गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स, यानी जीएसटी लागू हो चुका है और जैसा कि होता है ‘किसी नयी व्यवस्था’ के आने के बाद अफरातफरी मचती ही है, शुरुआत में कुछ वैसा ही माहौल दिखा है. संयोग देखिये, जिस जुलाई-17 की शुरुआत में जीएसटी भारत में लागू किया गया, उसी जुलाई की 11 तारीख को विश्व जनसंख्या दिवस भी पड़ता है. ऐसे में भारत की विशालतम जनसंख्या के लिए लगातार विश्व-स्तरीय सुविधाएं मुहैया कराने की चुनौती बढ़ती ही जा रही है.
जाहिर है, सरकार ने टैक्सेशन में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाकर एक बेहतर स्टेप तो लिया ही है. वैसे भी, मोदी सरकार के तीन साल पूरा होने पर यह कहकर आलोचना की गयी कि उसकी ग्रोथ की कहानी ‘जॉबलेस ग्रोथ‘ है. इन आलोचनाओं से निपटने के लिए आखिर कुछ प्रयास तो करना ही था.
आलोचनाएं, तैयारियां अपनी जगह हैं, किन्तु इसके अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. बेहद आवश्यक है, आज़ादी के बाद लागू हुए इस कानून से जुड़े पहलुओं और उसके प्रभावों पर नज़र डालने की…
आज़ादी के बाद का बड़ा सुधार कैसे?
अंग्रेजी हुकूमत के दौर के अधिकांश टैक्स-सिस्टम आज भी हमारे देश में लागू थे. जैसे-जैसे समय बदला, वैसे-वैसे टैक्स कॉम्प्लीकेशन्स बढ़ गयीं और एक तरह से टैक्स जाल की तरह फैलता गया. एक नज़र डालें तो आजादी से पहले से ही कस्टम ड्यूटी एक्सपोर्ट और इंपोर्ट होने वाली वस्तुओं पर लगाई जाती थी. भारत से कच्चा माल बाहर भेजा जाता था और वहां से (खासकर इंग्लैंड) से बनी बनायी चीजें मंगाई जाती थीं. इन सभी पर इंपोर्ट ड्यूटी लगाई जाती थी और यह एक बड़ा श्रोत था टैक्स से आमदनी का.
ब्रिटिश गवर्नमेंट ने एक्साइज टैक्स की शुरूआत 1894 में की थी. उस वक्त सूती धागे पर 5 फीसदी टैक्स वसूला जाता था. इसी क्रम में, 1917 में पेट्रोल पर शुरू हुआ टैक्स तो, 1922 में कैरोसीन पर लगा. आज़ादी के पहले के टैक्सेशन की बात करें तो 1939 में अंग्रेज सरकार को नमक पर टैक्स से 8.12 करोड़ रुपए का रिवेन्यू मिला था. गौरतलब है कि यह वही नमक का टैक्स है, जिसके लिए महात्मा गांधी ने दांडी-मार्च किया था और कानून तोड़ा था. टैक्सेशन की इस कड़ी में सेल्स टैक्स व स्टैंप ड्यूटी वसूलने के लिए राज्य सरकारें कार्य करती थीं.
सीधी सी बात है कि समय के साथ बदलाव आवश्यक था और भारत जैसे बड़े देश में इसको सेंट्रलाइज किया जाना आवश्यक हो गया था. पर इतने बड़े टैक्स-सुधार लागू करने के लिए जिस बड़ी इच्छाशक्ति और तैयारी की आवश्यकता थी, उसे पहले की सरकारें पूरी नहीं कर सकीं. हालाँकि, तैयारी की कमी इस बार भी कही जा रही है, किन्तु लागू तो इसे किया ही जा चुका है.
राज्य सरकारों से तालमेल
(शराब, पेट्रोलियम, रियल एस्टेट और बिजली जीएसटी से बाहर)
आज भारत के 17 प्रदेशों और केंद्रशासित प्रदेशों में या तो भाजपा के मुख्यमंत्री हैं या तो बीजेपी अलायंस का पार्टनर है. यह एक बड़ा कारण था, जिससे जीएसटी के लिए माहौल बनाने में सहूलियत हुई. खुद कांग्रेस ने यूपीए शासनकाल के दौरान जीएसटी की पुरजोर वकालत की थी, इसलिए उसके लिए इसका सीधा विरोध कर पाना मुमकिन न था. वैसे भी कांग्रेस लगातार घट रहे जन समर्थन के कारण विरोध करने की ख़ास स्थिति में थी भी नहीं. नीतीश कुमार जैसे उसके अलायन्स पार्टनर्स ने पहले ही सरकार के इस कदम का समर्थन करने की घोषणा कर दी थी. राज्य सरकारों के साथ इस तालमेल के बावजूद कई मुद्दों पर दुविधा बनी रही और कई जगह जीएसटी लागू होने के बावजूद यह दुविधा बरकार है.
कहा जा रहा है कि राज्य शराब, पेट्रोलियम, रियल एस्टेट और बिजली को जीएसटी दायरे में लाने पर सहमत नहीं हुए. चूंकि, इन चार वस्तुओं से उन्हें भारी राजस्व मिलता है. यह बात एक हद तक सच भी है. पहले ही जीएसटी लागू होने की वजह से, राज्य सरकारों को हो रहे घाटे की भरपाई करने का केंद्र वादा कर चुका है. ऐसे में इन वस्तुओं पर राज्यों की स्वायतता बनी रहना महत्वपूर्ण है. शराब से प्राप्त होने वाले भारी राजस्व पर किसी को कोई शक नहीं ही है, तो रियल स्टेट में काले धन की खपत कहीं ज़्यादा होती है. ऐसे में अगर यह जीएसटी के दायरे में आता तो उस पर लगाम लग सकती थी.
संभवतः नोटबंदी और नौकरियों में आयी कमी को देखते हुए केंद्र सरकार रियल स्टेट में ब्लैक मनी के प्रवाह को कुछ हद तक बने रहने देना चाहती हो. रही बात पेट्रोलियम की तो अंतर्राष्ट्रीय मार्केट इसकी कीमतों का उतार-चढाव एक बड़ी वजह है जीएसटी से इसके बाहर रहने का. वहीं बिजली के रेट्स अलग अलग प्रदेशों में अलग ही रहने वाले हैं.
इन मुद्दों पर तमाम असहमति के बावजूद राज्य और केंद्र सरकारों ने बाकी विषयों पर बड़ी सहमति बनाई है, जिसके परिणामस्वरूप जीएसटी मार्केट में लागू हो सका है. उम्मीद की जानी चाहिए कि व्यावहारिक कठिनाइयों से भी आने वाले समय में पार पाया जा सकेगा.
बड़ी चुनौतियां
चुनौतियों की बात करें तो व्यापारियों के सामने तमाम टेक्निकल इसुज आ रहे हैं. पहले के सॉफ्टवेयर्स में अपडेट करने का काम तेजी से करने की कोशिश अवश्य की जा रही है, किन्तु इसमें निश्चित ही समय लगने वाला है. चूंकि, इसमें काफी हद तक काग़ज़ी काम शामिल है, कंप्यूटर और तकनीक का इस्तेमाल शामिल है, तो इसकी जटिलता बढ़नी ही है.
ऐसे ही, जीएसटी को लेकर सोशल मीडिया और दूसरी जगहों पर बेहद कंफ़्यूजन देखी जा रही है. इसमें जानकारी का प्रसार बड़े स्तर पर किया जाना बाकी है. ख़बरों के अनुसार, मिनिस्ट्री ऑफ स्किल डेवलेपमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप (MSDE) ने 100 घंटे का सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने का फैसला किया है. इस कोर्स में सभी विषयों के स्नातक विद्यार्थी प्रवेश ले सकते हैं. पायलट योजना के तहत फिलहाल यह भोपाल, बेंगलूरु और दिल्ली में शुरू किया जायेगा. जाहिर तौर पर यह एक बेहतर कदम साबित हो सकता है.
हालाँकि, व्यावहारिक कठिनाइयों से निपटने के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधित्व वाली जीएसटी काउंसिल हर तीन महीने में इस पर बैठक करने को राजी हुई हैं, बावजूद इसके इसमें और तेजी लाने की आवश्यकता पड़ सकती है. चूंकि, कई जगहों से जीएसटी लागू होने के बाद व्यापार में कठिनाई की खबरें आ रही हैं. मसलन, मनी भास्कर की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बड़े होलसेल मार्केट में 80% कारोबार ठप हैं, क्योंकि बड़े कारोबारी छोटे ट्रेडर्स से बिजनेस नहीं कर रहे हैं. इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि ‘बिना रजिस्ट्रेशन वाले करोबारी के साथ बिजनेस करने पर इन्पुट क्रेडिट नहीं मिलने से यह सारा मामला सामने आ रहा है’. गौरतलब है कि 20 लाख से कम सालाना कारोबार करने वालों के लिए जीएसटी नंबर लेना आवश्यक नहीं है.
भाजपा नेता और अर्थशास्त्री माने जाने वाले डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने भी सरकार की कम तैयारी का ज़िक्र जीएसटी लागू होने के पहले करते हुए इसे ‘वॉटरलू का युद्ध’ कह डाला था और पीएम से इसे रोकने की अपील भी की थी. हालाँकि, यह लागू हुआ और अब जबकि यह लागू हो चुका है तो इसे समझने और समझाने की कोशिश कहीं ज्यादा बेहतर रहेगी. वैसे भी अगर पूरे देश को एक समान टैक्स नियमों में बाँधने की जरूरत थी तो इसे नकारा नहीं जा सकता है. भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरतों को नकारने का परिणाम भला कैसे भूला जा सकता है, जिसकी वजह से पिछले तीन दशकों में चीन हमसे कितना आगे जा चुका है और हम…
खैर, अभी देर नहीं हुई है. और जीएसटी को लेकर यह कहा ही जाना चाहिए कि ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’.
Web Title: GST and its impact on Indian Trade, Business Hindi Article
Keywords: Taxation, Economy, Growth, States, Centre, Government, Modi Government, British Rules, Growth
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