फ्रैशबैक का बटन दबाइए और जरा पीछे जाइए..ज्यादा दूर नहीं बस कुछ 10 साल पहले!
जी हां. बस यहीं! अब जरा याद कीजिए गांव की तालाब के पास भैंस की पीठ के ऊपर अधनंगी हालत में पड़े उसे लड़के को, जिसके पास कुछ नहीं था. सिवाए एक 'नोकिया 1100' के. जिसका टॉर्च कभी वो अपनी आंख में मारता तो कभी भैंस की!
...और फिर तेज वॉल्यूम करके उसी 'नोकिया' से गाना बजाता 'गोरिया चुरा ना मेरा जिया'...इसे सुनकर भैंस कोई रिएक्शन दे ना दे, तालाब पर कपड़े धोने आई धोबन को जरूर हंसी आ जाती.
अब जरा वापस 2018 में आइए और अपने चारों ओर नजर घुमाइए, और गौर मरमाइए कि क्या बदला है तब से अब तक? बेशक हमारे आसपास तालाब नहीं है और न ही वो भैंस है.
किन्तु, वो लड़का आज भी है जो नोकिया की जगह सैमसंग का ये बड़ा स्मार्टफोन रखता है, जो उसकी जेब से झांक-झांक कर औरों को मुंह चिढ़ा रहा है.
नोकिया का जमाना लद चुका है और अब भारत सैमसंग का ग्राहक बन गया है.
वही सैमसंग जिसे दक्षिण कोरिया ने बनाया है और जिसके बारे में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दावा है कि 'इस देश का कोई न कोई प्रोडेक्ट भारत के हर घर में है.'
दक्षिण कोरिया दुनिया के लिए किसी सांता क्लॉस से कम नहीं है, जिसकी पोटली में सभी के लिए कुछ न कुछ है! केवल मोबाइल या लैपटॉप ही नहीं, बल्कि नेलपेंट से लेकर खतरनाक हथियार बनाने तक की हर तकनीक की चाबी इसी की पोटली में है.
तो चलिए जानते हैं कि आखिर दक्षिण कोरिया ने दुनिया को क्या दिया है!
भुखमरी से विकास तक
एशिया के मानचित्र पर गौर फरमाएं तो चीन, मंगोलिया और जापान देशों के झुरमुट के बीच में एक कोरियाई द्वीप है. जो दूसरे विश्व विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ की राजनीति की भेंट चढ कर दो फांक हो गया.
एक हिस्सा कहलाया उत्तर कोरिया और दूसरा दक्षिण कोरिया. एक ही द्वीप के इन दो देशों के बीच तब से अब तक रार रही है. दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल राजनीति का गढ़ तो है ही, साथ ही है दुनियाभर की नामचीन कंपनियों का स्थाई पता.
उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन के बर्ताव को तो पिछले दिनों दुनिया ने देख ही लिया अब उसके दूसरे हिस्से यानि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन को हाल ही में हमने देखा और सुना.
दक्षिण कोरिया के पास केवल सैमसंग ही नहीं है बल्कि एलजी और ह्यूंदै जैसी कंपनियां भी हैं. जिनके दम पर आज भी भारत जैसे कई देशों में वॉशिंग मशीन से लेकर फ्रिज और एसी तक चल रहे हैं.
सैमसंग के बारे में तो यह ख्याल है कि वह सुई से लेकर जहाज तक सब बना सकती है.
अब सवाल उठता है कि सीमित संसाधन होने और देश में अशांति भरे माहौल में भी आखिर कोरिया ने तरक्की कैसे की? तो इसके लिए एक बार इतिहास पर गौर फरमाते हैं. तो बात है 27 जुलाई, 1953 की.
जब दक्षिण और उत्तरी कोरिया के बीच जंग खत्म हुई और उनके बीच समझौते के तौर पर कोरियन डीमिलिट्राइज़्ड ज़ोन बना.
इसके बाद जंग दोबारा तो नहीं हुई पर दिलों की दूरियां पाटी नहीं जा सकीं. इस समझौते कोे 68 साल हो चुके हैं और दोनों देश तरक्की के आसमान पर हैं. बात यही दक्षिण कोरिया की की जाए तो समृद्ध मुल्क़ों में गिना जाता है.
जबकि उत्तर कोरिया ने खुद को हथियारों की खान बना लिया है.
कोरियाई युद्ध खत्म होने पर दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया की तुलना में ज्यादा गरीब था और दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल हो चुका था. यहां 64 डॉलर प्रति व्यक्ति आय पर गुजारा हो रहा था. हालात भुखमरी के थे.
पर चूंकि अमेरिका और जापान दक्षिण कोरिया के साथ थे तो यह कहने में गुरेज नहीं कि उनकी दी गई आर्थिक मदद ने दक्षिण कोरिया को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करने में मदद की.
बाहरी देश आर्थिक मदद दे सकते थे लेकिन असली ताकत देश के भीतरी लोगों ने जुटाई.
पार्क चुंग-ही के कार्यकाल में दक्षिण कोरिया ने व्यापारिक तरक्की पर ध्यान दिया. नौकरी से ज्यादा छोटे उद्योग लगाए. सरकारी नीतियां कुछ इस तरह तैयार की गईं की युवाओं को रोजगार नहीं बल्कि व्यापार मिले.
यही कारण रहा कि सैमसंग, एलजी जैसी छोटी-छोटी कंपनियों ने कुछ ही सालों में विकास की राह थाम ली.
तकनीक के मामले में गुरू है!
जिन कंपनियों का नाम अभी लिया है उनके बारें में तो भारत का बच्चा बच्चा जानता है, लेकिन इन सबसे हटकर भी दक्षिण कोरिया ने कई प्रोडक्ट सेगमेंट में शानदार काम किया है.
गाड़ियां, मशीनरी, कॉस्मेटिक, रोबोटिक के साथ होम एप्लीकेशन, लैपटॉप, मोबाइल फोन और ऐसेसरीज खास हैं. लेकिन इन सबसे हटकर है दक्षिण कोरिया का फूड प्रोसेसिंग वर्क.
भारत में पीएम मोदी फिलहाल अपनी हर रैली में किसानों को फूड प्रोसेसिंग वर्क शुरू करने की सलाह ही बांट रहे हैं.
लेकिन भारत की तुलना में दक्षिण कोरिया में खाने—पीने की गुणवत्ता का विशेष ख्याल रखा जाता है. आज भारत में कोशिश की जा रही है कि गांव—गांव तक 4जी टावर लग जाएं वहीं दक्षिण कोरिया 5जी तकनीक के साथ काम कर रहा है.
यहां देश की 82.7% आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है और 79% लोग स्मार्टफोन के आदि हो चुके हैं.
इस देश के इंजीनियर्स की तकनीक और दिमाग का ही असर है कि ह्यूंदे ऐसी कार बना पाया जो मोबाइल से स्टार्ट हो और सैमसंग कर्व वाली टीवी. तकनीक से हटकर कॉस्मेटिक की बात की जाए तो यहां भी दक्षिण कोरिया के आगे कोई नहीं टिकता.
साल 2011 में इस देश ने घोंघे के शरीर की त्वचा से बनने वाली स्नेल क्रीम बनाई थी.
लावा की मिट्टी से बनने वाला मास्क और फ़रमेंटेड सोयबीन मॉश्चराइज़र भी इसी देश की देन है. जिसे आज जापान और अमेरिका समेत एशिया के बाकी देशों में भी बहुत पसंद किया जा रहा है. अब हेयर शॉकर और असली फूल दिखाने वाली नेल पेंट तैयार करके दक्षिण कोरिया डिजाइनर्स और ब्यूटीशिन्यस का फेवरेट हो गया है.
दक्षिण कोरिया ने बताया है कि खूबसूरत दिखने के लिए केवल मेकअप काफी नहीं है.
बल्कि प्लास्टिक सर्जरी भी एक अच्छा विकल्प है. यह प्लास्टिक सर्जरी मेडिकल टूरिज़्म में सबसे आगे है. चेहरे का शेप बनाने के लिए जबड़े की डिजाइन में फर्क लाना या माथा चौड़ा कर देना यहां बस कुछ घंटों का काम है.
दुनियाभर के सेलेब्स दक्षिण कोरिया से सीख रहे हैं कि खूबसूरत कैसे बना जाता है!
6 घंटे सोते हैं दक्षिण कोरियाई स्टूडेंट
क्या आप जानते हैं कि दुनिया की शीर्ष 100 महिला गोल्फ़रों में 38 कोरियाई हैं.
इस देश में खेलों को उतना ही महत्व दिया गया है जितना करियर के दूसरे विकल्पों. खासतौर पर गोल्फ खेलने वालों की दीवानी देखते ही बनती है. इसके अलावा दक्षिण कोरिया हॉस्पिटालिटी के मामले में सबका गुरू है.
माना जाता है कि कोरियाई विमान में सफर करना किसी भी व्यक्ति का सबसे अच्छा अनुभव हो सकता है. विमान कंपनियां अपने फ़्लाइट अंटेडेंट को अच्छी ट्यूशन लेने के लिए कोरियाई एयरलाइंस की ट्रेनिंग क्लास में भेजती हैं.
व्यापार की बात करने के बाद बात करें देश के शिक्षा के स्तर की तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं! इस देश की आबादी का 98% सेकेंड्री एजुकेशन ले चुका है जबकि 63% आबादी ने कॉलेज तक की शिक्षा पूरी की है. खास बात यह है कि स्टूडेंट 24 घंटे में केवल 6 घंटे की नींद लेते हैं और समय मिलने पर पार्टी करके मूड रिलेक्स करते हैं.
इसी तरह क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने वालों में भी इस देश का कोई मुकाबला नहीं. बैंक ऑफ़ कोरिया की एक रिपोर्ट पर नजर डाले तो पता चलता है कि साल 2011 में अमरीका और जापान जैसे देश में प्रति व्यक्ति 77.9 ट्रांजैक्शन कर रहा था.
जबकि, दक्षिण कोरिया में 129.7 ट्रांजैक्शन प्रति व्यक्ति कर चुका था.
इससे जाहिर है कि दक्षिण कोरिया ने खुद हो भुखमरी और गरीबी की खाई सेे निकालकर उस मुकाम तक पहुंचाया है, जिसके पीछे दुनिया के कई नामचीन देश अपना सिर छिपाए हुए हैं.
भारत के हिस्से क्या आ सकता है!
मून जहां एक ओर ‘न्यू सदर्न पॉलिसी’ की बता करते हैं वहीं अब भारत में ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी’ पर जोर दिया जाता रहा है. दक्षिण कोरिया निर्यात के मामले में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश है.
जबकि आयात के मामले में सातवां सबसे बड़ा मुल्क.
इस हिसाब से देखा जाए तो भारत के साथ उसकी मित्रता हमारी तरक्की के इंजन में भी कोयले का काम कर सकती है. दक्षिण कोरिया ने भारत में सैमसंग की सबसे बडी यूनिट शुरू करके एक प्रमाण तो प्रस्तुत कर दिया है. आगे की जिम्मेदारी हमारी है!
इसके अलावा ह्यूंदै ने तमिलनाडु में एक ऑटोमोटिव प्लांट लगाया है और किया मोटर्स ने आंध्र प्रदेश में दो मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू करने की योजना को ग्रांट दे दी है. एलजी के भी दो कारखाने पहले से ही भारत में चल रहे हैं. अब वह वेदांता के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक एलसीडी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू करने जा रहा है.
भारत और साउथ कोरिया के बीच 2017 में हुए एक समझौते कि अनुसार साउथ कोरिया नौसेना के लिए जहाज बनाने में भारत की मदद करेगा. इसके अलावा भारतीय सेना को सशक्त बनाने के लिए तकनीक युक्त हथियारों के निर्माण में भी मदद जारी है. सबसे अच्छी आत यह है कि साउथ कोरिया ने बिक्रस देशों में से सबसे पहले मुक्त व्यापार भारत के साथ ही शुरू किया.
यह सकारात्मक संकेत है, कि दोनों देशों के रिश्ते मजबूत हो रहे हैं. दक्षिण कोरिया की तरक्की उनके अपने लोगों की सूझबूझ और एकता से हुई है. जाहिर सी बात है कि उन्हें अन्य देशों ने आर्थिक मदद दी.
...पर जरा सोचिए क्या यह सब भारत में संभव नहीं?
भारत दक्षिण कोरिया के लिए किसी मौके से कम नहीं है और दक्षिण कोरिया हम भारतीयों के लिए. यदि इस छोटे से देश से सीखकर 'मेक इन इंडिया' के इंजन में थोड़ा कोयला हमारी तरफ से भी चला जाए तो तरक्की की गाड़ी कुछ तो बढ़ेगी!
Web Title: What Did South Korea Give, Hindi Article
Feature Image Credit: continentalcurrency