कल्पना कीजिए कि जिस शहर या गांव में आप ने जन्म लिया हो, जहां आपने अपना बचपन बिताया हो और जो गलियां कभी बाजार की चहल-पहल में व्यस्त होती थी, वहां चीखें गूंजने लगें.
वहां के मैदान युद्ध के मैदान में बदल जाएं और अपने ही अपनों की जान लेने लगे, तो मंजर कैसा होगा!
मात्र कल्पना कर लेने से यह स्थिति इतनी खौफनाक लगती हैं.
यदि वास्तव में ऐसा हो तो क्या होगा. यह हम भारतीयों के लिए एक खौफनाक कल्पनाभर होगी, लेकिन अलेप्पो में रह रहे लोगों के लिए यह उनकी हकीकत थी.
सीरिया का वही अलेप्पो शहर, जो एक खंडहर का रूप ले चुका है. इसका पूरा स्वरूप कैसे बदल गया आईए जानते हैं-
…इन हालातों ने तैयार की जमीन
2011 में जब अरब क्रांति की चिंगारी सीरिया तक पहुंची, तो वहां भी लोगों ने बशर-अल-असद की तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया.
सरकार के खिलाफ प्रदर्शन तब शुरू हुआ, जब सीरिया के डेरा इलाके में पुलिस ने कुछ स्कूल के बच्चों को हिरासत में ले लिया. उसकी वजह केवल यह थी कि उन बच्चों ने बशर-अल-असद के खिलाफ स्कूल की दीवार पर कुछ नारे लिख दिए थे.
काफी दिनों तक जब उन बच्चों को पुलिस द्वारा नहीं छोड़ा गया तो हजारों की तादाद में लोग शांतिप्रिय प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर आए, जिसके जवाब में उन्हें वहां की ‘आर्मी ने अपनी गोलियों का निशाना बना डाला.
शुरुआत में इस गोलीबारी में दो या तीन लोगों की मौत हुई थी, लेकिन उसके बाद लोगों में आक्रोश बढ़ना शुरू हो गया और वह लगातार प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरने लगे.
Protest in Aleppo City Syria (Pic: sputniknews.com)
आंदोलनकारियों ने उठा लिए हथियार
अब बात केवल उन बच्चों की नहीं रही थी, बल्कि लोगों के हक और उनके अधिकारों पर आ गई थी. इसी कारण धीरे-धीरे यह प्रदर्शन फैलने लगा, डेरा से दमास्कस, होम्स, हाना, लताकिया, बनियास, से होते हुए 2012 में अलेप्पो तक पहुंच गया.
जैसे-जैसे प्रदर्शन बढ़ता गया, वैसे-वैसे बशर-अल-असद के इशारों पर आर्मी की ज्यादतियां भी बढ़ने लगी. अब आर्मी एक दो लोगों को नहीं, बल्कि हर प्रदर्शनकारी को निशाना बनाने लगी थी.
आर्मी की बर्बरता से तंग आकर कुछ प्रदर्शनकारियों ने आर्मी को उसी की भाषा में जवाब देना शुरू कर दिया और हथियार उठा लिए. यही नहीं जब लोकतंत्र के लिए सीरिया में हो रही लड़ाई की खबर बाहर देशों में पहुंची तो, वहां रह रहे सीरियाई नागरिकों ने विद्रोह में हिस्सा लेने के लिए वापिस सीरिया की तरफ कूच की.
साथ ही और हथियार आदि के जरिए विद्रोहियों को मदद पहुंचाना शुरू कर दिया.
इस तरह सरकार के खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों की संख्या बढ़ती चली गई.
अपने ही लोगों से लड़ रही थी सरकार
दूसरी तरफ विदेशी हस्तक्षेप का नाम लेकर सीरियल की सरकार अपने ही लोगों के साथ लड़ रही थी. दूसरी तरफ असद सरकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दूसरी ही तस्वीर दिखा रही थी.
ड्रोन कैमरों के प्रयोग से वह अलेप्पों शहर की एक ऐसी विडियो दिखा रही थी, जिसमें कुछ ऐसा लग रहा था कि उसके हिस्सें में जो अलेप्पो शहर है, वहां जिंदगी बहुत सामान्य है. असल में वह यह दिखाना चाह रही थी कि विद्रोहियों के कब्जे में आने वाला अलेप्पो शहर मुसीबत में हैं.
जबकि, सच तो यह था कि पूरे अलेप्पो शहर के लोगों की जिंदगी नर्क बन गई थी.
इसका खुलासा उस वक्त हुआ, जब वहां के कुछ कुछ सिटिजन जर्नलिस्टों ने सरकार के झूठे दावों की पोल खोल दी. उन्होने खुद अपने ड्रोन खरीदकर वहां की रिकोर्डिंग की, जिसने वहां की असल तस्वीर दुनिया के सामने रखी.
इस तरह सीरिया में चल रही सत्ता की लड़ाई ने उस देश की आने वाली पीढ़ी को भी एक गहरा जख्म दिया, जो शायद ही वो कभी भूल पाएंगे!
UNHRC की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में सीरिया में चल रही लड़ाई के बीच वहां के 13 मिलियन बच्चों की जिंदगी खतरे में थी, जिसमें से 5 मिलियन बच्चों को शर्णाथियों के रूप में अपना देश छोड़ना पड़ा. वहीं जो लोग अलेप्पो में थे, उनमें 40 प्रतिशत संख्या बच्चों की थी.
सीरिया की लड़ाई में बचपन कैसे पिस रहा था, इस बात की खबर अलेप्पो के एक मासूम बच्चे ओमरान दाकनिश की तस्वीर ने दी. उस तस्वीर में इतनी तकलीफ थी कि उससे बिना सीरिया गए वहां के हालत का अंदाजा लगाया जा सकता था.
Aleppo Syrian Crisis (Pic: sputniknews.com)
…और तबाह हो गया अलेप्पो शहर
1986 में यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर का दर्जा हासिल करने वाला और दुनिया की सबसे पुरानी शहरों में से एक अलप्पो शहर 2012 के आते-आते सीरिया के गृह युद्ध की अहम जगह बन गया था, जोकि कभी सिर्फ वैश्विक धरोहर ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का केंद्र भी था.
खूबसूरत मस्जिदों और कलाकृतियों से सजा हुआ यह शहर देखते ही देखते अपनों के हाथों ही तबाह हो गया. जुलाई 2012 तक अलेप्पो दो हिस्सों में बंट चुका था, जिसका एक हिस्सा फ्री सीरियन आर्मी के पास था और दूसरा बशर अल-असद के कब्जे में अलेप्पो में.
सरकार की मदद करने वाले देशों में रूस ईरान इराक अफगानिस्तान लेबनान और पाकिस्तान भी शामिल था, वहीं विद्रोहियों को अमेरिका सऊदी अरेबिया और तुर्की से मदद मिल रही थी.
सरकार के हवाई हमलों में वह सारी खूबसूरत कलाकृतियां मस्जिद और सांस्कृतिक धरोहर खो गई, जिसके लिए यह शहर जाना जाता था.
कितना बदल गया अलेप्पो शहर?
2012 से 16 तक अलेप्पो में लगभग 31,183 लोगों की जान चली गई, जिसमें 22604 आम नागरिक थे, जो न फ्री सीरियन आर्मी का समर्थन करते थे और ना ही बशर-अल-असद का.
वह सिर्फ अपने देश में शांति चाहते थे.
वहीं यदि वहां की सांस्कृतिक धरोहर की बात की जाए, तो लड़ाई के चलते ग्रेट मॉस्को ऑफ अलेप्पो के नाम से जाने जानी वाली मस्जिद ग्रेनेड और हवाई हमलों में काफी हद तक तहस-नहस हो गई.
UNITAR की रिपोर्ट के मुताबिक 210 जानी-मानी संरचनाओं में से 22 पूरी तरह ध्वस्त हो गई और 48 संरचनाओं को भी काफी नुकसान पहुंचा.
Aleppo-Ancient (Pic: heraldnet.com)
इस तरह एक अच्छा खासा विस्तृत शहर खंडहर बन गया.
अगर आपके पास वैश्विक धरोहर कहे जाने वाले सीरिया के इस अलेप्पो शहर से जुड़ी कोई और जानकारी है, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: The Ancient City of Aleppo, Hindi Article
Feature Image Credit: Theiris