कहते हैं कि आसान रास्तों पर चल कर कभी किसी ने बड़ा मुकाम हासिल नहीं किया. परिश्रम करने वाले ही बड़े कार्य करते हैं और परिवर्तन के पहिये को गति देते हैं.
खुद के लिए तो हर कोई चिंतित होता है पर गैरों के लिए सोचने वाले और उनके लिए कुछ करने वाले लोग बहुत कम होते हैं.
आज हम बात कर रहे हैं नोबेल पीस प्राइस विजेताओं की, जिन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए लोगों के जीवन को बदला. इनके बलिदान और कार्यों की बदौलत इन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार ‘नोबेल’ से नवाजा गया. चलिए जानते हैं कौन हैं वह लोग–
अल्फ्रेड नोबेल ने की शुरुआत
नोबेल शांति पुरस्कार पाने वालों के बारे में बताने से पहले हम आपको नोबेल पुरस्कार के बारे में बताना चाहेंगे कि आखिर यह पुरस्कार दुनिया का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार क्यों है? दरअसल यह पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर दिया जाता है, जो कि एक बहुत बड़े वैज्ञानिक थे. अल्फ्रेड नोबेल को उनके द्वारा बनाए जाने वाले खतरनाक डायनामाइट और एक्सप्लोसिव के लिए जाना जाता था.
एक दिन एक समाचार पत्र में उनकी मौत की गलत खबर छपी और उसमें उन्हें ‘मर्चेंट ऑफ डेथ’ यानि ‘मौत का सौदागर’ के नाम से संबोधित किया गया तो अल्फ्रेड को एहसास हुआ कि उनके बनाए डायनामाइट से आज तक सिर्फ लोगों की जान ही गई है. वह नहीं चाहते थे कि उनकी मौत के बाद लोग उन्हें मौत के व्यापारी जैसे नाम से याद करें इसलिए उन्होंने अपनी अधिकाँश पूंजी लोक-भलाई में लगा दी और अपने बाकी पैसों से नोबेल पुरस्कार की शुरुआत की.
यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने फिजिक्स, केमिस्ट्री, मेडिसिन, लिटरेचर और विश्व शांति के लिए अतुलनीय योगदान दिया है. आज हम सिर्फ उन प्रसिद्ध लोगों के बारे में आपको बताएँगे जिन्होंने शांति के लिए नोबेल जीता है तो चलिए अब शुरू करते हैं इन महान व्यक्तियों के योगदानों को–
Alfred Nobel Started The Nobel Prize (Pic: wikipedia)
आंग सान सू की
बहुत मुश्किल होता है ऐसी जगह पर जीवन व्यतीत करना जहां तानाशाहों का राज चलता हो. एक तानाशाह सरकार के खिलाफ अकेले खड़े होने का साहस बहुत कम लोगों में होता है. कुछ इसी तरह का साहस लेकर जन्मी थी ‘आंग सान सू की’. जब बर्मा में सैन्य सरकार का राज था तब आंग सान सू की लोगों की आवाज बन कर सामने आई. उन्होंने सैन्य सरकार के प्रभुत्व को ठुकराते हुए बर्मा में लोकतांत्रिक सरकार बनाने का ऐलान किया.
उनकी कोशिशों के चलते तत्कालीन सरकार द्वारा उनकी आवाज को दबाने का खूब प्रयत्न किया गया. उन्हें कई तरह से प्रताड़ित भी किया गया मगर आंग सान पीछे न हटीं. उन्होंने लोगों को एकजुट कर अपनी नई राजनीतिक पार्टी ‘नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी’ का गठन किया और चुनाव लड़ा. इस बीच 1989 में उन्हें सरकार द्वारा देश में अराजकता फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद करीब 15 साल आंग सान ने सेना के सामने नजरबंद होकर गुजारे. न तो उन्हें किसी से मिलने दिया जाता न ही कोई उनसे मिल सकता था. बाहरी दुनिया से उनका नाता पूरी तरह तोड़ दिया गया था. इन सबके बावजूद भी आंग सान टूटी नहीं और सैन्य सरकार के खिलाफ लड़ती रहीं.
हालांकि बाद में उनकी पार्टी ने चुनाव जीत लिए. 1991 में नोबेल कमेटी ने आंग सान का नाम नोबेल पीस पुरस्कार के लिए चयनित किया. अपने इस संघर्ष के चलते आंग सान करीब 15 वर्ष तक जेल में रहीं, लेकिन उनकी कोशिशों के चलते बर्मा में 25 साल से अधिक समय से चली आ रही तानाशाही सरकार का अंत हुआ.
हालाँकि, बाद में रोहिंग्या मुसलमानों के ऊपर हो रहे अत्याचारों को लेकर आंग सू पर कई आरोप भी लगे.
Aung San Suu Kyi Won Nobel Peace Prize For Making Burma Democracy Again (Pic: dhakatribune)
मलाला युसुफ़ज़ई
महिलाओं के अधिकारों के लिए बोलने वाले तो बहुत मिलते हैं, लेकिन उनके लिए गोली खाने की हिम्मत लाखों में से किसी एक में ही होती है. इसी हिम्मत और हौसले की मिसाल है मलाला युसुफ़ज़ई जिन्होंने 17 साल की आयु में खुद को इस पुरस्कार के लायक बना लिया. मलाला की एक बच्ची से नोबेल पुरस्कार विजेता बनने तक की कहानी की शुरुआत पाकिस्तान के प्रांत की स्वाट वैली से हुई.
जब साल 2007 में अचानक से स्वाट वैली में आतंकी संगठन तालिबान का प्रभाव बढ़ा और उन्होंने लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी. क्योंकि यह तालिबान का फरमान था इसलिए इसके खिलाफ जाके अपनी जान जोखिम में डालने की किसी ने कोशिश नहीं की सिवाए मलाला के!
उन्होंने लड़कियों के शिक्षा के अधिकार को लेकर कई आंदोलन किए. इसके चलते साल 2012 में दो तालिबानी आतंकियों ने स्कूल बस में जा रही मलाला को गोली मार दी.
मलाला को इलाज के लिए इंग्लैंड ले जाया गया. इतने सब के बावजूद मलाला डरी नहीं और उन्होंने लड़कियों के अधिकारों के प्रति अपना संघर्ष जारी रखा. इन कोशिशों के मद्देनजर मात्र 17 साल की उम्र में मलाला को नोबेल पीस पुरस्कार से नवाजा गया.
Malala Yousafzai Got The Nobel Prize For Fighting For Girls Education Rights In Pakistan (Pic: enca)
बराक ओबामा
दुनिया को शांति का संदेश देने वाले और इसके लिए कार्य करने वाले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी नोबेल पीस पुरस्कार विजेताओं की सूची में शामिल हैं. अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान जिस तरह ओबामा ने पूरी दुनिया को न्यूक्लियर पावर फ्री बनाने का संदेश दिया व इसके लिए कार्य किए वह प्रशंसनीय थे.
इसके अलावा उन्होंने समूह विश्व को गंभीर मसलों को भी बातचीत से सुलझाने की नसीहत दी. इसके चलते साल 2009 में उन्हें नोबेल पीस पुरस्कार दिया गया.
हालांकि उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलने की खबर से जितने हैरान लोग थे उससे कहीं ज्यादा वह खुद हैरान थे, क्योंकि ओबामा खुद समझ नहीं पा रहे थे कि नोबेल कमेटी ने किन पैमानों पर उनका चयन किया. आपको बता दें कि ओबामा के चयन के बाद कई लोगों ने अपने-अपने विचार दिए, जिनमें से कुछ सकारात्मक थे और कुछ नकारात्मक.
वैसे ओबामा के मुरीद पूरी दुनिया में हैं, इस बात से शायद ही किसी को इंकार हो!
Barack Obama Won Nobel Peace Award For His Idea Of Making World Nuclear Power Free (Pic: bostonherald)
लिमाह गबोवी
गृहयुद्ध जैसी स्थिति में खुद के बारे में छोड़ कर किसी अन्य के बारे में सोचने की हिम्मत जुटा पाना हर किसी के बस की बात नहीं. लिमाह गबोवी एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने बदतर हालातों का सामना करते हुए महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की. लिमाह अपने परिवार के साथ लाइबेरिया की राजधानी मोनरोविया में रहती थी जहां बाद में गृहयुद्ध शुरू हो गया.
मात्र 17 वर्ष की आयु में लिमाह ने लोगों के लिए मदद के कार्य करने शुरु कर दिए. उस समय महिलाओं पर बहुत अत्याचार हुआ करते थे. कत्ल और बलात्कार तो उस जगह बहुत ही आम बात हो गई थी. औरतों के लिए वहां जिंदगी जहन्नुम बन गई थी. लिमाह इसके बावजूद भी डरी नहीं और औरतों के हक के लिए आंदोलन करती रहीं. काफी मुश्किलों और प्रयासों के उन्होंने लाइबेरिया में औरतों को उनका हक दिलवा ही दिया. उनके इसी योगदान के चलते उन्हें 2011 में नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया.
Leymah Gbowee Got Award For Standing For Women Rights In Liberia (Pic: whatsupnewp)
कैलाश सत्यार्थी
विश्व में शांति वाले काम करने की बात हो और भारत का नाम उसमें नहीं आए ऐसा हो ही नहीं सकता. भारत में हमेशा ही शांति किसी भी मसले का पहला हल माना जाता है. जिस साल और जिस समय पकिस्तान की मलाला ने नोबेल शांति पुरस्कार जीता उस समय सिर्फ वही अकेली नहीं थी भारत के कैलाश सत्यार्थी भी उनके बगल में खड़े थे. कैलाश सत्यार्थी को बच्चों के हक के लिए लड़ने के लिए शांति पुरस्कार से नवाजा गया था.
कई सालों से बच्चों कैलाश सत्यार्थी बच्चों को उनका हक दिलवाने में लगे हुए हैं वह भी शांतिपूर्ण तरीके से. उन्होंने ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ और ‘सेव दी चाइल्डहुड मूवमेंट’ की स्थापना भी की. सिर्फ बच्चों का हक ही नहीं कैलाश सत्यार्थी ने कितने ही बच्चों को मानव तस्करी के चंगुल से भी बचाया. बच्चों की इतनी मदद करने के कारण ही उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया.
Kailash Satyarthi Won Nobel Peace Prize For Saving Children (Pic: scmp)
बहरहाल इन्हीं की तरह दुनिया भर में और भी कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने दुनिया को शांति का संदेश दिया और लोगों के लिए न भूलने वाले बलिदान दिए. यही वह लोग हैं जो दुनिया को बतलाते हैं कि हम इसलिए इंसान हैं, क्योंकि हमारे अंदर दूसरों के प्रति करुणा, प्रेम, स्नेह, दया इत्यादि है और यही सब चीजें हमारे इंसान होने की असली पहचान हैं.
Web Title: Personalities Who Have Won The Nobel Prize For Peace, Hindi Article
Feature Image Credit: scmp/time/nydailynews