द्वितीय विश्व युद्ध मानव इतिहास का सबसे घातक युद्ध था. इस महायुद्ध में 5 से 7 करोड़ लोगों की जानें गईं.
असल में हिटलर के समय में यहूदियों के सर्वनाश के लिए एक मुहिम चलाई गई थी. इस मुहिम को ‘होलोकास्ट’ नाम दिया गया था. इसके तहत लाखों यहूदियों, दासों, जिप्सियों, कम्युनिस्टों तथा समलैंगिकों को गैरज़रूरी घोषित करके मौत के घाट उतारा जा रहा था. यही नहीं आदमी को सताने के विभिन्न औजारों को इज़ाद किया जा रहा था.
कहते हैं कि इससे पहले इंसान ने अपने जीवन में बहुत-सी त्रासदियों को झेला, मगर होलोकास्ट उनसे बहुत ज्यादा भयानक थी. यहूदियों का धरती पर रहना मुश्किल हो गया था. ऐसे दौर में जब सारे जर्मन सैनिक काल का पर्याय बन चुके थे, तब अपनी जान को खतरे में डालकर मानवता को शर्मसार होने से बचाने वाले कुछ नाजी अफसर भी हुए.
विल्म होसेनफेल्ड ऐसे ही एक हीरो थे, जिन्होनें जर्मन सैनिक होते हुए भी यहूदियों को बचाया.
तो चलिये आज इस सैनिक की वीरगाथा को जानने की कोशिश करते हैं–
देशभक्त परिवार में हुई परवरिश
विल्म होसेनफेल्ड का जन्म 1895 में जर्मनी के हेसेन के एक गांव में हुआ था. उनका परिवार कैथोलिक था. विल्म की परवरिश एक रूढ़िवादी जर्मन देशभक्त परिवार में हुई. जिस कारण विल्म के दिल में अपने देश के लिए ख़ास जगह थी.
विल्म ने पहले विश्व युद्ध में एक सैनिक के रूप में सेवा दी थी. उस दौरान उन्हें चोट भी लगी. उनकी बहादुरी के लिए उन्हें आयरन क्रास, सेकेंड क्लास मेडल दिया गया. यह मेडल युद्ध में सैनिकों की बहादुरी और साहस के लिए दिया जाता था.
दूसरे विश्व की शुरुआत होते-होते उनका विवाह हो गया था. शादी के बाद उन्हे पांच बच्चे हुए.
होसेनफेल्ड ने 1935 में नाज़ी पार्टी में शामिल हो गए. विल्म उन लाखों जर्मनों में से एक थे, जिन्हें पहले विश्व युद्ध में जर्मनी को मिली करारी हार का दाग साफ करने का मौका मिला. उन्होंने अपने भाई रूडोल्फ के साथ 1936 में नूर्नबर्ग रैली में 500,000 पुरुषों के साथ मार्च किया. इस रैली का मुख्य उद्देश्य पार्टी के उत्साह को बढ़ाना और राष्ट्रीय समाज की शक्ति को प्रदर्शित करना था.
जर्मनी में उठी ये देशभक्ति की लहरें विल्म को बेहद रोमांचित करती थीं.
Wilm Hosenfeld, with a Jew who worked for the army (Pic: dailymail)
जब कांप उठी विल्म की रूह
सन 1939 में विल्म को दूसरे विश्व युद्ध में अपनी सेवाएं देने के लिए बुलाया गया. इसके लिए विल्म पोलेैंड गए. आपको बता दें कि, जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोल दिया था, जिसके बाद ही दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई.
होसेनफेल्ड एक सच्चे देशभक्त थे. उन्होंने अपने देश के लिए निश्छल भाव से सेवाएं दीं. इसके लिए उन्हें सैनिक से कैप्टन का पद दिया गया था. सिलसिला आगे बढ़ा तो उन्हें एडोल्फ़ हिटलर का असली चेहरा दिखने लगा. उन्हें दुख था कि वे यहूदियों की हत्या के ज़िम्मेदार थे. बावजूद इसके वह हिटलर के लिए काम करते रहे.
इसी कड़ी में सन 1940 में उनका ट्रांसफर पोलैंड की राजधानी वॉरसो भेज दिया गया. वहां उन्होंने पोलैंड के लोगों पर हो रहे अत्याचार को देखा और द्रवित हो उठे. इतने ज्यादा द्रवित कि उन्हें हिटलर समेत अपने लोगों से घृणा तक होने लगी थी.
पोलैंड के लोगों को बुरी तरह प्रताड़ित किया जा रहा था. उन्हें बेरहमी से मारा जा रहा था. बच्चों को पशुओं की तरह गाड़ी में लादकर ले जाया जा रहा था. ये विल्म के लिए चौंकाने वाला दृश्य था. उन्होंने इस भयानक मंजर का ज़िक्र अपने परिवार को पत्र लिखकर किया.
यहूदी पियानिस्ट को दी नई ज़िंदगी
विल्म को इस नरसंहार ने बदल दिया.
उन्होंने अपने देश की बजाय मानवता का साथ देना ज्यादा ज़रुरी समझा. उन्होंने इसकी शुरुआत पोलैंड और यहूदी लोगों की मदद करके की. विल्म भूख से तड़प रहे लोगों को छिपकर खाना देते थे. उन्होंने कुछ कैदियों के भागने में भी मदद की. वहीं, कुछ लोगों के फर्ज़ी काग़जात बनवाकर उन्हें नौकरी दिलवाई.
अपनी ड्यूटी के दौरान एक दिन विल्म व्लादिस्लॉ स्ज़पिलमैन से मिले, जो एक खाली बिंडिंग में भूख से तड़प रहा था. व्लादिस्लॉ स्ज़पिलमैन एक बेहद प्रसिद्ध यहूदी पियानिस्ट थे.
व्लादिस्लॉ जर्मन सैनिकों के जुल्म से प्रताड़ित थे. इस कारण उसकी मानसिक स्थिति थोड़ी बिगड़ गई थी. व्लादिस्लॉ के परिवार की हत्या कर दी गई थी, लेकिन एक यहूदी सैनिक की मदद से व्लादिस्लॉ बच गए थे.
विल्म ने व्लादिस्लॉ को खाना खिलाया और उसे एसएस डेथ स्कवॉड से सुरक्षित रखा. विल्म की मदद से ही व्लादिस्लॉ जीवित रह पाए और बाद में उन्होंने पोलिश रेडियो के लिए एक संगीतकार के रूप में काम किया.
Wladyslaw Szpilman (Pic: open.spotify)
‘ए पियानिस्ट’
सन 2003 में व्लादिस्लॉ स्ज़पिलमैन के जीवन से प्रेरित ‘ए पियानिस्ट‘ फिल्म भी रिलीज़ हुई. जिसमें व्लादिस्लॉ स्ज़पिलमैन की ज़िंदगी को दिखाया गया. यह फिल्म सुपरहिट साबित हुई. साथ ही इस फिल्म ने कई अवॉर्ड भी जीते.
इस फिल्म ने तीन अकादमी पुरस्कार जीते, जिसमें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए ऑस्कर शामिल हैं.
हालांकि, फिल्म में होसेनफेल्ड का रोल छोटा था. फिल्म मुख्यतः व्लादिस्लॉ के जीवन पर आधारित थी.
A Still From The Film A Pianist (Pic: youtube)
वहीं, विल्म के जीवन पर आधारित एक किताब भी लिखी गई. इसका नाम ‘आई ऑलवेज़ सी दा ह्यूमन बिंग बिफोर मी’ था. इस किताब में विल्म की कहानी बताई गई, जिसे हर्मन विंके द्वारा लिखा गया.
इस किताब में होसेनफेल्ड के पत्र, डायरी और यादों की झलक मिलती है.
विल्म की दर्दनाक मृत्यु
सन 1945 में विल्म को जासूसी करने के जुर्म में सोवियत संघ के अफसरों ने कैद कर लिया. जिस कारण सन 1946 में विल्म ने अपनी पत्नी को खत लिखा और यहूदियों से मदद की गुहार लगाई.
युद्ध के बाद व्लादिस्लॉ ने पोलिश कम्युनिस्ट अधिकारियों से अनुरोध किया कि सोवियत संघ उन्हें रिहा करे. किन्तु, इसे नजरअंदाज कर दिया और 1950 में विल्म को जासूसी के लिए 25 साल की सजा सुनाई गई. बाद में भूख और प्रताड़ना के चलते 1952 में विल्म ने जेल के अंदर ही दम तोड़ दिया.
विल्म की मृत्यु के बाद, व्लादिस्लॉ के अनुरोध पर सन 2008 में इज़राइल की संस्था याद वास्हेम ने विल्म को ‘दा राइटियस अमंग दा नेशन‘ टाइटल से सम्मानित किया. यह संस्था गैर यहूदी लोगों को सम्मानित करती है, जिन्होंने होलोकास्ट के दौरान यहूदियों को बचाने के लिए जोखिम उठाए थे.
विल्म होसेनफेल्ड भले अब इस दुनिया में नहीं हैं, किन्तु उनकी कहानी दुनिया को हमेशा संदेश देती रहेगी कि मानवता और प्यार से बड़ा कोई दूसरा धर्म नहीं होता, कोई राष्ट्र नहीं होता, कोई शासन या शासक नहीं होता!
आप क्या कहते हैं विल्म के इस मानवीय व्यवहार के बारे में?
Web Title: Wilm Hosenfeld, A German Officer who saved Jews, Hindi Article
Featured Image credit: yadvashem