आपके प्रयास आपको दो चीजों की ओर लेकर जाते हैं, सफलता या असफलता.
अगर आप सफल हुए तो लोग आपको फॉलो करेंगे और असफल हुए तो आप फिर सीखेंगे.
बहरहाल, सफलता आपको रुकने का समय देती है, और असफलता आपकी प्रगति का संकेत है. अगर यहां बात असफलताओं की करें, तो किसी शख्स में असफल होने के बाद भी कितना हौसला बचेगा.
कोई आदमी कितनी बार असफल हो सकता है, 10 बार, 15 बार या 50 बार. और फिर शायद इन प्रयासों के बाद वो अपनी कोशिश छोड़ दे.
मगर इन जनाब ने 1008 बार असफल होने के बाद भी अपनी कोशिश जारी रखी और आखिरकार मंजिल को पाकर ही छोड़ा. इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि बार-बार असफल होने पर भी उत्साह को न खोना ही सफलता है. और इन्होंने इस कथन को सही साबित कर दिखाया.
इस व्यक्ति का नाम है कर्नल हारलैंड सैंडर्स, जो हैं दुनिया की सबसे बड़ी व प्रसिद्ध फ्राइड चिकन फ्रैंचाइजी के.एफ.सी. यानी केंतकी फ्राइड चिकन के फाउंडर.
कर्नल सैंडर्स की इस सफलता की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. ऐसे में आइए एक बार उनकी असफलताओं पर एक नजर डाल लेते हैं –
कई जगह आजमाई किस्मत, लेकिन...
9 सितंबर 1890 को इंडियाना के हैनरीविले शहर में पैदा हुए सैंडर्स का बचपन कुछ खास नहीं था. जब वह 6 साल के थे, तो उनके पिता की मौत हो गई, जिसके बाद उनकी मां को काम करने के लिए बाहर निकलना पड़ा.
उनकी मां टमाटरों की एक फैक्टरी में काम करती थी. इस बीच सैंडर्स घर पर अपने छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखते था. और शायद इसी वजह से उन्होंने 7वीं तक ही पढ़ाई की और इसके बाद उन्हें घर खर्च चलाने के लिए नौकरी करनी पड़ी.
वह इस दौरान खेत में सहयोगी के तौर पर भी काम किया करते थे. धीरे-धीरे समय बीतता गया, सैंडर्स अब 16 साल का नौजवान हो गया था.
इसी बीच वह अपनी उम्र को छिपाकर अमेरिकी सेना में शामिल हो गया, लेकिन एक साल बाद ही उसे सेना से निकाल दिया गया. इसके बाद इन्होंने रेलवे में मजदूरी भी की.
लेकिन यहां भी वह ज्यादा समय तक नहीं टिक पाए और साथी वर्करों के साथ झगड़े के चलते उन्हें निकाल दिया गया. इसके बाद हताश सैंडर्स अपनी मां के पास आकर रहने लगे.
यहां उन्होंने एक इंश्योरेंस एजेंट के तौर पर कार्य शुरू किया, लेकिन यहां भी आदेशों की अवहेलना के चलते उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा.
40 के बाद जीवन में आया नया मोड़
सैंडर्स बार-बार मिल रही असफलताओं से हताश जरूर थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
उन्होंने साल 1920 में नाव बनाने की एक कंपनी खोली. कुछ समय बाद उन्होंने इसकी जगह लैंप बनाने का काम शुरू करने का विचार बनाया.
सैंडर्स फिलहाल इस बारे में सोच ही रहे थे कि एक अन्य कंपनी ने काफी बेहतर लैंप को बाजार में उतार दिया और बेचारे सैंडर्स इस काम को फिर शुरू नहीं कर पाए.
साल दर साल समय बीतता गया, लेकिन सैंडर्स की गाड़ी पटरी पर नहीं आ पाई.
40 की उम्र में सैंडर्स ने फैसला किया कि वह चिकन के पकवान बेचने का काम करेंगे. अपने चिकन का स्वाद को लोगों तक पहुंचाने के लिए सैंडर्स ने सड़क से गुजरने वाले लोगों को इसे मुफ्त में बांटा.
कुछ समय बाद उन्होंने सड़क के पास ही एक छोटा सा रेस्तरां खोल लिया. सन 1935 के दौरान जब एक बार वहां के गवर्नर रुबी लैफ्फून उस सड़क से गुजर रहे थे, तो उन्होंने सैंडर्स के रेस्तरां में नाश्ता किया. यहां का चिकन उन्हें इतना पसंद आया कि उन्होंने सैंडर्स के रेस्तरां को 'केंतकी कर्नल' नाम दे दिया.
हालांकि अब लोग उन्हें जानने लगे और रेस्तरां भी थोड़ा बहुत मशहूर हो चुका था, लेकिन ये ज्यादा समय तक चल नहीं सका. एक झगड़े के चलते 4 साल बाद उन्हें इसे बंद करना पड़ा.
इसके बाद उन्होंने दोबारा से एक नया रेस्तरां खोला, लेकिन इस बार विश्व युद्ध छिड़ने के चलते ये भी बंद हो गया.
रेसिपी बेचकर लोगों को चखाया स्वाद
अब तक सैंडर्स लोगों को अपने चिकन का स्वाद चखा चुके थे. हालांकि रेस्तरां बंद होने के बाद लोग उनके चिकन को नहीं खा पा रहे थे.
ऐसे में उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने रेस्तरां की आगे शाखाएं खोली जाएं. इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वह एक-एक रेस्तरां में जाकर उन्हें अपनी रेसिपी देंगे और उनसे मुनाफे में हिस्सेदारी खरीद लेंगे.
ये इतना आसान भी नहीं था. काफी समय तक सैंडर्स को इसमें सफलता नहीं मिली.
वह जिस रेस्तरां में अपनी रेसिपी लेकर जाते, उसे वह रिजेक्ट कर देते. इस प्रकार उनकी रेसिपी करीब 1009 बार रिजेक्ट हुई, लेकिन सैंडर्स का हौसला कहां टूटने वाला था.
वह लगातार कोशिश करते रहे और आखिरकार वह समय आया जब उनकी कोशिश सफल हुई.
कुछ ही समय में उनकी केंतकी फ्राइड चिकन की रेसिपी इतनी लोकप्रिय हो गई कि अब के.एफ.सी. की शाखा सिर्फ शहर ही बल्कि दुनिया के अलग अलग देशों तक पहुंच गई थी. साल 1964 के आते आते के.एफ.सी. की 600 शाखाएं खुलीं.
इसके बाद कर्नल सैंडर्स ने अपनी इस कंपनी को 2 मिलियन डॉलर में अपने निवेशकों को बेच दिया.
पेप्सिको ने दी नई पहचान
इसके बाद साल 1969 में के.एफ.सी. का नाम न्यूयाॅर्क के स्टॉक एक्सचेंज में गूंजने लगा.
समय के साथ-साथ के.एफ.सी. का रुतबा बढ़ा तो इसकी शाखाओं की संख्या 600 से 3500 तक पहुंच गई.
सन 1971 में कंपनी को हेयुबलेन इंडस्ट्री ने 285 मिलियन में खरीद लिया. फिर हेयुबलेन को रेयनोल्ड्स इंडस्ट्री ने अधिग्रहित कर लिया, जिसके चलते के.एफ.सी. उनकी कंपनी का हिस्सा बन गई.
आखिरकार साल 1986 में दुनिया भर में कोल्डड्रिंक्स उत्पाद बनाने वाली पेप्सिको कंपनी ने 840 मिलियन डॉलर की भारी कीमत चुका कर के.एफ.सी. को खरीद लिया.बावजूद इसके आज भी के.एफ.सी. को सैंडर्स के चेहरे से ही जाना जाता है.
आज भी दुनियाभर में के.एफ.सी. के ब्रांड लोगो पर सैंडर्स की तस्वीर लगी है. उनकी बकरा दाढ़ी और वेस्टर्न टाई के.एफ.सी. की पहचान है.
दुनिया भर के लोगों को अपने हाथों के स्वाद से अपना दीवाना बनाने वाले सैंडर्स की मौत 90 साल की उम्र में 16 दिसंबर 1980 को हो गई. बावजूद इसके अपनी लाजवाब चिकन रेसिपी के चलते वह दुनिया भर के लोगों की यादों में जिंदा हैं.
दुनिया भर में एक अनुमान के मुताबिक सन 2017 तक के.एफ.सी. की लगभग 22 हजार शाखाएं थीं.
अब अगर आप बार-बार न मिलने वाली असफलताओं से परेशान हैं, तो एक बार कर्नल सैंडर्स की इस कहानी को जरूर याद करें.
Web Title: The Story of Founding KFC Restaurants by Colonel Harland Sanders, Hindi Article
Featured image credit: Wikipedia