हमारी-आपकी नज़र में त्यौहार क्या है? जवाब होगा, अपनों से मिलने का बहाना, खुश होने का जरिया, ईश्वर की भक्ति या फिर रिश्ते मजबूत करने का मौका. पर भला जानवरों के लिए त्यौहारों का क्या महत्व हो सकता है? सिवाए इसके कि उन्हें त्यौहार के दिन आप सूखी रोटी की जगह पूरी खिला देते होंगे! दिल दरिया हुआ तो उसमें मिठाई के कुछ टुकडे भी रख देते हैं. बस!
पर नेपाल इससे अलग है. यहां इंसानों के जज्बातों की जितनी कद्र है. उतना ही ख्याल अपने जानवरों का भी है. खासतौर पर कुत्तों का. जिन कुत्तों को हम चाहे जब दुत्कार के भगा देते हैं उनकी नेपाल में मौज है.
उनके लिए यहां खास तौर पर 'तिहार पर्व' मनाया जाता है. 5 दिन चलने वाला यह उत्सव नेपाल की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है. यही वो मौका है जब कुत्तों की चांदी हो जाती है. वे इन पांच दिनों में होली, दिवाली जैसा हर सुख पा लेते हैं.
तो चलिए आपको भी परिचित करवाते हैं कुत्तों के इकलौते त्यौहार 'तिहार पर्व' से-
हिंदू धर्म में है कुत्तों का खास महत्व
कुत्ते वफादार होते हैं, सच्चे दोस्त होते हैं! यह तो हम जानते हैं, पर धर्म से भी इनका विशेष संबंध है. कुत्ते को हिन्दू देवता भैरव महाराज का सेवक माना जाता है. शास्त्रों में लिखा है कि भैरव पूजा का फल तभी मिलता है, जब कुत्ते को भोजन करवाया जाए. ज्योतिषाचार्य भी अक्सर विनाशकारी ग्रह काटने के लिए कुत्ते को रोटी खिलाने की बात कहते हैं. मान्यता है कि कुत्ते को प्रसन्न रखने से वह आपके आसपास यमदूत को भी नहीं फटकने देता है. कुत्ते को देखकर हर तरह की आत्माएं दूर भागने लगती हैं.
यहां तक कि कुत्ते के भौंकने और रोने को अपशकुन माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु का प्रतीक है कुत्ता. तो यदि केतु की महादशा चल रही है तो कुत्ते को अच्छा भोजन कराने की सलाह दी जाती है. यह बात और है कि कुछ जगहों पर इसे अपशकुन से जोड़कर भी देखा जाता है. जैसे इस्लाम धर्म में कुत्ता पालना अच्छा नहीं माना जात.
सहीह मुस्लिम हदीस नं 2106 के अनुसार जिस घर में कुत्ते होते हैं वहां फरिश्ते नहीं आते.
रामायण के साथ एक किवदंति का जिक्र किया जाता है. यह कथा श्रीराम के राजतिलक के बाद की है. इसके अनुसार जब श्रीराम का राजतिलक हो गया तो, उन्होंने लक्ष्मण को आदेश दिया कि भोजन करने से पहले हमेशा यह सुनिश्चित करो कि हमारे द्वार पर कोई भूखा तो नहीं है. लक्ष्मण रोजाना ऐसा ही करते.
एक दिन वे भोजन करने पहुंचे तो श्रीराम ने उनसे कहा कि देखों दरवाजे पर कोई भूखा तो नहीं है. लक्ष्मण ने कहा कि मैं अभी देखकर आया हूं, कोई याचक दिखाई नहीं दिया. हां, एक कुत्ता जरूर रो रहा है.
उन्होंने कुत्ते को बुलाकर उसकी तकलीफ का कारण पूछा. तब कुत्ते ने बताया कि एक ब्राहम्ण ने मुझे डंडा मारा है. श्रीराम जान गए कि कुत्ते के साथ अन्याय हुआ है. उन्होंने उसी से पूछा तो अब सजा के तौर पर तुम क्या चाहते हो?
कुत्ते ने जवाब दिया कि उस ब्राम्हण को मठाधीश बना दीजिए? क्योंकि एक वक्त में मैं भी मठाधीश था और कई योनियों के बाद अब कुत्ते की योनि मे आया हूं. वह भी एक दिन कुत्ते की योनि में पहुंचेगा और उसे भी तकलीफ का एहसास होगा.
भगवान के मंदिरों में आते-जाते हैं कुत्ते
ऋग्वेद के अनुसार कुत्तों की माता का नाम सरमा है, जो इंद्र देव की सहायक मानी जाती हैं. सरमा ने ही लोगों को यह भी सिखाया था कि गाय का दूध कैसे प्राप्त करें, ताकि इंसानियत को बचाया जा सके.
महाभारत के बाद जब युधिष्ठर अपने भाईयों के साथ हिमालय यात्रा करते हुए स्वर्ग पहुंचे, तो रास्ते में केवल एक कुत्ता ही था जिसने अंत तक उनका साथ निभाया. हालांकि इसी कहानी में आगे कहा जाता है कि इंद्र ने युधिष्ठर को तो स्वर्ग लोक में आने दिया पर कुत्ते के आने पर आपत्ति जताई. दोनों के बीच तर्क हुआ तब कुत्ता अपने असली रूप में आया.
वह रूप यमराज का था. दरअसल वे युधिष्ठर के धर्म की परीक्षा ले रहे थे. इसी कथा को आधार मानकर हिंदू धर्म में कुत्ते को यम का सूचक कहा जाता है. माना जाता है कि किसी की मृत्यु के पूर्व ही कुत्ते को उसका एहसास हो जाता है. भगवान दत्तात्रेय और भैरव मंदिरों में कुत्तों के आने जाने पर कोई पाबंदी नहीं है. वे आम भक्तों की तरह ही मंदिरों में प्रवेश करते हैं.
कुत्तों के लिए बनता है मनपसंद भोजन
कुत्ते के बारे में धर्मों का नजरिया तो जान लिया. अब जानने लायक है कुत्तों का इकलौता त्यौहारा तिहार पर्व. तिहार पर्व केवल नेपाल में मनाया जाता है. 5 दिनों का यह उत्सव दीपावली के समय पूरे देश में आयोजित होता है.
उस दिन घर-घर में पकवान बनते हैं. गली के कुत्ते मेहमान बनकर पहुंचते हैं. जहां उन्हें नहलाया जाता है, रंग गुलाल लगाते हैं. फूलों की होली खेली जाती है. इसके बाद उनकी पूजा होती है. आरती उतारी जाती है और फिर व्यंजनों का भोग लगाया जाता है.
तिहार के दौरान कुत्ते के अलावा गाय, कौवे आदि की भी पूजा की जाती है. कुत्ते की पूजा को 'कुकुर तिहार' कहा जाता है. यानि पूरे 5 दिन नेपाल देश के सारे कुत्ते भरपेट भोजन करते हैं. इन दिनों में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कोई कुत्तों का अपमान न करें. वैसे यहां की संस्कृति में कुत्तों का अपमान वर्जित है, पर ये 5 दिन खास होते हैं.
इतना ही नहीं, पुलिस की टीम में शामिल कुत्तों को तिहार पर्व के दौरान विशेष सम्मान और पुरस्कार दिए जाते हैं. इसे नेपाल देश का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है. भारत में कुत्तों का पौराणिक महत्व होने के बाद भी शायद उन्हें यह सम्मान हासिल नहीं है, जितना की नेपाल में. तिहार पर्व को मनाने के पीछे कोई विशेष वाक्या नहीं है, परंतु जिस तरह से भारत में हिंदू धर्म का महत्व है, वैसे ही नेपाल में भी. वहां भी कुत्ते को ईश्वर का दूत माना जाता है. यही मानकर उनपर प्रेम लुटाया जाता है.
...और एक चीन जो हजारों कुत्ते खा जाता है
नेपाल से कुछ ही दूरी पर चीन है, जो हर साल एक उत्सव मनाता है, जिसमें हजारों की तादाद में कुत्तों की हत्या कर दी जाती है. इस उत्सव को ‘यूलिन डॉग ईटिंग फेस्टिवल’ के नाम से पूरी दुनिया में जाना जाता है.
यह एक तरह का ‘डॉग ईटिंग फेस्टिवल’ है. इस दौरान खासतौर पर कुत्तों का मांस खाया जाता है. उसके पकवान बनाएं जाते हैं. हालांकि यह कोई पौराणिक त्यौहार नहीं है. बस कुछ शौकिया लोगों ने इसे साल 2010 में मनाना शुरू किया और अब हर साल हजारों कुत्तों की जान ले ली जाती है. दुखद पहलू यह है कि नेपाल और चीन की सीमाओं में ज्यादा फासला नहीं है.
किन्तु, कुत्तों के लिए चीन नर्क है तो नेपाल स्वर्ग. जहां आने वाली दीपावली पर कुत्तों का चांदी होने वाली है. इस त्यौहार को देखने और जानने के लिए दुनियाभर से लोग नेपाल पहुंचते हैं. तो यदि आपको भी तिहार पर्व देखने का मन है तो इस बार की दीवाली नेपाल के नाम कीजिए. यह इंसान की इंसानियत और जानवर के बीच का अनोखा और सबसे प्यारा रिश्ता है.
Web Title: Untold Story Of Nepal's Tihar Festival, Hindi Article
Feature Image Credit: thekathmandu