बीते दिन बनारस में मेरे सामने एक घटना हुई. यूँ तो बनारस में घटना हो जाना या किसी फिल्म की शूटिंग हो जाना या फिर बीएचयू अस्पताल में गोपालगंज से इलाज कराने आए किसी रामसुधी की मौत हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है.. लेकिन हुआ क्या कि मैं एक दिन क्लास करके चला आ रहा था.. और देखा कि एक लड़की,जो सनबीम स्कूल में क्लास दस ग्यारह में पढ़ने वाली लग रही है, स्कूटी से चली आ रही है… 400 मीटर आगे जाकर वो मुड़ी.
पीछे से उसके स्कूटी की चाल देखकर लग रहा था कि लड़की ने कुछ ही दिन पहले स्कूटी सीखा है.. और स्कूटी देखकर लग रहा कि दो दिन पहले ही लड़की के प्यारे पापा ने अपनी प्यारी बिटिया को स्कूटी खरीद के दे दिया है.. तभी हुआ क्या कि लड़की मुड़ी. मोड़ अंधा था. उधर दूसरी तरफ से कानों में हेडफोन लगाए. झोंटा नचाते एक अंधे और बहरे ड्यूड ने स्टाइल मारने के चक्कर मे लड़की की स्कूटी में अपनी बाइक भिड़ा दिया.. देखते-देखते दोनों में जबरदस्त टक्कर हुई है.. लड़की गिरकर एक तरफ, लड़का गिरकर दूसरी तरफ.
लड़का कराह रहा है.. लड़की भी.. लोग भी अवाक हैं! कुछ लोग दोनों को उठाने के लिए भगे भी हैं.. लेकिन उस 400 मीटर की दूरी तेज कदमों से तय करते हुए देखा कि अधिकतर लोग खड़े होकर तमाशा देख रहे हैं.. उससे भी आश्चर्य की बात ये कि कुछ लोगों ने झट से मोबाइल निकालना शुरू किया है और फट से उस लड़की का वीडियो बनाना शूरु कर दिया… मैं मना करता हूँ..”अरे ! भइया क्या कर रहें हैं.. ये सब ठीक नहीं है. आखिर इसमें ऐसा क्या है जो वीडियोग्राफी करने लायक है.. “लेकिन लोग मेरी क्यों सुनें.. मैं हूँ कौन.. बड़का लाट साहेब.. एक ने कह दिया “बहुत हीरोगिरी ठीक नहीं रजा.. ज्यादा बौद्धिकता न दिखाओ. हम बनाइब, का करबा..”? मैं भूल गया था कि ये रजा बनारस है.. एक गली से साँड़ और एक गली में बनारसी आ रहा हो तो सांड़ वाली गली में ही बेफिक्र होकर चलना चाहिए.. क्योंकि अभी नये शोध में ये बात सामने आई है कि आजकल सारे बनारसी सांड़ सन्त हो चूके हैं और सारे बनारसी सन्त सांड़..
खैर.. इस दिव्य ज्ञान के बाद हम चुप रह गए. क्योंकि वीडियो बनाने वाले भी जागरूक नागरिक की तरह दिखते थे.. लेकिन सच में जागरूक थे, यही शोध का विषय था.. इस शोध की प्रथम परीक्षा में ही हम अनुत्तीर्ण हो चुके थे.. क्योंकि वहां फेल हो जाना उचित जान पड़ा था.
लेकिन सामने देख रहा कि लड़की गिर गयी है.. चोटें लग गयीं हैं, माथे पर खून. बांहों से खून गिर रहा, कभी रो रही कभी अपने कपड़े से अपनी इज्जत को ढक रही.. एक महिला उसके अंत वस्त्रों को ठीक कर रहीं हैं.. शायद उनके ही पति हैं जो दूसरी साइड लड़के को उठा रहे हैं.. उनके देखा-देखी और भी लोग आगे आकर पानी पिला रहे हैं.. लड़की के घर वालों को बताया जा रहा है..
लेकिन सामने खड़े अधिकतर लोग कितने मशगूल हैं उसका वीडियो बनाने में.. मानो अभी जाकर फेसबुक पर शेयर करेंगे.. और लड़की की इस दुर्दशा पर फेसबुकिया आँसूओं से टब भर देंगे.. फिलिंग सैड वाला सिम्बल लगाकर कैप्शन में ये जरूर लिखेंगे कि “देखिये एक लड़की बेचारी कैसे घायल हो गयी…”
इसी वीडियो के बहाने लाइक, कमेंट और शेयर की बौछार हो जाएगी और उस महाशय की गिनती अगले दिन से महान जागरूक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में की जाएगी.. यही न होता है.. यही न मिलता है वीडियो बनाने से.. और क्या होता है…?
ठीक ऐसे ही बीते दिनों पटना में शायद एक नाव दुर्घटना हुई.. दुर्घटना के बाद देखा कि जिसको देखो वही उस नाव दुर्घटना का वीडियो शेयर कर रहा था.. मैं वीडियो में देख रहा नाव डूब रही.. लोग चिल्ला रहे.. कूद रहे और कुछ लोग ठीक उस नाव की सामने वाली नाव पर बैठकर बड़े ही मजे से उस डूब रही नाव का वीडियो बना रहे हैं…
ओह! मुझे डूबते टाइटैनिक पर बजते हुए वायलिन की याद आती है…आह ! कुछ लोग पानी में डूब रहे हैं और कुछ लोग तो असंवेदनशीलता के समुद्र में पहले से ही डूबे हैं.. जरा सी भी आह! नहीं निकल रही कि सामने वाले मर रहे हैं और वो हंसे जा रहे, वीडियो बनाए जा रहे हैं.. सोचता हूँ आदमी क्या से क्या हो गया.. वो प्राचीन ऋषि का स्मरण आता है जो एक दिन आचमन करने के दौरान डूब रहे बिच्छु को अपने हाथ में उठाकर बचाने लगे थे. ये जानते हुए की बिछू डंक मारेगा.. मैं सोचता हूँ आज वो ऋषि होते तो तुरंत फेसबुक लाइव हुए होते..और स्टेटस अपडेट किए होते..
अभी चार दिन पहले देश के एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल पर एक स्टोरी आ रही थी. देखा कि किसी गांव में दो बच्चे एक लाश को कंधे पर लेकर जा रहें हैं… दोनों मासूम हैं.. और शायद उनका बाप मर गया है.. आपसी रंजिश के कारण पड़ोस के चार कंधे उसे नहीं मिल पा रहें हैं कि उनका अंतिम संस्कार किया जाए.
इस न्यूज को मनुष्यता के ऊपर कलंक बताने वाली मोहतरमा अपने लिपिस्टिक को दूसरे होठ से ठीक करते हुए ये बता रही हैं कि “ध्यान से देखिए इस वीडियो को. एक लाश को कंधा देने लोग न आए../
मेरे मन में आता है कि रिपोर्टर जी से पूछूँ कि “जो बन्दा इस हृदय विदारक घटना का वीडियो बना रहा है.. वो आखिर कौन है.. कहीं आपका ही रिपोर्टर तो नहीं.. उसके हाथ में स्मार्ट फोन है.. लेकिन क्या जरा सा भी अक्ल नहीं है.. कि वो कुछ करे..
और कुछ करे या न करे.. क्या वो इतनी असंवेदनशीलता का परिचय देते हुए वीडियो बनाएगा..”?
मुझे उस सबसे तेज चैनल के उस पत्रकार की याद भी आई जब एक साल पहले वो झोपड़पट्टी में रहने वाले चार साल के लड़के को मन माफिक बयान दिलवाने के बदले दारु पिलाने की पेशकश कर रहा था.. समझ में नहीं आता कि ये टीआरपी का कौन सा रूप है..
पिछले साल की बात है. संकट मोचन में सँगीत समारोह था.. कार्यक्रम अपने पूरे शबाब पर, आधी रात हुई तो सितार वादन करने पहुँचे देश के प्रख्यात वादक नीलाद्री कुमार, उनके साथ तबला संगति के लिए पधारे विजय घाटे जी..
आलाप, जोड़, झाला के बाद जब संगति शुरु हुई तो मंच के सामने बैठे एक सज्जन और सम्भ्रान्त से महाशय ने अपना आई फोन निकाला और लगे वीडियो बनाने.. यूँ तो उस प्रोगाम मोबाइल केवल कुछ ही लोगों को लाने की इजाज़त होती है. लेकिन भाई साहब चोरी से लेते आए थे. वीडियो बनाने लगे तो निलाद्री कुमार ने कस के डाँटा. “भाई साब पहले ठीक से सुन तो लीजिए, इतनी भी जल्दी क्या है… भाई साब झेंप गए. लजाने लगे, लेकिन भाई साब वीडियो नही बना रहे थे भाई साब ये दिखाने में पकड़े गए कि उनके पास आईफोन का लेटेस्ट मॉडल है.. प्रायः शास्त्रीय संगीत के श्रोता से गम्भीरता की अपेक्षा की जाती है.. लेकिन भाई साहेब ने उसे आर्केस्ट्रा समझ लिया था.. पीछे बैठे श्रोताओं ने खूब गरियाया…
आज मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि पत्रकारिता और संवेदना और जागरूकता का ये विकृत चेहरा मुझे हैरान नहीं करता है. पत्रकारिता और संवेदना तो बाजरवाद के गिरफ्त में हैं.. लेकिन क्या ये सोचने कि जरूरत नहीं है कि वही काम अब हम भी कर रहें हैं. आपने कभी सोचा कि आपका कहीं एक्सीडेंट हो जाए और लोग आपको उठाने के बदले आपका वीडियो बनाने लगे तो कैसा लगेगा आपको ?
सोचना जरूरी है..
अरे! माना कि इमोशन को बाज़ार में आसानी से बेचा जा सकता है.. लेकिन क्या इसका मतलब ये है कि हम अपनी जमीर बेच दें.. माना कि संवेदना एक ऐसा प्रोडक्ट है जिसकी जितनी ब्रांडिंग की जाए वो अपने एजेंडे के लिए उतना ही लाभप्रद होती है..
लेकिन हम किसी न्यूज चैनल के पत्रकार नहीं कि कहीं से खोजकर सनसनी न्यूज न लाए तो हमारी सैलरी कट जाएगी.. या रोज फेसबुक अपडेट न करें तो नींद नहीं आएगी.. नहीं-नहीं इसके बिना भी हम जी सकतें हैं.
आज देखता हूँ रही सही कसर फेसबुक लाइव ने पूरा कर दिया है. जिसको देखो वो बाथरूम से किचन से बेडरूम से लाइव है.. मुझसे कई मित्र पूछते हैं आप अतुल जी कभी लाइव नहीं आए.. हमने कहा कि भैया बहुत जरुरी नहीं लगा कि मैं आऊँ. या फिर कोई ऐसी रहस्मयमयी चीज नहीं हाथ लगी कि फेसबुक मित्रों को दिखाया जाए.. सभी मित्र मुझसे ज्यादा जानकार और विद्वान हैं.. उनको क्या सिखाना समझाना या दिखाना..
मित्रों… कहने का तात्पर्य यही है कि हमारे पास बन्दूक है तो इसका मतलब ये नहीं कि जब मन करे जहां मन करे हम फायर करते रहें. बिना इसकी परवाह किए कि कौन उसकी जद में आ रहा है.. मैं मानता हूं कि स्मार्ट फोन ने हमारे जीवन में एक बड़ी क्रांति की है.. तमाम चीजें आज आसान हो गयी हैं. कनेक्टविटी और कम्युनिकेशन बढ़ा है.. लेकिन वीडियो बनाने समय ये सोचना जरूरी है कि कहीं हम अपनी संवेदना का वीडियो तो नहीं बना रहे हैं.. अपनी जमीर और जागरूकता का वीडियो तो नहीं बना रहे हैं… कहीं हम आभासी लाइक, कमेंट, शेयर के चक्कर में कुछ खोते तो नहीं जा रहे.. कहीं हम मशीनों के साथ रहते-रहते मशीन तो नहीं होते जा रहें हैं.. ?
Web Title: Sense of People, Sarcasm, Atul Kumar Rai
Keywords: Social Media Effect, Smartphone Effect, Sensitivity, Where Society is going, Social Manners, Good and Bad, Helping Other, Social Satire
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