पिछले कुछ सालों से आपने खबरों में और अपने आस-पास के लोगों को सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में बात करते हुए सुना होगा. सर्जिकल स्ट्राइक एक ऐसा सैन्य हमला होता है जिसमें किसी खास लक्ष्य को निशाना बनाया जाता है.
उस पर हमला करने से पहले उस टार्गेट पर मौजूद दुश्मन की लोकेशन की सटीक जानकारी एकत्र कर बेहद बारीकी के साथ धांवा बोल दिया जाता है.
इस तरह के ऑपरेशन को करते समय सर्जिकल स्ट्राइक की टीम कई बातों का ख्याल रखती है. उनकी कोशिश होती है कि वहां के आस-पास मौजूद लोगों को किसी तरह का कोई नुकसान ना हो. इस ऑपरेशन को कैसे अंजाम देना है ये पहले से ही तय होता है.
भारतीय सेना ने भी सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को तबाह किया है. इस तरह के ऑपरेशन के दौरान पूरी टीम चुपचाप हमला करती है और कुछ ही मिनटों में अपने टार्गेट को तबाह कर वापिस लौट आती है.
यूँ तो सर्जिकल स्ट्राइक अक्सर सफल ही होती है, लेकिन तब क्या हो जब सर्जिकल स्ट्राइक करने के लिए भेजी गई टीम वापिस ही ना लौटे?
ऐसा ही कुछ हुआ था अमेरिका के मार्कस लुटट्रेल और तीन अमेरिकी जवानों के साथ.
वह गए तो थे दुश्मन का खात्मा करने मगर वह खुद दुश्मन के चंगुल में फंस गए. तालिबान जैसे आतंकी संगठन के हाथों अमेरिका के ये जवान लग गए थे. मौत उनके सर पर मंडरा रही थी.
आखिर क्या हुआ था उनके साथ आइए जानते हैं…
आतंकियों को मिटाने के लिए बनाई कमांडो टीम
इस मिशन का नाम था ऑपरेशन रेडविंग.
इसका उद्देशय था आतंकवादी संगठन तालिबान के लीडर अहमद शाह का पता लगाकर उसे पकड़ना. हालांकि, अहमद शाह एक बागी था, उसका तालिबान के साथ उठना बैठना था.
साल 2005 में एक अफगानिस्तान के एक गाँव में आतंकी संगठनों का दबदबा ख़त्म हो रहा था. कई छोटे आतंकी संगठनों के नेता पकड़े जा चुके थे. अब बचा था सिर्फ एक ही व्यक्ति और वह था अहमद शाह. अमेरिका किसी भी तरह उसे अपनी गिरफ्त में लाके उस गाँव को आतंकियों से मुक्त करवाना चाहता था. इसके लिए उन्होंने एक मिशन का प्लान तैयार किया.
इसके बाद इस ऑपरेशन रेडविंग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए नेवी सील मार्कस लुट्रेल के साथ तीन और नेवी सील्स (माइकल मर्फी, डैनी डेट्ज और मैट एक्सेसन) को अफगानिस्तान के हिंदू कुश क्षेत्र में उतार दिया गया.
यहां उतरने के बाद उन्हें पता चला कि उनका टार्गेट किसी दूसरे गांव में चला गया है. चारों जवानों के सामने संकट खड़ा हो गया कि क्या किया जाए?
ऑपरेशन बहुत जरूरी था इसलिए इसे रद्द करना मुश्किल था और आगे बढ़ाना खुद की जान को खतरा.
वह जगह उनके लिए पूरी तरह नई थी. वह न तो सही ढंग से वहां के रास्तों से वाकिफ थे और न ही मुसीबत में उन्हें जल्दी मदद मिल सकती थी.
फैसला करना बेहद मुश्किल था और कोई एक ही व्यक्ति इसका फैसला नहीं कर सकता था. इसलिए उन सभी ने मिलकर एक दूसरे से विचार-विमर्श किया. थोड़ी नोक-झोंक के बाद सभी ने मिलकर फैसला किया कि वह आगे बढ़ेंगे और मिशन पूरा करेंगे.
उन्होंने यह परवाह नहीं की कि आगे क्या होगा. वह तो बस अपने काम को पूरा करना चाहते थे.
Marcus & His Team Goes On A Mission To Kill Taliban Leader (Representative Pic: Universal Pictures)
तालिबानी आतंकियों से हो ही गयी ‘मुठभेड़’
वह सभी धीरे-धीरे और चुपके से दूसरे गाँव की ओर बढ़ रहे थे. हर छोटी से छोटी हलचल पर उनकी नजर थी. एक गलत हरकत और सभी आतंकी उनके बारे में जान जाते.
वह सभी आगे बढ़ ही रहे थे कि उन्हें तभी बकरियों का एक बड़ा झुंड आता दिखाई दिया. वह सभी तुरंत ही छिप गए. सैनिकों के मन में एक ही ख्याल था कि गलती से भी कोई उन्हें न देख ले.
जैसे ही अनजान चरवाहे उनके नजदीक से गुजरते हैं वह सैनिक बाहर आके उन पर अपनी बंदूक तान देते हैं. बंदूक देख चरवाहे शोर मचाने जा ही रहे थे कि सैनिकों ने उनके मुंह बंद कर दिए. उन्हें अच्छी तरह से जांचा गया. देखा गया कि कहीं उनके पास कोई हथियार तो नहीं. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कितने ही चरवाहे आतंकियों के गुप्तचर होते हैं.
उन्हें चरवाहों के पास एक भी हथियार नहीं मिला. अब उन्हें सबसे अहम फैसला लेना था कि आखिर इन चरवाहों का किया क्या जाए. अगर उन्हें जिंदा छोड़ दिया तो शायद वह आतंकियों को इसकी खबर दे देंगे. अगर निहत्थे व्यक्ति को मारा तो यह सेना के कानून के खिलाफ होगा. हर कोई परेशान हो गया यह सोच कर कि आखिर आगे किया क्या जाए.
सभी सैनिकों ने कुछ देर आपस में बहस करी और आखिर में मिशन के इंचार्ज मार्कस ने कहा कि उन्हें छोड़ दिया जाए. कुछ साथी इस फैसले से नाखुश थे मगर वह कुछ नहीं कर सकते थे.
जैसे ही चरवाहों को छोड़ा गया वह भाग कर गाँव की ओर जाने लगे जहाँ आतंकी थे. उस लम्हे में ही मार्कस समझ गए थे कि आगे क्या होने वाला है.
कुछ ही देर में बहुत से आतंकी हाथों में हथियार लिए सैनिकों के पास आते हैं. हर तरफ गोलियां चलने लगाती हैं. मार्कस और उनकी टीम को समझ ही नहीं आता है कि पहाड़ के किस-किस कोने से गोली चल रही है. वह बीच में कहीं फंस जाते हैं और चारों ओर से आतंकी उन पर हमला करते हैं.
यह मुठभेड़ इतनी घातक थी कि अपनी जान बचाने के लिए सभी सैनिकों को नीचे की ओर भागना पड़ता है. वह रेडियो पर लगातार मदद मांगते रहते हैं मगर इस मौके पर रेडियो भी साथ नहीं देता.
आतंकी पल भर में ही इतने बढ़ गए थे कि कहीं भी जा पाना मुश्किल लग रहा था. वह हर तरफ से उन पर गोलियां चला रहे थे. इसी बीच मर्फी नामक सैनिक सबसे पहले आतंकी गोली का शिकार बनता है. अपने साथी की लाश देख सभी थोड़े उग्र होते हैं मगर तभी उनका एक और साथी मारा जा चुका होता है.
मार्कस और डाइट्ज ही अब आखिरी दो बचे होते हैं. दोनों ही पहाड़ से नीचे आते-आते घायल हो जाते हैं. दोनों में ही इतनी ताकत नहीं बचती कि वह कुछ कर पाएं. अब वह बस आतंकियों से दूर भागने की सोचते हैं. भागते समय ही डाइट्ज की रफ़्तार थोड़ी कम हो जाती है और उसे भी गोली लग जाती है. मार्कस उसे पकड़ता है और वह उनके हाथों में ही दम तोड़ देता है.
अब मार्कस अकेले ही थे. वह अपनी जान बचाने के लिए बहुत ही तेज भागता है और आतंकियों को पीछे छोड़ देता है.
Every Soldier With Marcus Got Killed By Terrorist (Representative Pic: usatoday)
सेना के लिए मर चुका था मार्कस!
अपने साथियों की मौत से मार्कस अंदर से पूरी तरह टूट चुका था. वह जल्द से जल्द उस जगह से बाहर निकलना चाहता था. बड़ी मुश्किल से उसने रेडियो बचाया था. वह रेडियो पर मेसेज भेजता है और इस बार वह सेना को मिल जाता है. वह उन्हें मदद के लिए बोलता है और तुरंत ही सेना मार्कस की मदद के लिए एक हेलीकॉप्टर भेज देती है.
मार्कस को लगा था कि वह अब घर जा सकेगा मगर उसकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी. मार्कस के रेस्क्यू के लिए हेलीकॉप्टर आता जरूर है मगर वह मार्कस की मदद करे, इससे पहले ही आतंकी उसे रॉकेट लांचर का शिकार बना देते हैं.
मार्कस तो बच जाता है मगर घर वापस जाने का उसका सपना हेलीकॉप्टर के साथ चकना-चूर हो जाता है. सेना को खबर मिल जाती है कि हेलीकॉप्टर तबाह हो चुका है इसलिए वह मार्कस को भी मृत समझ बैठते हैं.
उन्हें लगता है कि उनका मिशन फेल हुआ. मार्कस की मौत की खबर उनके घर वालों वालों को भी दे दी जाती है. सबके लिए मार्कस मर चुका था.
Army Declared Marcus Dead (Pic: tattooskid)
एक पश्तून बना फ़रिश्ता…
मार्कस खुद को बचाने के लिए पास के एक गाँव में भाग जाता है. एक घर उन्हें खुला दिखाई देता है जिसमें वह तुरंत ही घुस जाता है. वहां उनकी मुलाकात मोहम्मद गुलाब नाम के एक व्यक्ति से होती है.
वह उसे अपनी सारी आपबीती बताते हैं और उनसे मदद की गुहार लगाते हैं. मोहम्मद गुलाब का भी दिल पिघल जाता है और वह मार्कस की मदद के लिए राजी हो जाते हैं. वही उनकी मरहमपट्टी करते हैं. इसी बीच तालिबानी आतंकी मार्कस की खोज में उस गाँव में आ जाते हैं. उन्हें खबर लग जाती है कि एक अमेरिकी सिपाही यहाँ आया है. मोहम्मद गुलाब मार्कस को अपने घर में छुपा देते हैं.
पूरे गाँव में तलाशी अभियान चलाए जाते हैं मगर कोई भी मार्कस को ढूंढ नहीं पाता और न ही गाँव का कोई मार्कस का पता बताता है.
पूरा गाँव मार्कस की रक्षा में उतर जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वह पश्तून लोगों का गाँव था और वह अपनी सालों पुरानी परंपरा निभा रहे थे.
उनकी परंपरा के तहत घर आये मेहमान की रक्षा करना पश्तूनियों का धर्म है. उन सभी ने मिलकर तालिबान से मार्कस को बचाया. कुछ दिनों बाद जैसे ही मार्कस तंदुरुस्त हो जाते हैं वह अपने बेस से कांटेक्ट करते हैं. वह उन्हें बताते हैं कि वह जिंदा हैं और एक गाँव में हैं. थोड़े ही दिन में अमेरिकी सेना का एक हेलीकॉप्टर आता है और मार्कस उसमें बैठते हैं. कहते हैं कि आखिरी समय में गुलाब और मार्कस दोनों की ही आँखें भर आती हैं. वह एक आखिरी बार खुद को गले लगाते हैं और पल भर में दोनों के रस्ते हमेशा के लिए बदल जाते हैं.
इसके साथ ही मार्कस मौत से बच के अपने घर वापस आ जाते हैं.
घर वापसी के बाद मार्कस एक हीरो बन गए थे. उन्हें सेना से कई सारे पुरस्कार मिले अपनी बहादुरी के लिए. इतना ही नहीं हॉलीवुड ने ‘लोन सर्वाइवर’ नामक एक फिल्म भी बनाई है जो मार्कस के इस मिशन पर ही आधारित है.
आप क्या कहेंगे इस अद्भूत बहादुरी और गुलाब जैसे व्यक्तियों की इंसानियत पर?
Web Title: Marcus Luttrell Man Who Stuck In Afghanistan, Hindi Article
Feature Image Credit: alchetron