विश्व में कुछ ही ऐसी क्रांतियां हुई हैं , जिन्होंने मानव समाज की दशा और दिशा को बदलने का काम किया.
अमेरिकी क्रांति उन क्रांतियों में से एक है. इस क्रांति ने अमेरिका को ब्रिटेन के चंगुल से मुक्ति दिलाई.
वैसे तो इस क्रांति के नायक के रूप में कई नाम दर्ज हैं. फिर चाहे वह जोर्ज वाशिंगटन का नाम हो या फिर पॉल रेवर का. किन्तु इसमें अनेक ऐसे लोग भी हुए, जिन्होंने युद्ध क्षेत्र से हटकर उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , जितनी की लड़ने वाले सैनिको ने.
जोसफ वारेन ऐसा ही एक नाम है.
क्या है उसकी कहानी और कैसा रहा उसका योगदान आईए जानते हैं-
छोटी उम्र से ही निभाई जिम्मेदारी
जोसफ का जन्म 1741 में रोजबरी में हुआ. वही रोजबरी जोकि पूरे अमेरिका में सबसे अच्छे सेबों के लिए जाना जाता है. दिलचस्प बात तो यह है कि जोसफ के पिता भी सेब उगाने वाले किसान थे.
बचपन में अक्सर जोसफ पास के शहरों में दूध बेचने जाया करते थे. इससे कम उम्र में ही उनके अंदर मेहनत करने की आदत पड़ गई. उसका जीवन हंसी-ख़ुशी से बीत रहा था. इसी बीच एक दिन अचानक जोसफ के पिता सीढ़ियों से गिर गए और उनकी मृत्यु हो गई.
ऐसे में महज 14 साल के जोसफ पर परिवार की जिम्मेदारी का भार आ गया. यह आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह पहले की तरह ही नियमित रूप से स्कूल जाता और आने के बाद अपने फ़ार्म पर कड़ी मेहनत करता. इस तरह धीरे- धीरे सब संभलता गया...
अमेरिकियों पर जुल्म बढ़े, तो...
आगे जोसफ ने पढ़ाई का सिलसिला बढ़ाते हुए हार्वर्ड कॉलेज की ओर रूख किया.
यहां से वह डॉक्टर बनकर निकले. इसी दौरान बोस्टन में महामारी फैल गई. तब जोसफ ने पूरी शिद्दत से बहुत से लोगों को मरने से बचा लिया. इसके बाद बोस्टन में इनका नाम हो गया. एक डॉक्टर के रूप में जोसफ बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति रहे. वे हर समय किसी का भी इलाज करने के लिए तत्पर रहते थे. उन्होंने बहुत से गरीबों का मुफ्त इलाज किया. उनके इसी गुण ने उन्हें 1769 तक जाना-पहचाना डॉक्टर बना दिया.
यही वह वक्त था, जब उन्होंने एलिज़ाबेथ हूटन नाम की एक अमीर और सुंदर महिला से शादी कर ली. अब उनका जीवन खुशहाली में बीत रहा था.
इसी बीच ब्रिटेन ने अमेरिकियों पर जुल्म बढ़ा दिए. यह देखकर डॉक्टर जोसफ विचलित हो उठे. उनके मन में ब्रिटेन के शोषणकारियों को अमेरिका से बाहर निकाल देने की तीव्र भावना भड़क उठी, इसलिए उन्होंने अपना डॉक्टरी का पेशा छोड़कर राजनीति में कदम रखा.
1770 में ब्रिटेन ने अमेरिका पर एक नया स्टाम्प एक्ट लगाया.
इस एक्ट ने अमेरिका के प्रत्येक नागरिक पर लगने वाला टैक्स बढ़ा दिया. जोसफ को इस बात ने बहुत परेशान किया. वे सोचने लगे कि अमेरिकावासी खुद अपने टैक्स का निर्धारण क्यों नहीं कर सकते हैं. इस तरह वह अब अमेरिका की पूर्ण स्वतंत्रता की बात सोचने लगे.
एक देशभक्त नेता बनकर उभरे
जोसफ ने अपने विचारों को लिखना शुरू कर दिया. उन्होंने लिखा कि जब तक हमारे लोगों को अपनी सरकार चलाने का मौका खुद नहीं मिलता, तब तक हम कोई टैक्स नहीं देंगे. उनकी यह बात जनता के बीच जंगल की आग की तरह फैली और लोगों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन किए. अंत में ब्रिटेन को यह एक्ट हटाना पड़ा. इसके बाद जोसफ एक देशभक्त नेता के रूप में पहचाने जाने लगे.
इसके बाद भी ब्रिटेन ने अमेरिका वासियों पर जुल्म कम नहीं किए.
परिणामस्वरूप लोगों और ब्रिटेन के पुलिसवालों तथा अधिकारियों के बीच हिंसक झड़पें बढ़ती गईं. इसी दौरान ब्रिटेन के सैनिकों ने 5 मार्च, 1970 को बोस्टन में पांच लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इस घटना से गुस्साए लोग जोसफ के पास आगे की कार्यवाही के लिए पहुंचे. यहां जोसफ ने लोगों को ब्रिटेन की सरकार का पूरी तरह से सफाया कर देने का आदेश दिया. कहते हैं कि इसी आदेश ने अमेरिकी क्रांति की नींव रखी.
आगे जोसफ और पॉल रेवर ने बोस्टन के मजदूरों और कारीगरों को संगठित करना शुरू किया. इसके साथ ही जोसफ ने दूसरे प्रांतों में ख़त लिखकर लोगों को उनके अधिकारों के प्रति सजग रहने को बोला. इसी दौरान ब्रिटेन ने चाय पर टैक्स बहुत बढ़ा दिया. ब्रिटेन को पता था कि चाय अमेरिका में बहुत पसंद की जाती है, इसलिए लोग बढ़ी हुई कीमतों पर भी चाय खरीदेंगे ही.
जोसफ ने लोगों से चाय न खरीदने की अपील भी की.
उन्होंने लोगों से कहा कि हमें ब्रिटेन की चाय को यहां नहीं बिकने देना चाहिए. लोगों ने भी उनकी बात मानी और 17 दिसंबर 1773 को बोस्टन बंदरगाह पर चाय के 342 बक्से पानी में फेंक दिए. इस घटना के बाद जोसफ ब्रिटेन की नजर में बुरी तरह चढ़ गए. ब्रिटेन उन्हें राज्यद्रोही मानने लगा.
ब्रिटेन ने इस घटना को अपने अपमान के रूप में देखा और बोस्टन बंदरगाह को बंद कर दिया. इस बीच जोसफ ने ऐसे भाषण दिए, जिनसे लोग ब्रिटेन के खिलाफ सड़कों पर उतरने लगे. हिंसक झड़पें बहुत ज्यादा बढ़ गईं. जोसफ ने लोगों को हथियार इकठ्ठा करने में मदद की.
...और युद्ध क्षेत्र में संभाला मोर्चा
सरगर्मियां बहुत अधिक बढ़ गई थीं. ऐसे में अब अंतिम युद्ध का समय आ गया था.
18 अप्रैल 1775 को लेक्सिंग्टन में आमने-सामने का युद्ध शुरू हो चुका था. ब्रिटिश सैनिक अमेरिकी सैनिकों के ऊपर भारी पड़ रहे थे. ऐसे में जोसफ ने मोर्चा संभाला. उन्होंने अमेरिकी सैनिकों के भीतर जोश भरा. शीघ्र ही इसके परिणाम भी आने लगे. एक समय जो अमेरिकी सेना बुरी तरह से हार रही थी, अब उसने ब्रिटिश सैनिकों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया था.
इस तरह जोसफ हीरो बन चुके थे.
तीन दिन बाद ब्रटिश आर्मी ने बंकर हिल में अमेरिकी सैनिकों पर हमला कर दिया. घमासान लड़ाई होने लगी और एक बार फिर से जोसफ अमेरिकी सैनिकों का हौसला बढ़ाने लड़ाई के क्षेत्र में पहुँच गए.
अमेरिकी सैनिकों का गोला-बारूद बहुत तेजी से खत्म हो रहा था, लेकिन फिर भी वे जोसफ के सहारे लड़े जा रहे थे. आगे के पलों में उनके पास गोलियां खत्म हो गई, तो उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों के ऊपर पत्थर फेंके, किन्तु, बात बनी नहीं और अमेरिकी सैनिक यह लड़ाई हार गए.
दुर्भाग्य की बात यह थी कि इस सबमें जोसफ शहीद हो चुके थे.
जोसफ भले ही अपने देश को आजाद होता हुआ नहीं देख पाए!
किन्तु, उन्होंने अपने भाषणों, लेखों और चिकित्सा से आजादी की लड़ाई में जो भूमिका निभाई, वो अभूतपूर्व है.
यही कारण है कि इतिहास में उन्हें जगह मिली.
क्यों सही कहा न?
Web Title: Joseph Warren, Man Who Led The Foundation Of American Revolution , Hindi Article
Feature Representative Image Credit: goodoldboston