सावन-भादो का महीना बारिश का महीना है. बारिश बनारस में होती है तो बलिया में नहीं होती, बलिया के एक कोने में होती है तो दूसरे कोने में नहीं होती. लेकिन बारिश कहीं भी हो, बिजली कहीं भी गिरे कोना कोई भी हो.. इस बारिश का असर सबसे पहले कहीं होता है तो बलिया-बनारस के गांवों में करकट, पलानी और घास-फूस की मड़ईया में प्लास्टिक ताने रामसुधी पर होता है.. रामसुधी बिजली की दहाड़ सुनते ही शहरातियों की तरह रोमांटिक होकर अपनी बीबी से नहीं कहते कि “जानेमन मेरे पास आवो न, जरा पकौड़ी बनावो न, चाय में अदरक इलायची बढ़ावो न.. ..”
तब रामसुधी किसी फटे हुए ढोलक की तरह दुआर से चिल्लाते हैं कि “अरे प्लास्टिक दौड़ के ले आउ रे मनोहरा के माई.. सब भूसा भीजल.. ”
भूसा, गोबर, गोइठा को भिजता देखकर रामसुधी के लिए आसमान से नहीं आंखों से बारिश होती है.. बिजली पहले किस्मत पर चमकती है.. आगे रामजी क्या करेंगे, इसका डर न चैन से सोने देता है न चैन से जगने…
का बलिया का बनारस… सब जगह एक जैसे रामसुधी हैं… बिल्कुल एक जैसी उनकी किस्मत भी… उसे लाचारी कहिए या अभाव, या फिर कहिए जिजीविषा… रामसुधी की सुध लेने वाला कोई नहीं है. न कोई नेता न कोई चिंतक.
जमाने भर के लिए सावन सीजन आफ रोमांस हो, लेकिन रामसुधी के लिए सीजन आफ प्लास्टिक है. रामसुधी बैशाखे से पइसा मनाली घूमने के लिए नहीं बचा रहें हैं. प्लास्टिक से घर तोपने के लिए बचा रहे हैं, गोहरउल और मड़ई ढंकने के लिए बचा रहें हैं… क्योंकि उनकी किस्मत में पकौड़ी नहीं प्लास्टिक ही लिखा है! जहां सिर्फ मड़ई नहीं बचानी, गाय भी बचानी है और तुलसी जी का चौरा भी… और इतना बचाकर उसमें से बचाना है कुछ और पैसा ताकि मुनिया से राखी बन्हवाने मनोहरा उसके ससुराल जा सके… गुड़ियवा की तीज भेजी जा सके.. और सनुआ का एडमिशन प्राइमरी से इंग्लिश मीडियम में करवाया जा सके.
अरे! पांच किलो मिठाई पिछले साल गया था, उससे अधिक नहीं जाएगा तो मुनिया की सास यही कहेगी न कि “कवन दलिद्दर के घर हमरे लइका का बियाह हो गया हो काली माई.”..? गुड़ीयवा के ससुर का मुंह तो गवना के समय से ही मुरझाइल परोरा जइसा लटका है. अउर एक ठो वो ननद है उसकी इंग्लिश मीडियम.. उसका नखड़ा दुबई के प्रिंस भी बर्दाश्त नहीं कर सकते… अरे! उ लइकी नहीं, सरजू पार की मरखहवा बैल लगती है.
इधर कल इसी बारिश में पता चला कि रामसुधी को उनकी पैंतीस साल की बहिनिया ने कलकत्ता से राखी भेजा है… आहा! चेहरा खिलकर पात गोभी हो रहा था उनका… बहिनिया का तीस गो ट्रक चलता है.. एतना खेती-बारी, जर-जमीन, मकान-दोकान… लेकिन भइया को भुलाती नहीं है… राखी जरूर भेजती है… तभी तो रामसुधी मड़ई में प्लास्टिक ताने भी मुस्करा रहे हैं… क्योंकि मनोहर बो ने बताया कि बुआ जी ने इस बार बड़ी महंगी राखी भेजी है.
इधर पच्छिम टोले में पता चला है कि विमलावती फुआ ने राखी नवेडा भेज दिया है. इस बार 5 सौ लग गया राखी के बाजार में… बबिता फुआ के भइया राधेश्याम पहिले लोधियाना रहते थे, सुना है आजकल सूरत रहने लगे हैं.. लोधियाना का पानी एतना सूट किया है कि मोटा के लोढ़ा जैसा लमलोल हो गए हैं. उनको देखते ही परमावती भौजी चवनिया मुस्की काट के कहती हैं…
“हमरा देवरू के सुरतिया सूरत जाते बदल गइल..”
देवरू राधेश्याम ई सुनकर सीरी देबी जइसा मुंह बना लेते हैं. मानो भादो की रात नहीं दिन में ही पत्थर पड़ रहे हों.
इधर अस्सी घाट वाले मिसीर जी का हाल केजरिवाल हो गया है..आजकल कुछ नहीं बोलते हैं.
ब्रह्मा हेने से होने हो जाएं, सूरज दिन की बजाय रात में ही उगने लगें.. वो नवकी बहुरिया जैसा चुपी मारे घुप्प पड़े रहते हैं..
गुप्त सूत्रों के हवाले से पता चला है कि ये सब सेकेंड सेमस्टर में फेल होने का असर नहीं है. ये तीसरी गर्लफ्रेंड द्वारा आवारा और करेक्टर लेस जैसी मुफ्त की मानद उपाधि से उपाधित होने का असर है… आश्चर्य की बात ये है कि जो लोग कभी उनको क़ान में मोबाइल लगाए देखते थे अब उनको किताबों के साथ देखने लगे हैं.
कल उनकी भी राखी इंदौर से आई है.. लिफाफा खोलते हुए मिसिर जी के मुँह पर जो चमक थी.. वो सात महीना हाय! हैंडसम और फेयर लवली लगाकर भी नहीं मिलती है. मुझे लगा ये बड़ी बहन के प्रेम का असर होगा… लेकिन नहीं, एक ही तो छोटा भाई है.. पता चला कि खुशी का राज ये है कि बहन ने कपड़े के पैसे में दो हजार और बढ़ाकर दिया है.
मैं भी कल बाजार में था… आंखों के सामने न जाने कितने रामसुधी, राधेश्याम और कलावती, विमलावती को टहलते देखा. मिसिर जी को मुस्कराते और बबिता को झल्लाते देखा… इस दुकान से उस दुकान.. इधर के दुकान से उधर की दुकान.. बाजार में तरह-तरह की राखी, रीबन और गिफ्ट.. मोदी राखी से लेकर ट्रम्प राखी तक.. किसिम-किसिम की राखी..
मानों ये महज भाई बहन के आपसी विश्वास और स्नेह का पर्व न होकर एक स्टेटस सिम्बल बनने का पर्व हो… जहाँ प्रेम कम दिखावा ज्यादा हो… जहाँ सब सोच रहे हों कि पिछले साल पैंतीस रुपया वाली राखी लिया था.. इस साल पचास वाली तो होनी चाहिए.. बंटी के पापा ने तीज में पिछले साल साड़ी दू हजार का साड़ी लिया था.. इस साल तो ढाई हजार का होना चाहिए न.. मिठाई पांच किलो था, इस साल छह किलो होना चाहिए न? भाई ने दो हज़ार और एक स्मार्ट फोन दिया था. इस साल भी देगा न? मने नाना किस्म के नखड़े.
मानो बाजार ने तय करके रख दिया हो कि डिजायनर राखियों और पैसों की कीमत से भाई-बहन के प्रेम की कीमत तय होगी.. अगर रामसुधी को उनकी बहन तीन सौ की डिजायनर राखी भेजेंगी तभी उनके चेहरे पर मुस्कान आएगी वरना वो मुरझा जाएंगे..
अगर बबिता ने मोती के नग वाली राखी नहीं भेजी तो उसके भइया खिसिया जाएंगे… मिसिर जी के बहन का प्रेम तभी सच्चा होगा जब वो हर साल भाई को दो हजार बढ़ाकर भेंजेंगी..
बाजार का इमोशन से मुकदमा चलता है जी.. वो डिमांड एंड सप्लाई के सिद्धांत पर काम करता है.. पहले बड़े सलीके से डिमांड पैदा करता है.. फिर सप्लाई तो अपने आप होने लगती है.
तभी तो विमला फुआ भी सबसे महंगी तीन सौ वाली राखी खरीदतीं हैं.
पूछने का मन करता है कि क्या तीन रुपए वाली राखी के धागे कमजोर हैं?
या फिर स्नेह कम हो जाएगा इस सस्ती राखी से.. क्या एक हजार वाली साड़ी पहन लेने से तीज का सौंदर्य समाप्त हो जाएगा या पति से प्रेम कम हो जाएगा.. ?
लेकिन नहीं.. गांव हो या शहर.. अमीर हो या गरीब इस बाज़ार ने सबकी आंखें बंद कर दी हैं.. भावनाओं और प्रेम के पारस्परिक सम्बन्धों के इस परम पावन त्यौहार को बाजारू बना दिया है… आज प्रेम के धागे कितने मजबूत हैं ये हमारा हॄदय नहीं बाजार तय करता है.
बात ये है कि भाई हो या बहन ,ननद हो या भौजाई प्रेम के इस पवित्र त्यौहार में बाजार के हवाले न हो जाइये… प्रेम का धागा बाजार में नहीं हृदय में मिलता है… बाज़ार में रहकर बाज़ार से बचना ही आदमी होने की कला है..बकौल फरहत एहसास-
“जादू भरी जगह है बाज़ार तुम न जाना
एक बार हम गए थे बाजार होकर निकले”
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं..
Web Title: Market and Indian Festivals, Hindi Article, Rakshabandhan
Keywords: Rakhi, Raksha Bandhan, Atul Kumar Rai, Tyohar
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