अभी तक दुनिया ने दो विश्व युद्ध देखे. दोनों के परिणाम इतने खतरनाक रहे हैं कि 7 दशकों के बाद भी उन्हें याद करना भयावह लगता है. भले ही युद्ध किसी भी देश ने जीता हो, लेकिन युद्ध से मिले घाव सभी देशों को सताते हैं.
युद्ध से जुड़ी कई ऐसी भी घटनाएं हैं और कई ऐसे किस्से हैं, जिन्हें दुनिया के सामने आने में समय लगा. कम्फर्ट वूमन विवाद भी इनमें से एक है. यहां युद्ध के पीड़ीत सैनिक नहीं, बल्कि महिलाएं थीं.
जापान सैनिकों की हैवानियत का शिकार हुईं ये कम्फर्ट वूमन अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर हैं. बावजूद इसके इनकी आवाज इंसाफ के लिए बुलंद है. ये दुनिया के सामने हौंसले की मिसाल कायम कर रही हैं!
इन औरतों की कहानी हर इंसान का हौसला देती है और शांति के लिए कभी न हार मानने की उम्मीद जगाती है.
तो आइए जानते है कि कौन हैं कम्फर्ट वूमन जो युद्ध में नहीं लड़ीं, लेकिन फिर भी इसके इतिहास में बनी रहेंगी-
युद्ध के हिंसक चेहरे से रूबरू करवाती हैं!
शौर्य, शहादत, देशभक्ति युद्ध के मैदानों से जुड़े ये शब्द सुनने में खूब अच्छे लगते हैं. एक तरह से इन्हें युद्ध का पर्याय भी बना दिया गया है. जबकि, इनके अलावा कई शब्द युद्ध से जुड़े हुए हैं. इनमें मौत, भुखमरी, लाचारी, बदहाली, बर्बरता शामिल हैं.
कम्फर्ट वूमन वो औरते हैं, जो दुनिया के सामने युद्ध की उस तस्वीर को उजागर करती हैं.
ऐसी तस्वीर जिसे युद्ध के हिमायती अक्सर छुपाने की कोशिश करते हैं. जापान में एक कार्यक्रम के दौरान द्वीतीय विश्व युद्ध में जापानी सैनिकों के कैम्प में कम्फर्ट वूमन बनाकर रखी गईं ग्रैंडमा इसका एक उदाहरण हैं.
वह बताती हैं कि हमारे पैदा होने से पहले की कुछ ऐसी कहानियां है, जो हकीकत हैं लेकिन उनकी कल्पना करना भी मुश्किल है. वो युवाओं को संबोधित करते हुए कहती हैं कि आप लोगों को ये सुनिश्चित करना होगा की दुनिया में कोई जंग न हो.
किन्तु, ऐसा क्या हुआ था इन औरतों के साथ जो ये जिंदगी के इस पड़ाव पर आकर भी शांति का संदेश देने में लगी हैं...
दरअसल कम्फर्ट वूमन बनकर रही इन औरतों की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान की है. यह वह दौर था जब जापानी सैनिक एशिया के कई देशों पर अपना दबादबा बनाने के लिए उतारू थे. वो सैनिक सिर्फ जंग के मैदानों में ही बर्बरता नहीं दिखा रहे थे बल्कि, उन्होंने आम लोगों खासकर महिलाओं को भी नही छोड़ा था.
जहां-जहां जापानी सैनिक अपनी जीत का परचम लहराते वहां-वहां औरतों के साथ बलात्कार जैसी हरकतें एक प्रथा बन गई थी. जापानी सैनिक अपनी मर्जी और पसंद से किसी भी लड़की या महिला को पकड़ ले जाते और बलात्कार करते.
बंदी की गई इन औरतों को कम्फर्ट वूमन कहा जाता था. जापानी सैनिकों की ये ज्यादती केवल एक देश तक सीमित नहीं थी. बल्कि कोरिया, चीन, फिलपींस, बर्मा, थाईलैंड, वियतनाम, मलाया जैसे कई देशों में औरतों के साथ ऐसा किया जाता था.
आखिरी सांस तक लड़ रही इंसाफ की लड़ाई
इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि औरतों से जुड़े मुद्दों को उठाने में किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा. शुरुआत में शर्मिंदगी के कारण न इन औऱतों ने कभी कोई आवाज उठाई. न ही किसी और ने कुछ कहा.
हालांकि जापान और कोरियो के बीच कई बार इस बात पर चर्चाएं हुई और जापानियों ने मुआवजे के तौर पर कोरिया को कई तरह से मदद की, लेकिन उसका इस्तेमाल कोरिया की सरकारों द्वारा ही कर लिया गया.
वहीं जापान पर आधिकारिक रूप से माफी न मांगने के आरोप भी लग चुके हैं. खुद संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस बात को माना है कि कम्फर्ट वूमन के मामले को लेकर जापान को जितना करना चाहिए था उससे बहुत कम किया गया है.
वहीं 1990 के दशक में सामाजिक चेतना के विस्तार के साथ-साथ इन औरतों के हाल का जायजा लिया गया औऱ जापान द्वारा माफी मांगने की मांग उठने लगी. यूं तो जापान के नेताओं ने कई बार माफी मांगी.
किन्तु आधिकारिक रूप से सरकार की ओर से इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
शिंजो एबे के सत्ता में आने के बाद तो जापान ने कम्फर्ट वूमन के साथ जो कुछ हुआ उसे मानने से भी इंकार कर दिया. हालांकि, बाद में उन्हें अपना फैसला बदला और ऐसी औरतों की मदद के लिए एक फंड भी बनाया गया.
अब लगभग हर साल जापानी सैनिकों के दुष्कर्म सहने वाली कम्फर्ट वूमन, जिन्हें ग्रैंडमा से संबोधित किया जाता है.
वो जापान जाती हैं और उन्हें अपने गुनाह याद दिलाती है.
हौसले की मिसाल कायम करती हैं इनकी कहानी
कम्फर्ट वूमन बनकर रही औरतों में से तीन औरते ऐसी हैं, जिनकी कहानी मेन स्ट्रीम मीडिया में है. इनमें चीन से ग्रैंडमा काओ, साउथ कोरिया से ग्रैंडमा गिल औऱ फिलिपींस से ग्रैंडमा एडेला शामिल हैं.
ग्रैंडमा गिल ने बड़ें ही हौसले के साथ ये लड़ाई लड़ी. वो अब भी लोगों से मिलकर उन्हें अपनी दास्तान सुनाती हैं. ग्रैंडमा काओ चीन में एक सुदूर गांव में रहती हैं. अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक जापानी सैनिकों ने उन्हें चीन में उनके गांव से उठा लिया था. उन्हें जबरदस्ती सैक्स स्लेव बनाया गया.
किस्मत और अपनी हिम्मत के चलते ग्रैंडमा काओ जापानी सैनिकों के चुंगल से बच निकली. ग्रैंडमा काओ बताती हैं कि जब भी जापानी सैनिक उनके गांव में आते तो लड़कियां पहाड़ों पर चली जाती. जो घरों में रहती, वो अपना हुलिया खराब कर लेती.
ताकि, बदसूरत समझ कर जापानी सैनिक उन्हें न ले जाएं. उन्होंने जापानी सैनिक के चुंगल से बचने के बाद शादी नहीं की और एक लड़की को गोद लिया. ये औरते अपने जख्मों को कूरेदने से किस कदर बचने की कोशिश करती हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ग्रैंडमा काओ ने इस बात का जिक्र कभी अपनी गोद ली हुई संतान तक से नहीं किया.
न सिर्फ ग्रैंडमा काओ बल्कि फिलीपींस की ग्रैंडमा एडेला ने भी उम्र के आखिरी पड़ाव में पहुंच कर ही अपने घरवालों को उनके साथ हुई इन ज्यादतियों के बारे में बताया.
अपनी ज्यादतियों के इंसाफ की लड़ाई में इन औरतों को न जाने क्या कुछ बर्दाश्त नही करना पड़ा. जब ये जापान में प्रदर्शन के लिए जाती, तो वहां के लोग इन्हें तवायफ कह कर इनका अपमान करते. किन्तु इन्होंने हार नही मानी!
वो बार-बार उन तकलीफ भरी यादों को कुरेदती हैं, ताकि आने वाली पीढ़ीयां उनसे सबक ले सकें. रो-रो कर पीली पड़ चुकी अपनी आंखों से जब वो किसी को देखती हैं, तो उनकी चुप्पी भी उनका दर्द बयां कर जाती है.
अगर आपके पास भी है ऐसी किसी कम्फर्ट वुमैन की कहानी तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं
Web Title: Story of Comfort Women, Hindi Article
Feature Image Credit: thelily