सिंगापुर आज दुनिया के विकसित देशों में शुमार है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में ये देश अमेरिका के बाद और जर्मनी, जापान, फ्रांस और इंग्लैंड से आगे 10वें नंबर पर आता है.
भारत की तरह से ये भी कभी ब्रिटेन का गुलाम रहा था. इसे भारत को आजादी मिलने के लगभग 18 साल बाद ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति मिली. ये देश भी उसी तरह की गरीबी और कंगाली से गुजर रहा था, जैसा कि आजादी के बाद भारत था.
बावजूद इस देश ने मात्र 30-40 सालों में तरक्की की उन ऊंचाईयों को छुआ, जहां पहुंचने में सदियों लग जाती हैं.
जी हां! और इस क्रांतिकारी परिवर्तन में सबसे बड़ा हाथ था, सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यू का. ली कुआन यू ही वह शख्स हैं, जिन्होंने एक बंजर जैसे दिखने वाले गरीब और पिछड़े टापू को आधुनिक बनाया.
ली कुआन 1959 में ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान सिंगापुर के प्रधानमंत्री बने थे. इसी बीच 1965 में इस देश को आजादी मिल गई. सन 1990 तक ये सिंगापुर के प्रधानमंत्री रहे.
एक तरह से इन्हें तानाशाह भी कहा जाता है. इन्होंने सिंगापुर पर पूरे 30 साल शासन किया था, लेकिन इस दौरान हुई सिंगापुर की तरक्की ने ली कुआन यू का नाम अमर कर दिया है.
ऐसे में आइए सिंगापुर के इस महान नेता के बारे में जानते हैं –
कानून की पढ़ाई के बाद राजनीति में उतरे
ली कुआन यू का जन्म 16 सितंबर 1923 को सिंगापुर में ली चीन कून और चूआ जिम निओ के घर हुआ था. कुआन के 3 भाई और एक बहन थीं. घर संपन्न था, शायद यही कारण रहा कि इनका बचपन काफी अच्छे माहौल में बीता.
ली कुआन यू की शुरूआती शिक्षा 1931 में सिंगापुर के तेलोक कुरुऊ इंग्लिश स्कूल से हुई, जहां पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र गरीब थे. इसके बाद इन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए 1935 में रैफल्स इंस्टीट्यूशन में दाखिला ले लिया, जो उस समय के बड़े लोगों के लिए एक अच्छा संस्थान था.
इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया और ली कुआन आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए. फिर 1942 से 1945 तक सिंगापुर जापान के कब्जे में रहा, उस दौरान भी ली की पढ़ाई शुरू नहीं हो पाई.
हालांकि युद्ध खत्म होने के बाद उच्च शिक्षा के लिए जी इंग्लैंड चले गए. यहां इन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एडमिशन लिया. और उसके बाद फिट्जविलियम कॉलेज से लॉ की डिग्री ली.
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद साल 1949 में ली सिंगापुर वापस आ गए. इस समय तक सिंगापुर पर अंग्रेजों का राज था.
यहां आकर उन्होंने ब्रिटिश प्रोग्रैसिव पार्टी लीडर जॉन लेकॉक से राजनीति की बारीकियों को सीखा.
कुछ कर गुजरने की चाह इनके अंदर भी थी, जो रह रह कर इन्हें झकझोर रही थी. और फिर एक दिन बदलाव लाने की चाह में इन्होंने अपने अंग्रेजी जानने वाले कुछ मध्यवर्गीय लोगों के साथ अपनी राजनितिक पार्टी पीपलस एक्शन पार्टी बनाई. इसने पहली बार चुनावों में अपने प्रत्याशी उतारे. कुछ हद तक ये सफल भी रहे.
ली कुआन को टेनजोंग पेगर क्षेत्र से जीत हासिल हुई और उन्होंने विपक्ष के नेता के तौर पर अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की.
1959 में पूर्ण बहुमत से बनाई सरकार
अगले चार सालों में ली कुआन की पार्टी ने लोगों के बीच अपनी पार्टी की एक मजबूत पकड़ बना ली थी. इसका नतीजा ये हुआ कि साल 1959 के चुनावों में कुआन की पार्टी ने 51 में से 43 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया और सिंगापुर में अपनी सरकार बनाने में सफल रही.
जीत के बाद ली कुआन ने पहली बार सिंगापुर के प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. प्रधानमंत्री की सीट पर बैठते ही कुआन को पता चला कि देश के बहुत से क्षेत्रों में कई परेशानियां है, जिनका निपटारा बेहद आवश्यक है.
इसके लिए उन्होंने 1960 में हाऊसिंग एंड डेवेलपमेंट बोर्ड की शुरुआत की. इस बोर्ड की प्राथमिकता थी कि युद्ध का दंश झेल चुके प्रत्येक व्यक्ति को घर मुहैया कराया जाए. इसके अलावा भी और कई सेक्टर थे, जहां पर बदलाव की कड़ी जरूरत थी.
सिंगापुर इस समय भी ब्रिटेन की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. इस कारण से ली कुआन देश हित में नीतियां नहीं बना पा रहे थे. साथ ही पूर्णतया स्वतंत्र न होने के चलते देश की सरकार कुछ कर नहीं सकती थी.
आखिरकार साल 1963 में सिंगापुर को ब्रिटिश राज से पूरी तरह स्वतंत्रता मिल गई और सिंगापुर एक स्वतंत्र देश के नाते फैडरेशन का हिस्सा बना.
हालांकि स्वतंत्र होने के बाद सिंगापुर में चीन और मलायला लोगों के बीच दंगे भड़क गए. इस कारण स्वतंत्र होने के बावजूद उन्हें वह दर्जा नहीं मिल पाया, जिसके वह हकदार थे.
और फिर 9 अगस्त 1965 को औपचारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ सिंगापुर का जन्म हुआ.
अंग्रेजी भाषा को दिया बढ़ावा
स्वतंत्रता मिलने के बाद ली कुआन सरकार के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह थी उनके पास प्राकृतिक संसाधनों की बहुत कमी थी. जिसके बाद उन्होंने इन्हें लेकर कार्य करने शुरू कर दिए. साथ ही देश की सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए उन्होंने 1967 में सेना को मजबूत बनाने का कार्य किया.
ली कुआन ने सिंगापुर में अलग-अलग भाषाओं का प्रचार प्रसार किया. देश में चीन मेंडेरिन को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने 1979 में एक खास कैंपेन की शुरुआत की. इसके अलावा उन्होंने अंग्रेजी भाषा को सिखाने के लिए भी लोगों पर दबाव डाला. उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में अंग्रेजी की पढ़ाई को शुरू कराया.
देश को अंदरुनी आर्थिक क्षति पहुंचाने वाले लोगों, भ्रष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्होंने इंवैस्टिगेशन ब्यूरो को पूरी पॉवर दी. इससे दोषियों के खिलाफ उचित कार्यवाही संभव हो सकी और उन्हें गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया. किसी भी देश की तरक्की के लिए उस देश की पढ़ी-लिखी आबादी का होना बहुत ही आवश्यक है.
इस बात को ली कुआन ने बखूबी समझा. इसके चलते उन्होंने 1983 में सोशल डेवेलपमेंट यूनिट की शुरुआत की, जोकि लड़के लड़कियों दोनों को कम से कम स्नातक तक की शिक्षा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करता था.
पद छोड़ने के बाद भी रहे कैबिनेट के मैंबर
इस तरह बहुत सी लोक कल्याण योजनाओं को अंजाम देने के बाद, आखिरकार 1990 में ली कुआने ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. मगर इसके बाद भी वह एक वरिष्ठ मंत्री के तौर पर कैबिनेट की सलाहकार समिति का हिस्सा बने रहे.
साल 2004 में गोह टोंग ने सिंगापुर के प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद ली कुआन के बड़े बेटे ली हसेन लूंग वहां के प्रधानमंत्री बने.
अपने बेटे की सरकार में भी ली कुआन कैबिनेट मंत्री रहे.
अपने राजनीतिक कार्यकाल में कुआन ने देश में बड़े बदलाव किए. उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति में बड़ा इजाफा किया. सिंगापुर की रूप रेखा बदलने वाले इस महान नेता को ब्रिटेन की ओर से नाइट ग्रैड क्रॉस अवाॅर्ड से सम्मानित किया गया.
अगर कुआन के व्यक्तिगत जीवन की बात की जाए, तो उन्होंने 1950 में क्वा गिओक चू से शादी की थी. जिनसे उन्हें तीन बच्चे हुए. उन्हीं में से एक हेसन लूंग सिंगापुर के वर्तमान प्रधानमंत्री हैं.
23 मार्च सन 2015 को 91 साल की उम्र में न्युमोनिया होने के कारण ली कुआन की मौत हो गई. ली कुआन के जीवन और सिंगापुर को लेकर उनके द्वारा किए गए कार्यों के चलते उन पर कई किताबें लिखी गई हैं.
आज सिंगापुर का नाम विकसित देशों की सूची में आता है, तो उसका श्रेय ली कुआन और उनकी उन्नत सोच को ही जाता है.
Web Title: Lee Kuan Yew: Leadership Transformed Singapore, Hindi Article
Featured Image Credit: The CEO Magazine