आज हम एक ऐसे खुफिया एजेंट की बात करने जा रहे हैं, जो कभी ब्रिटेन में एक बड़ा अधिकारी था, बावजूद इसके उसने इस देश की जासूसी की.
ये सन 1946 से 1965 तक ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर के अधिकारी रहे. इसके बाद इन्हें अपनी वफादारी के लिए 1965 में ही ऑर्डर ऑफ लेनिन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
जी हां! इस दोहरे एजेंट का नाम है, हैरोल्ड एड्रियन रसेल किम फिलबी. ये कभी ब्रिटिश खुफिया एजेंसी के उच्च अधिकारी थे, इन्होंने डबल एजेंट के रूप में काम किया था. इन्होंने रूस की एनकेवीडी और केजीबी दोनों के लिए काम किया.
1963 में फिलबी को स्पाई रिंग का सदस्य माना गया, जिसे बाद में कैम्ब्रिज फाइव के रूप में जाना गया. फिलबी को सबसे सफल गुप्त जासूस माना जाता है, जिसने कई खुफिया जानकारी सोवियत संघ को प्रदान कीं.
रूसी तानाशाह जोसेफ स्टालिन को डर था कि फिलबी ब्रिटिश अधिकारियों को सोवियत खुफिया जानकारी प्रदान करने वाला एक दोहरा एजेंट है. हालांकि, बाद में हुई किसी भी जांच में ये बात साफ नहीं हो सकी.
तो आइए जानते हैं, क्या थी इस दोहरे एजेंट किम की कहानी -
कम्युनिस्ट विचारधारा के रहे समर्थक
किम फिलबी का जन्म साल 1912 में भारत के अंबाला शहर में हुआ था. इनके पिता जॉन फिलबी एक सेना अधिकारी और डिप्लोमेट थे. शायद इस कारण किम का बचपन काफी ऐशो आराम में बीता.
किम की स्कूली शिक्षा लंदन के वेस्टमिंस्टर स्कूल से हुई थी. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज चले गए. यहां पढ़ाई के अलावा भी अन्य चीजों ने किम का ध्यान अपनी ओर खींचा. इनमें से एक थी कम्युनिस्ट पार्टी.
अपनी पढ़ाई के दौरान ही किम कम्युनिस्ट विचारधारा से काफी प्रभावित हो गए थे. जिसके चलते सन 1933 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी होने तक वह कम्युनिस्ट सहायक बन गए.
अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद किम विएना चले गए. यहां उनकी मुलाकात एक महिला से हुई, जिनका नाम था लितज़ी फ्राइडमैन. वह दिखने में बेहद खूबसूरत थी, और पहली ही नजर में किम अपना दिल उस पर हार बैठे.
लितज़ी जिस ग्रुप के लिए काम करती थीं, वह आॅस्ट्रिया और जर्मनी में नाज़ियों को बढ़ावा देने में मदद करता था. अपनी दोस्ती की खातिर किम ने भी इस काम में हाथ बंटाया.
हालांकि कुछ ही समय बाद यह काम किम के लिए मुसीबतें खड़ी करने लगा.
इस दौरान किम और लितज़ी ने शादी कर ली और वह आॅस्ट्रिया छोड़ कर इंग्लैंड चले गए. हालांकि इसके कुछ ही समय बाद दोनों का तलाक हो गया था.
एमआई में हुए शामिल
इसी साल 1933 में किम सोवियत यूनियन की खुफिया एजेंसी केजीवी में शामिल हो गए और उनके लिए काम करने लगे. खुद की पहचान छिपाने के लिए किम एक एंग्लो जर्मन फैलोशिप ग्रुप का हिस्सा बन गए. इसके साथ ही वह एक पत्रकार के तौर पर दी टाइम्स के लिए रिपोर्टिंग करने लगे.
वह स्पैनिश सिविल वॉर से जुड़ी सभी घटनाओं की रिपोर्टिंग करते थे. वह अपने लेखों में फ्रैंको और नेश्नलिस्ट मूवमेंट की खूब तारिफ करते थे, जिसके चलते फ्रैंको द्वारा उन्हें साल 1938 में रेड क्राॅस अवाॅर्ड से सम्मानित किया गया.
किम ने अपनी जासूसी पहचान को इतना बखूबी छिपाया था कि उन्हें ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी एमआई भी पहचान नहीं पाई थी. इसी दौरान साल 1939 में उन्हें एमआई का हिस्सा बनने का मौका मिल गया. यहां तक कि किम को भर्ती करने से पहले एमआई द्वारा उनकी पहचान को लेकर सभी तरह की जांच की गई थीं. इसके बाद किम फिलबी को एमआई के सेक्शन डी ट्रेनिंग स्कूल भेज दिया गया.
रूस के नमक का हक अदा किया
साल 1941 के आते आते किम ने ब्रिटिश खुफिया एजेंसी में सफलतापूर्वक बड़ा पद प्राप्त कर लिया था. कम समय में ही किम एमआई में काफी चर्चित एजेंट बन गए थे. मगर उनके जीवन में बड़ा बदलाव तब आया, जब उन पर दोहरे एजेंट के तौर पर काम करने का इल्जाम लगा.
दरअसल, जंग के दौरान किम ने सोवियत और अमेरिकी दोनों एजेंसियों के साथ हिटलर के विरुद्ध आॅपरेशन चलाए थे. जंग खत्म होने के बाद भी उन्होंने अपना यह दोहरा जासूसी का काम जारी रखा.
किम पर लगे इल्जामों को लेकर जांच शुरू की गई. सन 1949 में किम को चीफ एमआई अधिकारी के तौर पर वाशिंगटन भेजा गया. यहां वह ब्रिटेन और अमेरिकी एजेंसियों के बीच तालमेल बना कर कार्य कर सके. इस बेहद संजिदा पद पर होते हुए साल 1950 में किम ने यू.एस.एस.आर. द्वारा अलबेनिया में हथियारों से एंटी कम्युनिस्ट बैंड भेजने की योजना का खुलासा किया.
यहां आकर किम को पता चला कि वाशिंगटन में उनके साथ मौजूद साथी मैक्लेन भी सोवियत यूनियन का एक दोहरा जासूस है, जिसके बारे में एफबीआई छानबीन कर रही थी. राज खुलने के डर से किम ब्रजेस नाम के एक शख्स से मिले, जोकि एक दोहरा एजेंट था. उन्होंने ब्रजेस को इंग्लैंड जाने को कहा और मैक्लेन को भी इंग्लैंड चले जाने का सुझाव दिया.
आखिरकार, कुछ समय बाद ब्रजेस और मैक्लेन वाशिंगटन छोड़ इंग्लैंड चले गए. यहां कुछ दिन बाद किम के खिलाफ हुई जांच में उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं मिला और साल 1955 में उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया.
मौत के सालों बाद मिला सम्मान
साल 1963 में एक बार फिर से किम के सोवियन खुफिया एजेंसी के साथ तालुकात होने की बात सामने आई. मगर इस बार किम ने जांच का हिस्सा बनने की बजाए, वहां से निकल जाना बेहतर समझा. वह वहां से सीधे ब्रजेस और मैक्लेन के पास रूस पहुंच गए.
यहां साल 1968 में आई किम ने अपनी किताब 'माई साइलेंट वॉर: द सोवियत मास्टर स्पाइ ओन स्टोरी' और इसी दौरान दिए एक इंटरवयू में खुलासा किया था कि वह 1930 के दौरान सोवियत खुफिया एजेंसी के एजेंट बन गए थे. उन्हें पश्चिमी लोकतंत्र पर भरोसा नहीं था कि हिटलर को रोकने के लिए वह पर्याप्त प्रयास करेंगे.
बावजूद इसके रूस के प्रति किम की निष्ठा और ईमानदारी कभी कम नहीं हुई. वह पूरा जीवन उसके लिए समर्पित रहे. वफादारी के इसी क्रम में 1988 में उनकी रूस के मॉस्को में मौत हो गई.
उनकी मौत के इतने वर्षों बाद रूस ने अपने इस वफादार सैनिक को श्रद्धांजलि दी.
किम फिलबी के सम्मान में रूस की स्टेट आर्ट गैलरी में उनकी तस्वीर लगाई गई. साथ ही उनके जीवन से प्रेरित फिल्म को स्टेट टेलीविजन चैनल पर भी दिखाया गया. किम के अलावा उन अन्य 4 सोवियत जासूसों के स्मृति चिन्हों को भी इस आर्ट गैलरी में जगह दी गई है, जो ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी में शामिल थे.
साथ ही इन बहादुर सिपाहियों द्वारा लाए गए उन 900 ब्रिटिश दस्तावेजों को भी यहां प्रदर्शित किया गया.
Web Title: Kim Philby: Tale of Cold War Double Agent, Hindi Article
Featured Image Credit: elibrary.westminster