"मैं भारतीयों से नफरत करता हूं."
ये विचार एक ऐसे प्रधानमंत्री के हैं, जिसने एक ऐसे देश का प्रतिनिधित्व किया है, जिसने लगभग पूरी दुनिया को अपना गुलाम बनाया है. भारत जैसे कई देशों पर ब्रिटेन ने हुकूमत की है, तानाशाही की है. यहां के संसाधनों को बुरी तरह से लूटा है.
जी हां! हम बात कर रहे हैं विंस्टन चर्चिल की.
उपयुक्त कथन ये भी दिखाता है कि एक प्रधानमंत्री के तौर पर विंस्टन चर्चिल को भारतीयों से ज्यादा लगाव था या यहां की अकूट संपदा से.
चर्चिल उस दौर में ब्रिटेेन का नेतृत्व कर रहे थे, जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की गर्त में थी.
चर्चिल ने उपनिवेश शासनों को गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहने की पूरी कोशिश की. प्रधानमंत्री रहते हुए उन हदों को पार किया, जो इंसानों और जानवरों में फर्क करती हैं.
चर्चिल को 20वीं सदी के उन तानाशाहों की श्रेणी में रखा जाता है, जिन्होंने साम्राज्यवाद के लिए मासूमों के खून की नदियां बहा दीं.
ऐसे में आइए 'अघोषित तानाशाह' विंस्टन चर्चिल के बारे में जानते हैं –
ब्रिटिश सेना में अधिकारी रहे
30 नवंबर, 1874 को इंग्लैंड में पैदा हुए विंसटन चर्चिल इंग्लैंड का एक प्रेरणादायक राजनेता, लेखक, वक्ता और नेता माना जाता है. चर्चिल का पूरा नाम सर विंस्टन लियोनार्ड स्पेंसर चर्चिल था.
इंग्लैंड के बड़े नेता होने के साथ ही ये सेना में अधिकारी भी रहे, साथ ही इतिहासकार, लेखक और कलाकार भी थे.
गुलाम भारत पर अपने तुगलकी फरमान थोपने से पहले चर्चिल एक सैन्य अधिकारी के तौर पर ब्रिटिश उपनिवेश भारत और सूडान में अपना जौहर दिखा चुके थे.
सेना में अपने छोटे लेकिन बड़े कारनामे वाले करियर के बाद ये सन 1900 में संसद के एक कंजरवेटिव सदस्य बन गए. राजनीति के शुरूआती दौर में इन्होंने पहले तीन दशक तक लिबरल और कंजरवेटिव सरकारों में कई उच्च पदों पर कार्य किया.
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इन्हें लॉर्ड ऑफ एडमिरल्टी बना दिया गया. इसके बाद ये मई 1940 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री बने. इस समय तक दूसरा विश्व युद्ध छिड़ चुका था. इसमें इनकी कूटनीति के दम पर ब्रिटेन ने नाजी जर्मनी पर जीत दर्ज की.
चर्चिल कंजर्वेटिव पार्टी की ओर से दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे. पहली बार वह 1940 से 1945 तक, और उसके बाद 1951 से 1955 तक. 26 जुलाई, 1945 को हुए आम चुनावों में ब्रिटेन की जनता ने विंस्टन चर्चिल को सत्ता से बेदखल कर लेबर पार्टी के नेता क्लेमेंट एटली को अपना प्रधानमंत्री चुना.
भारत को आजादी का विरोध
ब्रिटिश नौसेना में उच्च पद पर आसीन लॉर्ड माउंटबेटन कभी विंस्टन चर्चिल के चहेते अधिकारियों में से एक थे. इसका एक कारण शायद ये भी था कि लॉर्ड माउंटबेटन ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रचार-प्रसार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. जैसा विंस्टन चर्चिल कभी नहीं चाहते थे.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटेन को लगा कि वह अब ज्यादा दिनों तक भारत को गुलाम बनाए नहीं रख सकता. उसने अपनी सोची समझी साजिश के तहत हिन्दोस्तान विभाजन के लिए मुस्लिम लीग के नेताओं को उत्तेजित करना शुरू कर दिया.
ब्रिटेन की मंशा कहीं न कहीं भारत की पहुंच से तत्कालीन यूएसएसआर को दूर करना था, ताकि नया देश पाकिस्तान हमेशा पश्चिमी देशों के आगे झुका रहे. और हिन्दोस्तान छोड़ने के बाद भी ब्रिटेन की हुकूमत इस क्षेत्र पर बरकरार रहे.
जब ये तय हो गया कि ब्रिटेन भारत को आजादी देगा. तब हिन्दोस्तान विभाजन के लिए भारत के तत्कालीन नेताओं को भी राजी करना था.
ऐसे में दूर समुद्र में तैनात लॉर्ड माउंटबेटन को भारत गवर्नर जनरल बनाकर भेजा गया. हालांकि इस समय विंस्टन चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री नहीं थे, लेकिन भारत को आजादी देने का उन्होंने सख्त विरोध किया था.
भारत रवाना होने से पहले माउंटबेटन चर्चिल से मिलने गए थे. तब चर्चिल ने कहा कि "आप ब्रिटिश साम्राज्य को भंग करने जा रहे हैं. साम्राज्य भंग करने की इस प्रक्रिया में आपको मैं अपना समर्थन नहीं दे सकता."
इससे पहले के अपने चुनाव-प्रचारों में चर्चिल ने भारत के बारे में कई बार अपशब्दों का उपयोग किया. बहरहाल, 1947 में हिन्दोस्तान विभाजन के साथ ही भारत ब्रिटिश गुलामी से आजाद हो गया.
यहीं से चर्चिल और माउंटबेटन के रिश्तों में खटास पैदा हो गई. माना जाता है कि इसके बाद चर्चिल ने कभी भी माउंटबेटन से बात नहीं की.
‘गांधी’ मर जाए, तो ही अच्छा
ब्रिटिश कंजरवेटिव पार्टी के नेता विंस्टन चर्चिल को गांधी कभी पसंद नहीं आए.
जाहिरतौर पर ऐसा हो भी कैसे सकता था, चर्चिल भारत को गुलाम रखना चाहते थे. इधर, गांधी भारत को आजाद देखना चाहते थे.
ऐसे में दो विरोधी विचारधारा वाले नेताओं में परस्पर विरोध तो होना ही था.
चर्चिल ने गांधी को राजद्रोही और अर्ध नग्न फकीर तक कहा था. जब गांधी गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन गए, तब भी उन्हें चर्चिल के विरोध का सामना करना पड़ा था.
1942 में गांधी के अनशन करने पर चर्चिल की कैबिनेट ने ये तय किया था कि इस बार गांधी को मरने दिया जाएगा.
चर्चिल ने कहा था कि “अगर गांधी मर जाते हैं, तो हमें एक बुरे आदमी और साम्राज्य के दुश्मन से छुटकारा मिल जाएगा. इससे हम दुनिया को बता सकते हैं कि हमारा राज चल रहा है.”
चर्चिल इस उम्मीद में बैठे थे कि गांधी के मरने की खबर उन तक आती ही होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उनका अनशन लंबा चला.
इस पर चर्चिल ने भारत के वायसराय को पत्र में लिखा कि “मैंने सुना है गांधी अनशन में पानी के साथ ग्लूकोज ले रहे हैं.”
खून से सने हैं चर्चिल के हाथ
एक अंतरराष्ट्रीय वेबपोर्टल 'जैकोबिन' का कहना है कि "चर्चिल कोई हीरो नहीं था. वह हिंसा और साम्राज्यवाद का जोरदार समर्थन करने वाला एक घिनौना कट्टरपंथी नस्लवादी था."
विंस्टन चर्चिल को द्वितीय विश्व युद्ध का हीरो माना जाता है. इंग्लैंड उन्हें पूजता है. यहां तक कि डेनमार्क जैसे कई पश्चिमी देश उनका महिमामंडन करते हैं, क्योंकि चर्चिल ने ही ऐसे देशों को नाजी जर्मनी से आजादी दिलाई थी.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी से ऐसे देशों की इस आजादी और ब्रिटेन की जीत का मूल्य क्या था..? लाखों लोगों की मौत!
चर्चिल एक अघोषित तानाशाह था! वह ब्रिटेन के अलावा किसी के लिए कोई क्रांतिकारी हीरो नहीं हो सकता. विंस्टन चर्चिल 20वीं शताब्दी के उन क्रूर तानाशाहों में से एक था, जिनके हाथ मासूमों के खून से रंगे थे.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बंगाल के कई हिस्सों में भयंकर अकाल पड़ा. लोगों को खाना नसीब नहीं था. ऐसे समय में चर्चिल ने जरूरतमंदों को बांटे जाने वाला अनाज ब्रिटिश सेना के लिए भिजवा दिया.
चर्चिल के नेता, महान नेता बनने की 50 लाख भारतीयों ने अपना जीवन गंवाकर बड़ी कीमत चुकाई है.
ब्रिटिश उपनिवेशवाद पर किताब लिखने वाले सांसद डॉ. शशि थरूर चर्चिल को इस मामले में हिटलर के बराबर रखते हैं. उनका कहना है कि विंस्टन चर्चिल के हाथों पर भी उतना ही खून लगा हुआ है, जितना जर्मन तानाशाह के हाथों पर.
कहने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए कि ब्रिटेन गुलाम या उपनिवेश देशों में की गई लूट के बाद विकसित हुआ है. भले ही ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध जीत चुका था, लेकिन इसकी कीमत उसेे गुलाम और उपनिवेश शासनों को छोड़कर चुकानी पड़ी. और उससे भी बड़ी कीमत मासूमों ने अपना खून देकर अदा की है.
Web Title: Untold Dictator Winston Churchill, Hindi Article
Featured Image Credit: aipetcher.wordpress