“मर्द के दर्द नहीं होता” ये कोई बात हुई भला, मर्दों के खिलाफ कोरी साजिश है, साजिश!
इन फिल्म वालो पर तो केस कर देना चाहिए, जिन्होंने डायलाग लिखा मर्द के दर्द नहीं होता. इनके हिसाब से मर्द कोई चट्टान है जिस पर जितनी मर्जी चोट करो उसे तो दर्द ही नहीं होता. मर्द क्या जीता जागता नही है, दर्द तो जानवर के भी होता है, और वैज्ञानिकों के अनुसार तो पेड़ पौधों के भी होता है, फिर ये बेचारा मर्द क्या जानवर या पेड़ पौधों से भी गया गुजरा है, या भगवान है? लो बच्चू और ले लो मजे… तुम्हें ही तो पति परमेश्वर बनने का शौक था, अब भुगतो! जरुर किसी औरत ने की होगी ये साजिश तभी तो अपने दर्दों का आलाप तो दिन रात करती हैं पर सुनना बर्दास्त नहीं और तो और खुद बुक्का फाड़ कर जितना मर्जी रो ले पर मर्द के कंधो पर.
मर्द पर मर्द होने का ऐसा बोझ लादा है कि वो रोया तो उसकी मर्दानगी खतरे में आ सकती है, इस डर से वो निरीह प्राणी रो भी नहीं पाता. पर दर्द तो बहुत होता है जब नौकरी से थका मांदा मेट्रो या बस में सीट पर बैठता है और कोई कन्या उसे अपने महिला होने के अधिकार के तहत खड़े होने को मजबूर कर देती है. मर्द को तब भी बहुत दर्द होता है जब वो पूरी तैयारी और अपनी डिग्रियों के प्रति आत्मविश्वास के साथ नौकरी के साक्षात्कार के लिए जाता है और कोई चटक मटक मुस्कुराती बलखाती आती है और वह फिर बेरोजगारी के ठप्पे संग बाहर आने को मजबूर हो जाता है. मर्द को अपने मर्द होने पर तब भी बड़ा दर्द होता है जब वो प्रमोशन के लिए रात दिन खटता है, मेहनत से काम करता है और खुबसूरत सहकर्मी बिना सुई तक हिलाए अपने लटके झटको से बॉस को खुश कर प्रमोशन पा जाती है.
आखिर मर्द ने क्या बिगाड़ा है? बेचारा सारा दिन नौकरी कर थका हारा मर्द बीबी की सभी फरमाइश पूरी करता है और उसके बाद भी ताने के सिवा कुछ हाथ नहीं आता. बचपन से मर्द होने का बोझ अपने कंधो पर ढोता मर्द अपना दुखड़ा किसी को सुना भी नहीं सकता.
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा सहमा सा मर्द बस नाम का मुखिया बन कर रह गया है. सबकी फरमाइशें पूरी करता मर्द कभी हाथ में सब्जी और राशन का झोला लेकर थके कदमों से चलता नजर आता है तो कभी माल में शोपिंग करती बीबी के पीछे गोद में बच्चा और शोपिंग बैग उठाये अहिस्ता आहिस्ता चलता नजर आता है. कभी बिजली की लाइन में, कभी राशन की लाइन में कभी स्कूल में फीस जमा करने की लाइन में तो कभी बूढ़े माँ बाप को लेकर अस्पताल की लाइन में खड़ा मर्द…पर फिर भी पत्थर दिल कहलाया जाता है और उफ़ तक नहीं कर सकता… मर्द है ना. हार्ट अटैक भी मर्दों को ही ज्यादा होते हैं, फिर भी बेदिल और पत्थर दिल जैसी उपाधियों से विभूषित किया जाने वाला मर्द उफ़ तक नहीं कहता. और नारियों के खिलाफ तो एक शब्द तक नहीं निकाल सकता वर्ना मारा जायेगा नारी आन्दोलन में पिस कर…
ऐसा नहीं कि सिर्फ शादीशुदा मर्द ही परेशान हो! मर्द जब क्वारा हो तब भी परेशान ही रहता है… बड़ा दर्द होता है जब किराये का घर खोजने जाता है और सुनता छड़ो को या अकेलों को घर नहीं देते परिवार वालों को देते हैं (मैं क्या अंडे से निकला हूँ?)
मर्द बेचारा अन्दर ही अन्दर कुढ़ कर रह जाता है दिल आता है कहे जिस देश में आतंकवादियों को घर मिल जाते हैं, वहां क्वारे होने की वजह से शरीफ आदमी धक्के खाता है. नई नौकरी या पढाई से पहले शादी करो घर लेने के लिए कित्ता दर्द होता है जब समझ आता है बिना औरत कोई इज्जत नहीं बेचारे की.
कोई काम वाली अकेले मर्द के घर आकर काम करने को तैयार नहीं होती. सारे पड़ोसी खलनायक की दृष्टि से देखते हैं. सोचो कितना दर्द होता होगा पत्नी रूपी जो औरत उसका जीना हरम कर देती है उसके बिना मर्द की इज्जत फूटी कौड़ी की नहीं होती. अकेले मर्द को कोई बुलाता तक नहीं. कोई उससे मिलने तक नहीं आता. यदि सोसाईटी की किसी पार्टी या गणपति आदि उत्सवों में अकेले लड़के शामिल भी हो जाएँ तो सब अछूतों सा व्यवहार करते हैं… दर्द ना हो तो क्या हो? जिस पत्नी के साथ रहते हुए सारे दोस्त और पडौसी आये दिन भोजन करते हैं उसके अचानक दुनिया से जाने पर लोग आना तो दूर मानो पहचानना तक भूल जाते हैं उसे और दर्द की गहराईयों में उतरता मर्द बुरी तरह कराह उठता है. ये दर्द ही तो है, जिसकी वजह से इस देश का अन्नदाता किसान रूपी मर्द आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है फिर भी कहते हैं मर्द को दर्द नहीं होता.
मर्द को ना तो थकने का हक़ है ना रोने का ना ही हार मानने का उसे तो चलते जाना है… बिना रुके बिना थके “वरना यार मर्द होकर रोता है… अरे यार! औरतों की तरह नखरे मत कर जरा सी देर में थक गया. ये सुनने को तैयार नहीं सो अपने साथ जबरदस्ती करता मर्द अपना दर्द दिखने भी नहीं देता.
मर्द को बहुत दर्द होता है जब अपनी माँ और पत्नी की अविश्वास से भरी नजरों का सामना करता है और दोनों को एक साथ खुश करने में खुद को असमर्थ पाता है. बड़ी बेचारगी महसूस करता है मर्द, जब नहीं कर पाता परिवार के लोगों की खवाहिशें पूरी! मर्द का दिल कराह उठता है जब एक मर्द की किसी गलती पर पूरी मर्द प्रजाति को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है… “सारे मर्द एक जैसे होते हैं” ये ताना हर कदम पर सुनता मर्द अन्दर ही अन्दर कुढ़ कर रह जाता है. वो मर्द अपना दर्द कह भी नहीं सकता क्योंकि कहेगा तो सुनने वाला मिलेगा क्या? और मान लो मिल भी गया तो क्या उसके दर्द को कोई समझेगा?
Web Title: Men will be Men, Hindi Satire, Archana Chaturvedi
Keywords: Mard, Satire, Satire in Hindi, Being Human, Pain of Men, Men’s Issues, Men vs Women, Satirical Story, Marital, Married, Unmarried, Social Satire
Featured image credit / Facebook open graph: theodysseyonline