रिश्ते खून के नहीं एहसास के होते हैं. अगर एहसास हो तो अजनबी भी अपने हो जाते हैं. अगर एहसास नहीं हो तो अपने भी अजनबी हो जाते हैं. ये कौल हैं 'हजरत अली रजीअल्लाहु तआला अन्हु' का.
मज़हब-ए-इस्लाम में हज़रत अली को बहादुर और निडर 'सहाबी' माना गया है.
आगे बढ़ने से पहले बता दें कि सहाबी के क्या मायने होते हैं. इस्लाम में सहाबी उन लोगों को कहा जाता है, जिन्होंने अपने जीवन में इस्लाम के आख़िरी पैगंबर मोहम्मद साहब को देखा हो.
आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस्लाम के उस निडर सहाबा के बारे में, जो अपनी निडरता के लिए तो मैदान-ए-जंग में मशहूर ही नहीं हुए बल्कि वह अपने इल्म के लिए भी पूरे अरब में लोकप्रिय थे.
तो आइए इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली की जिंदगी से रूबरू होते हैं –
मक्का में हुई पैदाइश
हज़रत अली की पैदाइश सऊदी अरब के मक्का में हुई. माना जाता है कि उनकी पैदाइश 17 मार्च 600 में रजअब के महीने में हुई. रजअब, इस्लामिक कैलेंडर का सातवां महीना है.
हज़रत अली की मां का नाम फातिमा बिन्ते असद था.
माना जाता है कि फातिमा को जब प्रसव पीड़ा हुई तो वो काबा शरीफ के अंदर चली गईं. ये काबा शरीफ वहीं है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में मुसलमान हज के दौरान इसकी परिक्रमा करते हैं.
हज़रत अली बचपन से ही काफी समझदार और दयालु थे. इनके अब्बा का नाम हज़रत अबु तालिब था. बता दें कि अबु तालिब पैगंबर मोहम्मद साहब के अब्बा अब्दुल्लाह के भाई थे.
अम्मा फातिमा ने बच्चे की पैदाइश के बाद पैगंबर मोहम्मद के कहने पर अपने बेटे का नाम 'अली' रखा था. अली के मायने होते हैं बुलंद. आगे चलकर अपने नाम के मुताबिक हज़रत अली ने काफी बुलंदी हासिल की. उन्होंने कई इस्लामिक जंगों में अपनी निडरता का परिचय दिया.
इस्लाम में दाखिल होने वाले पहले नौजवान
पैगंबर मोहम्मद साहब पर जब आसमानी किताब नाज़िल होने लगी, तब हज़रत अली की उम्र महज़ 10 साल थी.
इससे पहले अरब में इस्लाम मज़हब का कोई तसव्वुर नहीं था. अरब में शराब आम थी. लोग बेटियों का पैदा होना बुरा मानते थे. बेटियों की पैदाइश के बाद उन्हें ज़िंदा दफना दिया जाता था.
आसमानी फरिश्ता हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम कुरआन पाक की आयतें हज़रत मोहम्मद साहब के पास लाने लगे. पैगंबर मोहम्मद को यह बताया गया कि वो अल्लाह के आख़िरी नबी हैं और दुनिया में रहमत-शांति का पैगाम देने के लिए भेजे गए हैं.
जब पैगंबर हज़रत मोहम्मद ने ये बात अपने परिवार में बताई, तो उनकी बीवी ने सबसे पहले उन पर यक़ीन कर लिया. इस तरह से उन्हें आख़िरी नबी मान लिया गया.
जब ये बात हज़रत मोहम्मद ने मक्का के लोगों को बतानी शुरू की, तो लोग उन्हें झुठलाने लगे और उनकी बात का इंकार करने लगे.
तब एक बहुत बड़े मजमे में हज़रत अली उठे और उन्होंने हज़रत मोहम्मद की बात का ऐतबार करते हुए उन्हें आखिरी नबी माना. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि भले ही मेरी उम्र काफी छोटी है, मुझमें ताकत कम है, लेकिन मैं अपनी आख़िरी सांस तक आपके साथ खड़ा रहूंगा.
जब पैगंबर मोहम्मद अरब के लोगों को ईश्वर का पैगाम सुनाते और नेक काम करने की दावत देते, तो लोग उनकी जान के दुश्मन हो जाते. ऐसे में जब हालात बहुत ज़्यादा ख़राब हुए तो पैगंबर मोहम्मद को मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा.
इस दौरान हज़रत अली हर नाज़ुक मौके पर ढाल बनकर पैगंबर मोहम्मद के साथ खड़े रहे.
खैबर की जंग में हज़रत अली की दिलेरी
सऊदी अरब में एक जगह है ख़ैबर. इस ख़ैबर की पहाड़ी पर इस्लाम की सबसे बड़ी जंगों में एक जंग लड़ी गई थी. जो आज किताबों में खैबर की जंग के नाम से मशहूर है.
उस समय खैबर की पहाड़ी पर यहूदियों का कब्ज़ा था.
पैगंबर मोहम्मद साहब ने खैबर के बादशाह को इस्लाम का पैगाम भेजा और नेक रास्ते की तरफ बुलाया. उन्होंने उसे बुरे कामों को छोड़ने की नसीहत दी. तब खैबर के बादशाह ने पैगंबर मोहम्मद साहब के पैगाम को ख़ारिज कर दिया.
इतना ही नहीं, बादशाह ने अपनी ताकत के घमंड में जंग का ऐलान कर दिया. जिसके बाद ख़ैबर की लड़ाई हुई. मरहब जो यहूदी लश्कर का मुखिया था, उसने कई लोगों को शहीद कर दिया.
जब ये ख़बर पैगंबर मोहम्मद साहब के पास पहुंची, तो उन्होंने इस जंग में हज़रत अली को भेजा. हज़रत अली ने खैबर की जंग में मरहब पहलवान को शिकस्त दी. हज़रत अली ने अपनी निडरता और दिलेरी के दम पर खैबर की जंग को फतह किया था. इसके बाद पैगंबर मोहम्मद साहब ने हज़रत अली को असदउल्लाह का लकब दिया, जिसका मतलब होता है 'ईश्वर का शेर'.
हज़रत अली के कौल
हज़रत अली पूरे अरब में अपने इल्म के लिए मशहूर रहे. दूर-दराज़ के लोग भी उनके इल्म से हैरान रह जाते थे. कई मौक़ों पर पैगंबर मोहम्मद ने फरमाया कि “मैं इल्म का शहर हूं और अली उस शहर का दरवाज़ा”.
पैगंबर हज़रत अली से काफी मोहब्बत करते थे. यही कारण था कि उन्होंने अपनी बेटी फातिमा का निकाह हज़रत अली से किया.
हज़रत अली के कौल आज भी 21वीं सदी में काफी मशहूर हैं. उन्होंने कहा था कि दौलत मिलने पर लोग बदलते नहीं, बल्कि बेनकाब हो जाते हैं. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि "जब भी रब से दुआ मांगो, तो अच्छा नसीब मांगो, क्योंकि मैंने ज़िंदगी में बड़े-बड़े अक्लमंदों को अच्छे नसीब वालों के सामने झुकते देखा है."
कई मौकों पर उन्होंने लिखा है कि "इंसान का किरदार उसकी ज़ुबान के नीचे छुपा होता है, अगर किसी इंसान की छवि का पता लगाना है, तो उसे गुस्से की हालत में देखो."
वहीं, उन्होंने भरोसे की मिसाल देते हुए लिखा है कि "अगर तुम ज़िंदगी में किसी को धोखा देने में कामयाब हो गए, तो यह मत समझना कि वो कितना बेवकूफ था, बल्कि ये समझना कि उसको तुम पर ऐतबार कितना था."
नमाज़ अदा करते हुए कर दिए गए कत्ल
इस्लामिक रिवायतों से पता चलता है कि हज़रत अली को शहादत रमज़ान माह में मिली. मस्जिद में नमाज़ अदा करने के दौरान उन्हें कत्ल कर दिया गया था.
19 रमज़ान की सुबह कूफा की मस्जिद में नमाज़ पढ़ाने के लिए हज़रत अली मस्जिद गए थे. वहीं मस्जिद में मुंह के बल अब्दुर्रहमान नाम का एक व्यक्ति सो रहा था. इसको हज़रत अली ने नमाज़ पढ़ने के लिए जगाया. इसके बाद हज़रत अली खुद नमाज़ पढ़ने में मशगूल हो गए.
हज़रत अली जैसे ही नमाज़ में सजदा करने गए और अपने सिर को ज़मीन पर टेका, तभी पीछे से अब्दुर्रहमान ने ज़हर में डूबी तलवार से उनके ऊपर वार कर दिया. ज़हर में डूबी तलवार का पूरा ज़हर उनके बदन में तैर गया.
21वें रमज़ान को हज़रत अली इस दुनिया से रूख़्सत हो गए. हज़रत अली के बाद उनके बड़े बेटे हसन को ज़हर देकर मार दिया गया. वहीं, इराक के करबला मैदान में छोटे बेटे इमाम हुसैन को भी शहीद कर दिया गया था.
Web Title: Hazrat Ali RA: The Lion of Allah, Hindi Article
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