पिछले दिनों ऑफिस के लिए डेस्कटॉप खरीदा. कार्ड से पेमेंट करना चाहा तो बताया गया कि दो पर्सेंट ज्यादा चार्ज लगेगा. चालीस हज़ार के लैपटॉप पर 2% का मतलब 800 रूपये एक्स्ट्रा लगाने थे. अगर इतने अमाउंट पर 50 या 100 रूपये तक होता तो शायद दे भी देता, किन्तु 2%…? बिडम्बना यह कि ‘कैश’ देने पर यही चार्ज नहीं था, इसलिए स्वाभाविक रूप से एटीएम जाकर कैश निकाला और बिल दे दिया. चूंकि ख़बरों और उससे जुड़े तथ्यों को समझने की कोशिश रहती है, अतः मन में अनायास ही विचार आया कि ऐसे ‘कैशलेस इंडिया’ बन सकता है क्या? इसकी पड़ताल करना बेहद आवश्यक है, क्योंकि इसी से तय होगा कि वाकई हम किधर जा रहे हैं:
सरकार ‘कंफ्यूज’ है क्या?
इस वाकये के कुछ दिन बाद ही कहीं खबर पढ़ी कि सरकार बैंक से कैश निकासी पर टैक्स लगाने हेतु विचार कर रही है. यह खबर सत्यापित नहीं कर सका, किन्तु अगर वाकई ऐसा होता है तो यह ‘काले धन’ की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने जैसा ही होगा. लोग चेक या दूसरी प्लास्टिक मनी, जिसमें ‘बैंक की इन्वॉल्वमेंट’ हो लेना ही बंद कर देंगे और कैश जमा कराने बैंक जायेंगे ही नहीं! डेस्कटॉप खरीदने के अपने वाकये का ज़िक्र मैंने अपनी फेसबुक वाल पर किया तो बेहद दिलचस्प कमेंट आये. 80 फीसदी से ज्यादा लोगों ने मेरी बात से सहमति जताई, किन्तु एक महानुभाव ने लिखा कि ‘देश तरक्की कैसे करेगा जब लोग ऑफ़िस की खरीदारी में भी टैक्स चोरी का इरादी रखेंगे’? उन महानुभाव को शायद पता नहीं था कि यहाँ ‘चोरी’ की बजाय बात नियमों के उलझाव और बेवकूफी की है. सरकार के ही दोनों नियम हैं जो स्पष्ट संकेत देते हैं कि कैश कम खर्चीला है, जबकि प्लास्टिक पेमेंट ‘खर्चीली’ है.
जाहिर है, नोटबंदी के दौरान कैश की कमी और सरकार द्वारा कार्ड पेमेंट्स को फ्री किये जाने से कैशलेस व्यवस्था में जो उछाल आया था, वह अब धड़ाम से घिर गया है. कई दुकानदारों से मिला, जो ‘कैश और कार्ड’ के झमेले से बचने के लिए सामानों की कीमत बढ़ा कर ले रहे हैं.
यह चलन अब ज़ोर पकड़ रहा है, जिससे नुक्सान अंततः ग्राहक को ही होता है. ‘नोटबंदी’ को चार महीने होने को हैं, किन्तु ‘कैशलेस इंडिया’ की बात कहने वाली सरकार को वाकई कुछ भी नहीं सूझ रहा है कि किधर जाएँ और भारत की जनता को किधर जाने को कहें. ले देकर ‘भीम’ जैसे कुछ एप्लिकेशन लांच हुए हैं, जिसके बारे में किसी कॉमेडियन ने कमेंट किया कि ‘यह ऐप इतने परमिशन मांगता है मानो पूछ रहा हो कि आपके इनरवियर किस कलर के हैं’. सवाल उठता ही है कि, क्या कैशलेश इंडिया का नारा पूरी तरह से ‘फ्लॉप’ हो गया है?
Currency Ban, Cashless India and Taxation, POS Machine (Pic: ibtimes.co.in)
नोटबंदी पर क्यों जरूरी है ‘श्वेत-पत्र’
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव अब समाप्ति की ओर हैं, जिसके साथ पांच राज्यों में होने वाले बहुचर्चित विधानसभा चुनाव समाप्त हो जाएंगे. ऐसे में अब इस बात की शिनाख्त की जानी चाहिए कि आजाद भारत के सबसे बड़े निर्णयों में से एक यानी ‘नोटबंदी’ का कुछ अर्थ निकला भी या नहीं? बजट सत्र और उसके पहले के संसदीय सत्र में इस विषय पर दुर्भाग्य से कोई चर्चा नहीं हुई और ना ही सरकार ने कोई श्वेत पत्र पेश किया, जिससे नोटबंदी के फायदे नुकसानों का असल आंकड़ा सामने आ पाता.
काले धन पर लगाम की बात तो छोड़ ही दीजिए, यहाँ तक कि नकली नोटों और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के मंसूबे भी ध्वस्त होते दिख रहे हैं. घाटी में आतंकी यथावत सक्रीय हो रहे हैं तो नकली नोट भी मार्किट में आने लगे हैं.
सवा सौ करोड़ की आबादी वाला देश महीने, 2 महीने अपने काम धंधों को छोड़कर लाइन में खड़ा था. तमाम बैंकिंग संस्थान अपने रोजमर्रा के कार्यों को छोड़कर इसी ‘नोटबंदी’ के थपेड़ों को झेलते रहे. चारों ओर अफरातफरी मची रही, देश में नौकरियां घटी, लोग तनाव में आए, तो इस दौरान कई लोगों की जानें भी गई. इतना ही नहीं, कई छोटे-मझोले उद्योग-धंधे नष्ट होने की कगार पर आ गए और ऐसे में अगर सरकार इस बड़े कदम के परिणामों की जवाबदेही लेकर जनता को जानकारी नहीं देती है तो फिर इसे आला दर्जे की ‘गैर जिम्मेदारी’ ही कही जानी चाहिए. ऐसी ‘गैर जिम्मेदारी’ जिससे देश का भारी नुक्सान हुआ. इन नुकसानों की भरपाई के लिए सरकार कोई योजना बना भी रही है अथवा पिछली कांग्रेस सरकारों की तरह ‘राम भरोसे हिंदुस्तान’ का अजेंडा यह सरकार भी अपनाने लगी है?
टैक्स नियमों में सुधार का मौका
Formalities in Taxation (Pic: shareyouressays.com)
ऐसा नहीं कहा जाना चाहिए कि नोटबंदी से कुछ फायदा ही नहीं हुआ. यदि विचार के स्तर पर देखा जाए तो सरकार के पास लोगों की माली हालत का ‘मोटा आंकड़ा’ आ गया है. दुर्भाग्य से लोगों को टैक्स चोर समझकर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट द्वारा उन्हें डराया जा रहा है. कुछ लोग इसमें ‘टैक्स चोर’ हो सकते हैं, किन्तु सच यही है कि अधिकांश लोग टैक्स देना चाहते हैं, किन्तु ‘टैक्स नियमों’ की अव्यवहारिकता इसके आड़े आ जाती है. मेरे एक मित्र की सुनिये, वह बिना सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट) की हेल्प के अपना इनकम टैक्स भरना चाहते थे, क्योंकि ना ना करते हुए उसकी काफी फीस चली जाती है तो कई बार उनके व्यस्त होने का नख़रा उठाना सहज नहीं होता. इसके साथ विश्वस्त ‘सीए’ मिलना इतना भी आसान नहीं होता और आप किसी नए पर इतनी सहजता से भरोसा भी नहीं कर सकते. उन मित्र महोदय ने गूगल पर बिना सीए के इनकम टैक्स भरने के बारे में सर्च किया. वह थोड़ा कम पढ़े लिखे हैं, इसलिए जैसे तैसे वह इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर पहुंचे और वहां ‘इंडिविजुअल’ कॉलम में रजिस्टर करने की कोशिश की. पैन न. सरनेम, मिडिल नेम, फर्स्ट नेम के साथ डेट ऑफ़ बर्थ कॉलम फीड करने के बाद जैसे ही उन्होंने कंटिन्यू बटन प्रेस किया, एरर मेसेज आ गया, जिसमें लिखा था कि-
This PAN has already been registered. In case you have not registered, please contact 1800 4250 0025 immediately.
बिचारे डरते-डरते उन्होंने दिए गए न. पर फोन किया तो ‘नेटवर्क कंजेशन’ का सन्देश सुनाई दिया, पहली, दूसरी और फिर तीसरी बार भी! बिचारे फिर कोई विश्वस्त सीए ढूंढ रहे हैं और मामला टलता जा रहा है. वैसे भी मध्यमवर्गीय व्यक्ति के पास कितना समय है, इसे आसानी से कैलकुलेट किया जा सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया कनेक्टिविटी की तारीफ़ फेसबुक के मार्क ज़करबर्ग तक कर चुके हैं. उनकी हर बात अधिकांश भारतीयों को पता है, प्रत्येक और पल-पल के अपडेट. सवाल उठता है कि इतने ही क्रांतिकारी तरीके से ‘इनकम टैक्स डिपार्टमेंट’ जैसे महत्वपूर्ण विभाग का कायापलट क्यों नहीं किया जा सकता. एक अनपढ़ व्यक्ति को जिस तरह मोबाइल और स्मार्टफोन क्रांति से जोड़ा गया है, वैसे ही टैक्सेशन से क्यों नहीं जोड़ा जा सकता.
जब तक फॉर्मेलिटी कम नहीं होगी, तब तक यकीन मानिये प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष भारत की जनता को ‘टैक्स चोरी’ के अनचाहे आरोप से जूझते रहना होगा. अरे! हमारे यहाँ तो द्वार पर कोई अनजान भिखारी आ जाए तो गरीब से गरीब व्यक्ति उसको अपनी आधी रोटी तोड़कर दे देता है, तो ऐसी दयालु प्रवृत्ति की जनता ‘टैक्स चोर’ कैसे हो सकती है? सवाल दरवाजे पर ठीक ढंग से सरकार के पहुँचने और टैक्सेशन के नियमों का है.
वैसे भी टैक्स वसूली के बारे में कहा गया है कि यह वैसे ही होना चाहिए, जैसे मधुमक्खी फूलों से रस निकालती है. पर ऐसा है क्या? जीएसटी जैसे कुछ प्रावधानों से थोड़ी बहुत आस भी बंधी, किन्तु नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार इस मामले में काफी कुछ कर सकती थी, पर ‘नोटबंदी’ के एक झूठ या गलत निर्णय को छिपाने के लिए वह कई गलतियां करने की राह पर अग्रसर दिख रही है.
रोड़े ही रोड़े… कौन करेगा दूर?
पिछले दिनों मैं एक दुकान पर गया, जहां एक ग्राहक अपने दुकानदार से लड़ रहा था. लड़ने की वजह कोई बहुत विशाल नहीं थी, बल्कि साधारण सी ही थी और वह यह थी कि सामान के बदले ग्राहक ने पैसे दे दिए थे, जबकि वह पैसे दुकानदार के अकाउंट में पहुंचे नहीं थे और उसकी ‘पीओएस मशीन’ की समरी में वह नहीं आ पाया था. दोनों की लड़ाई इस हद तक पहुंच गई कि आसपास के दुकानदारों को बीच बचाव करने आना पड़ा. ऐसे में इन तकनीकी दिक्कतों के समाधान के लिए त्वरित व्यवस्था की जानी चाहिए. ऐसे ही, लोगों के पास क्रेडिट/ डेबिट कार्ड जरूर हैं, किन्तु उसका प्रयोग वह लोग एटीएम से पैसा निकालने के लिए ही ज्यादे करते हैं, सीधी खरीददारी के लिए कम! इसके पीछे जो मुख्य कारण हैं, उनमें हर एक जगह प्लास्टिक मनी लेने की सुविधा नहीं होना और डेबिट/ क्रेडिट कार्ड से जुड़ी असुरक्षा की भावना है. आखिर, डेबिट/ क्रेडिट कार्ड फ्रॉड की तमाम खबरें यूं ही तो नहीं आती हैं न. चूंकि, भारत अब इस दिशा में कदम बढ़ा रहा है तो ऑनलाइन सिक्योरिटी पर ठोस रूप में कार्य किये जाने की आवश्यकता है. पिछले दिनों डेबिट/ क्रेडिट कार्ड के कई घोटाले सामने आ चुके हैं, जिसमें 2009 में भारत के कॉल सेंटरों में अपराधियों के गिरोह द्वारा पैसे लेकर ब्रिटेन के क्रेडिट कार्ड होल्डर्स की जानकारियां धड़ल्ले से बेचना, 2008 का क्रेडिट कार्ड घोटाला (609 लाख पाउंड का घपला), 2012 मार्च में एक करोड़ क्रेडिट कार्ड खातों में सेंध, पिछले साल अक्टूबर में 32 लाख डेबिट कार्ड की सुरक्षा में सेंध इत्यादि प्रमुख हैं. जाहिर है राह में रोड़े ही रोड़े हैं और इन्हें सावधानी से दूर किये जाने की आवश्यकता है. इसके अतिरिक्त, नेट स्पीड और दुसरे इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से भी हम लगातार जूझ रहे हैं.
हालाँकि, रिलायंस जिओ के ढाई लाख करोड़ की भारी भरकम इन्वेस्टमेंट के बाद आने वाले दिनों में फ़ास्ट इन्टरनेट मिलने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं, किन्तु अभी भी इस मामले में काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है. अगर रिलायंस जिओ की तरह कुछ कंपनियां भारत की आधारभूत संरचनाओं में दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्ती हेतु भारी निवेश करें तो अवश्य ही तस्वीर में बदलाव आ सकता है. इसमें सर्वाधिक इन्वेस्टमेंट बिजली की उपलब्धता पर किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि तमाम दावों के बावजूद बिजली की अनुपलब्धता बड़े क्षेत्रों को विकास से दूर रखे हुए है.
Infrastructure of Rural India, Electricity and Internet Speed (Pic: cfo-india.in)
निश्चित रूप से अगर 24 घंटे बिजली और हाई-स्पीड इन्टरनेट भारत के प्रत्येक क्षेत्र में उपलब्ध हो जाए तो स्थिति में सकारात्मक बदलाव आने में अधिक समय नहीं लगने वाला, किन्तु यह कब तक होगा, इस कथन में बड़ा क्वेश्चन मार्क लगा हुआ है.
जाहिर है कि जिस मजबूत सरकार की भारत जैसे विकासशील देश को आवश्यकता थी, उसे जनता ने दिया भी. बहुत संभव है कि नोटबंदी के माध्यम से गलत निर्णय भी हो गया हो, किन्तु उस पर लीपापोती करने की बजाय अगर सरकार साफ़ दिल से कैशलेस इंडिया और टैक्सेशन दोनों से जनता को जोड़ने का मजबूत कदम उठाती है तो कोई कारण नहीं होगा कि पब्लिक बेहतरीन ढंग से राष्ट्र-निर्माण के कार्यों में अपना योगदान सुनिश्चित करेगी. फिर सवा सौ करोड़ देशवासी जब एक-एक कदम आगे बढ़ाएंगे तो वाकई हमारा देश सवा सौ करोड़ कदम आगे बढ़ जायेगा और यह कोई ‘जुमलेबाजी’ नहीं होगी, बल्कि हमारे लोकतंत्र में निहित ताकत का सामर्थ्यवान प्रारूप होगा.
Web Title: Currency Ban, Cashless India and Taxation, Hindi Article in Depth
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