भगौती का सरसों कल परसों से उदास है. सीमंगल के घर से मटर की खबर लेने कोई नहीं आया, ददन के खेतों में अरहर के फूल हुलसते हैं कि ददनवा अब उनका हाल-चाल लेने आयेगा… मन्टुआ बरसेम काटता है, सरसों के फूल हिलते हैं. सिलवट पर मसाला पिसती पिंकिया का हरियर दुपट्टा कब पियर हो जाता है, उसे भी पता नहीं चलता.
खेदन बो भौजी का नन्हका जब मटर की छीमी को दांत से दबाता है, मटर के रस से उसके दूधिया दाँत हरे हो जाते हैं.अचानक पछुआ बहती है.. भौजी पल्लू को सम्भालती हैं.. सूप में पुरनका गेंहू फटकते हुये याद आता है.. अरे! अभी तो नवका गेंहू में पानी भी चलाना है.. चनरमा के चने पर पहरेदारी है, सो चनरमा बो परसो रात से गांव भर के टीनहीया लौंडो को गरिया रही हैं. टोला-मोहल्ला में ई बात हवा की तरह फैल गयी है कि चना तो दूर किसी ने एक माटी का ढेला भी छु दिया तो भौजी उसके जियत जिनगी में चरस बो देंगी. भौजी से सिर्फ चनरमा ही नहीं पूरा गाँव डरता है और फागुन में उनको मरखहवा भौजी कहता है.
इधर कल पता चला है कि चार फिट दस इंच का मनोहरा आज चार दिन से घर नहीं आया है.. मेहरारू है कि बेचारी रोये जा रही. नइहर से भाई आ भतीजा आए हैं. परसो बड़की भतीज का बियाह है.अभी तक एको साड़ी में फाल नहीं लगा.. टिकुली सेनुर आ चूड़ी की तो बात ही मत कीजिये.. मनोहर कहे थे कि नवेडा से आएँगे तो नइहर घुमाएंगे.. लेकिन मनोहर बो कवन मुंह लेके नइहर जाएं. जब मनोहर घर ही नही है.. भौजी उदास होकर बैठ जाती हैं.. फागुन का घाम हियरा के चाम को झुलसाने लगता है. आधी रात तक मनोहर तो नहीं आते, लेकिन कहीं जोर से आवाज आती है.. बहन मायावती जिंदाबाद, भाजपा जिंदाबाद, कांग्रेस जिंदाबाद, समाजवादी पार्टी जिंदाबाद.. भौजी का मन करता है.. जाकर उस लाउडस्पीकर में आग लगा के इस आवाज को हमेशा के लिये बन्द कर दें..
“तोहरा चुनाव के उफ़्फ़र न पड़ो..”
लल्लन के बाबूजी को आज दो दिन से दमा उखड़ गया है.. कराह रहे हैं.. खांस-खांस के बुरा हाल है… घर में एक लगहर भी तो नही है कि लल्लन बो उनकी सेवा-पसेवा करें. लेकिन बाउजी का करेंगे जी! वो तो सुबह-शाम अपने लल्लनवा को गरिया कर सो जाते हैं.. बुढ़िया आजी कहती हैं कि लल्लनवा के बुद्धि में गोबर घोरा गया है.. लल्लन का बड़का बेटा बबलुआ कहता है कि “बाबा की तबियत भले बिगड़ जाए लेकिन चुनाव में पार्टी का बूथ मैनेजमेंट नहीं बिगड़ना चाहिए.”
लालसाहेब के घर परसो बियाह था.. लोग-बाग़ आए थे. हल्दी,मटकोर, नछु-नहावन हुआ.. हीत-नात, तिलकहरू भी…
वोट मांगने एक नेता जी भी आ पहुंचे… आये तो दो हजार का नेवता देकर दांत चियार दिए.. लगे हाथ जोड़ने कि “साहेब हमारी इज्जत आपके ही हाथ में है.. आप ही हमारे माई-बाप हैं… हम आपके सेवक हैं.. हम आप ही के बेटा हैं..”
हाय! लोग नेताजी का मुँह ताक रहे थे.. अले ले ले.. कितने निम्मन हैं नेताजी.. बिलकुल अपने बाप पर गए हैं.. वो भी जब वोट मांगने आते थे तो पगड़ी खोलकर हमारे गोड़ पर रख देते थे…..”
लोग इसी में लहालोट हैं.. किसी ने नहीं पूछा कि “ए नेताजी …हऊ भगौतीया अपना सरसों छोड़कर आपके पीछे-पीछे क्यों घूम रहा है ? ददनवा को गाँव भर बड़ा शरीफ समझता था..आजकल वो अपना खेती-बारी छोड़कर दारु पीने लगा है.. सुना है आपके यहाँ रोज शाम को दारू मुफ़्त में मिलता है..
Election Time in Village, Hindi Satire, Village Women (Pic: The Better India)
और तो और मनोहरा इसी दारू-गांजा के चक्कर में घर नहीं आ रहा… कि मेहरारू उसकी नइहर जाए..?
ए नेताजी पांच साल बाद क्यों आए हैं ? ये बेरोजगारों की फौज कब तक आप अपने आगे-पीछे घुमाते रहेंगे.. जिस सड़क से आए हैं वो कब तक डिलिवरी रोड बनी रहेगी ?
अगले महीने से बबुआ का बोर्ड एग्जाम है.. कोटा का किरासन तेल तो कोटेदार आपके साथ मिलकर पी जाता है.. अरे! कम से कम समय-समय से बिजली तो दे दीजिये.. गाँव के आस-पास शुद्ध एक डिग्री कालेज नही है कि लड़कियां बारहवीं के बाद थोड़ा पढ़-लिख लें.. वरना लालसाहेब की बेटी का बियाह अब्बे हो जाता.. अरे ! कितनी छोटी तो थी अभी.. पढ़ने में इतनी तेज कि गाँव के बड़े-बड़े पढ़निहार उसके सामने पानी मांगनें लगते थे.. लेकिन लालसाहेब को हिम्मत न हुई कि बेटी को शहर में पढ़ाने के लिए भेजें.. सो शादी कर दिया…
ए नेता जी..एक अस्पताल की मांग गाँव कब से कर रहा ? जवन छोटका आपको पानी पिला रहा. आप जानते हैं उसकी माँ कैसे मर गयी ?.. अरे ऊ जिउत कोंहार का नाती है.. पर साल उसकी माँ जिला अस्पताल ले जाते-जाते मर गयी..”
अरे आप क्या जानेंगे.. आप तो बिसलेरी पीते हैं. यहाँ गाँव के पानी में इतना न आर्सेनिक हो गया है कि वो पानी पीने क्या छूने लायक भी नही..
लेकिन अफ़सोस कि किसी ने ये नही पूछा. उलटे सब इसी में अघाय रहे हैं कि हमारे दुआर पर हमारे जाति के विधायक जी आए हैं..हमारा मनोहरा विधायक जी के साथ घूमता है..भगौतीया को विधायक जी रोड बनवाने का ठेका दिलवा देंगे.इनके विधायक बनने के बाद ददनवा खुलके दारु बेचेगा. कोटेदार जो खुशामद कर रहा वो और ज्यादा कमायेगा.
ओह ! गाँव का हाल देखकर अजीब लगता है.
लगता है.. लगता है गांव में गाँव नहीं हैं.. जातियाँ हैं.. बस आदमी की कमी है.. इस कमी के पहाड़ पर जातिवाद की फसल लहलहा रही है.. उन पौधों की जड़ों में राजनीति घुसी है, तो तने में नेता जी.. जब खेती ही नफरत की हुई तो आदमी कहाँ से पैदा होंगे.. ??
कई दिन से एहसास हो रहा है कि..सब हो रहा.सब ऐसा ही होता आया है..आगे भी चुनाव होगा.पीछे भी होता आया है, लेकिन वोट मांगने दरवाजे पर आये अपनी जात के नेताजी से पूछने की आदत पता न कब डाली जायेगी ? कब आँख में आँख मिला के पूछ पाएंगे कि “ए नेताजी..हम सिर्फ अपनी-अपनी चिंता कब तक करेंगे..? जियत जिनगी भर हमारा गाँव, शहर,कस्बा अइसे ही रहेगा क्या..?
लेकीन निराशा हाथ लगती है. शायद राजनीति अभी इतनी नहीं बदली की लोगों को मानसिकता बदल जाये. अपने-पराये के चक्कर में आदमी पीछे छूट गया है और जाति के चक्कर में गाँव..
Election Time in Village, Hindi Satire, Village Situation (Pic: ndtv)
Web Title: Election Time in Village, Hindi Satire, Atul Kumar Rai
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