शराब के दुश्मनों, कैसे हो? शर्म नहीं आती शराबबंदी का ऐलान करते हुए. ये देवताओं का देश है. पहले सुरा से सुर हुए, फिर नर हुए, फिर मुनि. तुम असुरों ने हम पर बोतल फेंक के मारी है, वो भी दूध की…
तुम लोग तो साहित्य के भी दुश्मन हो. हरिवंशराय बच्चन की आत्मा कितनी तड़प रही होगी. जिस मधुशाला से हिंदी कविता को नई ऊंचाइयां हासिल हुईं, तुम धड़ाम से गिरा देना चाहते हो. बच्चन जी आ जाओ, कसम से गले लगाकर रोने का मन कर रहा है! इन नादानों को नहीं मालूम कि ये क्या कर रहे हैं. आपने लिखा था ‘मंदिर मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला’. ये लोग ओम प्रकाश और अब्दुल्ला को मिलने ही नहीं देना चाहते. मयकदा ही तो वह पवित्र स्थल होता था जहाँ जात-पात, उंच नीच, अफसर-बाबू की दीवारें ढह जाती थीं. शिवालों में चप्पल चोरी हो जाते थे लेकिन मधुशालाओं में तो दिल चुराए जाते थे. साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए मयखानों की जरूरत है कि नहीं!
ये अज्ञानी एक ओर कहते हैं साँच बराबर तप नहीं दूसरी ओर दारु बंद करवा सच को बंद करवा देते हैं. एक शेर अर्ज़ है
वो शख्स बार बार झूठ बोल रहा है
लगता है उसने अब तलक शराब नहीं पी
शराब को बंद करना सच की आवाज़ को दबाना है. जो हम जीते जी होने नहीं देंगे. ये शराब ही है जो आपकी प्रतिभा को सामने लाती है. चार पैग पिलाकर गाना गवा लो, सोनू निगम पानी न मांग जाए तो बोलना. कथक करा लो, न बिरजू महाराज को कुंठा हो जाए तो कहना.
शराबबन्द करने से हमारे देश का सवसे प्रतिष्ठित लोकनृत्य ‘नागिन डांस’ विलुप्त हो जायेगा. नागिन बिना व्हिस्की का क्वार्टर लगाये जमीन पर भला कैसे लौटेगी. और सपेरा बिना अद्धा चढाये नागिन काबू में कैसे करेगा.
बिहार में चूहे शराब गटक गए, क्या उखाड़ पाए उनका. उखाड़ भी नहीं पाओगे क्योंकि अब वो शेर बन चुके होंगे. पत्नी से शोषित चूहा टाइप पति दो पैग लगाकर नशा रहने तक गुर्राते तो थे कम से कम. यह सर्वहारा, शोषितों, वंचितों के लिए वरदान है. दारू अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को इतना प्रबल कर देती है कि जमादार भी थानेदार को गरिया सकता है. क्या लेखपाल, क्या राज्यपाल,क्या प्रधान क्या प्रधानमंत्री सबको धता बताया जा सकता है इसे उदरस्थ करके.
नामुरादों तुमको यह भी भान नहीं है कि तुम आदमी को शराब से दूर ले जाकर उसे प्रकृति और पर्यावरण से भी दूर ले जा रहे हो. पीने के बाद इंसान प्रकृति के इतने करीब पहुंच जाता है कि नाली के पानी और गंगाजल में भेद करना ही भूल जाता है. वह कीचड़ में कमल की भांति खिल जाना चाहता है. बड़े से बड़ा सेठ भी फुटपाथ पर लेट कर जमीन से जुड़ जाता है. झाड़ियों के बीच काँटों के ऊपर सो जाना ही असली योगनिद्रा है. हठयोग का चरम है. कहाँ हो मदिरामृतम के रचयिता राजेंद्र पंडित जीक्या खूब लिखा था मदिरा के चितेरे इस कवि ने-‘पीकर गाय भैंस तक को महतारी कहता हैजुम्मन को अक्सर वो चचा तिवारी कहता हैसज्जनता इतनी गर खम्भे से भी टकराये दोनों हाथ जोड़कर उसको सॉरी कहता है’
ऐसी सज्जनता के दृश्य देखने को तरस जायेगी जनता. सुनो, शायरी के मुजरिमों, अगर ये शराब न होती तो ग़ालिब चचा क्या पीकर शेर कहते. दुनिया उनकी शायरी से महरूम हो जाती. उसका यह दर्शन भला जनता के बीच कैसे आ पाता –
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर,
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो.
शराब न होती तो मज़ाज़ और पहले ही मर जाता और गोपाल दास नीरज जी इतना न जी पाते. राहत इंदौरी के अंदर वो फ़िक्र कहाँ से आती. जोश मलीहाबादी और मज़ाज़ का यह किस्सा याद आ रहा है. सुनो मदिरा विरोधियों-जोश मलीहाबादी शराब पीते समय सामने टाइमपीस रखते थे और हर तीस मिनट पर एक नया पैग बनाते थे.एक बार उन्होंने पहला पैग हलक़ में उड़ेलने के बाद अपनी टाइमपीस की तरफ़ इशारा करते हुए मजाज़ से कहा, “देखो मजाज़ मैं कितनी बाक़ाएदगी से शराब पीता हूँ. अगर तुम भी घड़ी सामने रख कर पिया करो तो बदएतियाती से महफ़ूज़ रहोगे.”
मजाज़ चहकते हुए बोले, “घड़ी तो क्या जोश साहब! मेरा बस चले तो घड़ा सामने रख कर पिया करूँ.
“शराब बन्द करके आप शायरी और मुशायरों की वाट लगाएंगे ही साथ में ऐसे जुमले भी दम तोड़ देंगे साब, जी कर रहा है एक शेर मैं भी जड़ दूँ-
करता मुख़ालफ़त जो कबाबो शराब की
दुश्मन नहीं वो देश का पर शायरी का है
दूधपरस्तों, क्या तुमने सोचा कभी कि दारू का भाषा से कितना अद्भुत सम्बन्ध है. वह पौवा ही है जिसने पाली और प्राकृत को खड़ी बोली बना दिया है. हिंदुस्तान में अंग्रेजी का जितना विकास देशी दारु ने किया है उतना शेक्सपियर भी नहीं कर पाया. लालपरी का एक पौव्वा चढ़ाने के बाद रघुवा जिस तरह की फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है कि अंग्रेज को अपने ऊपर शर्म आ जाए. वह अवधी को भी अंग्रेजीमय कर देता है. देश का गरीब इसी लालपरी के सहारे स्पीकिंग कोर्स पूरा करता है. चार किलो गेहूं बेचकर वह अमेरिकन सेंटर ऑफ़ लैंगुएज तो ज्वाइन नहीं कर सकता. और ये दारू बन्द कराने पे तुले हैं. कोई तो समझाए इन बेअक्ल हुक्मरानों को!
अरे दूधभक्तों तुमको ये भी नहीं पता,प्यार, विरह, बेवफाई का शराब से गहरा नाता रहा है. आप रोमियो को बंद करवा दीजिये ठीक है, लेकिन शराब तो खुली रखिये. दर्द का मारा रोमियो बेचारा आखिर किधर जाएगा गम भुलाने. वो गाना नहीं गुनगुनाया क्या कभी बाथरूम में- मुझे पीने का शौक नहीं, पीता हूँ गम भुलाने को. अब प्यार में धोखा खाये निराश प्रेमी जो बियर बार में अपनी प्रेमिका के साथ खींची सेल्फियां डिलीट करने का असफल प्रयत्न करते हुए घूँट घूँट में दर्द का वमन करते थे, उनका गुबार भला कैसे निकलेगा. नीट शराब ही दर्द को डायल्यूट कर करती है. शराब बन्द कर दी तो दर्द दिल में इकट्ठा होता जाएगा. फिर एक दिन हार्ट अटैक ही आएगा सीधे. शराब इश्क से ज्यादा ईमानदार होती है, कम से कम बोतल पे लिखा तो होता है कि जानलेवा है. साहिर साब का एक शेर फिर याद आ गया
बे पिए ही शराब से नफ़रत
ये जहालत नही तो और क्या है..?
अब ये जाहिलपना नहीं तो और क्या है कि आप लीवर किडनी के डॉक्टर पर्याप्त मात्रा में भर्ती नहीं कर पा रहे तो दारू बन्द करवा देंगे. जैसे भ्रष्टाचार खत्म न कर पाओ तो नोटबन्द कर दो, छेड़छाड़ न रोक पाओ तो रोमियो को बन्द कर दो आदि आदि. ये तो वही बात हुई कि जब उन्होंने जाँचा परखा और पाया कि जनता नाकों चने चबा रही है तो चने की पैदावार पर प्रतिबंध लगाया.
मैं हर तरह से समझाने की कोशिश कर रहा हूँ. ये मत समझना कि नशे में हूँ. मेरा बाप मद्यनिषेध विभाग में काम करता है. मेरी नहीं तो कम से कम मेरे बाप की तो फिक्र करो. शराब को खत्म करना चाहते हो न, चलो एक फार्मूला बताता हूँ. एक कवि के मार्फ़त-
शराब बुरी चीज है आओ खतम करें
कुछ तुम ख़तम करो कुछ हम खतम करें
Web Title: Liquor ban, Hindi Satire, Pankaj Prasoon
Keywords: Satirical Article, Satire, Satirist, Drinker’s Logic in Hindi, Drinkers, Liquor vs Milk, Humor
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