जरा अपने आसपास से नजरें हटा कर थोड़ा कद बढ़ाएं. गर्दन घुमाकर अपने चारों ओर की दुनिया को वहां तक देखने की कोशिश करें, जहां तक देखने की क्षमता है. अब बताएं कि इस दुनिया को खाक में मिलाने वाला और इस दुनिया को बचाने वाला कौन है! तमाम तरह की तालीम लेने वाले, सबसे समझदार और धैर्यवान व्यक्ति के पास भी एक ही जवाब होगा- धर्म!
यही वो चीज है, जो आतंक फैला रही है और यही वो तालीम है, जो शांति कायम कर सकती है.
कहते हैं जब तक धर्म निजी मसला है, तब तक वह किसी को हानि नहीं पहुंचाता. पर जब इसकी नुमाइश की जाती है तो वह कहर बरपाता है. धर्म को हथियार बनाकर दुनिया में आतंक फैलाने वालों के लिए चीन एक मिसाल है.
चूंकि बस यही एक देश हैं, जो आतंकवाद से पूरी तरह मुक्त है! पर खुश होने की जरूरत नहीं, क्योंकि यह वही देश है जहां लोगों को अपना धर्म मानने, अपने खुदा को सजदा करने की इजाजत नहीं. चीन खुद को पूरी तरह से नास्तिक घोषित कर चुका है. उसका तर्क है कि धर्म इंसान को कमजोर बनाता है और वामपंथी विचारधारा को नुक्सान.
तमाम तरह की सख्ती के बाद भी यहां धर्म कुछ जगहों पर फलने की कोशिश कर रहा है. पर कब तक यह तो वक्त ही बताएगा.
फिलहाल हम आपको दिखाते हैं नास्तिक चीन का चेहरा! जहां धर्म को वेंटिलेटर पर रख दिया गया है.
धर्म के मामले में चीन का राजनीतिक दृष्टिकोण
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी किसी धर्म में विश्वास नहीं रखती. यहां की राजनीतिक विचारधारा में यह शिक्षा दी गई है कि धर्म व्यक्ति को कमजोर बनता है. यह वामपंथ की भावना को नुकसान पहुंचाता है. आलम यह है कि चीन में सरकारी नेता, अफसर और अदने से चपरासी तक को किसी भी धर्म का पालन करने की मनाही है.
यदि कोई भी ऐसा करता पाया जाता है तो उसके लिए जुर्माने और सजा दोनों का प्रावधान है. इतना ही नहीं चीन में सरकारी पदों से रिटायर हो चुके लोगों को भी किसी धर्म का पालन करने की अनुमति नहीं है.
पार्टी के सदस्यों को पूरी सख्ती से इस नियम का पालन करना जरूरी है. इस विचारधारा को पैदा करने वाले चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग हैं. जिन्होंने चीन में धर्म को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया.
एक वक्त था, जब चीन में व्यक्ति को अपनी मर्जी से अपना धर्म निभाने की आजादी थी. पर दूसरे विश्व युद्ध के बाद से यहां के हालात बदलना शुरू हो गए. जंग में चीन ने बहुत कुछ खोया था. कुछ पाया था तो केवल एक नेता-माओत्से तुंग. जो भगवान के होने पर विश्वास नहीं करता था.
उसकी विचारधारा उसके लिए थी, पर जब जंग में लोगों ने अपना परिवार खोया, अपना घर और संपत्ति खोई और पाया कि उन्हें बचाने के लिए कोई ईश्वर धरती पर नहीं आया, तो वे माओत्से तुंग के बयानों से प्रेरित हुए.
कहते हैं बस यहीं से वामपंथी विचारधारा में नास्तिकता के गुण फूटे.
यह विचारधारा एक पार्टी विशेष की है, पर दूसरा सच यह है कि यही पार्टी चीन में सब कुछ है. आलम यह है कि सीसीपी पार्टी के सदस्यों को किसी धार्मिक कार्यक्रम में सार्वजनिक तौर पर शरीक होने की अनुमति नहीं दी जाती है. इसका एक उदाहरण सामने आया था, जिसके बाद इंटरनेशल मीडिया में भी चीन की नास्तिकता पर सवाल उठे थे.
एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2015 में पार्टी के 15 अधिकारियों को पार्टी अनुशासन का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया था. उन्हें पार्टी से निस्कासित किया गया और जुर्माना लगया गया. पर इस पूरी घटना के पीछे का सच यह था कि वे बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा के मतों पर विश्वास करते थे और उनका पालन कर रहे थे.
एक अनुमान के मुताबिक़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 8.5 करोड़ कार्यकर्ता हैं. यानि ये सब के सब नास्तिक हैं. यदि ये नास्तिक हैं तो इनके परिवारजन भी नास्तिक होंगे. वे ऐसे लोगों से रिश्ता बनाते हैं जो भगवान में विश्वास न करें.
धर्म के लिए है कुछ ऐसी है चीन में सख्ती
नास्तिक चीन में एक आस्थावान व्यक्ति का जीवन आसान नहीं है. यहां धार्मिक गतिविधियां को स्वतंत्र होकर अंजाम नहीं दिया जा सकता. यानि हमारे देश की तरह न तो कोई देव रथ यात्रा निकलती है, न ही सार्वजनिक स्थान पर कोई नमाज अदा करता है.
राजनेताओं को यह डर है कि धार्मिक संस्थाएं पार्टी की अथॉरिटी पर सवाल खड़े कर सकती है.
यदि ऐसा हुआ तो देश में राजनीतिक गर्मा गरमी का माहौल बनेगा. लोगों का विश्वास राजनेता से ज्यादा चमत्कार या उस शक्ति पर होगा जिसे कोई देख तक नहीं सकता. तमाम तरह की सख्ती के बाद भी चीन में बौद्ध, ईसाई, इस्लाम और ताओइजम धर्म को मानने वाली कुछ आवाम बसती है.
पर धर्मावलंबियों को सरकारी चर्चों, मंदिरों और मस्जिदों के बाहर ही प्रार्थना करनी होती है. यानि वे हमारे देश की तरह न तो कहीं भी पत्थर पर लाल टीका लगाकर रख सकते हैं, न ही मजार बना सकते हैं. हर प्रांत में कुछ सरकारी इमारते हैं जिन्हें चर्च, मंदिर और मस्जिदों का नाम दे दिया गया है और हर धर्ममावंबी को यहीं आकर प्रार्थना करनी होती है.
यहां तक कि वे अपने घरों पर या निजी संपत्तियों पर भी चर्च या मंदिर नहीं बना सकते.
शिनजियांग प्रांत में हिजाब पहनने, दाढ़ी बढ़ाने और रमजान महीने में रोजा रखने तक पर मनाही है. यानि यहां मुसलमानों को रोजा रखने पर सजा तक दे दी जाती है. सरकारी धर्म स्थलों में जाने के लिए सरकार एक कार्ड जारी करती है, जिसे हर माह रिन्यु करवाना होता है. इस कार्ड में धर्मस्थल जाने की एक निश्चित समय सीमा होती है. यानि यदि सरकार ने कहा है कि 20 दिन ईश आराधना करो तो मतलब है केवल 20 दिन. यदि एक दिन भी ज्यादा हुआ तो उसका जुर्माना भरना होता है.
जारी किए गए धर्म के 'श्वेत पत्र' में क्या...
03 अप्रैल 2018 को चीन में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी पर एक श्वेत पत्र जारी किया गया है. इसमें धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता की गारंटी देने की बुनियादी नीति. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की कानूनी गारंटी.
धार्मिक गतिविधियों का व्यवस्थित रूप से आयोजन. धार्मिक समुदाय की भूमिका पूरी तरह निभाना. धार्मिक संबंध सकारात्मक और स्वास्थ्य बनाए रखने संबंधित नियम और निर्देश निहित हैं.
अचानक आए इस परिवर्तन की वजह है देश में आई नई सत्ताधारी पार्टी, जिसने यह श्वेत प्रत्र जारी करते हुए सफाई दी कि 18वीं सीपीसी कांग्रेस और शी चिन फिंग से केंद्रित रहने वाली सीपीसी केंद्रीय कमेटी ने कहा कि वे देश में प्रशासन करने की नई नीतियां लागू कर रहे हैं. साथ ही लोगों के धार्मिक कार्यों को प्रशासन व्यवस्था में शामिल किया जा रहा है.
यहां तक की उन्हें कानूनी सहायता भी दी जाएगी.
यह श्वेत पत्र जारी होने के पहले से चीन में धर्म के अंकुर फूटना शुरू हो गए हैं. जिस चीन को हम जानते हैं वो दलाई लामा का देश था. वो बौद्ध की शिक्षाओं को मानने वाला देश था. पर आज की तारीख में इस देश में ईसाई धर्म तेजी से पैर पसार रहा है.
सरकारी नुमाइंदों को बक्श दिया जाए, तो देश में धर्म को मानने वालों की संख्या में इजाफा देखा जा रहा है. लोगों का चहेता धर्म है-ईसाई. एक अनुमान के मुताबिक चीन में 6.7 करोड़ लोग ईसाई धर्म को मानते हैं. हालांकि बाकी धर्मों की तरह इन करोड़ों लोगों के लिए आधिकारिक चर्च के अलावा दूसरे चर्चों में प्रार्थना की इजाजत नहीं है.
ईसाई धर्म का इजाफा 1980 के बाद से देखा गया है...
फिर भी फलने की कोशिश कर रहा है धर्म
एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में तीन ईसाई संगठन हैं और इसके अलावा कई अंडरग्राउंड हाउस चर्च हैं. प्यू सेंटर ने साल 2010 में एक रिसर्च की थी. इसके अनुसार चीन की कुल जनसंख्या का 5 प्रतिशत वो हिस्सा है, जो ईसाई धर्म को मानता है. चर्च में प्राथनाएं करता है और क्रिसमस बनाता है.
वैसे बता दें कि यहां ईसाई धर्म की हालात भी बहुत अच्छे स्तर पर नहीं है. चीन की सरकार ने प्रसिद्ध पादरी झांग शाओजी को भीड़ इकठ्ठा करने के आरोप में 12 साल की जेल की सजा सुनाई थी. यह कोई अकेला उदाहरण नहीं है, बल्कि चीन की जेलों में ऐसे बहुत से लोग बंद हैं जिन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने धार्मिक कार्यक्रमों को अंजाम दिया.
ईसाई के बाद आता है बौद्ध धर्म. अच्छी बात यह है कि पूर्व चीनी नेता जियांग जेमिन और हू जिंताओ ने बौद्ध धर्म के प्रचार को बढ़ावा दिया था. उन्हीं की कोशिश का नतीजा रहा है चीन में निजी बौद्ध मठो की स्थापना हो सकी.
इस्लाम और ईसाई धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म के प्रति चीन का रवैया सहिष्णु है. उसे लगता है कि इस धर्म के प्रचार में शांति का संदेश है. इससे उनकी छवि को कोई नुकसान नहीं होगा. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद बौद्ध धर्मावलंबियो में उम्मीद जगी है. चूंकि शी जिनपिंग अपने एक भाषण में देश की धार्मिक स्वतंत्रता पर बात कर चुके हैं.
उन्होंने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया कि बौद्ध, कन्फ्यूसियनिजम और दाओजिम से देश के नैतिक पतन पर नियंत्रण किया जा सकता है. बताया जाता है कि बौद्ध धर्म दूसरी शताब्दी में चीन पहुंचा था.
इस धर्म का प्रभाव खास तौर पर चीन के ग्रामीण इलाकों में है. वहीं तीसरे स्थान पर इस्लाम को कबूल करने वालों की संख्या है. चीन में इस्लाम की आमद सातवीं शताब्दी में हुई थी. इस्लाम चीन में व्यापार के रास्ते पहुंचा.
दरअसल जब चीन ने दुनिया के बाकी देशों के साथ व्यापार करना शुरू किया, तो यहां अरब देश के व्यापारियों का आना शुरू हुआ. वे अपने साथ अपनी संस्कृति भी लेकर आए. कुछ लौटे और कुछ यहीं बस गए. जो बस गए उनकी पुश्ते आज भी जिंदा है.
हालांकि, यहां मुसलमानों को अल्पसंख्यकों की श्रेणी में रखा गया है. एक अनुमान के मुताबिक चीन में डेढ़ करोड़ से ज्यादा मुस्लिम हैं. वैसे उनकी राजनीति और व्यापार के क्षेत्र में हिस्सेदारी को महत्वपूर्ण माना जाता है. एक कारण यह भी है कि चीन के मुस्लिम देशों से अच्छे संबंध है. पर इसका अर्थ यह कतई नहीं कि वे खुलकर खुदा को याद कर सकते हैं.
कुल मिलाकर चीन में राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं और तकनीक से बड़ा कोई गुरू नहीं.
किन्तु, सोचने वाला मसला यह है कि जब चीन आपदा में होता है तो वह किसे याद करता होगा? क्योंकि राजनेताओं ने तो देश में धर्म को वेंटीलेटर पर रखा हुआ है. यानि जब तक जेब में पैसा है, तब तक कार्ड रिन्यु करवाते रहो. अपने भगवान को याद करते रहो. जिस दिन पैसे देने की गुंजाइश न हो, धर्म को वेंटीलेटर से उठाकर दफना हो!
आपकी क्या राय है?
Web Title: Why Is Religion Not Easy In China, Hindi Article
Feature Image Credit: worldhindunews