‘जाको राखे साइयां मार सके न कोय’
खुशी के माहौल में ख़तरे की आहट इंसानी कानों तक नहीं पहुंच पाती. कब खुशी का माहौल ख़ौफ में तब्दील हो जाये किसी को मालूम नहीं होता. मुंबई अटैक इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. ताज होटल में खुशियां मना रहे हज़ारों लोगों को कब ख़तरे ने अपने घेरे में ले लिया उन्हें मालूम ही नहीं चला!
दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं.
एक जान लेने वाला और एक जो जान बचाता है. अपनी जान की परवाह किये बिना कई लोग हज़ारों लोगों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाते हैं. आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स की दास्तां सुनाने जा रहें हैं.
वह न एक सोल्जर था, न ही पुलिस अधिकारी था और न ही कोई सुरक्षा गार्ड.
वह तो सिर्फ एक होटल मैनेजर था!
जी हां, एक साधारण से होटल मैनेजर ने कैसे अपनी जान पर खेल कर हज़ारों लोगों को मौत के मुंह से बचाया था यह जानना शायद सबके लिए ही रोचक के साथ-साथ प्रेरक भी रहेगा.
तो आइये इस दिलचस्प होटल मैनेजर की कहानी को और करीब से टटोलते हैं–
राजनीति ने शुरू की ‘आग’
अफ्रीका में एक बड़ी मशहूर जगह है जिसको रवांडा नाम से जाना जाता है. साल 1994 का समय था, जब रवांडा में तनाव पैदा हो गया. वजह थी अफ्रीका की राजनीति में आपसी मतभेद का शुरु होना.
कहा जाता है कि राजनेताओं ने अपने आपसी स्वार्थ के लिए पूरे रवांडा में आगजनी करवा दी थी. इसकी कीमत तुतसी समुदाय के लोगों को अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी. सड़कों पर मौत का नाच हुआ करता था. हर कोई एक दूसरे को मारने पर तुला हुआ था.
राजनीति के कारण रवांडा में जो आग फैली थी उसमें सबसे ज्यादा तुतसी लोग ही जल रहे थे. वह कुछ नहीं कर पा रहे थे. वह कमजोर थे और उन्हें मारने वाले ताकतवर!
वह मजबूर थे और हालात नहीं बदल सकते थे. यहीं से शुरू हुआ वह अध्याय जिसने इंसानियत का सर शर्म से झुका दिया.
Internal Matters Of State Started The Fight (Pic: aboutrwanda)
नरसंहार में गई ‘लाखों की जान’
थोड़े समय में ही रवांडा का माहौल गरमा गया और शुरुआत हुई कत्लेआम की.
हुटू उग्रवादियों ने तुतसी लोगों को सरेआम मारना शुरू कर दिया था. कोई भी उनके सामने आता वह मारा जाता.
रवांडा में हुये नरसंहार में करीब आठ लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. पूरे रवांडा राज्य में भय का माहौल था. उस समय की अफ्रीकी सरकार दंगाईयों पर काबू पाने में नाकामयाब साबित हो रही थी. आलम यह था कि गलियों और सड़कों पर लोग एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुये थे.
जिसे भी कोई निहत्था दिखाई देता, वह उसे मारने चले जाता.
आर्मी को मोर्चा संभालते हुये सड़कों पर उतरना पड़ा. आर्मी काफी हद तक आगजनी और कत्लेआम पर अंकुश लगाने में कामयाब भी रही, लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी. काफी लोग इस नरसंहार में अपनी जान गंवा चुके थे और गंवा रहे थे. इतना ही नहीं, कई उग्रवादी अफ्रीका घूमने आये अन्य देशों के लोगों को टारगेट कर उन्हें निशाना बना रहे थे. इस नरसंहार की लपटें दूसरे देशों तक भी पहुँच चुकी थी.
पूरा विश्व देख रहा था कि आखिर कैसे रवांडा में लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हैं.
Thousands Of Tutsi People Died During The Genocide (Pic: venturesafrica)
दहशत के माहौल में ‘फरिश्ता’ बन के आये ‘पॉल’
जहां एक तरफ लोगों को अपनी जान बचाने के लिये मज़लूमों की सिसकियों और उनकी मिन्नतों को नज़रअंदाज़ कर दरवाज़ा नहीं खोलते थे. वहीं इस पूरे दहशत के माहौल में एक फरिश्ता इंसान के रुप में सामने आया और हज़ारों लोगों की ज़िंदगियां बचाने का ज़रिया बना. जी हां, इस फरिश्ते का नाम था पॉल रूसेसाबगीना.
रवांडा की गलियों में लाशें देख पॉल का मन विचलित हो उठा था. मरने वालों में अधिकतर तो मासूम थे जिनका दंगों से कोई लेना देना नहीं था.
दंगों के दौरान पॉल एक होटल में मैनेजर के पद पर तैनात थे. उन्होंने देखा कि रवांडा की गलियों में खून की होली खेली जा रही है. मासूमों की ज़िदगिंयों को बचाने के लिए कोई हाथ आगे नहीं बढ़ रहा. तब उन्होंने अपनी जान को जोखिम में डाल मुसीबतज़दा लोगों को बचाने का संकल्प लिया. इस फैसले के कारण पॉल को मौत की सजा मिल सकती थी मगर वह हर चीज के लिए तैयार थे.
पॉल ने अपने होटल के दरवाज़े मुसीबत में फंसे तुतसी समाज के लोगों के लिये खोल दिये. देखते ही देखते उनके होटल में कई सौ लोगों ने शरण ले ली. वह सभी अपने घर नहीं जा सकते थे क्योंकि वहां उग्रवादी उनकी खोज कर रहे थे. यही कारण है कि जान बचाने की उम्मीद में सब पॉल के होटल में आ गए.
पॉल को लग रहा था कि उन्हें बस नरसंहार ख़त्म होने तक बस लोगों को छिपाए रखना है, मगर वह अंजान थे कि आगे उन्हें किस मुसीबत का सामना करना है.
Paul Saved Many Tusti People During The Killing (Pic: l-hora)
होटल में आ घुसे हथियारबंद लोग, और..
उग्रवादियों को यह बात पता चलने में देर नहीं लगी कि होटल मैनेजर पॉल ने हज़ारों तुतसी समाज के लोगों को होटल में शरण दे रखी है. वह गुस्से से भर गए कि आखिर कोई कैसे इतनी हिम्मत कर सकता है.
उन्होंने होटल पर आक्रमण कर दिया जिसका असर यह हुआ कि होटल का पूरा स्टाफ होटल छोड़कर वहां से भाग गया. वहीं पॉल के सामने दो चुनौतियाँ थी. या तो वह अपनी जान बचाते हुये होटल छोड़कर अपने परिवार के साथ भाग जायें या फिर होटल में शरण लिये लोगों की ज़िंदगी बचाने के लिए अंत तक प्रयास करें.
कोई और व्यक्ति होता तो शायद पहला विकल्प चुनता, लेकिन पॉल ने इंसानियत का रास्ता चुनना सही समझा. पॉल के लिए यह सब इतना आसान नहीं था. उनके पास लोगों की जान बचाने के लिए न तो कोई हथियार थे और न ही कोई सेना. वह तो बस सेना के आने का इंतजार कर रहे थे ताकि वह लोगों को सुरक्षित वापस ले जा सके.
कुछ दिन तो पॉल ने दंगाइयों को पैसे देकर रोक दिया मगर वह विश्वास के काबिल नहीं थे. पॉल को जल्द ही कुछ करना था वरना बेवजह ही दंगाइयों के हाथ वह सभी मारे जाते.
अपनों की जान जाने के बाद भी नहीं डगमगाया हौंसला!
पॉल के लिए हर दिन चुनौती भरा था. उग्रवादियों को यह बात बिल्कुल हज़म नहीं थी कि एक अफ्रीकी मूल का नागरिक तुतसी समाज के लोगों और विदेशी नागरिकों को शरण दे रहा है. उग्रवादियों के लिए पॉल उनके मजहब के खिलाफ जा रहे थे, लेकिन पॉल तो सिर्फ एक ही मज़हब को मानते थे और वह मज़हब था इंसानियत का.
उनका मकसद इंसानियत दिखाते हुये हज़ारों लोगों की जान बचाना था.
यह सब इतना आसान नहीं था. हालांकि पॉल की मदद में आर्मी के कुछ जवान होटल के बाहर तैनात थे. इसके कारण दंगाइयों को अंदर आना ख़तरे से ख़ाली नहीं लग रहा था.
उग्रवादियों पॉल से बदला लेने के लिए पागल हुए जा रहे थे. वह तो अंदर नहीं जा सकते थे इसलिए उन्होंने पॉल को बाहर निकालने का प्लान बनाया. उन्होंने पॉल के परिवार को अपना निशाना बना लिया. उन्होंने उनकी माँ, भाई और अन्य परिवार वालों को कत्ल कर दिया.
इस बात की खबर जब पॉल को लगी तो वह पूरी तरह से टूट गए थे. इसके बावजूद भी उन्होंने इंसानियत का फर्ज निभाने की सोची. उनके कदम डगमगाने लगे थे पर पॉल के हौंसले ने उन्हें सीधा खड़ा रखा.
आख़िर में जीत पॉल की ही हुई. मित्र देशों की सेना वहां पहुंचने में कामयाब रही. उनकी सुरक्षा के तले होटल में छिपे लोगों को एंबेसी तक सुरक्षित पहुंचाया गया. इस तरह पॉल ने अकेले हज़ारों लोगों की जान बचाई.
बाद में पॉल के लिए हालात और खराब हुये और उन्हें जान से मारने की धमकी मिलने लगी. परिवार की सुरक्षा देखते हुये उन्होंने बेल्जियम में शरण लेने की दरख्वास्त लगाई. साल 1996 में उन्हें बेल्जियम सरकार ने अपने देश में रहने की अनुमति दे दी. इसके बाद पूरे विश्व ने पॉल के इस साहसी काम की सराहना की.
Killers Killed Most Of The Paul’s Family (Representative Pic: tarekfatah)
पॉल की इस बहादुरी पर साल 2004 में होटल रवांडा नाम की फिल्म भी बन चुकी है. फिल्म के माध्यम से पॉल की निडरता और उनके जज़्बे को पर्दे पर दिखाया गया. फिल्म में संदेश दिया गया कि किसी मुसीबत में फंसे व्यक्ति की मदद करने के लिए संसाधन नहीं बल्कि नेक नीयत और हिम्मत की ज़रुरत होती है.
पॉल ने जनसंहार में लोगों को बचा के दिखा दिया कि इंसान का असली धर्म इंसानियत ही है.
Web Title: Paul Rusesabagina Rwandan Genocide Hero, Hindi Article
Feature Image Credit: letterboxd