कहते हैं जिंदगी फूल और कांटो की क्यारी है. यह भी सच है कि इतिहास में नाम वही लिख जाते हैं जो काटों के बीच से भी फूल चुगने की हिम्मत रखते हैं.
अमर वही होते हैं जो ज़िन्दगी की परेशनियों को अपनी ख़ुशी और कामयाबी की वजह बना लेते हैं, लेकिन ये हिम्मत कुछ बिरले लोगों में ही होती है.
मुंबई की दीपिका महात्रे इसकी एक जीती जागती मिसाल है, जिन्होंने अपने नाज़ुक हालातों को ही अपनी कामयाबी की सीढ़ी बना लिया.
तो चलिए जानते हैं कि दीपिका महात्रे ने एक काम करने वाली बाई से हास्य कलाकार बन्ने तक का सफ़र कैसे तय किया-
गरीबी और गुमनामी में गुज़रा बचपन और जवानी
अपनी जिंदगी के मुश्किल पड़ावों को हंसी मजाक की चाशनी से ढक कर लोगों के सामने पेश करने का हुनर दीपिका में बचपन से ही था.
उनके पिता एक हस्पताल में क्लर्क के पद पर थे. घर की आर्थिक स्थिति कुछ ख़ास अच्छी नहीं थी. इसी कारण उनकी पढ़ाई का सफ़र भी ज्यादा लम्बा नहीं चल सका. शादी हुई भी तो हालात में कुछ सुधार नहीं आया.
शादी के बाद वो तीन बेटियों की माँ बन चुकी थी. उनकी पढ़ाई और परवरिश का खर्चा अब हर साल के साथ बढ़ता ही जा रहा था. ऐसे में उनके पति की बिगड़ती तबियत उनके लिए खतरे की घंटी बन गयी. पति को अस्थमा की शिकायत थी, जो समय के साथ और गंभीर रूप लेती जा रही थी.
इन परिस्थितियों के रहते अब दीपिका को यह महसूस होने लगा कि घर की आर्थिक ज़िम्मेदारी अब उन्हें अपने कन्धों पर लेनी होगी. इस तरफ कदम बढ़ाते हुए उन्होंने लोगों के घर में काम करना शुरू कर दिया. इससे भी उनके परिवार का गुज़र बसर और बच्चों की पढाई का खर्चा नहीं निकल पाता था.
जोहरी और बाई की दोहरी जिंदगी जीकर चलाया गुज़ारा!
इसके आगे उनके पास अब एक ही विकल्प था, ज्यादा मेहनत करने का. उन्होंने एक की जगह पांच घरों में एक साथ काम करना शुरू कर दिया. जहाँ उनका आधा दिन अपने परिवार का ख्याल रखने में जाता था वहीँ बचा हुआ आधा दिन दूसरों के घर का काम करने में.
खैर जिंदगी परीक्षा लेने का मौका कहां छोड़ती है. 5 घरों में काम करने से भी घर के गुज़ारे में दिक्कतें आने लगी, लेकिन दीपिका ने इतना लम्बा सफ़र इन मुश्किलों के सामने झुकने के लिए तय नहीं किया था.
जितनी बार मुश्किलें उनके रास्ते में आई, वो हर बार उतनी दृढ़ता से उठी और उनका सामना किया. रोज़ी रोटी कमाने के लिए समय कम पड़ गया लेकिन उनका जज्बा नहीं.
अब उन्होंने एक ऐसा तरीका निकाला जिसमें उन्हें अलग से समय भी न देना पड़े और कमाई भी हो जाए. इसलिए उन्होंने घर से काम पर जाते हुए रेल गाड़ी में डुप्लिकेट आभूषण बेचने शुरू कर दिए. दीपिका का कहना है कि इसमें भी उनकी हास्य कला उनके काफी काम आई. वो अपनी ग्राहकों को हंसाती तो उनकी ग्राहक उनसे खुश होकर ज्यादा गहने खरीद लेती थी.
...और ऐसे बन गयी बाई से कॉमेडियन
रोज़ का ये सिलसिला ज़ोरों पर था. दीपिका ने परिवार के गुज़ारे के लिए खून पसीना एक कर दिया था, लकिन कहते हैं न जहां चाह वहां राह. दीपिका को अभी अंदाजा नहीं था कि उनकी ज़िन्दगी अब हमेशा के लिए बदलने वाली है.
इसके लिए वो अपनी मालकिन संगीता दास का शुक्रिया अदा करती हैं, जिन्होंने बिल्डिंग की सभी बाईयों के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की. इस प्रतियोगिता में सभी को अपने-अपने हुनर का प्रदर्शन करना था. दीपिका को अब वो मौका मिल चुका था जब वह अपना लोगों को हसाने का हुनुर एक मंच पर आजमा सकती थीं. वो अपने दोस्तों और बाई का काम करने वाली दूसरी महिलाओं के बीच पहले से ही अपनी मजाकिया प्रवत्ति के लिए प्रसिद्ध थी.
उनकी कलाकारी से दर्शक बहुत प्रभावित हुए, लेकिन इन्हीं में से एक थी हिन्दुस्तान टाइम्स की पत्रकार रेचल लोपेज़, जिन्हें दीपिका में वो हुनर दिखा जो अब तक दुनिया से छिपा हुआ था. इस पत्रकार ने दीपिका का परिचय जानी मानी हास्य कलाकार अदिति मित्तल से कराया.
बस यहीं से उनकी ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया. अब दीपिका और अदिति मित्तल दोनों के सामने एक बड़ा सवाल था कि मौका तो मिल गया, लेकिन लोगों को हँसाने के लिए ज़रुरत है कॉमेडी की. बस फिर क्या था दीपिका ने तय कर लिया कि वो अपने अनुभवों को ही अपने एक्ट का आधार बनाएंगी.
बाई की नौकरी जो उनकी आधी से ज्यादा ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा रही, उन्होंने उसी से जुड़ी बातों, अनुभवों और जज्बातों को एक परिहास के रूप में प्रस्तुत करने का सोच लिया. उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से उन मध्यम और उच्च वर्गीय लोगों को अपने परिहास का निशाना बनाया जो अपने सेवकों या बाईओं के साथ भेदभाव करते हैं.
हास्य कलाकारों को सुनने पहुंचे लोगों को वो समाज की उन बुराइयों से अवगत करने लगी, जिन्हें उन लोगों की नज़रों से ही समझा जा सकता है, जो खुद उसके शिकार हुए हो.
दीपिका को सुनकर, जिन लोगों के लिए यह एक नया मुद्दा था वो ताली बजाया करते और जो इस भेदभाव की परंपरा के भागी थे, उनके सर शर्म से झुक जाया करते. इस तरह वो अपने हास्य हुनर के ज़रिये सामाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाने लगी और लोग उन्हें ‘कॉमेडियन फॉर सोशल चेंज’ के रूप में देखने लगे. हालांकि उनके बच्चे शुरुआत में उन्हें मंच पर देखने के ख्याल से कतराते थे, लेकिन अब वो भी इस चीज़ को लेकर उन पर गर्व करने लगे हैं.
दिन में 20 घंटे काम करना नहीं था आसान!
अब तक जो दीपिका महात्रे दो लोगों की ज़िन्दगी जी रही थी, अब वो तीन लोगों की ज़िन्दगी जीने लगी, गहने बेचने वाली, बाई और एक हास्य कलाकार की.
उनकी दिनचर्या अब और भी व्यस्त हो चुकी थी. वो सुबह 4:30 बजे काम के लिए निकलती, रेल गाड़ी में आभूषण बेचती, फिर पांच अलग-अलग घरों में काम करती. इसी में शाम के करीब 2 बज जाया करते थे. इसके बाद वो बाज़ार जाकर नए आभूषण खरीदती, जिन्हें वो अगली बार फिर बेच सके.
घर पहुँचते पहुँचते 5 बज जाते. इसके बाद 6 बजे से दीपिका अपना तीसरा किरदार निभाने निकल जाती. वो अलग-अलग कॉमेडी क्लब्स में जाकर परफॉर्म करती. पुरे दिन का काम ख़तम होते होते 12 बज जाते और अगले दिन फिर वही 4 बजे से दिन शुरू हो जाता.
उनके पति दिलीप भी उन्हें एक आदर्श महिला मानते हैं. घर की परेशानियों के चलते उनके सारे रिश्तेदार भी मदद करने से पीछे हट गए.
अब बिगड़ती तबियत के चलते उन्होंने घरों में काम करना बंद कर दिया है. कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती. यह बात दीपिका के संदर्भ में एकदम सटीक बैठती है. उन्होंने अपने हास्य हुनर पर और ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है. अब उनका ज्यादा समय इंटरव्यू देने में जाता है. लोग उन्हें जानने लगे हैं, हालाँकि उनका कहना है कि इस क्षेत्र में कमाई नहीं है. इसीलिए उन्हें जहां भी परफॉर्म करने का मौका मिलेगा वो उस प्रस्ताव को अपना लेंगी.
म्हात्रे इससे पहले स्टार प्लस पर आने वाले इंडियाज़ गॉट टैलेंट में कन्टेस्टेंट के तौर पर भी चुनी जा चुकी हैं.
इतना नाम कमाने के बाद भी दीपिका महात्रे और उनका परिवार आर्थिक समस्याओं से गुज़र रहा है. दीपिका जहाँ भी परफॉर्म करने जाती हैं वहाँ अपनी बेटियों के लिए मदद ज़रूर मांगती हैं.
दीपिका पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है क्योंकि वो समाज के ऐसे तबके से आती हैं जिसका कॉमेडी की दुनिया मे बिल्कुल भी प्रतिनिधित्व नहीं है. साथ ही उनके व्यंग्य और हंसी मजाक के केंद्र में समाज का निचला तबका है, जो आपने आम हास्य कलाकारों को करते हुए नहीं देखा होगा.
दीपिका को और भी ख़ास यह बात बनाती है कि वो भारत की उन चुनिंदा महिला हास्य कलाकारों में से हैं जिन्होंने कॉमेडी के दरवाज़े महिलाओं के लिए भी खोल दिए हैं.
आपको दीपिका महात्रे का बाई से कॉमेडियन बन्ने का सफ़र कैसा लगा, नीचे कमेंट बॉक्स में बताना न भूलें.
Web Title: The Success Story From Being A Maid To Becoming A Comedy Star, Hindi Article
Feature Image Credit: indianexpress/dnaindia