वो साठ का दशक था. तब मनोरंजन के इतने साधन नहीं थे. ले-देकर दशहरा के समय दरभंगा और अयोध्या से आने वाली रामलीला मण्डली का आसरा था.. खेलावन बाबा को पता चलता कि इस महीने गाँव में होने वाली यज्ञ में वृन्दावन, मथुरा से रासलीला मण्डली आ रही है.. फिर तो उनके चेहरे की ख़ुशी देखते बनती थी..
इधर राजाराम पांड़े और पतिराम मिसिर को शादी-ब्याह के मौसम में आने वाली नांच और मेले-ठेले में होने वाली नौटँकी का बड़ी जोर-शोर से इंतजार रहता था. हाँ गाँव के कुछ उत्साही मोहना-सोहना द्वारा दशहरा-दीपावली में ड्रामा भी किया जाता.
गाँव-जवार में बिजली अभी ठीक से आई नहीं थी..दूरदर्शन के दर्शन की कल्पना भी बेमानी थी…किसी गाँव में डेढ़ मीटर लम्बी रेडियो आ जाए तो आस-पास गाँव वाले साइकिल से सुनने पहुंच जाते थे..
Bhojpuri songs history in Hindi, Legend Bhikhari Thakur age (Creative: Team Roar)
भिखारी ठाकुर का भोजपुरी युग
तब भोजपुरी के पहले सुपरपस्टार भिखारी ठाकुर की लोकप्रियता आसमान छू रही थी.. बलिया से लेकर बंगाल,आसाम से लेकर आसनसोल तक वो जहाँ भी जिस मौके पर जाते वहाँ खुद-ब-खुद मेला लग जाता था.. उनके इंतजार में लोग ऊँगली पर दिन गिनना शुरू कर देते थे.. उनका नाटक गबरघिचोर हो या गंगा स्नान. .जनता उनको डूबकर देखती थी.. विदेसिया हो या बेटीबेचवा लोग हंसते-हंसते कब रोने लगते, किसी को कुछ पता नहीं चलता था.
“करी के गवनवा भवनवा में छोड़ी करs
अपने परइलs पुरूबवा बलमुआ..”
ये बच्चे-बच्चे को जबानी याद था..
क्योंकि इन नाटकों के गीत महज गीत नहीं थे.. इन नाटकों के संवाद महज संवाद नहीं थे.. वो मनोरंजन भी केवल मनोरंजन नहीं था.. बल्कि वो मनोरंजन का सबसे उदात्त स्वरूप था..जहाँ भक्ति, प्रेम, वात्सल्य के साथ हास्य और व्यंग का उच्चस्तरीय स्तर मौजूद था..
स्त्री विमर्श की गहन पड़ताल थी तो सामाजिक और आर्थिक विसंगतियों पर एक साथ चोट की जा रही थी…. कुल मिलाकर तब भिखारी सिर्फ एक कलाकार न होकर एक समाज-सुधारक और सन्त की भूमिका में थे.
वही दौर था भिखारी के समकालीन छपरा के महेंदर मिसिर का.. दोनों में खूब दोस्ती थी.. बच्चा-बच्चा जानता कि भिखारी खाली समय में अगर कुतुबपुर में नहीं हैं तो वो पक्का मिश्रौलिया में होंगे..
अपने समय के दो महान कलाकारों की इस गाढ़ी मित्रता की कल्पना मेरे जैसे कई कलाकारों के चित्त आनंदित करती है..
“अंगूरी के डसले बिया नगिनिया रे ए ननदी
संइयाँ के बोला द..”
कौन पूरबिया होगा भला जिसे इतना याद न होगा..” ?
लेकिन साहेब भिखारी-महेंदर मिसिर के बाद एक झटके में जमाना बदला. तब सिनेमा जवान हो रहा था.. भोजपूरी में भी तमाम फिल्में बननें लगीं थी. गोपलगंज के चित्रगुप्त ने तो ऐसा कर्णप्रिय संगीत दिया की आज भी वो गानें अजर-अमर हैं..
लेकिन मुम्बई को छोड़िये..इधर हर गाँव में धड़ल्ले से नांच पार्टी खुल रहीं थीं..वहीं गवनई पार्टी लेकर व्यास जी लोग आ गए थे..
ये व्यास लोग रात भर रामायण महाभारत की कथा को वर्तमान सन्दर्भों के साथ जोड़कर सुनाते..सवाल-जबाब का लम्बा-लम्बा प्रसङ्ग चलता.
बिहार के गायत्री ठाकुर जब हवा में झाल लहरा के गाते की
“कहेले दास ग़इतरी हो
खींच के तीन गो चिचिरी हो
करुणा निधान रउरा जगत के दाता हँईं.”
तो श्रोताओं के हाथ अपने आप जुड़ जाते..
इधर उनके जोड़ीदार बलिया यूपी के बिरेन्द्र सिंह ‘धुरान’ भी माथे पर पगड़ी बांध, मूँछों पर ताव देकर ललकारते. ये जोड़ी पुरे भोजपुरिया जगत में प्रसिद्ध थी.. इन दोनों के चाहने वालों की लिस्ट में टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार भी शामिल थे.
फिर धीरे-धीरे समय बदला.. अस्सी का दशक आया मुन्ना सिंह और नथुनी सिंह का..
भला कौन होगा जिसे ये गाना याद न होगा..
“जबसे सिपाही से भइले हवलदार हो
नथुनीए पर गोली मारे संइयाँ हमार हो..”
फिर चलते हैं नब्बे के दशक में… अब टेपरिकार्डर और आडियो कैसेट मार्किट में आ गया. शहरों से निकलकर गाँव-गाँव इनकी पहुंच आसान हो गयी..
उस समय कैसेट गायकों को बड़े ही सम्मान के साथ देखा जाता था, क्योंकि गायक बनना आसान नहीं था… और कैसेट कलाकार बनना तो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी.. तब वीनस और टी-सीरीज जैसी म्यूजिक कम्पनियां कलाकारों को बुलाकर रिकॉर्डिंग करातीं थीं..
और ये म्यूजिक कम्पनियां उन्ही गायकों का कैसेट बनातीं थीं जिनकी आवाज में कुछ ख़ास होता था.. जिनको दो-चार हजार लोग जानते-पहचानते थे. शायद इसी वजह से जिस गायक का बाजार में कैसेट होता था उसका मार्किट टाइट हो जाता था.. उसे फटाफट दूर-दूर से प्रोग्राम के ऑफर आने लगते थे.. बाकी लोग उससे हड़कते थे..
अरेs मरदे कैसेट के कलाकार हवन ईs”
उसी समय कुछ अच्छे गाने वाले हुए..बिहार में शारदा सिन्हा जी का गाना..
पटना से बैदा बोलाई दs हो
नज़रा गइली गुइयाँ
जब कुसुमावती चाची सुनतीं तो उनका चेहरा ऐसा खिल जाता मानों किसी ने उनके दिल की बात कह दी हो..
भरत शर्मा ‘व्यास’ की समकालीन गायकी
Bhojpuri songs history in Hindi, Bharat Sharma Vyas (Pic: T Series / Youtube)
उसी दौर में भरत शर्मा व्यास..जब गाते कि
“कबले फिंची गवना के छाड़ी,
हमके साड़ी चाहीं..”
तो बलिया जिला के रेवती गाँव में गवना करा के आई मनोहर बो अपने मनोहर को याद करके चार दिन तक खाना-पीना छोड़ देतीं..
वहीं नया-नया दहेज हीरो होंडा पाया सिमंगल तिवारी का रजेसवा जब गांजा के बाद ताड़ी पीने में महारत हासिल कर लेता तो कहीं दूर हार्न से भरत शर्मा की आवाज आती..
“बन्हकी धराइल होंडा गाड़ी
हमार पिया मिलले जुआड़ी..”
फिर इन्हीं भरत शर्मा की ऊँगली थामकर निकले कुछ और गायक.. जिनमे बलिया के गोपाल राय, मदन राय, रविन्द्र राजू और बिहार के विष्णु ओझा ने भी ख़ासा प्रभावित किया..
मनोज तिवारी की ‘बगलवाली’
और ठीक उसी उसी समय एकदम लीक से हटकर एक और गायक कम नेता जी आ गए.. वो थे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बीपीएड की पढ़ाई कर रहे मनोज तिवारी ‘मृदुल’..
दो शैली यहाँ हो गयी भोजपुरी में.. एक भरत शर्मा व्यास वाली शैली थी.. दूसरी थी मनोज तिवारी वाली शैली. शर्मा जी वाली शैली में अभी भी गायत्री ठाकुर और व्यास शैली का प्रभाव था.. लेकिन मनोज तिवारी ने लीक बदल दिया…
“लल्लन संगे खीरा खाली सुनें प्रभुनाथ गाली
घायल मनोज से बुझाली
बगलवाली जान मारेली..”
गायकी के इस नए अंदाज ने धूम ही मचा दिया.. धीरे-धीरे इसमें स्टेज पर लेडीज डांसर के संग नृत्य का तड़का भी दिया जाने लगा.
सीडी / डीवीडी युग की गायकी
फिर साहेब आ जातें है सीधे 2000 में … 2004 आते-आते मार्केट में आडियो और वीसीआर को चुनौती देने के लिए आ गया सीडी कैसेट..
अब हाल ये हुआ कि टाउन डिग्री कालेज से मेलेट्री साइंस में बीए करके गाँव के मनोजवा, मुकेशवा चट्टी-चौराहे पर सीडी की दुकानें खोलने लगे..
यहां तक कि चट्टी के गुप्त रोग स्पेशलिस्ट सुखारी डाक्टर के मेडिकल स्टोर पर भी फ़िल्म सीडी मिलने लगी.. जहाँ सुविधानुसार हर तरह की फिल्में यानी लाल, पिली, नीली किस्म की फिल्में आसानी से मिल जातीं थीं.. मुझे याद नहीं कि नानी का गेंहू बेचकर भाड़े पर मिथुन चक्रवर्तीया और सनी देवला की कितनी फिल्में देखि होंगी..
तब जिनके यहाँ गाँव में पहली दफा सीडी आई थी, उनके यहाँ बिजली आते ही मेला लग जाता था..
इस माहौल का ध्यान रखते हुए उस समय भोजपुरी की म्यूजिक कम्पनियों ने एक नया ट्रेंड निकाला.. वो था भोजपुरी म्यूजिक वीडियो सीडी.
टी सीरीज तब भी इस मामले में नम्बर एक थी..उसने मनोज तिवारी के सुपरहिट एल्बम बगल वाली, सामने वाली, ऊपर वाली, नीचे वाली, पूरब के बेटा, सबका वीडियो बना डाला..
फिर हुआ क्या कि लोग जिसे आज तक आडियो में सुनते थे..और कैसेट के रैपर पर छपे गायक को बड़े ध्यान से देर तक देखते थे.. लोग उसे वीडियो में नाँचते-और झूमते देखने लगे. इसी चक्कर में टी-सीरीज ने भरत शर्मा और मदन राय के तमाम पुराने गीतों का इतना घटिया फिल्मांकन कर दिया जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते हैं.. वो घटिया इस मामले में कि गाने का भाव कुछ और, तो वीडियो में कुछ और दिखाया जाने लगा..
फिर आया समय 2002.. मार्केट में आ गईं कल्पना..
“एगो चुम्मा ले लs राजाजी बन जाई जतरा..’
बिहार के भूतपूर्व संस्कृति मंत्री बिनय बिहारी जी के इस गीत ने मार्केट में तहलका मचा दिया..
… और जब निरहुआ सट गया
और करीब एक साल तक इस गीत का जबरदस्त प्रभाव रहा..फिर कुछ ही सालों में आ गए.. जिला गाजीपुर के दिनेश लाल यादव “निरहुआ..”
“बुढ़वा मलाई खाला
बुढ़िया खाले लपसी
केहू से कम ना पतोहिया पिए पेपसी
बुढ़वा मलाई..
दिनेश लाल के इस खांटी नए अंदाज को जनता ने हाथो-हाथ लिया. फिर क्या था टी-सीरिज ने झट से इस मौके को लपका और मार्किट में आ गया उनका अगला एल्बम… “निरहुआ सटल रहे”
इस कैसेट के आते ही समूचे भोजपुरिया जगत में धूम मच गई..और हाल ये हुआ कि कुछ दिन पहले महज कुछ हजार लेकर घूम-घूम बिरहा गाने वाले दिनेश लाल यादव रातों-रात स्टार हो गए..
पवन सिंह से खेसारी लाल यादव तक …
Bhojpuri songs history in Hindi, Pawan Singh (Pic: Youtube)
ठीक उसी समय कुलांचे भरने लगा आरा जिला का एक और सीधा-साधा सा गायक, जिसकी आवाज किसी निमोनिया के मरीज की आवाज की तरह लगती थी.. आज दुनिया उसको पवन सिंह के नाम से भले जानती है.. लेकिन पवन अपने शुरुवाती दिनों में सबसे मरीज किस्म के गायक हुआ करते थे. लेकिन शायद ईश्वर की कृपा.. कुछ ही सालों में पवन की आवाज में निखार और भाव आना शुरू हुआ..
और वो मार्किट में टी सीरिज से वीडियो सीडी लेकर आ गए.. “खा गइलs ओठलाली”.. एकदम आर्केस्ट्रा के अंदाज में.. मूंछो वाले दुबले-पतले पवन सिंह एक्टिंग और डांस के नाम पर दाएं और बाएं हाथ को हिलाते हुए..गाते कि..
“रहेलाs ओहि फेरा में बहुते बाड़ा बवाली..”
तो हम जैसे सात में पढ़ने वाले लड़कों को भी इस बेचारे गायक पर तरस आता.. लेकिन “निरहुआ सटल रहे” की ऊब के बाद पवन ने मार्केट में एक नए किस्म का टेस्ट दे दिया..उनका एल्बम तब बजाया जाता जब लोग निरहुआ सटल रहे दो-चार बार सुनकर ऊब जाते..
उधर समय बदला निरहुआ स्टार होकर फिल्मों में चले गए….मनोज तिवारी स्टार हो चुके थे.. एक के बाद एक उनकी फिल्में सुपरहिट हो रहीं थीं. तब तक पवन सिंह फिर आ गए..
“बड़ा जालीदार बा तहार कुर्ती” लेकर..
इस एल्बम का नाम था कांच कसैली..
इसने भी मार्केट में धूम मचा दिया.
और यहीं से शुरु हुआ भोजपुरी संगीत का पवन सिंह युग..जो लगातार पांच साल तक अनवरत चला. पवन ने म्यूजिक का ट्रेंड ही बदल दिया.. एकदम बम्बइया सालिड डीजे टाइप का म्यूजिक… और हर एल्बम में हर वर्ग के लिए हर किस्म के गाने गाए..
ये दौर ऐसा चला कि नवरात्र हो या सावन, होली हो या चैता.. जहाँ भी जाइए बस पवन सिंह.. हाल ये हुआ कि भोजपुरी मने पवन सिंह हो गया.. पवन ने कुछ साल तक एकक्षत्र राज किया.. और झट से फिल्मों में मनोज तिवारी, निरहुआ के बाद तीसरे गायक अभिनेता हो गए…
इसके बाद पवन की स्टाइल में कुछ बाल गायक भी पैदा हुआ.. जैसे कल्लू और सनिया.. ये भी एक दो साल बाद गायब होने लगे.. लेकिन बाल गायक वाला ट्रेंड इतना जोर पकड़ा की बड़े-बड़े लोग अपने बेटे-बेटी को पढ़ाई छुड़ा के अश्लील गायक बनाने लगे.
फिर पवन के फिल्मों की तरफ जानें के बाद कुछ ही साल में आ गए सीवान के खेसारी लाल यादव… एकदम देशी अंदाज… शादी ब्याह में औरतों के गाए जाने वाले गीत. उन्हीं के अंदाज में. बस जरा अश्लीलता की छौंक और गवनई का तड़का..
अब जो पवन सिंह ने भोजपुरी को धूम-धड़ाका और डीजे में बदल दिया था..उसे खेसारी लाल ने एकदम देहाती संगीत यानी झाल, ढोलक, बैंजो वाले युग की तरफ़ मोड़ दिया.
इस मुड़ाव के बाद हुआ क्या कि 5 साल से रस-परिवर्तन खोज रही जनता ने इसे भी हाथों-हाथ ले लिया. कौन ऐसा भोजपुरिया कोना होगा.. जहाँ
“संइयाँ अरब गइले ना” नहीं बजा होगा..”
कौन ऐसा रिक्शा, ठेला, जीप, बस, ट्रक वाला नही होगा जो खेसारी के गीतों से अपनी मेमोरी को फूल न कर लिया होगा..
इधर कुछ सालों में फिर समय बदला है..मनोज तिवारी, निरहुआ, पवन सिंह के बाद खेसारी लाल यादव भी फिल्मी दुनिया के हीरो हो गए..
और इस ट्रेंड ने भोजपुरिया गायकों के दिमाग एक बात भर दिया कि
“गायकी में हिट तो फिलिम में फिट”
अब हर भौजपुरी गायक खुद को गायक नहीं हीरो मानने लगा..
इन्टरनेट के ज़माने में भोजपुरी का हाल भी सुन लीजिये …
Bhojpuri songs history in Hindi, Soft Porn age (Pic Collage: Youtube / Team Roar)
इधर बाजार का हाल बुरा था..आडियो गया. वीडियो सीडी गया.. हाथों-हाथ आ गया स्मार्ट फोन.. पेनड्राइव, लैपटाप, डाऊनलोड और डिलीट.. कॉपी और पेस्ट..
इसी चक्कर में भोजपुरी की म्यूजिक इंडस्ट्री भी एकदम से बदल गयी. कई म्यूजिक कम्पनियां बिक गयीं.. तो कई का धंधा चौपट होने के कारण बन्द हो गयीं..
कारण बस ये कि आज हर जिले में एक दर्जन म्यूजिक कम्पनी हैं तो डेढ़ दर्जन रिकॉर्डिंग स्टूडियो.. जिनमें हर जिले के हज़ारों भोजपुरी गायक गा रहे हैं तो क़रीब लाख अभी रियाज मार रहे हैं..
आज हर गांव में पच्चीस गायक अभिनेता हैं.. जो एक घण्टे में हिट होकर मनोज, निरहुआ, पवन और खेसारी की तरह मोनालिसा के कमर में हाथ डालना चाहतें हैं…
इस हीरो बनने के चक्कर में इनके गाने सुनिए तो वो सीधे सम्भोग से शुरू होते हैं और सम्भोग पर ही आकर खत्म हो जातें हैं.. यानी “तेल लगा के मारम, त पीछे से फॉर देम, त तहरा चूल्हि में लवना लगा देम, त सकेत बा ए राजा अब ना जाइ. त खोलs की ढुकाइ….
ये छोटी सी बानगी भर है. यू ट्यूब खोलिये तब आपको पता चले कि जो जितना नीचे गिर सकता है.. उतना ही वो सुपरहिट है..
इसका बस एक ही कारण है..वो है म्यूजिक कम्पनीयों की आय का एक मात्र साधन.. ऑनलाइन…गूगल, यू ट्यूब.. वो उसी गीत-संगीत में पैसा लगाना चाहतीं हैं जो इंटरनेट पर जल्दी-जल्दी पापुलर हो जाए. मारकेटिंग भी एकदम बदल गयी है.
अब पहले वाली बात तो रही नहीं..अब होता क्या है कि कुछ कम्पनियां अपने आडियो या विडीयो गाना और हंगामा टाइप टॉप लेबल की वेबसाइट्स को बेच देतीं हैं.. लोग उनको जितनी मात्रा में सुनते हैं, म्यूजिक कम्पनी को एक फिक्स रेट के अनुसार पैसा मिल जाता है.. लेकिन वो इतना नहीं होता कि उसमें खुद को म्यूजिक कम्पनी कहा जा सके..
इस दुर्दशा में पैसा कमाने का सबसे आसान सा तरीका बचता है… YouTube.
आज यू ट्यूब ने घर बैठकर पैसा कमाना इतना आसान कर दिया है कि कोई भी आसानी से वीडियो बनाकर अच्छे-खासे पैसे डाइरेक्ट अपने अकाउंट में माँग सकता है..
अब जरा इसकी मार्केटिंग समझतें हैं.. तब जाकर हम समाधान की तरफ जाएंगे..
“यू ट्यूब से इनकी कमाई कैसे होती है “?
वो होती है विज्ञापन से.. गूगल अपने विज्ञापन इन वीडियो के शुरुआत, बीच, अंत और साइड में दिखाता है.. आसान सी बात है जिसका वीडियो जितना ज्यादा देखा जाएगा..उतने ज्यादा विज्ञापन शो होंगे और जिसने वीडियो बनाया है उसको उतने ही ज्यादा पैसे मिलेंगे..
यू ट्यूब हजार व्यू के कम से कम 20-50 रुपया से लेकर 400- 500 रुपया तक भी देता है. ये निर्भर करता है आपके कंटेंट और चैनल की लोकप्रियता.और किस लोकेशन में ज्यादा देखा जा रहा इसके उपर..
अब सवाल है कि ऑनलाइन लोकप्रियता किस पर निर्भर करती है.. और भोजपुरी म्यूजिक कम्पनीयाँ साफ्ट पोर्न का हब क्यों बनतीं जा रही हैं..?
क्योकि हिंदुस्तान हमारा इंटरनेट का सबसे अधिक प्रयोग पोर्न देखने में करता है..
जहाँ भी लड़के-लड़की सटे हुए दिख गए… उस विडिओ के लिंक पर लोग पक्का क्लीक करेंगे.. ये सब जानते हैं..
यू ट्यूब पर चैनल बनाए म्यूजिक कम्पनीओ को भी ये बात अच्छे से पता है.. सो वो गायक बेसुरा है कि बेताला है.. घटिया है कि खराब है, इससे मतलब नहीं..मतलब ये है की उसके गीतों का कितना अश्लील वीडियो बनाया जा सकता है..
कितने मिलियन व्यूज पाए जा सकतें हैं..
बस इसी व्यूज के चक्कर में घुसा देम,ड़ाल देम टाइप का वीडियो धड़ल्ले से हजारों की संख्या में रोज बन रहा.. जिनके ब्यूज और हिट्स देखकर आप कपार पीट लेंगे, किसी का पच्चीस लाख ब्यूज है तो किसी पर चालीस लाख.. तो किसी का करोड़ में जा रहा है…
सहसा मुँह से निकलता है..हाय ! ये महेंद्र मिसिर, भिखारी ठाकुर.. भरत शर्मा और शारदा सिन्हा जी की भोजपुरी को क्या हो गया ?
अब समाधान कैसे होगा..?
जी समाधान तो तब होगा जब इन्हीं के अंदाज में इन्हीं के हथियारों से इन्हीं के खिलाफ इनसे लड़ा जाएगा..लेकिन लड़ाई होगी तो कैसे.. महज दो-चार लोग.. इन लाखों का सामना कैसे करेंगे..?
ये भी हो सकता है लेकिन कौन समझाने जाए हर जनपद में बने उन भोजपुरी अस्मिता के तथाकथित संगठनों को, जिनमें दूर-दूर तक कहिं एकता नहीं है..
कोई किसी के प्रयास को बर्दास्त नहीं कर सकता है…
दरअसल इनकी गलती भी नहीं..
भोजपुरी के नाम पर बने ये संगठन भोजपुरी की अस्मिता से ज्यादा व्यक्तिगत राजनीती चमकाने वाली दूकान बनकर रह गए हैं..
दो-चार संगठन अच्छा जरूर करते हैं, लेकिन वहां भी व्यक्तिगत आकांक्षा वश कुछ लोगों को प्रश्रय दिया जाता है.. जिनका प्रभाव भी महज कुछ हजार लोगों तक है .. सताईस लाख और चालीस लाख तक पहुंच की कल्पना करना बेमानी है..
क्या कहें.. भोजपुरी का ये विकृत स्वरूप भोजपुरी की आत्मा को मटियामेट कर रहा है, रक्षा करनी है तो सबको एक साथ आना पड़ेगा.. यदि भोजपुरी के सैकड़ों यू ट्यूब चैनल अश्लीलता परोस रहे तो उतने ही अच्छे चैनल बनाकर सबको उसे मिल जुलकर इस ऑनलाइन गन्दगी से लड़ाई लड़नी पड़ेगी. सबको मिलकर बेहतर और साफ़-सुथरा कंटेंट प्रमोट करना पड़ेगा.. इस ऑनलाइन अश्लीलता के खिलाफ एक साइबर-वार छेड़ना पड़ेगा… क्योंकि आज भी अच्छा सुनने वालों की कमी नहीं है…
वरना भोजपुरी तो अश्लीलता का पर्याय बन ही चुकी है.. संविधान की आठवी अनुसूची में भी शामिल हो हो जाएगी, लेकिन फायदा क्या होगा जब भोजपुरी में भोजपुरी गायब हो जाएगी..शरीर से आत्मा ही निकल जाएगी.. और रह जायेगा मृतक शरीर के रूप में अश्लीलता … सिर्फ अश्लीलता …
Web Title: Bhojpuri songs history in Hindi, From Melodious to Soft Porn age
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