊद खान ने एक कहा कि "उन्होंने देश में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना और भ्रष्ट व निरंकुश राजशाही की स्थापना व देश को बर्बादी से बचाने के लिए इस तख्तापलट को अंजाम दिया है.
लगभग एक घंटे के भीतर ही इस देश में सैनिक शासन लागू कर दिया गया. काबुल रेडियो ने सेना की वफादारी की घोषणा करते हुए लोगों से सैन्य सरकार को सहयोग करने के लिए कहा.
Web Title: Important Historical Events of World 18th July, Hindi Article
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