‘तालिबान’ ये शब्द सुनकर आप के जहन में जो तस्वीर कौंधती है, वह कैसी है! यकीनन वह अच्छी नहीं होगी. उसमें सिर्फ व सिर्फ आतंकवाद की झलक दिखाई पड़ती होगी.
किन्तु, क्या आप जानते हैं कि तालिबान का शुरुआती मकसद आतंकवाद नहीं बल्कि, अफगानिस्तान की अस्थिर राजनीति को स्थिर करते हुए अपना कानून लागू करना था.
ऐसे में यह जानना दिलचस्प रहेगा कि आखिर कैसे पहले इस संगठन ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा करा था और फिर कैसे यह एक आतंकी संगठन में बदल गया-
चंद लड़कों ने डाली थी नीव!
पाकिस्तान से लगभग 30 ट्रक अफगानिस्तान जा रहे थे. उन ट्रकों ने जैसे ही दक्षिणी अफगानिस्तान में कदम रखा, अफगानिस्तान के कुछ आतंकी संगठनों ने उन्हें अगवा कर लिया.
ऐसी स्थिति में कुछ तालिबानी लड़के सामने आए और उन्होंने मोर्चा संभालते हुए ट्रकों समेत अगवा किए गए लोगों को आजाद करवाया था. साथ ही सभी अपहरण कर्ताओं को मार गिराया. यह एक ऐसी घटना थी, जिसने तालिबान की छवि अच्छी प्रस्तुत की.
इसका फायदा उठाते हुए तालिबान ने अपना प्रचार करना शुरू किया. उन्होंने लोगोंं को कहा कि वह अफगानिस्तान में किसी और की नहीं, बल्कि पूरी तरह से मुस्लिम लोगोंं की सत्ता चाहते हैं. उनका दावा था कि वह लोग, वहां पर सीरिया जैसी सत्ता शुरू कर सकते हैं.
जीता लोगों का दिल और…
लोगोंं को उनके विचार अच्छे लगने लगे. तालिबान ने आम लोगों के बीच अपनी छवि ईमानदार, निडर और ऐसे योद्धाओं की बनाई, जो इस्लाम के लिए जीना और मरना चाहते थे. अपनी इन्हीं बातों से वह अफगानिस्तान के लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहे.
लोगों को लगने लगा था कि कोई तो है, जो उनके हक के लिए खड़ा हो रहा है. लोगों का रुझान तेजी से उनकी तरफ होने लगा. शायद उस समय अफगानिस्तान के गाँव के गरीब और अनजान लोग नहीं जानते थे कि वह अपनी किस्मत किन लोगोंं के हाथ दे रहे थे.
वह तालिबान के लिए यह आसान नहीं था. असल में इस्लाम के लिए जीने और मरने का जज्बा तो उनके पास था, किन्तु खुद को स्थापित करने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत पड़ने वाली थी. इस कारण वह परेशान रहते थे. ऐसे में खाड़ी के देश उनके लिए फरिश्ता बनकर आए और उनकी मदद की. उन्होंने उन्हें जरूरत के हिसाब से पैसा देना शुरु कर दिया.
इतना ही नहीं माना जाता है कि तालिबान की मदद के लिए खुद पाकिस्तान भी आगे आया था. उन्होंने भी कई मौकों पर उनकी मदद की, ताकि बाद में वह इसका लाभ ले सके.
When Taliban Ruled Afghanistan (Pic: lubpak)
अफगानिस्तान की सरकार पर कब्ज़ा
अब तालिबान केवल उन लड़कों का नहीं रह गया था, जिन्होंने आतंकी संगठन से ट्रकों को छुड़ाया था. इस जंग में वह लोग भी शामिल हो गए थे, जिन्होंने अफगानिस्तान के लिए सोवियत यूनियन से भी जंग झेड़ रखी थी और उन्हें खदेड़ा था.
1994 में अफगानिस्तान में पुलिस बल बहुत ज्यादा कमजोर था, जिसका तालिबान ने फायदा उठाया. वो खुद एक फोर्स की तरह उभरे और लोगोंं का अपने उपर भरोसा कायम कर लिया. साथ ही उत्तरी और दक्षिणी अफगानिस्तान के बीच गृहयुद्ध के मौके को भुनाते हुए, उन्होंने कंधार में अपना गढ़ बना लिया.
अागे 1996 तक तालिबान ने बल, वार्ता, प्यार हर उस तरीके का इस्तेमाल किया, जिससे वह अफगानिस्तान में अपना वर्चस्व स्थापित कर सकें. इसमें पाकिस्तान और साउदी अरब ने उनका खूब साथ दिया.
इसका परिणाम यह रहा कि जल्द ही तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रीय सरकार पर नियंत्रण कर लिया. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि यहां तक पहुंचने में अमेरिका का भी हाथ था!
अमेरिका ने उस वक्त इसका समर्थन नहीं किया था, तो इसका बहिष्कार भी नहीं किया था.
यही कारण है कि तालिबान इतनी तेजी से अफगानिस्तान में फलने फूलने लगा था. थोड़ा ही वक़्त लगा तालिबान को अफगानिस्तान पर अपना राज जमाने में. एक बार जैसे ही यह हुआ पूरी दुनिया हैरान रह गई.
सत्ता पाते ही दिखाया अपना असली रंग
तालिबान ने जैसे ही अफगानिस्तान की सरकार पर कब्जा किया. उन्होंने अपना असली रंग दिखाना शुरु कर दिया. जैसा कि तालिबान ने पहले वादा किया था कि वह सत्ता में आते ही पूरे अफगानिस्तान पर इस्लामिक कानून को लागू कर देंगा.
उन्होंने बिल्कुल वैसा ही किया.
इस फैसले से जनता को लग रहा था कि यह कानून उनके लिए बहुत फायदे का सौदा होंगा. वहीं दूसरी ओर तालिबान अफगानिस्तान के लोगों के लिए ऐसा कानून ला रहा था, जो उनका जीना हराम करने वाला था. तालिबान के बनाए गए कानून वाकई में इतने सख्त थे कि लोगों के लिए मुसीबत को सबब बने वाले थे, जिसका उस वक्त लोगों को अंदाजा नहीं था.
When Taliban Ruled Afghanistan (Pic: vocfm)
…कुछ ऐसे तालिबान के नए नियम
महिलाओं को सिर से पैर तक पर्दे में रहना जरूरी कर दिया गया. सीधी भाषा में कहें तो उन्हें हर वक़्त बुर्खे में रहना था. लोगों के मनोरंजन के साधन टीवी पर भी तालिबान ने बैन लगा दिए. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके हिसाब से इस्लाम में हर उस चीझ को हराम माना जाता है, जो आपको आप के मकसद से भटका दें.
तालिबान के अनुसार टीवी समय बर्बाद करने के सिवा कुछ नहीं करता था!
कुछ कानून तो इनके ऐसे थे, जिन्हें सुनकर पहले आपको हंसी आएगी.
हालांकि, फिर आप उस जगह पर रहने वाले लोगोंं के बारे में सोचेंगे तो आपको पता चलेगा उनके लिए यह कितना दहशत और डर का माहौल था. ऐसे ही एक कानून के अनुसार अगर किसी भी आदमी की दाढ़ी छोटी है, तो उसे जेल में डाल दिया जाएगा. अगर कोई रोजे नहीं रखता, तो उसे जेल में डालने का फरमान था.
इतना ही नहीं तालिबान ने सत्ता में आते ही अफगानिस्तान के अंदर इतिहास की, जो धरोहरें थीं जैसे बुद्ध की मूर्तियाँ आदि को तुड़वा दिया. सभी को इस्लाम विरोधी कहकर नष्ट कर दिया.
जब गिर गई तालिबान की सरकार
तालिबान के द्बारा बनाई गई सरकार से दुनिया के ज्यादातर देश खुश नहीं थे. केवल उन्हें पाकिस्तान,साउदी, और गल्फ के कुछ देशों को समर्थन मिल रहा था.
परिणाम यह रहा कि दूसरे देशों ने इसका विरोध किया. आगे अफगानिस्तान के लोगों भी इसके खिलाफ हो चले. भले ही इस सरकार ने अफगानिस्तान को एक राजनीतिक स्थिरता दी थी. साथ ही भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई थी.
किन्तु, उन्होंने वहां के लोगों को जेल में डालने में भी कोई कोताही नहीं बरती थी.
अफगानिस्तान में औरतें तो इतनी परेशान थीं कि उनको आजाद करने के लिए संयुक्त राष्ट्र यूएन ने 1998 को एक संसोधन पास किया, ताकि अफगानिस्तान में औरतों का शोषण रुक सके. ये कुछ ऐसे कारण थे, जिन्होंने तालिबान को पतन की ओर बढ़ ढकेल दिया.
1998 से ही तालिबान का पतन शुरू हो गया था.
खुद लिखी अपने पतन की कहानी!
फिर तालिबान के मुखिया मुल्ला उमर ने ओसामा और उसके संगठन अलकायदा को अफगानिस्तान में शरण देकर अपनी खात्में की कहानी खुद लिख डाली.
हालांकि, उसने ओसाम को इस शर्त के साथ शरण दी थी कि वह अमेरिका पर हमला नहीं करेगा. बाद में ओसामा ने इस वादे को तोड़ दिया और तंजानिया और केनिया में अमेरिका के दूतावास पर हमला करवा दिया.
इस हमले के बाद ही तालिबान और अलकायदा के रिश्तों में खटास आ गई. दोनों लगभग अलग होने लगे थे और अमेरिका, जो अब तक चुप बैठा तो वो भी इन हमलों के बाद गुस्से में था. आगे अमेरिका ने अफगानिस्तान पर बमबारी शुरू कर दी.
9/11 की घटना ने केवल अमेरिका को ही नुकसान नहीं पहुंचाया था, बल्कि अफगानिस्तान को भी इसका भारी नुक्सान उठाना पड़ा था. आतंकवादियों का स्वर्ग बन चुके अफगानिस्तान को ठीक करने की कसम अमेरिका ने इस हमले के बाद ही खाई थी.
धमाके ओसामा ने करवाए थे, पर अब सबकी नजर अफगानिस्तान पर थी.
तालिबान ने भले ही अमेरिका पर हमला नहीं किया था, मगर ओसामा को उन्होंने अपनी पहाड़ियों पर छिपाया हुआ था, जिसका उसे भुगतान करना पड़ा.
ओसामा का पीछा अमेरिका कर रहा था.इसी कड़ी में उसने 2001 में तालिबान की सरकार गिरा दी. इसके बाद तालिबान के मुखिया को अपनी जान बचाकर पाकिस्तान भागना पड़ा था.
फिर देखते ही देखते तालिबान का राज अफगानिस्तान से खत्म होने लगा था. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था. कुछ वक़्त बाद ही वह कमजोर हो गया और तालिबान की सरकार पूरी तरह से खत्म हो गई. इसके साथ ही तालिबान का अफगानिस्तान पर राज भी ख़त्म हुआ.
When Taliban Ruled Afghanistan (Pic: nypost)
तालिबान ने कोशिश तो बहुत की अफगानिस्तान पर हमेशा के लिए अपना राज जमाने की, मगर उसके इन मंसूबों पर आखिर में पानी फिर गया.
किसी ने सही ही कहा है कि ‘बुराई का एक दिन अंत हो ही जाता है’. तालिबान की खूंखार और बेकार सरकार का भी आखिर में अंत हो ही गया.
Web Title: When Taliban Ruled Afghanistan, Hindi Article
Featured Image Credit: pulaski