इतिहास एक दिन में नहीं बनता, लेकिन हर दिन इतिहास के बनने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है.
15 जून के इतिहास के लिए भी यही मायने हैं. इस दिन इतिहास की कुछ बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं.
तो आईए नज़र डालते हैं, इस दिन घटी ऐतिहासिक घटनाओं पर-
औरंगजेब ने संभाली दिल्ली की बागडोर
15 जून 1659 के दिन औरंगजेब ने दूसरी बार अपना राज्याभिषेक करवाया. यह राज्याभिषेक उसने उत्तराधिकार की लड़ाई को जीतने के बाद करवाया, जोकि मुख्य रूप से दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच लड़ी गई थी.
बताते चलें कि औरंगजेब और दारा शिकोह मुग़ल शासक शाहजहाँ के पुत्र थे.
16 सितंबर 1657 के दिन शाहजहाँ गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. इस कारण दिल्ली में राजनीतिक संकट पैदा हो गया. ऐसे में शाहजहाँ ने शिकोह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. इस घोषणा से औरंगजेब खासा नाराज हो गया और राज्य में गृह युद्ध के बादल उमड़ने लगे. इस बीच शाहजहां अपनी हालत में सुधार के लिए आगरा चले गए.
आगे औरंगजेब ने दारा शिकोह पर युद्ध घोषित कर दिया. उसने पहले आगरा के किले को अपने नियंत्रण में ले लिया और शाहजहाँ को वहीं पर कैद कर लिया. बाद में 1666 में यहीं पर शाहजहाँ की मृत्यु हो गई.
अपने पिता को कैद करने के बाद औरंगजेब शाहजहानाबाद वापस लौट आया और उसने अपने भाई मुराद को भी कैद कर लिया. मुराद इस लड़ाई में दारा शिकोह की ओर था. इसी तरह 31 जुलाई 1658 को औरंगजेब का पहला राज्याभिषेक हो गया.
किन्तु, अभी शुजा और दारा शिकोह ने हार नहीं मानी और लड़ाई जारी रखी.
हालांकि, जनवरी 1659 में औरंगजेब ने शुजा को हरा दिया. वहीं आगे जून 1659 में औरंगजेब के सिपहसलहार मलिक जीवान ने दारा शिकोह को सिंध में धोखे से कैद कर लिया और उन्हें औरंगजेब को सौंप दिया. इस प्रकार अंततः औरंगजेब की जीत हुई और उसने 15 जून 1659 को दोबारा से अपना राज्याभिषेक करवाया.
आगे उसने दारा शिकोह को मौत के घाट उतार दिया.
कांग्रेस ने स्वीकार की विभाजन की रूप-रेखा
15 जून 1947 के दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंग्रेजों द्वारा बनाई गई भारत-पाकिस्तान योजना को स्वीकार कर लिया.
यह योजना गुलाम भारत के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने बनाई, इसलिए इसे माउंटबेटन योजना के नाम से भी जाना जाता है. अब तक के ज्ञात इतिहास में भारत-पकिस्तान विभाजन सबसे हिंसक और दर्दनाक घटनाओं में से एक है.
इस विभाजन के साथ व्यापक स्तर पर सांप्रदायिक दंगे हुए. इनमें बहुत से निर्दोषों का खून बहा और औरतों का बलात्कार हुआ.
असल में मुस्लिम लीग नाम का एक राजनीतिक दल धर्म के आधार पर मुसलमानों के लिए अलग देश बनाने की मांग कर रहा था. इससे पहले हिन्दू महासभा से संबंध रखने वाले वी.डी. सावरकर ने द्विराष्ट्र सिद्धांत का प्रतिपादन करके धर्म के आधार पर भारत को दो भागों में विभाजित करने की मांग की थी.
उनका कहना था कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते हैं, इसलिए उन्हें अलग-अलग राष्ट्रों में रहना चाहिए. आगे इन्हीं मांगों को लेकर भारत में सांप्रदायिक खाई चौड़ी होती गई, जिसका खामियाजा 1947 में विभाजन के रूप में अमन पसंद लोगों को भुगतना पड़ा.
जॉर्ज वाशिंगटन बने सेना प्रमुख
15 जून 1775 के दिन जॉर्ज वाशिंगटन को महाद्वीपीय सेना का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी मिली. यह जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई और अमेरिका को स्वतंत्रता मिलने के बाद वे देश के पहले राष्ट्रपति बने.
एक ब्रटिश नागरिक के रूप में जन्म लेने के बाद जॉर्ज वाशिंगटन 1770 में ब्रिटिश सेना के उच्च अधिकारी के रूप में तैनात थे. आगे 1774 में वे महाद्वीपीय कांग्रेस में शामिल हो गए. महाद्वीपीय कांग्रेस ब्रिटेन से अमेरिका को स्वतंत्र कराने के लिए पूरी जी- जान से जुटी हुई थी. कांग्रेस ने जब वाशिंगटन को अपनी सेना का नायक चुना, तब वे अपने परिवार के कारोबार में हाथ बटा रहे थे. उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वे सेना के प्रमुख बना दिए जाएंगे.
अपनी नई जिम्मेदारी को स्वीकार कर लेने के बाद जॉर्ज ने अपनी पत्नी को पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने लिखा कि उन्हें अपनी पत्नी को छोड़कर चले आने का बहुत दुःख है, लेकिन वे अपनी नई जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं.
ऐसा करने से पहले तो वे खुद को अपमानित करेंगे और दूसरा इससे उनके दोस्तों को भी बहुत कष्ट होगा. उन्होंने आगे लिखा कि उन्हें आशा है कि वे जल्द ही अपना काम पूरा करके अपनी प्रिय पत्नी के पास वापस लौट आएँगे.
3 जुलाई 1975 को वाशिंगटन ने आधिकारिक रूप से महाद्वीपीय सेना का नेतृत्व संभाला.
इसके बाद उन्होंने छः साल तक क्रूर ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ संघर्ष किया. शुरुआत में उन्हें कई जगहों पर हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 1981 में आखिरकार ग्रेट ब्रिटेन को उनके सामने समर्पण करना ही पड़ा.
मैग्ना कार्टा पर लगी मुहर
15 जून 1215 के दिन इंग्लैण्ड के राजा जॉन ने मैग्ना कार्टा नाम के दस्तावेज पर अपनी मुहर लगा दी.
यह दस्तावेज राजा और उसके प्रशासकों के बीच एक शांति-समझौता था. इस समझौते के अनुसार राजा को अपने सामंतों के सामंती अधिकारों, चर्च की स्वतंत्रता और देश के नियमों का सम्मान करना था.
मैग्ना कार्टा के इस समझौते को आज ब्रिटेन के प्रजातंत्रीय विकास के सबसे पहले चरण के रूप में देखा जाता है. इससे पहले 1199 में जॉन इंग्लैंड की गद्दी पर बैठा था. उसने शासन संभालते ही अपने प्रशासकों के ऊपर अधिक कर इकठ्ठा करने का दवाब बनाया. साथ ही चर्च के पोप से लड़ाई करके चर्च की संपत्ति भी बेच दी.
इसी क्रम में उसने नोर्मेदी राज्य को भी फ़्रांस के हाथों गंवा दिया. इस हार के बाद पोप ने सामंतों को इकठ्ठा किया और राजा से अपने- अपने अधिकारों की बहाली करने की मांग करने को कहा.
आगे इन सामंतों ने राजा के खिलाफ विद्रोह खड़ा किया तो विवश होकर राजा को मैग्ना कार्टा पर मुहर लगानी पड़ी.
तो ये थीं 15 जून को इतिहास में घटीं कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं.
अगर आपके पास भी इस दिन से जुड़ी किसी महत्वपूर्ण घटना की जानकारी हो, तो हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं.
Web Title: Day In History 15 June, Hindi Article
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