World Hindi Day 2017 (Pic credit: Team Roar)
हिंदी की व्यापकता के बारे में अब कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि चीनी भाषा मंडारिन के बाद यह विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है. विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है. हिन्दी और इसकी बोलियाँ उत्तर एवं मध्य भारत के विविध राज्यों में तो बोली ही जाती हैं, साथ ही साथ अन्य देशों जैसे फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है.
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि जिस हिंदी को कुछ समय पहले तक ‘तकनीक और रोजगार’ की भाषा मानने में हिचक हो रही थी, उन तमाम बाध्यताओं को सफलतापूर्वक पार कर यह भाषा अपने कदम आगे बढ़ाती जा रही है. तमाम मल्टीनेशनल कंपनियां अपना व्यापार बढ़ाने के लिए हिंदी को अपनाती जा रही हैं तो ‘अंग्रेजियत’ का हव्वा दिन ब दिन कम होता जा रहा है.
गत 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया गया और ऐसे अवसरों पर तो बरबस ही इस महान भाषा का गुणगान करने को जी चाहता है. हालाँकि, इस भाषा के सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं तो ऐसी कुधारणाएं भी विराजमान हैं, जिनसे निपटा जाना आवश्यक है. अगर तथ्यों का क्रमवार विश्लेषण करते हैं तो वर्तमान में हिंदी के कई प्रकार सामने आते हैं, जैसे राष्ट्रभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं के सन्दर्भ में हिंदी, सरकारी हिंदी के साथ व्यापार और तकनीक की भाषा हिंदी इत्यादि.
राष्ट्रभाषा हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाएं
कहा जाता है हमारे देश में चार कोस पर वानी अर्थात भाषा बदल जाती है और इस लिहाज से हिंदी ही देश को एक सूत्र में बांधे रख सकती है. गुजरात में जन्मे आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद ने सत्यार्थप्रकाश हिंदी में ही लिखा तो, आजादी की लड़ाई में भी हिन्दी की भूमिका जबरदस्त रही है. महात्मा गाँधी के साथ सुभाष चंद्र बोस, रविंद्रनाथ टैगोर, बाल गंगाधर तिलक, भगत सिंह, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और राष्ट्रनायक लाला लाजपत राय जैसे महापुरुषों की मुख्य भाषा हिन्दी न होने के बावजूद देश में जनजागरण लाने के लिए उन्होंने हिंदी का ही प्रयोग उचित समझा. हिन्दी देश की एकता का मंत्र है और तमाम महापुरुषों ने इसे बार बार कहा है. इसकी देवनागरी लिपि जहाँ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लिपि मानी जाती है, वहीं विनोबा भावे, सर विलियम जोन्स, जान क्राइस्ट सहित दुनिया भर के विद्वान इसका समर्थन करते रहे हैं.
माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने एक बार अपने बयान में कहा था कि ‘जब बोलकर लिखने की तकनीक उन्नत हो जाएगी, हिन्दी अपनी लिपि की श्रेष्ठता के कारण सर्वाधिक सफल होगी’. यह बात आज हम चरितार्थ होते देख रहे हैं.
इतना सब होने के बावजूद, दुर्भाग्य से हमारे देश में हिंदी का प्राण रही दूसरी भारतीय भाषाओं को इससे तोड़ने का षड़यंत्र रचा जा रहा है. हर भाषा इस देश में महत्वपूर्ण है, किन्तु भाषाई राजनीति में जब हिंदी को लपेट लिया जाता है तो गहरी पीड़ा होती है. वैसे तो हमारे यहाँ तकरीबन 1600 से अधिक बोलियां और भाषाएं हैं, किन्तु यहाँ समझना आवश्यक है कि इन सब के बावजूद हिंदी ही भारतवासियों के बीच भाषा-सेतु के रूप में कार्य करती है. अवधी, ब्रज, भोजपुरी, अंगिका, बजिका, मैथिली, बुंदेलखंडी, मालवी, राजस्थानी (जिसमें मेवाड़ी, डिंगल सहित हर आंचल की अलग बोली भी शामिल है), हरियाणवी, कौरवी जैसी बोलियां खड़ी बोली के रूप में हिंदी कहलाती हैं, अतः इन बोलियों के प्रभाव क्षेत्र में हिंदी कोई बाहरी अथवा अजनबी भाषा नहीं है. कहीं न कहीं यह ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति को परिलक्षित करती है.
साहित्य अकादमी की भूमिका
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विनोद बब्बर इस सन्दर्भ में कहते हैं कि “साहित्य अकादमी ने भारतीय भाषाओं में विभेद पैदा करने का काम जानबूझकर अथवा अनजाने में किया है. डोगरी, बोड़ो, मैथिली जैसी सीमित क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाएं हमारे संविधान की आठवीं अनुसूची में होने के कारण साहित्य अकादमी में अलग स्थान रखती हैं, जिसके कारण अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी आठवीं अनुसूची में शामिल होने की मंशा ने जन्म लिया.
गौरतलब है कि साहित्य अकादमी ने राजस्थानी को अलग भाषा की मान्यता देते हुए उसके लिए अलग पुरस्कार देने की परम्परा आरम्भ की, इससे अन्य बोलियों में भी ऐसी मांग उठना स्वाभाविक सम्भावना थी, जो उठी भी. ऐसे में, सम्मान और पुरस्कारों की चाह में यह भाषाई उथल पुथल मचाने की कोशिश आज तक हो रही है.
World Hindi Day 2017 (Pic credit: Wikipedia)
अतः साहित्य अकादमी अगर पुरस्कारों का लोकतंत्रीकरण, अर्थात् जनसंख्या के अनुपात से पुरस्कार देने लगे तो मामला संतुलन में रहेगा, तो हिंदी सेवियों के ऊपर भी कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. डॉ. बब्बर आगे कहते हैं कि ‘हिन्दी भारतीय भाषाओं से शक्ति प्राप्त करती है तो भारतीय भाषाएं भी हिंदी से सबल प्राप्त करती हैं. वेे एक दूसरे के सहयोगी हैं, विरोधी नहीं. अतः इस दृष्टि में हिंदी सभी भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती है. समझना मुश्किल नहीं है कि यदि हिंदी पर संकट आता है तो भारतीय भाषाएं भी सुरक्षित नहीं रहने वालीं, इसलिए अपनी- अपनी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करने वालों को सद्भावना का विशेष ध्यान रखना चाहिए’. डॉ. विनोद बब्बर का उपरोक्त आंकलन सत्य के काफी नजदीक प्रतीत होता है, क्योंकि पिछले दिनों मारीशस से आये प्रसिद्ध हिंदी सेवी डॉ. रामदेव धुरंधर ने उस देश में हिंदी की दुर्दशा का चित्रण करते हुए भावुक हो गए. किन्तु, उस कार्यक्रम में उन्होंने आशावादिता से यह भी जोड़ा कि भोजपुरी मारीशस में बोली जाती है और उन्हें यकीन है कि ‘अगर मारीशस में भोजपुरी भी बच जाती है, तो हिंदी भी अवश्य ही बच जायेगी.’ निश्चित रूप से राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की गरिमा और क्षेत्रीय भाषाओं से उसके संतुलन को बचाने का यत्न करना चाहिए, अन्यथा ‘फूट डालने और राज करने’ वालों की मंशा पूरी हो जाएगी.
सरकारी, व्यापारिक और तकनीक की भाषा हिंदी
एक तरफ गर्व करने का मन करता है कि हिंदी बोलने, समझने, पढ़ने और लिखने वाले व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 अरब 78 करोड़ (अपुष्ट आंकड़ा) तक पहुँच गयी है. ऐसे में, जब हम सरकारी हिंदी की बात करते हैं तो बेहद निराशाजनक तस्वीर उभरती है. आप यदि किसी सरकारी विभाग में कोई प्रपत्र या फॉर्म देखें तो आप अपना माथा पीट लेंगे कि आखिर वह कौन सी हिंदी लिखी गई है! विश्व के लगभग तमाम बड़े देश और मल्टीनेशनल कंपनियां भारत को आज एक बड़ा बाजार मानती हैं और जमाना चूंकि बाजार का ही है, इसलिए यहां पैर जमाने के लिए वह हिंदी ज्ञान को प्राथमिकता भी दे रहे हैं. ऐसे ही, फिल्मों और विज्ञापनों की भाषा भी हिंदी है ही, जिससे सम्बंधित रिसर्च में यह देखा गया है कि जो विज्ञापन हिंदी में होते हैं, उनके उत्पादों की बिक्री कहीं ज्यादा होती है.
सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह राजकाज के सभी कार्यों में हिंदी को अनिवार्य करें, उसे सरल बनाए. पर अफसोस इसी बात का है कि एक ओर जहां हिंदी का डंका समूचे विश्व में बज रहा है, वहीं सरकारी कामकाज और न्यायालय जैसी जगहों पर भी हिंदी भाषा अपनी हालत पर रो रही है.
कितनी बड़ी बिडम्बना है कि आज एक भारतीय खुद से सम्बंधित मामलों में दिए जाने वाले अदालती फैसलों को हिंदी में नहीं देख सकता, क्योंकि वह अंग्रेजी में होते हैं. मजबूरन उसे वकील द्वारा बतायी गयी बातों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. हिंदी के वैश्विक स्तर के सम्मेलनो को जहां सरकार द्वारा और मनोयोग से करना चाहिए, वहीं गत विश्व हिंदी दिवस यानी 10 जनवरी 2017 को भारत में केंद्र सरकार द्वारा किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन ना होना निराशा उत्पन्न करने वाला था. संभव है, सरकार द्वारा कुछ जगहों पर खानापूर्ति की गयी हो, पर मामला तो व्यापकता का है. पिछली साल सितंबर में, मध्य प्रदेश के भोपाल में बड़े स्तर पर विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया, जो विवादों के लिए कहीं ज्यादा चर्चित रहा. तब पूर्व सेनाध्यक्ष और केंद्र में राज्यमंत्री वीके सिंह ने यह कहकर हंगामा बरपा दिया था कि ‘सम्मेलनों में साहित्यकार शराब पीने, खाना खाने और एक दूसरे की आलोचना करने आते हैं. अब इस तरह के विवादों से हिंदी की गरिमा कितनी आगे बढ़ती है, यह विचारने योग्य बात है. इसके साथ-साथ इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि आजादी के बाद से ही हमारी सरकारों का रवैया हिंदी को लेकर पक्षपातपूर्ण रहा. कई पत्रकार और संपादक इस बात का ज़िक्र करना नहीं भूलते हैं कि अंग्रेजी समाचार पत्रों को करोड़ों के विज्ञापन और भाषायी समाचार पत्रों से भेदभाव किया जाता रहा है, जो आज भी जारी है.
चीन के विकास की आज हम खूब चर्चा करते हैं, किन्तु यह भूल जाते हैं कि उसने खुद की भाषा में ही अपना विकास किया. आज भारत में भी आप चीन निर्मित कोई प्रोडक्ट खरीदते हैं तो उसके कैटलॉग पर इंग्लिश के साथ चीन में दिशा निर्देश छपे होते हैं. ऐसे में क्या हमें कुछ सीख नहीं लेनी चाहिए?
World Hindi Day 2017, Google Hindi Input (Pic credit: Google Inc.)
जहाँ तक तकनीक में हिंदी के प्रयोग की बात है तो सरकारी प्रयासों के बिना ही यह बेहद तेजी से आगे बढ़ रही है. हाँ, हिंदी को कई जगहों पर इन्स्क्रिप्ट और ‘हिंगलिश’ या रोमन में जरूर लिखा जा रहा है, किन्तु जैसे जैसे तकनीक विकसित होती जाएगी, देवनागरी लिपि के प्रयोग की स्पष्ट विधि भी निकाल ली जायेगी. हाल-फिलहाल तो गूगल और दूसरी कंपनियों ने हिंदी लिखने के लिए जो तकनीक ईजाद की हैं, उसमें बोलकर लिखने की तकनीक सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. हालाँकि, इसका प्रयोग अभी व्यापक स्तर पर शुरू नहीं हुआ है, किन्तु वह दिन दूर नहीं जब तकनीक के क्षेत्र में भी हिंदी अंग्रेजी भाषा को पटखनी दे देगी. वैसे भी, आज के समय में सोशल मीडिया से लेकर ब्लॉग्स और तमाम वेबसाइट माध्यमों पर यह बेहद समृद्ध रूप में मौजूद है, जिसे आगे बढाए जाने की आवश्यकता है.
Web Title: World Hindi Day 2017
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