जोहरा सहगल!
जिसके नाम का मतलब ही होता है ‘हुनरमंद', भला उसे अपने नाम का परिचय देने की क्या ज़रूरत. अपने नृत्य और अभिनय से सबका दिल जीतने वाली जोहरा के नाम को कौन नहीं जानता.
उनके दीवानों की लिस्ट में आम लोगों से लेकर खास लोगों का नाम है. इस लिस्ट में अभिनेत्री करीना कपूर का भी नाम है, जिन्होंने ये कहा था कि वो 80 साल की उम्र में जोहरा की तरह दिखने की चाह रखती हैं.
102 साल की उम्र तक दुनिया को अपनी कला के सुन्दर रंगों से सराबोर करने वाली जोहरा के बारे में जानना दिलचस्प रहेगा.
जोहरा ने एक सदी से भी ज्यादा भारत में कला जगत को देखा और महसूस किया. इस क्षेत्र में उन्होंने बुलंदियों को छुआ. जानते हैं, जोहरा सहगल की ज़िंदगी को, उनके जीवन से जुड़े खट्टे-मीठे पन्नों को पलटकर-
एक साल की उम्र में लगभग खो दी थी आंखों की रोशनी!
जोहरा का जन्म 27 अप्रैल, 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुआ था. नन्ही जोहरा रामपुर के नवाब घराने, रोहिल्ला पठान खानदान में पैदा हुईं थी. उनके सात भाई-बहन थे. उनका पूरा नाम साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताजेउल्लाह था. लेकिन आगे चलकर वो जोहरा के नाम से जानी गयी.
अभी नन्ही जोहरा को इस दुनिया में एक साल ही बीते थे कि उन्हें शुरुआती दिनों में ही कई कठिनाइयों का सामना किया. दरअसल, जब वह एक साल की थीं, तब ग्लूकोमा की शिकार हो गईं. इसी की वजह से उनकी आंखों की रोशनी भी लगभग चली ही गयी थी. हालांकि, बाद में उनका समय पर इलाज़ हो जाने से वह ठीक हो गईं.
जोहरा की सबसे करीब रहीं उनकी माँ का साया भी उनके सिर से जल्दी उठ गया. बचपन में ही उनकी माँ गुज़र गईं. उनकी माँ हमेशा से चाहती थी कि उनकी बेटी खूब पढ़े-लिखे.
अपनी माँ की इस इच्छा को उन्होंने पूरा किया. लिहाज़ा, उन्होंने साल 1929 में मेट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद उन्होंने लाहौर के क्वीन मैरी कॉलेज में ग्रेजुएशन के लिए दाखिला लिया और 1933 में ग्रेजुएशन की डिग्री भी प्राप्त कर ली.
डांस की तरफ बढ़ते रुझान से खुश नहीं थे परिवार वाले!
पढ़ाई पूरी करने के बाद अब जोहरा की रूचि नृत्य की ओर बढ़ रही थी. दरअसल, वो इजाडोरा डंकन के नृत्य से बहुत प्रभावित थीं. उन्हीं को देखकर उनका रुझान बढ़ता जा रहा था.
लेकिन, वह एक राजघराने से आती थीं जहां नाचना-गाना एक बुरी चीज़ माना जाता था. साथ ही, रुढ़िवादी मुस्लिम परिवार उन्हें किसी भी कीमत पर नृत्य नहीं करने देता.
25 बरस की जोहरा भी अपने सपनों को यूँ नहीं दम तोड़ते हुए देख सकती थीं. उन्हें पता था कि अगर अपने सपनों को पूरा करना है तो खुद ही कुछ करना पड़ेगा.
लिहाज़ा, वह पहले अपने मामा के साथ विदेश यात्रा पर गईं और फिर वहीं जर्मनी में रूककर एक डांस स्कूल में दाखिला ले लिया. इसी के साथ उन्होंने अपने सफ़र की शुरुआत कर दी थी जो आगे चलकर नहीं थमी.
इसके बाद साल 1935 में वह बैले डांसर पंडित उदयशंकर की नृत्य मंडली में शामिल हुईं. इस दौरान, उन्होंने जापान, सिंगापुर, रंगून समेत कई देशों में प्रस्तुति दी.
...और जब अपने एक छात्र से ही लगा बैठीं दिल!
इस बार भारत लौटने के साथ ही वह अच्छी-खासी लोकप्रिय हो चुकी थीं. इसी दौरान साल 1939 में पंडित उदयशंकर ने अलीगढ़ में एक डांस अकादमी खोली. जिसका नाम ‘उदयशंकर सांस्कृतिक केंद्र’ था.
अब जोहरा यहीं बतौर डांस टीचर काम करने लगीं. वह अकादमी में युवाओं को नृत्य सिखाती थीं. इसी दौरान उनके जीवन में प्यार ने दस्तक दी. दरअसल, उन्हें अकादमी में नृत्य सीख रहे एक छात्र से प्यार हो गया. इंदौर से आए उनके छात्र कामेश्वर सहगल से वह आठ साल बड़ी थीं. पर कहते हैं न, इश्क ये सब देखकर थोड़ी न होता है.
यहां भी कुछ यही हाल था. दोनों का प्यार परवान चढ़ा और इस प्यार को उन्होंने शादी का नाम दिया. कामेश्वर भी नृत्य और पेंटिंग के बहुत शौक़ीन थे. कुछ ही दिनों बाद दोनों ने मिलकर एक डांस अकादमी खोली. लाहौर में खुली इस अकादमी का नाम जोरेश डांस इंस्टिट्यूट था.
‘नीचा नगर' फिल्म से रखा बॉलीवुड में कदम!
जोहरा मुंबई के ‘इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा)’ का हिस्सा बन गई थीं. इसी की मदद से उन्होंने साल 1946 में आई फिल्म ‘नीचा नगर’ से बॉलीवुड में कदम रखा. उनके द्वारा निभाया गया ये किरदार बहुत छोटा था. उनके बॉलीवुड करियर की शुरुआत यहीं से हुई थी.
आपको बता दें, अंतर्राष्ट्रीय प्रोत्साहन पाने वाली यह पहली भारतीय फिल्म थी. इस फिल्म ने कान फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड जीता था.
खैर, साल 1947 में विभाजन के बाद उन्हें अपने इंस्टिट्यूट को बंद करना पड़ा. वह लाहौर से अब मुंबई आ गयी. यहाँ आकर वह पृथ्वी थिएटर से भी जुड़ीं. इसी के साथ उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ कोरियोग्राफी भी की.
...और पति की आत्महत्या के बाद अकेली हो गईं!
जोहरा के पति कामेश्वर साल ने 1959 में आत्महत्या कर ली. अपने अवसाद की वजह से वह काल के गाल में समा गए. उनके पति को नृत्य और पेंटिंग का अच्छा खासा ज्ञान था. इसके बावजूद उन्हें मन मुताबिक लोकप्रियता नहीं मिल पायी.
यही कारण रहा कि वो बहुत परेशान रहने लगे और गहरे डिप्रेशन में चले गए. इस डिप्रेशन का अंत उन्होंने खुद की जान लेकर कर दिया.
अपने पति की मृत्यु के बाद जोहरा अकेली पड़ गईं. लिहाज़ा, पति की मृत्यु के तीन साल बाद उन्होंने लंदन का रुख किया. एक कलाकार जहाँ रहता है वहीं अपने कला के रंग बिखेरने लगता है.
कुछ ऐसा ही था जोहरा के साथ भी!
लंदन जाकर उन्होंने फिल्म, टीवी और रेडियो में काम किया. जिसमें से उन्होंने कुछ प्रसिद्ध अंग्रेजी फिल्मों जैसे ‘नेवर से डाई’, ‘रेड बिंदी’, ‘पार्टीशन’, और ‘तंदूरी नाइट्स’ में काम किया.
काफी समय विदेश में बिताने के बाद उन्होंने 90 के दशक में फिर से बॉलीवुड में वापसी की. इस दौरान, उन्होंने ‘दिल से’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘वीर जारा’, ‘चीनी कम’ और ‘सांवरिया’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से सबका दिल जीता.
साल 2014 में 102 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके खट्टे-मीठे किरदारों की तस्वीर हर किसी के ज़हन में आज भी ताज़ा है.
उनकी जिंदादिली और जीवन जीने के नज़रिए को उन्ही द्वारा कही गयी ये लाइन सटीक बैठती है. वो कहती हैं , ‘जिंदगी मुश्किल रही लेकिन मैं उससे ज्यादा मजबूत रही. मैंने जिंदगी को उसी के खेल में हरा दिया.’
Web Title: Zohra Sehgal: An Artist who Had Given Her Entire Life To Art, Hindi Article
Feature Image Credit: storypick