Road Accidents in India Statistics, Etah School Bus Accident (Pic: nbt.in)
हमारा देश 68वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है, जहाँ देश बच्चों को भविष्य की उम्मीद बताएगा तो भावी कर्णधारों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित भी किया जायेगा. पर इस गणतंत्र से ठीक एक सप्ताह पहले एटा में हुए स्कूल बस हादसे में दर्जनों बच्चों की मौत की जिम्मेदारी शायद ही कोई लेना चाहेगा. उत्तर प्रदेश के सीएम अखिलेश यादव जब तब प्रदेश के विकास की बात करते हैं, मेट्रो शुरू करने से लेकर तमाम विकास कार्यों को गिनाते हैं, किन्तु क्या वह इस हादसे की जवाबदेही लेंगे? इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के विकास और अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में वाहवाही की उम्मीद करते हैं तो क्या स्कूली बच्चों की मौत पर संवेदना के 140 शब्दों का ट्वीट कर चुप्पी साध लेंगे? गौरतलब है कि यूपी के एटा में एक दर्दनाक सड़क हादसे में दो दर्जन से अधिक बच्चों की मौत हो गयी है तो तीन दर्जन से अधिक बच्चे हॉस्पिटल में गंभीर हालत में एडमिट हैं.
लापरवाही हुई और बुझ गए कई घरों के चिराग
ख़बरों के अनुसार, एक स्कूल बस और ट्रक की टक्कर में कलेजे को कंपा देने वाला यह हादसा हुआ. हालाँकि, प्रथमदृष्टया कोहरे की वजह से यह हादसा होने की बात कही जा रही है, किन्तु इस हादसे में मानवीय लापरवाही की बात भी सामने आ रही है, जिसके कारण कई घरों के चिराग बुझ गए हैं. बताया जा रहा है कि गुरुवार को प्रशासन ने छुट्टी का आदेश दिया था, इसके बावजूद वह स्कूल खुला था. यह भी कहा जा रहा है कि स्कूल बस का रजिस्ट्रेशन कुछ दिन पहले ही एक्सपायर कर गया था. हादसे के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके इस हादसे पर दुख जताया है, तो यूपी पुलिस प्रमुख ने भी अपनी संवेदना प्रकट की है, किन्तु सवाल वही है कि ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत’! आखिर, सड़क हादसों पर सवाल तो उठते ही हैं और वह यह हैं कि ‘हादसों’ का सिलसिला आखिर कब रूकेगा? प्रशासन अगर ठण्ड में रूम हीटर की गर्मी लेता रहेगा तो हादसे भला क्यों नहीं होंगे?
Road Accidents in India Statistics, Etah School Bus Accident (Pic: Jagran.com)
प्रत्येक दिन 400 से अधिक लोग मरते हैं सड़क हादसों में!
जी हाँ, यह आंकड़ा आपको शॉक कर सकता है, किन्तु यह सच है. अब जबकि हम विकसित देशों की कतार में खड़े होने को कदम बढ़ा चुके हैं, ऐसे में इस तरह के आंकड़े हमें ‘तीसरी दुनिया के देशों’ की शर्मनाक कतार में खड़ा कर देते हैं. दुनिया की सबसे खतरनाक सड़कें हमारे यहाँ ही हैं. यह आंकड़ा किसी प्राइवेट एजेंसी का नहीं है, बल्कि सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय का है, जिसने पिछली साल राज्यसभा को यह जानकारी दी थी. 2015 में 1,46,133 लोग सड़क हादसे में मारे गए, जबकि 2014 में यही आंकड़ा 4.6% कम था. पिछले एक दशक में लगभग 13 लाख लोगों ने सड़क हादसों में अपनी जान गँवा दी है. केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की सड़क हादसे में मौत के बाद कुछ उम्मीद बंधी थी कि सरकार व्यापक स्तर पर इस सम्बन्ध में कुछ कदम उठाएगी, किन्तु एटा हादसे में मासूम बच्चों की मौत के बाद दिल बैठ सा गया है. यह तो नहीं कहा जा सकता है कि इस सम्बन्ध में सरकार कुछ करती ही नहीं है, किन्तु जो भी कदम उठाये जाते हैं, वह न केवल नाकाफी हैं, बल्कि औपचारिक ही हैं, अन्यथा आज देश को इतने मासूम बच्चों की लाश नहीं देखनी पड़ती. काश कि कोई सरकार से पूछता कि ‘अनट्रेंड ड्राइवर्स को लाइसेंस कैसे जारी हो जाते हैं’? रोड सेफ्टी के नियमों की हर स्कूल ड्राइवर को नियमित ट्रेनिंग अनिवार्य क्यों नहीं की जाती है? ट्रक मालिकों और ड्राइवर्स पर इतनी ढील क्यों दी जाती है, जबकि अधिकांश रोड एक्सीडेंट्स में ट्रक द्वारा टक्कर की बात सामने आती है. इससे भी बढ़कर सड़क बनाने में ठेकेदार तय मानकों का पालन क्यों नहीं करते हैं? इस कारण सड़कों में टूट फूट और गड्ढे होने की समस्या आम है. जब तक इन प्रश्नों पर गंभीरता से मंथन करके हल नहीं निकाला जाएगा, तब तक सड़क हादसों के आंकड़े बढ़ते ही जायेंगे.
सामाजिक एवं व्यक्तिगत जवाबदेही
पिछले दिनों इसी विषय पर एक गोष्ठी में जाना हुआ तो वहां ‘सड़क हादसों’ पर ही चर्चा हो रही थी. वस्तुतः यह विषय ‘आत्म अनुशासन’ से जुड़ा हुआ भी है. हालाँकि, एटा में हुए स्कूल हादसे में किसी बच्चे या उसके पेरेंट्स का व्यक्तिगत दोष नहीं था, किन्तु दुसरे मामलों में अक्सर हम सुरक्षा मानकों का पालन खुद भी नहीं करते हैं. मसलन हेलमेट पहनने से लेकर, रेड लाइट जम्प करने और तय रफ़्तार से ज्यादा तेज गाड़ी चलाना हमारी आदत में शुमार हो चुका है. हमें समझना होगा कि हम सब कुछ सरकार पर थोप कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते. ऐसी स्थिति में सामाजिक संस्थाओं को भी जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है, किन्तु दुःख की बात है कि सुरक्षा मानकों पर किसी प्रकार की कोई हलचल नहीं होती है. आज जल्लीकट्टू पर पूरा तमिलनाडु सड़कों पर उतरा हुआ है, किन्तु आप रिकॉर्ड उठाकर देख लें कि कितनी संस्थाएं सड़क हादसों और जागरूकता फैलाती हैं और किस स्तर पर वह कार्य करती हैं. सच कहा जाए तो जब तक हम यह सारी बातें अपने जीवन में नहीं ढालते हैं, तब तक सड़क हादसों का अभिशाप हमें झेलना ही पड़ेगा! इस अभिशाप से बचने के लिए व्यक्ति, समाज और सरकार को समग्र प्रयास करने होंगे, इस बात में दो राय नहीं!
Road Accidents in India Statistics (Pic: Amar Ujala)
Web Title: Road Accidents in India Statistics
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