चस्का जिस चीज का लगे एक बार लगे तो छुड़ाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है. ये किसी लाईलाज बिमारी से कम नहीं जिसका कोई इलाज अभी तक तो इजाद नहीं हुआ है. इस बीमारी की चपेट में एक बार इन्सान आ जाये तो बाहर निकालना बहुत ही कठिन कार्य होता है. वैसे भी कहते हैं, खाली दिमाग शैतान का घर होता है और दिमाग किसी महिला का हो तब तो पूछो ही ना.
इनका खाली दिमाग तो नित नए चस्के का घर बन जाता है. इधर बच्चे बड़े हुए और उधर हम जैसी महिलाएं खाली हुई. फिर लगेगा किसी को सास-बहु के नाटक देखने का चस्का, तो किसी को नारद मुनि बनने चस्का यानी बातें इधर उधर करने का चस्का, किसी को सजने संवरने का तो किसी को शोपिंग का चस्का लगते देर नहीं लगती. ऐसे ही एक चस्के की चपेट में पिछले दिनों हम आ गए थे. पूरे परिवार ने लाख समझाया बुझाया पर सब बेकार गया.
हमारे बच्चे भी बड़े हो गए थे और अपने कामों में व्यस्त हो गए थे. हमारा दिन काटना मुश्किल होता जा रहा था. अब हम शहर की औरतों के पास गांवो की औरतों की तरह काम तो होते नही हैं… पानी भरना.. सानी करना.. खेत पर जाना.. घर की सफाई आदि आदि. और घर भी छोटे छोटे, उनमें भी आधे काम महरी कर जाती है, सो हमें तो मन लगाने को ही कुछ काम चाहिए था. हम अपना दिन हाथ में रिमोट लिए टीवी के सामने बैठ कर पास करने लगे और एक दिन हमें रियलटी शो देखने का ऐसा चस्का लगा कि हम उससे जुड़ते ही चले गए.
टीवी पर गायन प्रतियोगिता के एक रियलटी शो देखने के चस्के ने, पता नहीं कब हमें गायिका बनने का सपना दिखा डाला और उस शो को देखकर मानो हमारी अंतरात्मा ने हमें झिंझोड़ा और कहा कि उठो, चलो और गायिका बनो, तुम्हारे अन्दर इतना टेलेंट भरा पड़ा है कि बस थोड़ी सी मेहनत से ही तुम ये शो जीत सकती हो.
और हम जुट गए गायिका बनने की तैयारी में और शुरुआत सबसे पहले बढ़िया सा हारमोनियम खरीदने की जिद करने से की. जब पतिदेव ने मना किया और समझाने की कोशिश की “डार्लिंग तुम्हे हर चीज का चस्का चार दिन के लिए लगता है फिर तुम बोर हो जाती हो, क्यों इतना महंगा हारमोनियम खरीदना है.. पिछली बार इतनी महंगी साईकिल खरीदी वो आजतक धूल खा रही है. तुमने चार दिन भी नहीं चलाई और वो सिलाई मशीन जो तुम अपनी सहेली को देखकर लाई थी, कढ़ाई सिलाई का चस्का लगा था जब, वो भी स्टोर रूम की शोभा बढ़ा रही है….”
पतिदेव कुछ और बोलते उससे पहले हमने उनकी बात काट दी और रूठने के अंदाज में बोले “आप ही बताइए हम आपसे जेवर या महंगे मोबाइल की जिद करते हैं कभी और ये छोटे छोटे शौक पूरा करने की भी हैसियत नहीं है क्या हमारी?” वो साईकिल तो हमने पूरे 10 दिन चलाई थी. याद नहीं आपको और जो पजामा आपने पहना है उसी मशीन पर सिला था हमने, बात करते हैं हां नहीं तो … आपको तो पता भी नहीं है छठवी से आठवीं तक हमने संगीत की पढाई की है और उसमें पास भी हुए हैं. हमारे अन्दर गायिका बनने की प्रतिभा पहले से ही है, वो तो हमारी शादी जल्दी कर दी गयी वरना हम भी अच्छी गायिका होते और हम कुछ अच्छा करेंगे तो आपका ही नाम तो होगा, फिर एक उभरती प्रतिभा के रास्ते में रोड़े अटकाने का काम क्यों कर रहे हैं?”
अब पतिदेव के पास सिवाय चुप रहने के कोई और रास्ता नहीं बचा था. वैसे भी आज तक हमसे बातों में कोई नहीं जीत सका तो उनकी क्या मजाल जो हमसे बहस करें. वैसे भी आजतक जिस जिस बात का चस्का हमें लगा है, हमने उसे पूरा करके ही छोड़ा है. सो गायिका बनने के ख्बाब को भी हम पूरा करने की ठान ही चुके थे, सो उसके बाद तो हम कठिन साधना में जुट गए. हमें तो ऐसा चस्का लगा कि हम घर काम भी उलटे पुल्टे जल्दी जल्दी निपटा कर… अपनी संगीत की रियाज में जुट जाते और बेसुरी आवाज में सरेगामापा गाते. वैसे भी उसके अलावा हमें कुछ आता भी नहीं था. बच्चे और पतिदेव सारे घर के खिड़की दरवाजे बंद करते फिरते… हम खुश होते कि हमारा ख्याल रख रहे हैं… बाहर की आवाजें हमारे रियाज में खलल पैदा ना करें इसलिए कर रहे हैं, खैर बहुत देर बाद ये बात समझ में आई कि असल में तो वे बाहर वालों का ख्याल रख रहे थे, उन्हें मेरे बेसुरे संगीत से बचा रहे थे.
बेचारे पतिदेव और बच्चे हमें समझाने का लाख प्रयास करते रहे, पर हमें तो गायिका बनने का मानो भूत सवार हो गया था. हारकर पतिदेव ने घुटने टेक दिए और बोले, “ऐसा करिए श्रीमती जी यदि आपको गायिका बनना ही है तो आप किसी अच्छी संगीत टीचर से संगीत की शिक्षा ग्रहण करना शुरू कर दीजिये.” (असल में तो वे घर की शांति को बचाने के लिए हमसे पीछा छुड़ा रहे थे)
हमें भी उनका ये प्रस्ताव बहुत अच्छा लगा और खुश होकर उनसे लिपट गए, “आप कितने अच्छे हैं हमारा साथ दे रहे हैं.. जब हम वो रियलटी शो जीतेंगे ना तो आपको धन्यवाद जरुर करेंगे जी” हमने प्यार भरे स्वर में कहा और अब शुरू हुई संगीत टीचर की खोज जो हमारी उम्र और संगीत ज्ञान की वजह से बहुत ही ज्यादा मेहनत और प्रयास के बाद मिली. हमारी संगीत टीचर या तो बहुत बहादुर थीं या शायद उनकी कोई मज़बूरी ही होगी, जो वो हमें संगीत सिखाने के चैलेन्ज को स्वीकार कर लिया था. उनकी एक ही शर्त थी कि मन लगा कर सीखें और घर पर रियाज जरुर करें.
तब हम भले ही खुद को दूसरी लता या आशा समझ रहे थे.. संगीत का धुरंधर मान रहे थे पर आज हमें सत्य का भान हो चुका है.
हमारी दो घंटे की क्लास होती, शुरू में तो हमें बहुत आनंद आता रहा और हमारी मास्टरनी जी भी बड़े शांत भाव से हमें मन लगा कर सिखातीं रही… हम घर पर भी रियाज कर रहे थे. आखिर टीचर जी ने कहा था न पर यदि हारमोनियम पर उँगलियाँ चलती तो सुर खो जाते और सुर पर ध्यान देते तो उँगलियाँ फिसल जाती. वैसे भी सुर तो जैसे हमारी बेइज्जती कराने की ठान ही चुके थे. हमारे लिए सिर्फ बेसुरा शब्द बहुत कम था पर हमें खुद पर इत्ता भरोसा था कि संगीत विशारद मास्टरनी जी भी अल्पज्ञानी टाइप नजर आ रही थी.
हमें संगीत की शिक्षा लेते हुए कई महीने बीत चुके थे. हमारी मैडम जी भी हमारे स्वर में और भेजे में सुरताल की समझ आने की उम्मीद खोने लगीं थी. बल्कि हालत ये होने लगी थी कि हमें सिखाते हुए वे खुद अपने स्वर भूल जातीं थीं और बेसुरी हो जाती थी. उनका धैर्य भी खत्म होने लगा था पर अपनी भावनाओं को काबू में रखकर वे किसी तरह हमें सिखाने की कोशिश करने के साथ साथ पीछा छुड़ाने के प्रयास में भी लगीं थी… वे अक्सर किसी न किसी बहाने से छुट्टी करने लगीं… कभी फोन करके बताती कभी-कभी तो वो जहमत भी ना उठाती. एक आध बार तो धीरे से समझाने की कोशिश भी की कि हम गायिका बनने के अलावा कोई और सपना देखें, पर हम अपने गायिका बनने के चस्के में उनकी भावना समझ ही नहीं पा रहे थे.
धीरे धीरे ऐसा वक्त आया की संगीत गुरुनी जी हमें गाने से रोकने लगी, उनके घर सीखने जाते तो सिखाने के वक्त सारा समय खुद गाती रहती और जैसे ही हम गाना चाहते खुद उठकर किसी काम में लग जातीं या काम का बहाना कर हमें टरका देती. हम बड़े परेशान से तो थे पर एक मेहनती और ईमानदार छात्र की तरह अपने रियाज में लगे रहते और जाकर बताते… हद तो तब हुयी जब उन्होंने एक दिन हमें कहा कि रियाज का कोई फायदा नहीं सिवाय घर की शांति भंग करने के. हमें लगा कि टीचर जी ने हमारी बेइज्जती करने की कोशिश की है पर हम ठहरे बहादुर ..हमने हिम्मत नहीं हारी और उनसे मासूम बच्चे वाले अंदाज में बोले, मैडम अब तो ऑडिशन भी शुरू होने वाले हैं रियाज तो जरुरी है ना?
हमारा सवाल सुनकर टीचर जी ऐसे भड़की मानो करेंट का तार छू गया हो “ कैसा ऑडिशन? तुम जाओगी ऑडिशन में जिसे संगीत का सा भी नहीं आता.. नाक कटाओगी हमारी… तुमसे ज्यादा बेसुरा इन्सान मैंने आजतक नहीं देखा… कान खा जाती हो, सिर दर्द हो तुम…. पता नहीं क्या मुसीबत आई थी कि मैं तुम्हे सिखाने के लिए मान गयी. एक स्वर नहीं सिखा पाई, हार गयी मैं तुमसे!
माफ़ करो मुझे, वो दोनों हाथ जोड़े मेरे सामने जो मुहं में आये बोलती जा रही थी उनकी सब्र का बाँध पूरी तरह टूट चुका था और उस बाढ़ का असर हम पर हो रहा था… हमारी आँखों के आगे जैसे तिलुले नाच रहे थे, कुछ नजर नहीं आ रहा था. उस दिन सच में किसी ने हमें बहुत ऊंचाई से धक्का दिया था. झटका तो बहुत बड़ा लगा था पर मानो हमारा शाक ट्रीटमेंट मिला था. वहां से बिना कुछ बोले हम चुपचाप अपने घर की तरफ चल पड़े थे. अंतर्मन में गीत बज रहा था ‘बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले”.
घर पर भी हम किसी से बिना कुछ बोले सोने की एक्टिंग करने लगे… पर उस दिन हमारा सपना टूटा था गायिका बनने का सपना नीन्द कैसे आती भला? सबने जानने की बहुत कोशिश की, पर अपनी बेइज्जती की दास्तान कोई खुद सुनाता है क्या? वैसे भी समझ में आ चुका था ये गायिका बनना हमारे बस की बात नहीं. परिवार के लोग खुश थे. घर पर शांति थी, ना रियाज… ना टीवी… और समय से सारे काम काज.. हम खुश थे. बच गए वरना इस चस्के के चक्कर में कहीं पहुँच गए होते ऑडिशन देने तो … बेसुरा वीडियो सारा देश देखता और हम पर हँसता… हे भगवान अच्छा किया बचा लिया वरना ये चस्का तो हमे कहीं का ना रखता.
Hindi satire on being singer, Child Singer (Pic: bsnscb.com)
Web Title: Hindi satire on being singer
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