‘कितना संक्षिप्त है प्यार और भूलने का अरसा कितना लम्बा’
चंद शब्दों में प्रेम की इतनी खूबसूरत व्याख्या करने वाला कोई इंसान कम्युनिस्ट नहीं हो सकता… पर वे थे! वे क्रांतिकारी, विचारक और विद्रोही भी थे.किन्तु, उन्होंने अपने दिल से प्यार और ममता का एहसास कभी खत्म नहीं होने दिया.
तभी तो वे आजीवन सोच के सागर में डूब कर प्रेम कविताओं के मोती तलाश लाते थे. हम बात कर रहे हैं नोबल पुरस्कार विजेयता विश्व प्रसिद्ध कवि पाब्लो नेरूदा की!
चूंकि, उनकी खूबसूरत प्रेम कविताओं ने हमेंशा कवियों को प्रेरणा दी है, इसलिए उन्हें जानना दिलचस्प रहेगा—
अकेलेपन में कविता बनी सहारा
12 जुलाई 1904 में मध्य चीली के एक छोटे-से शहर पराल में एक साधारण परिवार में पाब्लो का जन्म हुआ. उनके पिता ‘जोन्स डेल कारमेन’ रेलवे कर्मचारी थे और मां रोजा एक स्कूल में पढ़ाया करती थीं. पाब्लो के जन्म के दो माह बाद ही मां की मौत हो गई.
जोन्स पर अकेले ही पाब्लो को पालने-पोसने की जिम्मेदारी आ गई. जोन्स ने रोजा की मौत के बाद शहर छोड़ दिया और कुछ समय बाद दूसरी शादी कर ली. उन्होंने जिस महिला से शादी ही उसके पहले ही एक लड़का रोडाल्फ था.
इसके बाद एक बेटी पैदा हुई और इस तरह पाब्लो को पूरा परिवार मिल गया.
बावजूइ इसके लोगों के बीच में 10 साल का पाब्लो खुद को हमेशा अकेला पाता था. वह खेलने या पिकनिक जाने की बजाए बगीचे में बैठकर आसमान तांकता और फिर कल्पनाएं करते हुए उन्हें शब्दों में पिरोकर कागज पर उतारता.
उसके कविता लिख देने की प्रतिभा से स्कूल शिक्षक भी हैरान रहे. पर पिता के लिए यह सब पढ़ाई से बचने का एक बहाना था. उन्हें पाब्लो का कविताएं लिखना जरा भी रास नही आया. सौतेली मां ने भी बहुत अच्छा व्यवहार नहीं किया.
Pablo Neruda (Pic: thenewyorktimes)
गैबरिएला मिस्ट्रल ने पहचानी प्रतिभा
नोबेल पुरस्कार विजेता गैबरिएला मिस्ट्रल ने पाब्लो की प्रतिभा को पहचान लिया. वह उनके स्कूल की अध्यक्ष थी. उन्होंने पाब्लो का हौंसला बढ़ाया और उन्हें बेहतर लिखने में मदद की. महज 13 साल की उम्र में उनका पहला निबंध स्थानीय अखबार में प्रकाशित हुआ.
इसके बाद कई पत्र पत्रिकाओं में उन्होंने फ्रीलांस राइटिंग शुरू की. वे सरकार और उसकी नीतियों के बारे में क्रांतिकारी विचार रखते थे, जिसे पाठकों ने खूब पसंद किया. 20 साल की उम्र में पाब्लो का पहला कविता संग्रह ‘ट्वेंटी लव पोयम्स एंड ए साँग ऑफ़ डिस्पेयर’ प्रकाशित हुआ.
क्रांतिकारी लेखक और प्रेम कवि के रूप में पाब्लो ने कम उम्र में ही ख्याति पा ली थी. हालांकि, कविताओं और लेखों के साथ वे अपना नाम नहीं देते थे. उन्हें डर था कि यदि पिता की नजर इस पर पड़ी तो वे नाराज होंगे और उनका लिखना बंद हो जाएगा.
बहरहाल, पाब्लो ने सेंटियागो के विश्वविद्यालय में शिक्षा जारी रखी. कविता और लेख लिखने के कारण उन्हें कुछ पैसे मिल जाया करते थे, लेकिन इससे उनकी आर्थिक स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आया.
आर्थिक पक्ष मजबूत करने के लिए उन्होंने सिंगापुर, रंगून, कोलंबो में नौकरियां की. इसी दौरान उनकी मुलाकात डच बैंक में काम करने वाली मैयरिका एंटोनीटा से हुई. एंटोनीटा पाब्लो की कविताओं से काफी लगाव रखती थीं.
उनका कविताओं के प्रति यह प्रेम देखकर पाब्लो को उनसे प्यार हो गया. आगे करीब एक साल बाद दोनों ने शादी कर ली.
क्रांतिकारी रवैए ने दुश्मन पैदा किए
1945 तक आते-आते पाब्लो ने सरकारी विभाग में जिम्मेदार पद पर नौकरियां कर ली थीं. उनकी लेखन प्रतिभा के कारण सरकार और सरकारी अधिकारी भी प्रभावित रहे. इसका फायदा उन्हें करियर बनाने में मिला.
हालांकि, उनके क्रांतिकारी लेखों के कारण वे भ्रष्टाचारियों की आंखों की किरकिरी बन गए थे. जब उन्हें 1948 में ही चिली प्रबंधक की बैठक में आमंत्रित किया गया, तब सरकार ने उन पर मिथ्या का आरोप मढ़कर गैर जमानती वारंट जारी कर दिया.
यह पहला मौका था, जब पाब्लो अपने कट्टरविचारों और क्रांतिकारी लेखों के कारण इतनी बड़ी समस्या में फंसे थे. वारंट से बचने के लिए उन्होंने चिली छोड़ देना बेहतर समझा. इसके बाद वे चीन, यूरोप और सोवियत समेत अन्य देशों में रहे.
Pablo Neruda with his Wife (Pic: Andina)
लेनिन और स्टॉलिन ने पुरस्कृत किया
1952 में उन्होंने सरकार से राहत मिली और चिली वापिस आने का मौका मिला. अपनी कम्युनिट विचारों के कारण, उन्हें लेनिन और स्टॉलिन द्वारा घोषित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
1970 में उन्हें राष्ट्रपति पद का दावेदार घोषित करते हुए चुनाव में हिस्सा लेने के लिए कहा. हालांकि उन्होंने अपना नाम चुनाव से वापिस ले लिया और अपने सबसे खास दोस्त साल्वाडॉर एलियांडे को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
1970 में चिली में साल्वाडॉर एलियांडे ने साम्यवादी सरकार बनाई, जो विश्व की पहली लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई साम्यवादी सरकार थी. पाब्लो उनके कट्टर समर्थक रहे. उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से एलियांडे के विचारों का प्रचार भी किया.
इसी क्रम में 1971 के आसपास पेरिस में पाब्लो को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह सम्मान उन्हें अपने साहित्यक योगदान के लिए मिला था. इसी साल एलियांडे ने उन्हें फ़्रांस में चिली का राजदूत नियुक्त कर दिया था.
आगे जनरल ऑगस्तो पिनोशे ने चिली में तख्तापटल की पूरी तैयारी कर ली थी. 1973 में ऑगस्तो ने सैनिकों की मदद से तख्तापलट कर दिया. 11 सितंबर 1973 को एलियांडे ने समर्पण करने की जगह खुदकुशी कर ली.
रहस्यमयी मौत पर उठे सवाल
इस घटना ने पाब्लो को भीतर तक हिला दिया. वे अपनी मां, परिवार और देश को खोने का दर्द झेल चुके थे. अब उनके सबसे अच्छे दोस्त का जाना वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. इसके साथ ही उनकी तबियत जवाब दे रही थी.
उन्हें आखिरी दिनों में पता चला कि वे कैंसर के मरीज हैं. इसके बाद प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे पाब्लो देश से बाहर निकलकर एक बार फिर तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करना चाहते थे. किन्तु, नई सरकार को उनके इरादों की भनक लग चुकी थी.
ऑगस्तो को डर था कि यदि पाब्लो ने फिर से लिखना शुरू किया तो उनकी सरकार के प्रति लोगों का भरोसा उठने लगेगा और विद्रोहियों को बल मिलेगा.
पाब्लो ने देश छोड़ने की तैयारी कर ली थी, लेकिन ठीक एक दिन पहले ही आगस्तो ने उन्हें इलाज के बहाने सरकारी अस्पताल में जबरन दाखिल करवा लिया. जब पाब्लो अस्पताल में थे, तो सेना ने उनके घर को तहस-नहस कर दिया.
उनकी सभी कृतियां जला दी गईं. अस्पताल प्रबंधन का कहना था कि पाब्लो की मौत बीमारी से लड़ते हुए हो गई है.
हालांकि, 1990 में देश में जब दोबारा लोकतंत्र की स्थापना हुई तो लोगों ने पाब्लों की मौत पर आशंका जताई कि उन्हें सरकार ने जहरीला इंजेक्शन लगाकर मार दिया है.
हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी!
After Poet Pablo Neruda Death (Pic: contactpress)
पाब्लो ने अपने जीवन में जिस संघर्ष को देखा, वह उनकी मौत के बाद भी जारी रहा.
हां! इस सबमें जो सबसे खास चीज रही, वह था उनका लेखन. पाब्लो आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी प्रेमकविताएं अब भी प्रेमियों के जज्बातों में रंग भरती हैं.
Web Title: Story of Poet Pablo Neruda, Hindi Article
Feature Image Credit: Flickr