हाई प्रोफाइल विधानसभा के चुनाव परिणाम अब सामने हैं. उत्तराखंड प्रदेश, जो 17 साल पहले बना था, यहाँ इस राज्य ने यह रिकार्ड कायम रखा है “सत्ता परिवर्तन” का. यानी अगले चुनाव में जनता यहाँ की सरकार बदल ही देती है. हालाँकि, कांग्रेस इस रिकार्ड को तोड़ने की पुरजोर कोशिश करते दिखी मगर रावत सरकार पर ‘भ्रष्टाचार’ का लेबल भारी पड़ा और कांग्रेस नाकामयाब होकर सत्ता से बाहर हो गयी है. क्रमवार देखने पर स्पष्ट हो जाता है कि हरीश रावत यहाँ जीतने के लिए अपना सब कुछ झोंक चुके थे, बावजूद उसके बीजेपी दो तिहाई सीट से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है. सीएम रावत के लिए इससे बुरी बात क्या होगी कि वह खुद दो सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद दोनों ही सीटों पर हार गए. साफ़ है कि उनके ऊपर लगे ‘भ्रष्टाचार’ के आरोपों ने इस पहाड़ी राज्य में कांग्रेस का कबाड़ा कर दिया है.
कांग्रेस की हार की वजहें
लगातार विवादों में घिरी उत्तराखंड में कांग्रेस शासित हरीश रावत सरकार के लिए ये चुनाव करो या मरो जैसा था. कुछ दिनों पहले ही बागी विधायकों की वजह से राज्य में राष्ट्रपति शासन के हालात से गुजरी राज्य सरकार हर कीमत पर यह चुनाव जीतना चाहती थी. लेकिन रावत सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल होना इनके अरमानों पर पानी फेर गया. वहीं अन्य राज्यों की अपेक्षा उत्तराखंड में विकास की गति धीमा होना भी लोगों को नागवार गुजरा और सत्ता परिवर्तन के लिए लोगों ने कांग्रेस के खिलाफ वोटिंग की.
अनुमान लगाया जा रहा था कि रावत सत्ता से हट सकते हैं, क्योंकि कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय ‘घोटालेबाज’ छवि से अभी मुक्ति नहीं हो सकी है. साथ ही साथ खुद रावत व्यक्तिगत तौर पर भी मुश्किल में रहे हैं और विभिन्न स्टिंग ऑपरेशन्स में उनके बारे में नाकारात्मक बातें फैली थीं. भाजपा ने तमाम चुनावी सभाओं में इसे बखूबी उठाया भी.
Uttarakhand Election Results 2017 (Pic: ndtv.com)
उत्तराखंड में जीत हासिल करना कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी बेहद अहम् था, क्योंकि देश भर में वह लगातार सिकुड़ती ही गयी है और उत्तराखंड उसके हाथ से फिसल जाने से पंजाब की जीत का स्वाद कांग्रेस के लिए थोड़ा हल्का हो गया है. जाहिर है राष्ट्रीय स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं को जोड़े रखना इस पुरानी पार्टी के लिए बेहद मुश्किल साबित हो सकता है. इस राज्य का थोड़ा और विश्लेषण करें तो सोनिया गाँधी के निष्क्रिय होने के बाद राहुल गाँधी उस जगह को 10% भी नहीं भर सके हैं और जब नरेंद्र मोदी जैसा राष्ट्रीय नेता कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करता है तो उसे काटने के लिए किसी प्रादेशिक नेता की बजाय आपको राष्ट्रीय नेताओं की ही जरूरत पड़ती है. कांग्रेस यहाँ पूरी तरह चूक गयी.
बीजेपी की जीत की वजहें
एक बात तो राजनीतिक पंडितों को मान ही लेनी चाहिए कि मोदी लहर बेशक अभी भी कायम है और इस का उदाहरण उत्तराखंड के साथ-साथ यूपी में भी मिल चुका है. उत्तराखंड में बीजेपी की स्पष्ट बहुमत की सरकार काफी कुछ स्वयं ही कह देती है. हालाँकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस राज्य में अपनी सरकार लाने के लिये खूब जोर लगाया, जो अंततः फलीभूत भी हुआ. यशपाल आर्य और विजय बहुगुणा जैसे कांग्रेस के पुराने और दिग्गज नेताओं को बीजेपी में शामिल कर कांग्रेस की राह पहले ही मुश्किल कर दी गयी थी, तो लगातार बीजेपी के बड़े नेताओं और खुद प्रधानमंत्री मोदी का चुनाव प्रचार के दौरान हरीश रावत सरकार में हुए धोटालों और भ्रष्टाचार के खुलासों ने जनता का ध्यान अपनी तरफ जबरदस्त ढंग से खींचा. भाजपा लोगों को विश्वास दिलाने में सफल रही कि अगर बीजेपी की सरकार आती है तो राज्य में पर्यटन और विकास पर ध्यान दिया जायेगा. जाहिर तौर पर पर्यटन से इस खूबसूरत राज्य में कइयों की रोटी-रोजी चलती है तो रोजगार में भी स्थाई बृद्धि भी होती है. इससे इतर देखा जाए तो यह जीत प्रधानमंत्री मोदी के मिशन 2019 में जबरदस्त सपोर्ट करने वाली है.
यूं भी नरेंद्र मोदी का भ्रष्टाचारी न होना और अपने मंत्रिमंडल के लोगों को सख्ती से भ्रष्टाचार से दूर रखना उनकी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा है. कांग्रेस सहित दूसरे विपक्षी दल ‘भ्रष्टाचार’ पर मोदी से बेहद कमजोर हैं. प्रधानमंत्री की दूसरी मजबूत खूबियों की बात करें तो एक मजदूर की तरह 15 से 18 घंटे काम करना उन्हें भारतीय जनता के हृदय में बिठाता है.
जाहिर है यह सभी फैक्टर्स बेहद दुरुस्त साबित हुए और अंततः भाजपा मजबूती से सत्ता की कुर्सी पर विराजमान हो गयी है.
Uttrakhand Election Results 2017, BJP Celebrations (Pic: ibtimes.co.in)
कांग्रेस और भाजपा के मजबूत और कमजोर फैक्टर्स से अलग हटकर अगर हम सर्वेक्षणों की बात करें तो वह भी औंधे मुंह गिरे हैं. उत्तराखंड राज्य में चुनाव परिणाम से पहले जो सर्वे आए थे, वह कमोबेश दोनों दलों की बराबर संभावनाएं दिखला रहे थे. निश्चित रूप से सर्वेक्षण कंपनियों को इससे थोड़ा धक्का पहुंचा होगा. हालाँकि, ‘एग्जिट पोल्स’ में जरूर कई सर्वेक्षणों ने भाजपा को ‘बीस’ दिखलाया था, पर इतना भारी बहुमत मिलेगा, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी. शुरू से इस राज्य में भाजपा और कांग्रेस में ही मुख्य टक्कर थी, किन्तु मुकाबला ‘करीबी’ होने की बजाय एकतरफा कैसे हो गया, यह बात बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों को भी समझ नहीं आयी होगी.
खैर अब परिणाम सामने है और यह कांग्रेस के लिए आत्ममंथन करने का समय है, क्योंकि जब तक वह ‘भ्रष्टाचार’ से पूरी तरह मुक्त होने का प्रयत्न नहीं करेगी तब तक उसकी दुर्गति होती ही रहने वाली है. पंजाब में अपनी जीत पर इतराने की कांग्रेस के पास इसलिए कोई वजह नहीं है, क्योंकि वहां अकालियों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी तो आम आदमी पार्टी के केजरीवाल ने अपने कई नेताओं को ठीक चुनाव के पहले खो दिया था. नवजोत सिंह सिद्धू भी पहले उसी के दरवाजे गए थे, किन्तु केजरीवाल के अति आत्मविश्वास के कारण उन्हें कांग्रेस का दरवाजा खटखटाना पड़ा था. लब्बोलुआब यह कि उत्तराखंड की हार पर कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व के साथ राष्ट्रीय नेतृत्व भी गंभीरता से विचार करे, अन्यथा…
Web Title: Uttarakhand Election Results 2017, Hindi Article
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