पाकिस्तान! दक्षिण एशिया के सर्वाधिक अस्थिर देशों में शामिल यह देश शायद ही कभी बढ़िया कारणों से चर्चा में रहता हो. भारत, अफ़ग़ानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में ही नहीं, विश्व के तमाम हिस्सों में आतंकवाद फैलाने के लिए इसकी निंदा होती ही रहती है, किन्तु इस बार यह चर्चा भ्रष्टाचार, हटाए जा चुके पीएम नवाज़ शरीफ़ और सुप्रीम कोर्ट के बारे में है.
मामला है पनामागेट का. इस पूरी उठापठक की पड़ताल और उससे आगे बढ़कर पाकिस्तान के राजनीतिक भविष्य की चर्चा करना सामयिक रहेगा…
नवाज़ शरीफ और पनामागेट
पाकिस्तान के ऐसे राजनेता, जिन्हें तीसरी बार प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने का मौका मिला है, वह नवाज़ शरीफ ही हैं. हाँ, यह बात अलग है कि उन्हें उनकी सीट से जबरदस्ती ही उतारा गया है. पिछली बार सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने उनका तख्ता पलट दिया था तो अबकी बार भ्रष्टाचार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कुर्सी छोड़ने का आदेश सुना डाला है (Link in English). प्रश्न उठता है कि आखिर यह पनामागेट पाकिस्तान जैसे देश में इतना बड़ा मुद्दा बन कैसे गया?
यूं तो पहले भी नवाज़ शरीफ को हटाया गया है, लेकिन इस बार उन पर पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए शिकंजा कसा क्योंकि वह संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में मौजूद कंपनी कैपिटल एफ़ज़ेडई से हुई आमदनी और संपत्ति का ब्यौरा देने में नाकाम रहे थे. पाकिस्तान में चुनाव के नियमों के मुताबिक़, चुनाव लड़ने वाले हर शख्स को अपनी संपत्ति की पूरी जानकारी देना आवश्यक होता है. बस बात यहीं से बिगड़ती गयी, जिसने नवाज़ शरीफ को आखिरकार गद्दी से उतारकर ही दम लिया.
मुकद्दमे में नवाज़ शरीफ़ की ओर से कोर्ट को बताया गया कि कंपनी में बतौर चेयरमैन उनकी पोजिशन होनरेरी (अवैतनिक) है. वह इसके लिए कोई सैलरी नहीं लेते हैं और न ही कोई अन्य लाभ. दिलचस्प यह भी है कि कैपिटल एफ़ज़ेडई शरीफ़ परिवार की ऑफशोर कंपनियों या लंदन स्थिति प्रॉपर्टी से लिंक नहीं पाया गया है, जोकि पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट की जांच का प्रमुख केंद्र था (Link in English). ऐसी स्थिति में क्या वाकई सिर्फ पनामागेट को ही नवाज़ शरीफ के हटने का कारण मान लिया जाना चाहिए.
राजनीतिक अस्थिरता, इमरान खान और आगामी विकल्प
Nawaz Sharif, Panama Gate and Pakistan Army, Imran Khan (Pic: geo.tv)
भारत में अन्ना आन्दोलन के बाद दिल्ली में एक राजनैतिक शक्ति का उदय हुआ, जिसे अरविन्द केजरीवाल के रूप में एक चेहरा मिला. संभवतः केजरीवाल भारत के पहले ऐसे सीएम और मुख्यधारा के राजनेता रहे होंगे, जिन्होंने खुद को ‘अराजक’ कहा होगा. तमाम विश्लेषक पाकिस्तान में इमरान खान को कुछ कुछ वैसा ही मानते हैं. धरना, रैली और बड़ी राजनीतिक पर्सनालिटीज पर आरोप-प्रत्यारोप इमरान खान की राजनीतिक शैली कही जाती रही है. पर दिलचस्प होगा यह जानना कि खुद इमरान कोई दूध के धुले नहीं रहे हैं.
नवाज़ शरीफ के हटने का घटनाक्रम अभी चल ही रहा था कि तहरीक-इन्साफ पार्टी के चीफ इमरान खान पर उनकी ही पार्टी की एक महिला नेता ने गंभीर आरोप लगा दिए. जी हाँ, आयशा गुलालई ने इमरान को कैरेक्टरलेस तक बात डाला और कहा कि वे पार्टी की दूसरी महिला नेताओं को भी अश्लील मैसेज भेजते हैं. आयशा के इन आरोपों वाला वीडियो खूब वायरल हो रहा है. इमरान खान पर सैक्शुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाते हुए आयशा ने पार्टी की मेंबरशिप के साथ ही नेशनल असंबेली से भी इस्तीफा दे दिया है.
जाहिर तौर पर पनामा पेपर्स मामले में इमरान ख़ान की याचिका असर कर गई है और शरीफ़ को कुर्सी छोड़नी पड़ी है, किन्तु क्या वाकई इमरान खान कोई विकल्प देने की हालत में हैं. इतना ही नहीं, नोबेल शांति पुरस्कारों के लिए कई बार नामांकित हो चुके प्रख्यात समाजसेवक दिवंगत अब्दुल सत्तार ईधी ने भी इमरान खान पर गंभीर आरोप लगाया था.
यह आरोप कुछ यूं था कि इमरान खान ने आईएसआई के साथ मिलकर 1990 के दशक में बेनज़ीर भुट्टो सरकार के तख़्ता पलट की साजिश रची थी. ईधी के अनुसार, उन्हें भी कैंपेन में शामिल होने का न्यौता दिया गया लेकिन जब उन्होंने इनकार कर दिया तो जान से मारने की धमकी तक दी गई थी. इस वजह से उन्हें कुछ वक़्त के लिए देश छोड़ना पड़ा था (Link).
अगर पाकिस्तान में आगामी विकल्पों की बात की जाए तो सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) की मुश्किलें कम होने की बजाय बढ़ी ही हैं. चूंकि, पार्टी के ओर से इंटेरिम पीएम के तौर में चुने गए शाहिद खकान अब्बासी भी करप्शन के आरोपी हैं. गौरतलब है कि पाकिस्तान की नेशनल अकाउंटीबिलीटी ब्यूरो (एनएबी) अब्बासी की गैस (एलएनजी) इंपोर्ट में हुए 220 अरब रुपए के घोटाले की जांच कर रही है. बताते चलें कि 2015 में एनएबी की ओर से दर्ज मामले में पेट्रोलियम और नेचुरल गैस मिनिस्टर रहे अब्बासी को मुख्य आरोपी बनाया गया है (Link in English).
ज़ाहिर तौर पर मामला उलझता ही जा रहा है और बहुत मुमकिन है कि पाकिस्तान में कमजोर राजनीतिक नेतृत्व होने से सेना पुनः तख्तापलट कर दे.
पाकिस्तानी सेना का एंगल
Nawaz Sharif, Panama Gate and Pakistan Army (Pic: samaa)
इस बात में दो राय नहीं है कि पाकिस्तान में सेना की सहमति और मर्जी के वगैर पत्ता तक नहीं हिलता है. ऐसे में अगर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अपने पद से हटा दिया गया है और सेना या जनता की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आयी है तो इसे सामान्य किस प्रकार माना जा सकता है? इसके पहले, सुप्रीम कोर्ट में चल रही मामले की सुनवाई के दौरान कई बार ये मुद्दा विवादों में घिरता नज़र आया था.
गौरतलब है कि यह मामला आपराधिक अदालत में सुने जाने के पक्ष में पहले खबरें आईं और सुप्रीम कोर्ट अपीलीय अदालत है. पहले तो उसने इस पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था, किन्तु बाद में कोर्ट ने न सिर्फ़ याचिका स्वीकार कर ली बल्कि मामले की जांच के लिए ख़ुद कोशिश शुरू की. इसमें भी मिलिट्री की ख़ुफ़िया सेवा की भूमिका अहम बताई जा रही है. निश्चित रूप से इस एंगल को पूरी तरह इग्नोर नहीं किया जा सकता.
इस बात को यूं भी बल मिलता है, क्योंकि पाकिस्तान से भाग चुके जनरल परवेज मुशर्रफ ने इस निर्णय की दिल खोल कर तारीफ़ की है (Link in English). बता दें कि यह वही पाकिस्तानी जनरल हैं, जिन्होंने बेवजह भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल वार छेड़ा. यह वही मुशर्रफ़ हैं, जिन्होंने पाकिस्तान के चीफ़ जस्टिस इफ्तिख़ार चौधरी को सुप्रीम कोर्ट से उठाकर घर में बंदी बना दिया था. ज़ाहिर तौर पर अगर ऐसा व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट की आड़ लेकर किसी फैसले का पक्ष लेता है तो माना जाना चाहिए कि सेना का दबाव कहीं न कहीं इन्वोल्व हो सकता है. अब ऐसा क्यों है, यह बात अवश्य सोचने वाली है. वस्तुतः भारत-पाकिस्तान संबंधों में शिथिलता का ठीकरा कहीं न कहीं फूटना ही था, तो नवाज़ शरीफ से बेहतर टारगेट भला और कौन हो सकता था?
इसके अतिरिक्त, तमाम वैश्विक मोर्चों पर भी पाकिस्तान की खासी किरकिरी हुई है, जिसमें सऊदी-क़तर विवाद में उसका कोई रोल न होना भी माना जा रहा है. बहुत संभव है कि नवाज़ शरीफ को ऐसे में मोहरा बनाया गया हो. वैसे भी, राजनीतिक स्थिरता पाकिस्तान को कभी रास आयी है क्या?
भारत के लिए मायने
Nawaz Sharif, Panama Gate and Pakistan Army, Relations with India (Pic: ndtv)
यूं तो पाकिस्तान में हुई इस बड़ी राजनीतिक उठापठक से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, पर वास्तव में इससे सावधान रहने की जरूरत है. पाकिस्तानी सेना के मन-मस्तिष्क में जब-जब कोई कुत्सित प्लान आता है तो इस तरह के सिम्पटम्स दिखने लगते हैं. कारगिल में घुसपैठ के बाद यह ख़बर बड़ी तेजी से फैली थी कि पाकिस्तानी पीएम नवाज़ शरीफ को इस बारे में कुछ पता ही नहीं था! और उधर जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान के लिए आत्मघाती कदम उठा लिया. हालाँकि, हाल फिलहाल इस तरह का कोई कदम उठाने से पहले पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान हज़ार बार सोचना चाहेगा.
21वीं सदी में दुनिया बदली तो पाकिस्तान को लेकर भी ये लगा कि सैन्य तख्तापलट का दौर समाप्त हो सकता है. खासकर, नवाज़ शरीफ़ जब तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो लगा अब उनकी पकड़ पाकिस्तानी आवाम पर मज़बूत हुई है, लेकिन “असल सत्ता सेना के पास ही रही है और वह आगे भी रहने वाली है, इस बात में दो राय नहीं.” हालाँकि, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी शपथ ग्रहण से लाहौर जाने तक कई बार लचक दिखाई, किन्तु अगर पाकिस्तानी सेना भारत को अपना स्थायी दुश्मन मानती है तो फिर इस बात का किसी के पास क्या इलाज हो सकता है.
आखिर यह दुश्मनी ही तो है, जिसके कारण पाकिस्तान न केवल आतंकवादियों को पालने पोसने वाला देश बल्कि एक असफल लोकतंत्र का भी प्रतीक बन बैठा है!
Web Title: Nawaz Sharif, Panama Gate and Pakistan Army, Hindi Article
Keywords: Democracy, Dictatorship, Supreme Court, Corruption, Imran Khan, Abdul Sattar Edhi, Kargil War, Interim Prime Minister, Indo Pak Relations
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