1999 में कारगिल में पाकिस्तान की सेना को धूल चटा देने के बाद देश में जश्न का माहौल था. भारतीय सैनिकों की शहादत बेकार नहीं गई थी. पूरी दुनिया भारतीय सेना की बहादुरी को देख चुकी थी.
वहीं दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका 8 साल से गृह युद्ध की मार झेल रहा था.
सियेरा लियोन की आम जनता न तो सरकार पर भरोसा कर सकती थी और न ही विद्रोहियों का साथ दे सकती थी.
आखिर में यूनाइटेड नेशंस ने शांति सेना तैयार की.
सियेरा लियोन में चलाया गया ये ऑपरेशन वैसे तो यूनाइटेड नेशन के तत्वावधान में था, लेकिन सही मायने में ये भारत का ही ऑपरेशन था.
वहां पर 200 के करीब भारतीय सैनिकों को कैदी बनाया गया था.
अपने सैनिकों को बचाने के लिए भारतीय सेना ने ‘आॅपरेशन खुकरी’ प्लान किया.
ऑपरेशन खुकरी इस लिहाज से भी खास था कि अमेरिका और ब्रिटेन ने बंधक भारतीय सैनिकों को छुड़ाने में मदद से साफ इनकार कर दिया था.
यहां तक की यूनाइटेड नेशंस के तत्कालीन महासचिव कोफी अन्नान भी इससे दूरी बनाकर रखना चाहते थे.
आखिर में भारतीय सेना ने खुद मोर्चा संभाला और अपने सैनिकों को वहां से बचा के लाई.
तो आइए जानते हैं कि कैसे इस असंभव आॅपरेशन को भारतीय जांबाजों ने संभव कर दिखाया–
शांति कायम करने पहुंचे सैनिक बने ‘बंदी’
सियेरा लियोन में 1999 से पहले 8 साल तक घमासान गृह युद्ध छिड़ा हुआ था.
सरकार के हाथ में कुछ नहीं था और विद्रोहियों ने पूरे देश में आंतक मचा रखा था. आखिर में यह एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या बन गई थी.
समस्या को सुलझाने के लिए 1999 में विद्रोहियों, निर्वाचित सरकार और सेना के बीच समझौता हुआ.
इस समझौते को पूरे देश में लागू करना किसी चुनौती से कम नहीं था. आखिर में इस मामले में यूनाइटेड नेशंस ने दखल दिया और सभी प्रमुख देशों के सामने एक शांति सेना बनाने का प्रस्ताव रखा.
शांति सेना के लिए करीब 6 हजार सैनिकों की आवश्यकता थी. भारत ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया.
यूनाइटेड नेशंस ने 3 हजार सैनिकों की मांग की और साथ ही इस पूरी शांति सेना की जिम्मेदारी भारतीय मेजर जनरल विजय कुमार जेटली को दी.
हालांकि दक्षिण अफ्रीका में कई बड़े नेताओं ने इसका विरोध किया. वे चाहते थे शांति सेना की कमान किसी दक्षिण अफ्रीका फोर्स कमांडर को दिया जाए. हालांकि यूनाइटेड नेशंस ने अपना फैसला नहीं बदला.
जेटली ने इस अभियान को सफल बनाने के लिए कर्नल सतीश कुमार के अंडर में 5/8 गोरखा राइफल्स को चुना.
वायुसेना से भी मदद ली गई. सैनिकों के लिए एमआई—8 और चेतक जैसे हेलीकॉप्टर तैयार किए गए. इस अभियान में कुल 1,612 भारतीय सैनिक शामिल हुए.
वहां पहुंचकर 5/8 गोरखा राइफल्स को लाइबेरिया से जुड़े देश के पूर्वी भाग में तैनात किया गया.
उनकी एक कंपनी डारू और दो कंपनियां सियेरा लियोन में तैनात की गई. सैनिकों ने कुछ ही दिनों में स्थानीय लोगों का विश्वास हासिल कर लिया और उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा की व्यवस्था की.
सेना ने कई विद्रोहियों से आत्मसमर्पण भी करवाया.
कुछ विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण करने वाले विद्रोहियों की वापसी की मांग की. सेना ने इसका विरोध किया. इस बीच विद्रोहियों और भारतीय सेना के बीच लड़ाई शुरू हो गई.
भारतीय सेना कोई नई जंग शुरू नहीं करना चाहती थी इसलिए उन्होंने विद्रोहियों के लीडर से बात करनी चाही. उनके लीडर ने भी उनसे मिलने के लिए हामी भरी.
भारतीय सेना के बहुत से जवान निकले उस लीडर से मिलने मगर वह नहीं जानते थे कि यह एक जाल है.
वह जैसे ही उनके ठिकाने पर पहुंचे उन पर हमला कर दिया गया. थोड़े ही वक़्त के अंदर करीब 200 से ज्यादा भारतीय सैनिकों को बंदी बना लिया गया.
उनसे हथियार छीन लिए गए थे और बिना हथियार वहां से निकलना मुश्किल था.
Operation Khukari To Save 223 Indian Soldier (Pic: gurkhabde)
किसी ने नहीं दिया ‘साथ’
भारत चिंता में था, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था जब विद्रोहियों ने भारतीय सैनिकों को ना केवल बंदी बनाया बल्कि उनके हथियार तक छीन लिए थे.
तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नान्डिस और विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने जनरल वी.पी. मलिक से इस बारे में बात की.
उन्होंने तय किया कि इस मसले का बातचीत से हल निकालेंगे पर सिंह को डर था कि वहां कुछ अनहोनी हो सकती है!
जनरल वी.पी. मलिक ने अपनी किताब ‘भारतीय सैन्य शक्ति’ में लिखा है कि मैंने तत्काल पैराशूट रेजीमेंट के ब्रिगेडियर सुभाष जोशी को शॉर्ट नोटिस पर सियेरा लियोन भेजा गया.
जोशी पहले ‘आॅपरेशनल कैक्टस’ में 6 पैरा बटालियन का नेतृत्व कर चुके थे.
जोशी राष्ट्रपति चार्ल्स ट्रेलर से मिले. उन्होंने आश्वासन दिया कि सभी भारतीय सैनिकों को सही सलामत वापिस ले आएंगे.
वहीं दूसरी ओर भारत ने अमेरिका और ब्रिटेन से इस मामले में मदद के लिए कहा पर उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिला.
तीन ओर से मिले जवाबों से एक बात तो तय थी कि अब सेना को ही यह कार्य करना था, इसलिए भारतीय सैनिकों को छुड़ाने के लिए लिए ‘ऑपरेशन खुकरी’ प्लान किया गया.
सैनिकों की सौदेबाजी
भारतीय सैनिकों को सही सलामत लाने के लिए भारत ने ‘आॅपरेशन विजय’ में शामिल कमांडिंग आॅफिसर कर्नल कुशल ठाकुर की अगुवाई सैनिकों को सियेरा लियोन पर धावा बोलने के लिए तैयार किया गया.
वहीं दूसरी ओर चार्ल्स पर बने कूटनीतिक दवाब के परिणाम स्वरूप बंधक बने अफ्रीकी शांति रक्षकों की रिहाई हो गई पर वहां पर फंसे भारतीय सैनिक अब भी बंधक थे.
कौलाहुन में बढ़ रही घेराबंदी और दक्षिण अफ्रीकी राजनायकों का सहयोग न मिलने से यह साफ हो चुका था कि सैनिकों की रिहाई के बदले विद्रोही कोई बड़ी डिमांड कर सकते हैं.
डिमांड पूरी न होने पर सैनिकों की जान जा सकती है. ऐसे में जरूरी यह था कि किसी भी हाल में पहले अपने जवानों को वहां से निकाला जाए.
वैसे तो सियेरा लियोन में तैनात बाकी भारतीय सैनिक कौलाहुन में फंसे जवानों को निकालने के लिए तैयार थे पर उनके पास पर्याप्त साधन नहीं थे, जिससे वे घेराबंदी तोड़कर सुरक्षित बाहर आ सकें. बाकी मुश्किलें खराब मौसम ने बढ़ा दी थीं… क्षेत्र में तेज बारिश के आसार थे.
वहीं दूसरी ओर जैसा अनुमान था वैसा ही हुआ. विद्रोहियों ने सैनिकों को छोड़ने के बदले युद्ध के सारे साजो-सामान की मांग कर ली जिसे तत्काल प्रभाव से इंकार कर दिया गया.
Operation Khukari To Save 223 Indian Soldier (Pic: wikipedia)
दुश्मन के ठिकाने पर हमला
सैनिकों को बंधक बने हुए दो माह बीत चुके थे. भारत को जल्द ही कोई ठोस कदम उठाना था. अगर भारत ऐसा नहीं करता तो विद्रोही उनके सैनिकों को मार सकते थे. बहुत सी जानें दांव पर लगी हुई थीं.
इसके साथ ही ‘आॅपरेशन खुकरी’ को अंजाम देने का आखिरी वक्त आ गया था.
13 जुलाई 2000 को सियेरा लियोन में ‘आॅपरेशन खुकरी’ को विजय कुमार जेटली ने शुरू किया.
इस अभियान को सफल बनाने के लिए भारतीय सेना को भारी मात्रा में हथियार मुहय्या कराए गए.
जेटली की योजनानुसार 15 जुलाई को सुबह 5 बजे हैलीकॉप्टर से दुश्मनों के ठिकानों पर बम दागे गए.
आकाश से हुई इस गोलाबारी ने दुश्मनों के हौंसलों को पस्त कर दिया. बाकी कसर जमीन पर लड़ रहे सैनिकों ने पूरी कर दी.
विद्रोहियों पर दो तरफा वार किए गए. उन्हें हर मोर्चे से हराने के लिए मजबूर किया गया.
आखिरकार 5/8 गोरखा राइफल्स के सैनिक बंधक सैनिकों के पास पहुंचने में कामयाब हुए.
वह गाड़ियों और जीप में उन सैनिकों तक पहुंचे थे और थोड़ा ही वक़्त लगा उन्हें बंदी सैनिकों को छुड़ाने में. इसके बाद वह उन सैनिकों को अपनी गाड़ियों में बिठा के अफ़्रीकी जंगलों से गुजरते से हुए वापस आने लगे.
कहते हैं कि उनका रास्ता बहुत ही मुश्किल भरा था, लेकिन फिर भी भारतीय सेना ने हर मुश्किल का बखूबी सामना किया.
आखिर ‘हम जीत गए’
करीब 66 घंटे तक चले इस ऑपरेशन में आखिर में भारतीय सेना की ही जीत हुई.
इस काम में एयरफोर्स ने भी सेना का खूब साथ दिया. उन्होंने लगभग 98 उड़ानें भरी सेना के कमांडोज को उनकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए.
सबसे हैरत की बात तो यह थी कि इस ऑपरेशन में किसी भी सैनिक की जान नहीं गई. बिलकुल ही सफलतापूर्वक इस मिशन को अंजाम दिया गया. इसके साथ ही भारतीय सेना ने अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया.
Operation Khukari To Save 223 Indian Soldier (Pic: defencenewsindia)
ऑपरेशन खुकरी के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. इस मिशन की कहानी बहुत ही दिलचस्प है. शायद यही कारण है कि बॉलीवुड स्टार शाहरुख़ खान भी इस घटना पर फिल्म बनाना चाहते हैं.
भारतीय सैनिकों की यह दिलेरी वाकई काबिल-ए-तारीफ है.
Web Title: Operation Khukari To Save 223 Indian Soldier, Hindi Article
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